मेरा प्रथम समलैंगिक सेक्स- 1

लेस्बियन सहेली की कहानी में पढ़ें कि मेरी एक नयी बनी सहेली मुझमें ज्यादा रूचि लेने लगी थी. उसने मेरी एक खूबसूरत सहेली को देखा तो …

नमस्कार दोस्तो, मैं सारिका कंवल आज फिर से आपके लिए एक रोचक लेस्बियन सहेली की कहानी लेकर प्रस्तुत हूँ.

पिछली सेक्स कहानी
मैं सम्भोग के लिए सेक्सी डॉल बन गई
में मैंने आपको बताया था कि कैसे नई साल के समारोह में कविता मेरी ओर बहुत आकर्षित हो गई थी.

अब जुलाई का महीना आ गया था और लगभग बारिश शुरू हो ही गयी थी.
सुरेश से अब मैंने थोड़ी दूरी बना ली ताकि वो अपनी प्यास मिटाने के लिए कभी मुझसे जबरदस्ती न करे.
मैं उससे संबंध तोड़ना नहीं चाहती थी पर उसे अपने ऊपर हावी भी नहीं होने देना चाहती थी.

हालांकि सुखबीर से अब मेरी दोस्ती केवल बातचीत तक सीमित रही.
इस बीच उसने कई बार मुझसे कहा भी, पर मैंने उसे साफ मना कर दिया.

सुखबीर की बीवी प्रीति भी अपनी बेटी के यहां से वापस आ चुकी थी और लगभग रोज दोपहर या शाम को मेरे घर उस समय आ जाती, जब मेरे पति घर पर नहीं होते.

इधर कविता मुझसे निरंतर हर एक या दो दिन के अंतराल में बात करती रहती.
कभी कभी तो हम दोनों वीडियो कॉल पर भी बातें कर लेते.
वो रात में कभी कभी वीडियो कॉल करती, तो अक्सर नंगी होती या फिर उसका पति उसके साथ संभोग कर रहा होता था.

उन्हें चुदाई करते देख कर मेरा भी मन कामोत्सुकता से भर जाता.
पर उस वक़्त सिवाए उंगली से हस्तमैथुन के अलावा कोई सहारा नहीं होता.

कविता के अलावा मेरी बाकी की सहेलियों से निरंतर बातें होती थीं, मगर कविता कुछ ज्यादा ही उत्सुकता दिखाती थी.

एक दिन दोपहर में उसने मुझे वीडियो कॉल किया और हम उसी तरह की बातें कर रहे थे कि उसी समय मेरे पास प्रीति आ गयी.

कविता ने मोबाइल पर प्रीति को देखा तो उसने मुझसे कहा कि प्रीति से भी बात करवाओ.
तो मैंने उसे वीडियो कॉल पर कविता को प्रीति से मिलवा दिया.

प्रीति को देख कविता की आंखें चौंधियां गईं. मुझे उसी पल समझ में आ गया कि कविता को प्रीति भा गयी.
कविता समलैंगिक भी जो थी.

बस देखते ही देखते कविता ने प्रीति को अपनी ओर आकर्षित कर लिया.
आधे घंटे के भीतर वे दोनों खूब हिल-मिल गईं.
कविता ने प्रीति का नंबर भी ले लिया.

जब उन दोनों की बातें खत्म हुईं … तो मैं और प्रीति आपस में घर परिवार की बातों में लग गईं.

कुछ देर बाद वो अपने घर चली गयी.

अगले दिन से मैंने ध्यान दिया कि कविता बहुत कम मुझसे बातें करने लगी थी.
3-4 दिनों के बाद उसका वीडियो कॉल तो आना ही बिल्कुल बंद हो गया.
मुझे तो कुछ खास फर्क नहीं पड़ा क्योंकि मैं खुद चाहती थी कि कविता मुझसे दूरी बना ले.

मैं पहले दिन से ही समझ गयी थी कि कविता मेरी तरफ आकर्षित थी और अपनी कामवासना मुझसे पूरी करना चाहती थी.
पर कुछ दिनों में जब उसने मुझसे बातें भी बंद कर दीं.

तब मुझे लगा कि इसने कॉल करना क्यों बंद कर दिया, आखिर बात क्या है.

मैंने पता करने के लिए उसे फ़ोन किया.
तो उसने खुद ही कहा कि उसे मेरी जरूरत है.
मैंने उससे पूछा कि कैसी जरूरत है, तो उसने मुझे सारी कहानी बताई.

