This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_right
मम्मीजी आने वाली हैं-2
-
View all stories in series
नमस्कार दोस्तो मेरा नाम महेश कुमार है और मैं एक सरकारी नौकरी करता हूँ। सबसे पहले तो मैं आपने मेरी पिछली कहानी
खामोशी: द साईलेन्ट लव
को पढ़ा और उसको इतना पसन्द किया उसके लिये आप सभी पाठकों का धन्यवाद करता हूँ। मैं अब उसके आगे की एक नयी कहानी लिख रहा हूँ, उम्मीद है कि ये कहानी भी आपको पसन्द आयेगी।
जैसा कि आपने मेरी पिछली कहानी ‘खामोशी: द साईलैन्ट लव’ में मेरे और मोनी के सम्बन्धों के बारे में पढ़ा। मोनी के साथ कुछ दिन रहने के बाद मैं वापस अपने घर आ गया था और कुछ दिन बाद ही मुझे पता चल गया कि मोनी पेट से है जिसे सुनकर मुझे भी काफी खुशी हुई।
खैर मोनी के पास से आने के बाद मेरे दिन अब ऐसे ही निकल रहे थे कि एक दिन कुछ ऐसा हो गया कि मेरे लिये एक नयी ही चुत का इंतजाम हो गया। मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि ऊपर वाला मेरे लिये इतनी जल्दी एक नयी चुत का स्वाद चखने इंतजाम कर देगा।
सही में नयी नयी चुत का स्वाद चखने के मामले में तो कभी कभी मैं अपने आप को बहुत ही भाग्यशाली समझता हूँ, क्योंकि अभी कुछ दिन ही तो हुए थे जब मुझे मोनी की नयी और इतनी कसी हुई चुत का स्वाद चखने को मिला था और अब ये …
चलो अब ज्यादा समय ना लेते हुए मैं सीधा कहानी पर आता हूँ, मगर कहानी शुरु करने से पहले मैं अपनी हर एक कहानी की तरह ही इस बार भी वही दोहरा रहा हूँ कि मेरी सभी कहानियां काल्पनिक है जिनका किसी के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है अगर होता भी है तो मात्र ये एक संयोग ही होगा।
जैसा आपने मेरी पिछली कहानी में पढ़ा कि मेरा पैर टूट जाने की वजह से मैं किसी भी कोलेज में दाखिला नहीं ले सका था इसलिये मैं अब ऐसे ही घर में पड़ा रहता था। वैसे तो मैं कुछ करता नहीं था मगर हां, मैं अब भी अपनी भाभी की घर के काम हाथ जरूर बंटा देता था जिससे मेरी भाभी भी खुश होकर कभी कभी मुझे अपनी जवानी का रस पिला देती थी।
मेरे दिन अब ऐसे ही गुजर रहे थे कि एक दिन शाम के समय मैं अपनी भाभी के कहने पर हमारी छत से सूखे हुए कपड़े लेने चला गया। वैसे जब से मैं पिंकी के साथ पकड़ा गया था तब से हमारी छत पर जाता नहीं था, मगर उस दिन मेरी भाभी किसी दूसरे काम में व्यस्त थी इसलिये उन्होंने छत से कपड़े लेने के लिये मुझसे बोल दिया।
मैं हमारी छत पर सूखे हुए कपड़े तार पर से उतार ही रहा था कि तभी पिंकी की भाभी भी छत पर आ गयी। वो भी छत पर से कपड़े ही लेने आई थी मगर उसने मुझे देखते ही पूछा- क्या बात है जब से पिंकी गयी है तब से छत पर तो दिखाई ही नहीं देते?
उसने तार पर से कपड़े उतारते हुए कहा।
मेरे जो पुराने पाठक है उन्होंने तो मेरी पुरानी कहानी
मेरी अय्याशियां पिंकी के साथ
में मेरे और पिंकी के बारे में पढ़ा होगा मगर जो नये पाठक है वो शायद पिंकी के बारे में नहीं जानते, उसके लिये मैं यहां कहानी का लिंक शेयर कर रहा हूँ.
मेरी पुरानी कहानी ‘मेरी अय्याशियां पिंकी के साथ’ में मैंने पिंकी की भाभी का ज्यादा जिक्र नहीं किया था बस इतना ही था कि उसने मेरा और पिंकी का काम बिगाड़ दिया था। उसने मुझे और पिंकी को रंगे हाथ पकड़ लिया था इसलिये मुझे अभी तक उनके सामने जाने में झिझक सी लगती थी और इसलिये ही मैं छत पर नहीं जाता था।
जब से मेरा और पिंकी का भांडा फूटा था तब से मैं ना ही उनके घर जाता था और ना ही पिंकी की भाभी से कभी बात करता था। वो भी मुझसे कभी बात नहीं करती थी मगर आज जब उसने खुद आगे से ही मुझे छेड़ दिया तो मुझसे भी अब रहा नहीं गया.
