गलतफहमी-4

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दोस्तो.. मेरी कहानी को आप सबका भरपूर प्यार मिल रहा है, इसके लिए धन्यवाद।
आपने अब तक पढ़ा कि मेरे दुकान की एक ग्राहक तनु भाभी से मेरी नजदीकियाँ बढ़ रही हैं, किन्तु वो मेरे से बहुत खुल कर व्यवहार करना चाहती है। इसी वजह से उसने मेरे साथ मस्ती की, और अब मेरे बारे में मेरे मुँह से जानना चाहती है। तो मैंने उसे अपने लेखक होने के बारे में बता दिया, और अब उसे अंतर्वासना के एक पाठिका की काल्पनिक किस्सा सुना रहा हूं।

कल्पना आज अपने बच्चे को स्कूल से ले जाने आई थी, तभी मैंने मौका अच्छा समझ कर उससे बात किया, लेकिन मेरे पास जाते ही एक और लड़की वहाँ पर आ गई, वो लड़की भी अच्छी शक्ल सूरत वाली थी, दिखने में 24/25 साल की पढ़ी लिखी लड़की लग रही थी। उसने काली जींस के साथ लाईट ग्रे टॉप पहना हुआ था, शरीर भरा हुआ था, हाईट सामान्य सी थी।

मैं उनके पास खड़ा था तो लगा कि वो लड़की कल्पना की बहन थी क्योंकि वो कल्पना को दीदी बुला रही थी. और बातों से पता चला कि दोनों ही अलग-अलग जगह से बच्चे को लेने पहुंच गई हैं।
मैंने कल्पना से कहा- हाय, मैं संदीप…!
कल्पना ने कहा- कौन संदीप? तुम्हें किससे काम है?
मैंने कहा- आप कल्पना (©©शर्मा) तो हो ना?
उसने कहा- जी नहीं, आप बिना मतलब के मुंह ना लगें तो बेहतर होगा।
उसके पास खड़ी लड़की आंखें फाड़े मुझे घूर रही थी जैसे कच्चा चबा जायेगी।

अब मेरे पास वहाँ से हटने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। फिर भी मैंने आखिरी बार कोशिश की.. देखिए मैं आपको परेशान नहीं करना चाहता पर मेरे जो तस्वीर है वो बिल्कुल आपके जैसी ही है तो मुझे लगा कि आप वही हो, मुझे नहीं पता कि आपका नाम क्या है पर आपने मुझे अपना नाम कल्पना बताया था।

उसने साफ कह दिया- देखिए जनाब, बात बढ़ने से पहले ही आप यहाँ से निकल लेंगे तो अच्छा होगा।
इसी बीच उसका बच्चा स्कूल से बाहर अपनी मम्मी के पास आ गया, उसने उसे स्कूटी में बिठाया और ‘जाने कहाँ-कहाँ से चले आते हैं सरफिरे…’ कहते हुए, वे लोग चले गये।
मैं वहाँ खुद को ठगा हुआ सा महसूस कर रहा था और उन्हें जाते हुए देखता रहा।

मैं अब तक जिसे कल्पना समझ रहा था उसकी छोटी बहन स्कुटी के पीछे बैठकर मुझे पलट-पलट कर देखती रही।
मैं उदास हो गया।
तभी मुझे ई मेल पर कल्पना का मैसेज आया, पहला शब्द लिखा था- सॉरी…!
फिर लिखा था कि मैंने तुम्हें अपनी दीदी की फोटो भेज दी थी, मुझे लगा कि तुम आधी-अधूरी फ़ोटो में पहचान नहीं कर पाओगे और शादीशुदा औरत के पीछे भी नहीं लगोगे, पर तुम तो बहुत कमीने निकले, तुम तो किसी के भी पीछे पड़ सकते हो, और आधी अधूरी फोटो भी पहचान सकते हो। वो तो गनीमत है कि तुम मेरा असली नाम नहीं जानते।

अरररे… तेरी… इतना बड़ा धोखा..! मतलब अभी-अभी जो लड़की मेरे सामने थी, और जिसे मैं कल्पना की बहन समझ रहा था, वो खुद ही कल्पना है।
मैं एक बार फिर किसी की गलतफहमी का शिकार हो गया था।