दरअसल उस दिन के बाद से प्रीति के साथ उसकी अच्छी घनिष्ठता हो गयी थी और अपने पति से असंतुष्टि की बात उसने कविता को बता दी थी.

मैंने तो प्रीति को अपने पति से सुख पाने के लिए उसे सारे उपाय बता दिए थे.
पर फिर भी सुखबीर और प्रीति में बात नहीं बनी थी.

वैसे कमी दोनों में कुछ भी नहीं थी, केवल मेल की कमी थी.

सुखबीर कम अनुभवी था … मगर वो इतना मजबूत था कि किसी भी स्त्री को शाररिक रूप से संतुष्ट कर सकता था.

वहीं प्रीति भी एक कामुक और सुंदर शरीर की मालकिन थी, मगर जब तक दोनों के भीतर एक दूसरे के प्रति सकारात्मक भाव न पैदा हों, संतुष्टि कहां से मिलेगी.

अब कविता मुझसे जिद करने लगी कि किसी तरह कुछ उपाय लगाओ कि वो प्रीति से मिल सके.
मैंने उससे कहा कि तुम्हारे पास काफी पैसा भी है … और तुम्हें अपने पति का भी समर्थन मिला हुआ है. फिर तुमको किस बात की चिंता है. तुम किसी भी होटल में प्रीति से मिल सकती हो.

वो बोली- मैं शुरूआत होटल से नहीं करना चाहती हूँ.
तब मैंने उससे ये कहा- तुम दोनों औरत हो, तो प्रीति के घर पर भी मिल सकती हो, जब उसका पति घर पर न हो.

पर कविता ने जिद पकड़ ली कि मैं ही उसके लिए सारा इंतजाम करूं और कुछ दिन अपने घर पर उसके रहने का इंतजाम कर दूं.
मैंने उससे अधूरे मन से हां कह दिया.

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अब वो मुझे फिर से रोज फ़ोन करने लगी. वो रोज पूछती कि वो मेरे घर कब आए.

इधर मेरे पति भी कुछ दिनों से घर पर ही थे. अब वो हफ्ते गुजरने को थे.

एक रात मेरे पति का मन मेरे साथ संभोग करने का हुआ.
तब मैंने उनसे कविता को घर में रहने की अनुमति लेने की सोची.
मेरे पति की ये आदत है कि वो संभोग करने से पहले ढेर सारी बातें करते हैं.

इसी वजह से मुझे मौका मिल गया कि पति की अगली गतिविधि क्या होगी.
फिर मैंने अपनी बात अपने पति के सामने रखी.
वो बोले- ठीक है मैं जब बाहर जाऊं, तब तुम उसको बुला लेना.

मैंने उनसे पूछा- आपका अगला प्रोग्राम कब जाने का है?
पति ने बताया कि एक हफ्ते के बाद 3 दिनों के लिए उन्हें रामगढ़ जाना है.
तो मैंने उनसे कहा कि मेरी उसी सहेली की बहन का इधर कुछ काम है और वो हमारे यहां दो दिन ठहरना चाहती है … तो क्या मैं उसे तभी बुला लूं?

पति ने उसके बारे में मुझसे पूछा.
तो मैंने उन्हें बताया कि मेरी सहेली पहले कभी झारखंड नहीं आई थी इसलिए वो चाहती है कि मैं उसे कुछ दिन अपने यहां रखूं.

इस बीच हमारी कामक्रीड़ा शुरू हो गई और संभोग करते हुए पति मान गए.
जल्दी जल्दी पति ने 10-12 धक्कों में खुद को झड़ाकर शांत कर लिया. झड़ने के बाद हम दोनों सो गए.

अगले दिन पति ने मुझसे कहा कि अपनी सहेली और उसकी बहन से मेरी बात कराओ.
उनकी इस बात पर मैं भौचक्की रह गयी कि कहीं इन्हें कोई शक तो नहीं हो गया.

मैंने किसी तरह बहाना बनाया और कुछ देर के बाद सरस्वती से सारी बात कह-समझा उससे पति की बात करा दी.
सरस्वती ने सारा मामला सही तरीके से सुलझा दिया.

फिर बहाना बना कर किसी तरह बात को टाली और शाम को पति से कविता से बात कराई.
मैंने उसे पहले ही सब समझा दिया था.

सब कुछ सही तरीके से हो गया और फिर पति के जाने के दिन का इंतजार होने लगा.

आखिर वो पल आ ही गया और जिस दिन पति जाने वाले थे.
उसके एक दिन पहले शाम को कविता मेरे घर आ गयी.