“सारा किया धरा तो आपका ही है!” मैंने भी ताव ताव में बोल दिया।
“अच्छा … मैंने क्या किया है?” उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा।
“सारा काम ही आपने बिगाड़ा था.” मैंने वैसे ही मुंह बनाते हुए कहा।
“बिगाड़ा था तो तुम अब फिर से बना लो, आ रही है पिंकी अगले महीने। वैसे मैंने तो तुम्हारे अच्छे के लिये ही किया था। वो उम्र थी तुम्हारी ये सब करने की?” उसने सारे कपड़े उतारकर अब हमारी छत के पास आते हुए कहा।
पिंकी की भाभी की बात सुनकर मुझे अब झटका सा लगा और मेरा सारा गुस्सा एक पल में ही गायब हो गया. क्योंकि कल तक तो वो मुझे और पिंकी को पकड़ने की फिराक में रहती थी और आज वो खु्द ही मुझे बता रही थी की अगले महीने पिंकी आ रही है।
पहले जब मेरे और पिंकी के सम्बन्ध थे, तब मैं पिंकी की भाभी से काफी हंसी मजाक कर लिया करता था जिसको वो कभी बुरा नहीं मानती थी। वो देखने में भी काफी सुन्दर है इसलिये पिंकी के साथ साथ मेरी नजर उस पर भी रहती थी.
मगर मुझे पिंकी और मेरी खुद की भाभी से ही मुझे फुर्सत नहीं मिलती थी इसलिये मैं उसके साथ ज्यादा कुछ करने की कोशिश नहीं कर सका था। और बाद में तो मेरा और पिंकी का भांडा ही फूट गया था इसलिये मैं उससे दूर ही रहने लगा था।
खैर जब उसने ही शुरुआत कर दी तो अब मैं कहां पीछे रहने वाला था। मेरा मिजाज भी अब बदल गया… “और अब? अब हो गयी?” मैं भी अब थोड़ा मस्ती के से मिजाज में आ गया था इसलिये मैंने भी अब मजाक करते हुए कहा, मगर उसने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया.
“क्यों अब हो गयी क्या मेरी उम्र?” उसने जब पहली बार में कोई जवाब नहीं दिया तो मैंने उसके चेहरे की देखते हुए फिर से पूछ लिया जिससे वो अब हंसने लग गयी।
“मुझे क्या पता? आ रही है पिंकी अगले महीने … उसी से पूछ लेना!” उसने हंसते हुए कहा और हमारी छत व उनकी छत के बीच जो पतली और छोटी सी दीवार है उसके पास आकर खड़ी हो गयी।
मैं अब आगे कुछ कहता मगर तभी …
“अरे क्या करने लग गयी? ये लड़की रो रही है!” उनके घर से पिंकी की मम्मी की आवाज सुनाई दी।
“ज..जी अभी आई.” कहते हुए वो अब जल्दी से नीचे चली गयी।
अब वो तो चली गयी मगर मेरे दिल में एक नयी ही उम्मीद सी जगा गयी। नहीं … यह उम्मीद पिंकी के आने की नहीं थी बल्कि पिंकी की भाभी को ही पाने की ललक थी. क्योंकि मुझसे बात करते हुए उसकी आँखों में मुझे एक अजीब ही शरारत सी दिखाई दे रही थी।
आपने कभी किसी लड़की या औरत को पटाया होगा तो आपको पता होगा कि उसकी शुरुआत सबसे पहले आँखों से ही होती है। वो लड़की या औरत पटेगी या नहीं इसका अन्दाजा अधिकतर उसके देखने के तरीके से ही हो जाता है।
अब इतना अभ्यास तो मुझे भी हो ही गया था। साल भर से भी ज्यादा हो गया था मुझे उससे बात किये मगर आज उसने खुद ही पहल की थी और जिस तरह से वो अपनी आँखों को नचा नचा कर मुझसे बात कर रही थी उससे तो यही लग रहा था कि थोड़ी सी कोशिश करने पर ये पका हुआ आम खुद ब खुद ही मेरी झोली में गिर जायेगा।
मैंने मेरी उस कहानी में पिंकी के परीवार और उसकी भाभी का ज्यादा जिक्र नहीं किया था बस इतना ही था कि पिंकी की भाभी ने मुझे और पिंकी को रंगे हाथ पकड़ लिया था। मगर अब बात चली है तो मैं सबसे पहले आपको उनके परिवार और पिंकी की भाभी के बारे में बता देता हूँ।