मैंने उसे समझाते हुए लिखा- मेरे पास लड़कियों की कमी नहीं है, और अगर मैं कमीना होता तो लड़की छाँट कर पटाता, और निपटा कर छोड़ देता, पर मैं तुम्हारी अच्छी बातों अच्छे विचारों की वजह से प्रभावित होकर, तुमसे मिलने यहाँ तक चला आया, मुझे सेक्स तो चाहिये पर मैं वो संदीप भी नहीं हूं, कि ऐसे ही किसी ऐरे गैरे के पीछे भाग जाऊं। मुझे तुमसे अच्छी दोस्ती चाहिए थी। पर तुमने कुछ और ही समझा। मैं तो तुम्हें समझदार समझता था। पर तुम समझदार भी नहीं हो, यह तुमने अपनी दीदी की फोटो भेज कर साबित कर दिया।

अब सामने से मैसेज में सॉरी आया, और लिखा था- मैं समझदार हूं या नहीं ये मैं नहीं जानती..! पर मैं किसी के झांसे में आने से बचने का हुनर जानती हूं। मैं मानती हूं कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। अगेन सॉरी। और अब तुम आ ही गये हो तो चलो इस पते पर आ जाओ.. @@@गार्डन के गेट के पास मिलना। अब तो तुम मुझे पहचान ही गये होगे।

मैं खुश भी था और नाराज भी, पर मैं कर भी क्या सकता था। मैं उसके बताये पते पर बीस मिनट के अंदर पहुंच गया, और वो सामने ही खड़ी होकर मुझे देखते ही मुस्कुराने लगी। अब मेरी मुलाकात मेरी उस कल्पना से हो रही थी, जिसे मैंने सच में चाहा था।
भले ही कुछ गलतफहमियों का सामना करना पड़ा पर इस सुखद पल को शब्दों में समेट पाना मुश्किल है। मैंने आगे बढ़ कर हाथ मिलाया।

अभी लगभग दोपहर के दो बजे थे, उसने मुझे पास के एक शेड के नीचे एक बेंच पर बैठने को कहा और वो खुद भी मेरे पास बैठी।
उसको पास पाकर खुशी से मैं गदगद हो गया मेरी सांसें तेज होने लगी और मेरी नींद खुल गई।
मेरी मुलाकात मेरी कल्पना से हो गई बस मेरी कहानी खत्म।

तनु भाभी ने कहा.. आगे भी बताओ ना, और क्या-क्या हुआ, अब भाव क्यों खा रहे हो?
मैंने कहा- मैं भाव नहीं खा रहा हूं, अब इतनी खुशी मिली की मेरी नींद ही खुल गई, तो इसमें भला मैं क्या कर सकता हूं। हाँ ये जरूर है कि उसके आगे की मुलाकात मैंने उससे अपनी कल्पनाओं में की, और आप जिद कर रही हो तो वही बता सकता हूं। पर आगे की बातें और खुले शब्दों में होगी कहीं आपको कोई परहेज तो नहीं है?

तनु भाभी ने कुनमुनाते हुए कहा- अब इतना सब तो बता चुके हो और मैं सुन चुकी हूं अब कैसा परहेज, तुम सारी बातें खुल कर बता सकते हो।
मैंने लंबी सांस ली और लंबा हम्म्म् कहा.. और बताना शुरु किया- बेंच पर बैठे हम दोनों मुस्कुरा रहे थे. फिर उसने मुझे नाखून से खरोंच के देखा और कहा.. अरे वाह..! संदीप तुम तो सच में मेरे साथ हो, मुझे तो अब भी यकीन नहीं हो रहा है।

उसके आकर्षक नाखून नेल पेंट से सजे थे, और उसकी खरोंच से मुझे जरा भी चुभन नहीं हुई, बल्कि एक अच्छा अहसास हुआ। अब यह उसका आकर्षण था या फिर सच में वो इतनी ही नाजुक थी? यह मैं नहीं जानता।
फिर उसने फोन निकाला और हम दोनों ने उसी के फोन से अंतर्वासना की कहानियों पे कमेंट किये। कल्पना मुझसे समाजिक गतिविधियों, सेक्स, राजनीति, कौमार्य, फैशन.. और बहुत सी टापिकों पे बातें करती रही और मैं इन बातों के साथ-साथ ही उसे घूरता भी रहा। या यूँ कहें कि मैं उसकी शारीरिक सुंदरता, चंचलता, और अदाओं का मुआयना करता रहा।