कविता ने पति से बात करते हुए किसी भी पल ये शंका नहीं होने दी कि वो मुझसे पहले भी मिल चुकी है और यहां किस वजह से आई है.

मैंने रात को उसके सोने की व्यवस्था कर दी.
हालांकि मेरे घर में वैसी कोई सुख सुविधा वाली चीज नहीं थी. पर कविता ने किसी बात की शिकायत नहीं की.
मुझे पता नहीं कि इतने अमीर घर की औरत कैसे मेरे घर में बिना किसी परेशानी को रहने को तैयार हो गयी.

खैर … अगले दिन करीब 10 बजे तक पति निकल गए और उन्होंने जाते हुए कहा- मैं आने से पहले तुम्हें फ़ोन कर दूंगा.

पति के जाने तक स्थिति सामान्य थी, पर उनके कदम बाहर पड़ते ही कविता की व्याकुलता दिखने लगी.
उसने सबसे पहले मुझे प्रीति के बारे में पूछा और उसे हमारे घर बुलाने को कहा.

पर मैं जानती थी कि यदि वो यहां है और प्रीति को अपनी और आकर्षित कर चुकी है, तो प्रीति के साथ उसकी बात जरूर हुई होगी.
मैं नाटक करती हुई बोली कि उसका पति साथ है, वो अपने घर से कैसे निकलेगी … ये तो वही कह सकती है.

मैं इतना तो जानती थी कि जहां औरतें ही सिर्फ हों, मर्दों को कोई शक नहीं होता. इसलिए मैं निश्चिंत होकर अपने कामों में लग गयी.
पर कविता मेरे ही पीछे पड़ गयी. मैं जहां जहां जाती, मेरे पीछे पीछे आ जाती और जब जब उसे मौका मिलता, वो मेरे बदन के हिस्सों को छूती और मेरी सुंदरता की तारीफ करती.

मैं समझ गयी कि यदि प्रीति नहीं आई, तो ये मुझे ही अपना शिकार बना लेगी.

खैर … जब तक हो सका, मैं उसे बचती रही.
पर खाना बनाते समय रसोईघर में उसने एक बार मुझे पीछे से कमर से पकड़ लिया और मस्ती में मेरे गले और गालों को चूमना शुरू कर दिया.

मैंने उससे अपनी असहमति दिखाई, तो वो मुझे पलट जबरदस्ती मेरे होंठों को चूमने लगी.
मुझे बड़ा अटपटा सा लगा और मैंने उसे झटक कर खुद से अलग कर दिया.

वैसे समलैंगिक महिलाओं ने मेरे जननांगों से खेला जरूर था, मगर आज तक किसी ने मेरे होंठों को नहीं चूमा था.

पता नहीं उसे मैंने झटक तो दिया था, पर मेरे अन्दर एक अजीब सी सनसनाहट पैदा हो गयी थी.
मेरी आंखों में नाराजगी देख कर कविता वहां से बाहर चली गयी और किसी से फ़ोन पर बातें करने लगी.

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दोपहर का खाना खाकर मैंने सोचा कि थोड़ी देर आराम करूं.
पर अब कविता मेरे लिए सिरदर्द बनती जा रही थी.

वो भी मेरे कमरे में आ गयी और बकबक करने लगी. वो किसी तरह अपनी बातों में मुझे फंसाना चाहती थी और मैं बचने में लगी थी.

करीब 3 बजे दरवाजा किसी ने खटखटाया.
दरवाजा खोला, तो सामने प्रीति थी.

उसे देख कर मुझे राहत मिली कि चलो अब कविता मेरा पीछा छोड़ देगी.

हम तीनों आधे घंटे तक साथ बात करते रहे और जैसा कि कविता पहली बार प्रीति से मिली थी, तो कुछ ज्यादा ही उत्साहित थी.

वो उसकी खूबसूरती की तारीफ कुछ ज्यादा ही कर रही थी.
दोनों व्यस्त हो गईं, तो मुझे लगा कि इनके बीच से मेरा जाना ही बेहतर होगा.
मैं उठकर जाने लगी.

तभी कविता ने मुझे रोककर कहा- मैं तुम सबके लिए एक तोहफा लायी हूँ.

वो अन्दर से एक थैली ले आयी और हमें खोलकर दिखाने लगी.
उसने थैली खोली और बिस्तर पर सब सामान उड़ेल दिया.

सामान देख कर मैं और प्रीति एक पल एक दूसरे को देख चौंक सी गईं और अगले ही पल लज्जित भरे भाव से नजर छुपाने लगीं.