पिंकी की भाभी का नाम स्वाति है जो 27-28 साल की होगी। रंग रूप में वो जितनी खूबसूरत है उतना ही आकर्षक उसका बदन भी है। वो पहले ही काफी सुन्दर थी, ऊपर से अभी पांच छः महीने ही उसको बच्चा हुआ है जिससे उसके रंग रूप में अब तो और भी निखार आ गया था। उसकी चूचियाँ पहले ही सुडौल व बड़ी बड़ी थी ऊपर से उनमें अब दूध भर आने से उसके जोबन और भी बड़े और इतने आकर्षक हो गये थे कि देखते ही मुंह में पानी आ जाये।
स्वाति भाभी का पति दिल्ली में एक लिमिटेड कम्पनी में काम करता है और काम के सिलसिले में वो एक-एक दो-दो महीने बाहर ही रहता है। घर पर तो वो बस महीने दो महीने में दो चार दिन ही आता है नहीं तो बाहर ही रहता है। पिंकी के पापा का तो पहले ही निधन हो गया था घर में बस अब उसकी मम्मी ही है जिसकी वजह से स्वाति भाभी को घर पर ही रहना पड़ता है। स्वाति भाभी की बातें व देखने के अन्दाज से लग रहा था कि उसको भी मुझमें काफी रुचि है, और फिर इन सब कामों में मैं तो हूँ ही पक्का ठरकी … इसलिये मेरा तो ध्यान ही इन बातों में रहता है।
खैर स्वाति भाभी के चले जाने के बाद अब मैं भी नीचे आ गया. मगर मेरा अब ये रोज का काम हो गया कि जब भी शाम के समय स्वाति भाभी छत पर आती, मैं भी टहलने के बहाने छत पर रोज पहुंच जाता जिससे अब मेरी और स्वाति भाभी की बातचीत का सिलसिला शुरु हो गया।
स्वाति भाभी भी मेरी बातों में खूब रूचि दिखाती थी इसलिये मैं भी उनसे इधर उधर की बातें करने रोज छत पर आ जाता। अब बातचीत होने लगी तो धीरे धीरे हंसी मजाक और फिर एक दूसरे से छेड़छाड़ भी होने लग गयी मगर असल में तो मेरी नजरे उनके दोनो पपितो पर रहती थी जिसको वो भी शायद अच्छे से समझती थी, पर कुछ कहती नहीं थी।
वो भी अनजान बनकर मुझे अपने पपीतों के जी भरकर दर्शन करवाती थी जिससे अब मेरी भी हिम्मत बढ़ गयी। उससे बातें करते करते मैं अब कभी उसका हाथ पकड़ लेता तो कभी उसके बदन को सहला देता जिसका वो इतना विरोध नहीं करती थी, बस बातों बातों में हंसकर टाल देती थी।
अब ऐसे ही एक दिन शाम के समय स्वाति भाभी कपड़े लेने जब छत पर आई तो मैं भी छत पर पहुंच गया। उस दिन काफी जोर से हवा चल रही थी जिसके कारण तार पर से लगभग उसके सारे कपड़े ही उड़कर नीचे गीरे हुए थे जिनको वो एक एक कर बीन रही थी। तभी मेरी नजर हमारी छत पर पड़ी उसकी एक ब्रा पर चली गयी। शायद तेज हवा कर कारण उसके एक दो कपड़े उड़कर हमारी छत पर भी आ गये थे जिनमें तौलिया और उनकी एक ब्रा भी थी।
शायद ब्रा और पेंटी को उन्होंने तौलिये के नीचे छुपाकर सुखाया था जिनमें से उसकी पेंटी तो वही उनकी छत पर ही गिर गयी थी मगर तौलिये के साथ साथ उनकी ब्रा इधर हमारी छत पर आ गिरी थी.
ब्रा को मैंने अब तुरन्त ही उठा लिया और ‘ये आपकी है क्या?’ मैंने उस ब्रा को उठाकर स्वाति भाभी को दिखाते हुए कहा।
तब तक स्वाति भाभी ने भी छत पर गिरे हुए सारे कपड़े उठा लिये थे अब जैसे ही उसने मुझे अपनी ब्रा को उठाये देखा तो ‘ओय … लाओ इधर दो इसे!’ उसने जल्दी से हमारी छत की ओर लगभग दौड़कर आते हुए कहा।
“ये इतनी छोटी सी आपको आ जाती है?” मैंने उसे फैलाकर देखते हुए कहा जिससे वो शर्म से लाल हो गयी और उसके छेहरे पर शर्म के कारण हल्की सी मुस्कान सी आ गयी।
“क्या कर रहे हो? दो इधर इसे!” उसने हंसते हुए कहा और तुरंत ही मेरे हाथ से उस ब्रा को छीन लिया।
“इसमें आपके आ जाते हैं?” मैंने अब फिर से दोहरा दिया।
स्वाति भाभी शर्मा तो रही ही थी अब जैसे ही मैंने फिर से पूछा शायद अनायास ही अनजाने में उसके मुंह से भी ‘क्या?’ निकल गया।
अब स्वाति भाभी का क्या कहना हुआ कि ना जाने मुझमें इतनी हिम्मत कहा से आ गयी ‘ये …’ कहते हुए मैंने तुरन्त ही अपना एक हाथ आगे बढ़ाकर उसकी एक चुची पर रख दिया.