बातें करते वक्त उसके बाल बार-बार चेहरे पर आ रहे थे, उसके अधरों को शायद किसी सजावट की जरूरत नहीं थी, तभी तो वो बिना लिपस्टिक के ही अपनी गुलाबी छटा बिखेर रही थी, आँखों पर काजल लगा कर उसने उसे कटार का रूप दे दिया था।

मुझे नहीं लगता कि जिससे भी उसकी नजर मिलेगी वो आह किये बगैर रह भी पायेगा। मोती जैसे दांत, गालों पर हंसते हुए डिंपल बनना और होठों के थोड़े ऊपर एक छोटा सा काला तिल, गर्दन हिरणी जैसी, कंधों में कोई ढीलापन नहीं था, मैं टी शर्ट के ऊपर से भी ब्रा की पट्टी के उभार देख पा रहा था, उन्नत उभारों की सुडौलता और कसावट, मुझे लगता है कि उसे ब्रा बत्तीस की ही आती रही होगी पर उतने बड़े उभार को उसकी ब्रा पूर्ण रुप से शायद ही सम्हाल पाती रही होगी।

उसके पेट का अंदर की ओर होना उसके फिट होने और सेक्स के लिए परफेक्ट होने का संकेत दे रहे थे। उसकी जींस जांघों से चिपकी हुई थी और मुझे कुछ-कुछ पेंटी का भी आभास हो रहा था। उसके शरीर का हर एक अंग कटाव के साथ अलग ही परिलक्षित हो रहा था।
पैरों में उसने जूती पहन रखी थी, पर जूती और जींस के बीच उसके पैरों की त्वचा भी इतनी साफ थी कि कोई सिर्फ उतने को देख कर उसका दीवाना हो जाये।
आप बस इतना समझिये की मेरी कल्पना मेरे लिए किसी अप्सरा से कम नहीं थी, मैं नहीं कहता कि वो हर किसी को इतनी ही पसंद आयेगी पर मेरे लिए तो वो मेरे जीवन की सबसे हसीन लड़की थी।

मैं उसे घूर ही रहा था कि कल्पना ने कहा- संदीप..! अब बस भी करो यार…! मुझे और कितना घूरोगे…!
मैं शरमा गया क्योंकि हम दोनों ही जान रहे थे कि हम एक दूसरे को इतनी बारीकी से निहारते हुए क्या सोच रहे हैं।

फिर मैंने लड़खड़ाती जुबान से कहा- नहीं.. ऐ..ऐसा कुछ नहीं है।
वो बोली- अब तुम मुझे मत सिखाओ..
फिर उस जगह से उठते हुए कहा- चलो अब मैं जाती हूं, शाम को छ: बजे तुम मुझे पार्क के पास मिलना..
कहते हुए वो जाने लगी।

वह दो चार कदम जाने के बाद फिर लौट आई और कहा- संदीप मैं जानती हूं कि तुम बहुत अच्छे हो.. पर मेरी बात ध्यान से सुनो.. मैं तुमसे अंतर्वासना के एक अच्छे दोस्त से ज्यादा और कोई संबंध नहीं रख सकती। इसलिए मेरे बारे में ज्यादा जानने की या पूछने की कोशिश मत करना। वैसे आज रात को तुम्हारे लिए एक सरप्राईज है।

मैंने पहले हाँ में सर हिलाया और ‘ठीक है, देखते हैं’ कह के मुस्कुरा दिया।

शाम को उससे मिलने की उत्सुकता में मेरा समय अच्छे से गुजरा, फिर शाम को करीब छ: बजे मैं उसके बताये पते पर पहुंच गया।
वह किसी आफिस का पता था, मैंने आफिस से कुछ दूरी पर खड़े होकर उसे मैसेज किया कि मैं आ गया हूं।
लगभग दस मिनट बाद मैसेज आया कि तुम दस मिनट और इंतजार करो, मैं आती हूं।