उधर कविता निर्लज्जता से एक एक कर उन सबको हमें दिखाने लगी और हंसने लगी.

कुछ देर तक तो हम शर्म से बैठे देखते रहे, पर जैसा कि हम सभी औरतें ही थीं, तो हमारे बीच में ज्यादा देर शर्म नहीं रही.

वैसे मैं लज्जित, कविता की वजह से नहीं थी बल्कि प्रीति के होने से थी.

अब आपको मैं बताती हूँ कि आखिर वो क्या सामान था, जिसकी वजह से हमें शर्म आ रही थी.

उसमें 6 अलग अलग तरह के नकली प्लास्टिक और रबर के लिंग थे, जैसे कि वयस्क फिल्मों में होते हैं.
कविता ने बताया कि उनको डिल्डो कहते हैं.

एक पैंटी जैसी चमड़े की पेटी थी, जिसे पहना जा सकता था … और एक डिब्बी में चिकनाई के लिए क्रीम थी.

सभी लिंग अलग अलग रंग, आकार और देखने में अलग अलग नस्ल के मर्दों के लग रहे थे.
सभी करीब 9 से 13 इंच लंबे थे और मोटाई भी 3 से लेकर 6 इंच थी.

सभी में या तो बैटरी लगी थी या फिर एक तार थी, जो कि एक रिमोट से जुड़ी थी, जिसमे पंखे की तरह रफ्तार कम ज्यादा करने जैसा स्विच था.

कविता ने बताया कि ये एकदम नए तरीके के खिलौने हैं. इनमें पुराने जैसा सिस्टम नहीं है … बल्कि एक मोटर लगी है, जिससे कंपन पैदा होती है. स्त्री चाहे तो किसी अन्य स्त्री के साथ मिलकर संभोग कर सकती है या वो अकेली हो, तो अकेली भी मजा कर सकती है.

कंपन की वजह से अकेले भी वैसा ही आनन्द मिलता है.

खैर … नए पुराने का फर्क हमें तो नहीं पता था क्योंकि ऐसी चीज मैं अपने जीवन में दूसरी बार देख रही थी.

प्रीति शायद पहली बार डिल्डो देख रही थी.

पर इतना पक्का था कि हम दोनों में से किसी ने कभी इसका इस्तेमाल नहीं किया था.

फिर मैंने उन दोनों को अकेला छोड़ दिया और सोने के लिए चली गयी.

करीब 4 बजे नींद में किसी औरत की कराहने और रोने जैसी आवाज मेरे कानों में पड़ी.

मैं उठ गई और बाहर आ गई. मैंने देखा तो बाहर कोई नहीं था मगर आवाज और तेज हो गयी थी. तब मेरा ध्यान दूसरे कमरे में गया, जो मैंने कविता को दिया था. उस कमरे में दरवाजा था ही नहीं, केवल एक पर्दा लगा था.

मैंने पर्दा सरकाया और अन्दर देखा, तो दंग रह गयी. दोनों औरतें एकदम नंगी थीं. बिस्तर पर चारों तरफ कविता की लायी चीजें फैली हुई थीं.

बिस्तर पर प्रीति कुतिया की भांति झुकी हुई थी. वहीं कविता ने चमड़ी की पट्टी पहनी हुई. उस पर एक डिल्डो लगा हुआ था.
वो प्रीति की योनि में ताबड़तोड़ धक्के मार रही थी.

प्रीति पूरी मस्ती में कराह और सिसक रही थी और कविता के चेहरे पर खूंखार भाव दिख रहे थे.

मैंने पहली बार प्रीति को नग्न देखा था.
और सच कहूं, तो उससे अधिक सुंदर औरत मैंने पहले कभी नहीं देखा था.

उसका दूध सा गोरा बदन जो अब गुलाबी दिखने लगा था.
बड़े-बड़े सुडौल स्तन, गोलाकार विशाल चूतड़ थे और मोटी-मोटी रानें थीं.
किसी भी मर्द का उसे देख कर ही पानी निकल जाए, वो इतनी कामुक दिख रही थी.

इस लेस्बियन सहेली की कहानी में अभी तो ये शुरुआत है. आगे क्या क्या हुआ, वो सब मैं अगले भागों में आपको विस्तार से लिखूंगी. आपको मेरी ये वयस्क सेक्स कहानी कैसी लग रही है, प्लीज़ मुझे मेल से बताएं.
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लेस्बियन सहेली की कहानी का अगला भाग: मेरा प्रथम समलैंगिक सेक्स- 2