स्वाति भाभी पहले ही शर्म से लाल हो रही थी. अब जैसे ही मैंने उसकी चुची को हाथ लगाया तो …
“अ.ओ.ओय … हट हट … क्या कर रहे हो?” कहते हुए वो तुरन्त ही पीछे हट गयी।
मेरी इस हरकत से स्वाति भाभी ने मुझ पर गुस्सा नहीं किया था, बस हंसकर थोड़ा सा पीछे हट गयी थी जिससे अब मेरी भी हिम्मत बढ़ गयी।
“क्क्.. कुछ नहीं, मैं तो बस देख रहा हूँ…” मैंने हंसते हुए कहा।
“अच्छा … जाकर अपनी भाभी के देखो!” उसने भी नजरें मटकाते हुए कहा।
“अरे … वो कहां … और और आप कहां! आपको तो ऊपर वाले ने बड़ी ही फुर्सत से बनाया है!” मैंने हसरत से उसे देखते हुए कहा।
मेरी नियत का तो उसे पहले से ही पता था, अब तो वो मेरे इरादे भी समझ गयी थी. मगर फिर भी वो वहां से हटी नहीं और वैसे ही दीवार के पास खड़ी रही।
“अच्छा अब ज्यादा मक्खन मत लगा, बता तो दिया आ रही है पिंकी अगले महीने … तब देख लेना और… और!” कहते-कहते वो अब अटक सी गयी।
“और और और क्या?” मैंने हंसते हुए कहा जिससे वो शर्मा गयी।
“और … और क्या पूछ लेना उसी से, और वो जो कहेगी वो कर लेना!” उसने शर्माते हुए कहा।
“और आप … आप क्या कहती हो?” कहते हुए मैंने अपना एक हाथ फिर से उसकी चूचियों की तरफ बढ़ा दिया.
“अ.ओय्.य … क्या है?” मेरे हाथ को झटकते हुए वो थोड़ा सा और पीछे हो गयी। वैसे उसकी चुचियां तो मेरे हाथ की पहुंच से दूर थी मगर मेरे हाथ को झटकने से उसका एक हाथ अब मेरी पकड़ में आ गया जिसे पकड़कर मैंने उसे अब फिर से अपनी तरफ खींच लिया.
जिससे वो घबरा सी गयी और चारों तरफ देखते हुए
“ओय्.य क्या कर रहा है … छोड़ … छोड़ मुझे…” स्वाति भाभी जल्दी से अपने हाथ को छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा।
“अरे कुछ नहीं, बस देख ही तो रहा हूँ!” कहते हुए मैंने अपने दूसरे हाथ से अब सीधा ही उसकी एक चुची को पकड़कर उसे जोर से मसल दिया. जिससे वो जोर से कसमसा उठी और पहले की तरह ही चारों तरफ देखते हुए अब तो और भी जोर से कसमसाकर अपने आप को छुड़ाने की कोशिश करने लगी।
स्वाति भाभी इस बात से इतना नहीं डर रही थी कि मैंने उसका हाथ पकड़ा हुआ है और मैं उनकी चुची को मसल रहा हूँ, बल्कि शायद इस बात से ज्यादा डर रही थी कि कोई हमें देख ना ले क्योंकि शाम समय आस पास के घरों में अधिकतर लोग छतों पर होते हैं।
वैसे मेरा दिल तो उसे छोड़ने को नहीं कर रहा था मगर मैंने एक बार उसकी चुची को जोर से भींचकर उसे छोड़ दिया क्योंकि छत पर किसी के देख लेने का जितना डर स्वाति भाभी को था उतना ही डर मुझे भी था।
मेरे छोड़ते ही स्वाति भाभी अब मुझसे बिल्कुल दूर जाकर खड़ी हो गयी और बनावटी सा गुस्सा करते हुए!
“अच्छा … पिंकी के साथ साथ अब मुझ पर नजर लगाये बैठे हो.” उसने अपनी आंखें इधर उधर मटकाते हुए कहा।
“नजरें कहां … मैं तो हाथ लगा रहा था.” कहते हुए मैंने अपना हाथ अब झूठमूठ में ऐसे एक बार फिर से उसकी ओर बढ़ा दिया.
“औय्य … क्या है चल हट …” कहते हुए वो अब सीधा नीचे भाग गयी।
कहानी जारी रहेगी.
[email protected]