हर बीतते लम्हे के साथ मेरी धड़कन तेज होती जा रही थी, अनजानी खुशी और अनजाने डर के मिले-जुले असर से मेरा बदन काम्प रहा था।
मैसेज आने के लगभग बीस मिनट बाद कल्पना अपनी सफेद स्कूटी से मेरे पास आकर रुकी और पहले देर से आने के लिए माफी मांगी, फिर कहा- बोलिए जनाब, अब क्या प्लान है?
मैंने कहा- मैं क्या बोलूं, मैं तो यहाँ तुमसे मिलने आया था, और मैं यहाँ अजनबी भी हूँ, तो अब तुम ही बताओ कि क्या करना है।

उसने लंबी साँस लेते हुए हम्म्म्म् कहा.. फिर अचानक ही कहा- दो लड़कियों को संभाल लोगे?
पहले तो मैं उसके मुंह से अचानक ही ऐसा सुन कर हड़बड़ा गया फिर सोचा कि जमाना बहुत आगे निकल गया है तो मैं क्यों पीछे रहूं..! फिर मैंने बड़े यकीन से कहा- हाँ संभाल लूंगा..!
उसने कहा- दोनों को रात भर संभाल लोगे? थक कर सो तो नहीं जाओगे?
अब मैं सोच में पड़ गया, क्योंकि उसके ऐसा पूछने का मतलब था कि वो मुझे नोचने वाली थी। लड़कियाँ जब खुल कर सेक्स करने पर उतारू हो जायें तो कोई मर्द उनको यूं ही आसानी से ठंडा नहीं कर सकता!
पर मैं भी कोई अनाड़ी तो हूं नहीं जो पीछे हट जाता… मैंने जवाब दिया- दो तीन को तो मैं ऐसे ही निपटा दूंगा। हाँ लेकिन बात गैंगबैंग की हो तो मुझे दवाई का सहारा लेना पड़ेगा।

मेरे इस यकीन भरे और सही जवाब से वो खुश हुई और उसने मुस्कुराते हुए कहा- अब चलो देर हो रही है, वो हमारा इंतजार कर रही होगी, तुम बैठो!

वो घर से कपड़े बदल कर आई थी, अब वह सफेद मिनी स्कर्ट और पिंक टाप पहन कर आई थी, इन कपड़ों में वो और भी कयामत लग रही थी, उसके उभार बहुत बड़े, तने हुए थे और मुझे अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे।
अब हम स्कूटी पे बात करते हुए एक कॉलोनी की ओर बढ़ गये। मन में बहुत सारी बातें थी कि वो दूसरी लड़की कौन होगी, कैसा व्यवहार करेगी, ये मुझे कहां लेकर जायेगी, मैं यही सब सोच रहा था पर चुप ही बैठा था, लेकिन मैंने कल्पना को पीछे से छूना सहलाना शुरू कर दिया.
कल्पना ने कहा- ये सब अभी मत करो, मुझे गुदगुदी हो रही है, हम गिर जायेंगे।

उसको छूते ही मेरा हथियार सख्त होने लगा था और उसके नितम्बों के ऊपर दस्तक देने लगा था।
मैं मदहोश हो रहा था और मैंने कल्पना की बात अनसुनी करते हुए अपना एक हाथ उसके कंधे पर रहने दिया और दूसरे हाथ से उसके कमर को सहलाते हुए उसकी मांसल जांघों तक ले जाने लगा। स्कर्ट को ऊपर करना मुश्किल ना था, बस सामने से आ रही गाड़ियों का ही ध्यान रखना था, मैंने उसकी जांघों को और भी अंदाज में सहलाया, सच में उसकी त्वचा का स्पर्श अनोखा था, या हो सकता है मेरी वासना की वजह से मुझे ऐसा लगा हो।
पर अब घर तक पहुंचने का भी सब्र नहीं हो रहा था।

तभी कल्पना के शरीर का कंपन भी मैंने स्पष्ट महसूस किया। अब कल्पना ने एक बार फिर मुझसे रिक्वेस्ट की- प्लीज संदीप अभी मत करो ना..!
उसकी आवाज में मादक बेबसी थी, तो मैंने भी उसे और तंग नहीं किया।
और अब तो हम कॉलोनी में दाखिल भी होने वाले थे।

कहानी जारी रहेगी..
आपको कहानी कैसी लगी। मेल पर या डिस्कस बॉक्स पर बतायें..
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