मेरी वासना और पागल भिखारी का लंड-2

मेरे प्यारे पाठको, आप सबको मेरा प्यार भरा नमस्कार। उम्मीद है कि आप सभी के लण्ड खड़े और महिला पाठकों की चूत गीली होगी।
जैसा कि आप सबको पता है कि यह कहानी मेरी पाठिका सुरभि पांडेय की है जिसका पहला भाग
मेरी वासना और पागल भिखारी का लंड-1
आप पढ़ चुके हैं.

अब उसके आगे:

मेरा लण्डधारी यार मेरी गांड का सुख भोग चुका था पर अभी मेरा मन उससे भरा नहीं था।
सच कहूं तो ऐसे लण्ड किस्मत वाली औरतों को ही मिलते हैं और मैं ये मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहती थी.

पर मेरे पति के फोन कॉल से मेरा सारा प्लान चौपट होता दिख रहा था क्योंकि उन्होंने मेरी पड़ोस की आंटी सरिता आंटी को बोल दिया था रात मेरे साथ रुकने को।

मैंने बेमन से अपने यार को जाने को कह दिया पर तभी मेरे दिमाग में एक आईडिया ने जन्म लिया। मैं उसे छत वाले कमरे में ले गयी जो नॉर्मली स्टोर रूम के तौर पर प्रयोग किया जाता था। उस कमरे में हम पुरानी चीजों य फिर ऐसी चीजें जो उस वक्त काम में न आती हों, जैसे एक्स्ट्रा टेबल, पुराने कपड़े इत्यादि ये सब स्टोर रूम में रख देते थे।

मैंने उसे स्टोर रूम में लिटा दिया और उसे अच्छे से समझा दिया कि जब तक मैं न आऊं, आवाज न करना और न ही यहां से कहीं जाना।
वो समझ चुका था.

मैंने स्टोर रूम का दरवाजा बाहर से बंद किया और जल्दी से नीचे आ गयी। अपने प्लान को सफल करने के लिए मुझे बाजार भी जाना था. पर बाजार हमारे घर से थोड़ा दूर था और मेरा निकलना भी उचित नहीं था।

हमारे घर से एक गली छोड़ कर ही मेडिकल स्टोर था, वो मेरी जान पहचान वाले का ही था. मैंने वहां जाने का फैसला लिया और तेजी से उस तरफ बढ़ चली।

किस्मत से मेडिकल शॉप अभी भी खुली थी। मैंने शॉप से एक पत्ता नींद की दवा ली और लौटते हुए बगल की ही दुकान से चॉकलेट ले ली।

मैं जल्दी से घर पहुंची, सरिता आंटी अपने घर से निकल ही रही थी।
आंटी ने मुझसे पूछा- इतनी रात को कहां गयी थी?
मैंने बताया- सर में बहुत दर्द है तो सर दर्द की दवा लेने गयी थी।
उन्होंने यकीन कर लिया।

हम दोनों घर आ गए और उन्होंने खाने के बारे में पूछा.
तो मैंने बोला- बस खीर बनाने जा रही थी, ज्यादा भूख नहीं है।

उन्होंने किचन में मेरी मदद की, दोनों ने मिलकर खीर बनाई.
पर मेरा ध्यान मेरे स्टोर रूम में बंद खजाने पर था।

मैंने दोनों के लिए खीर परोसी और चुपके से उनके हिस्से की खीर में नींद की दो गोलियां मिला दी। दोनों खीर लेकर टीवी के सामने बैठकर खाने लगी.

खीर खत्म होने के कुछ ही मिनट के बाद आंटी को जोरों की नींद आने लगी।
मैंने आंटी को बोला- आप चल कर लेटिये, मैं बस थोड़ी देर टीवी देखकर आती हूं।
नींद से आंटी की आंखे बंद हो रही थी, आंटी बैडरूम में जाकर लेट गयी।

अगले दस मिनट में ही मैं आंटी के पास थी और उन्हें बुला कर चेक कर रही थी कि नींद गहरी है य नहीं।
मैंने उन्हें पकड़ कर हिलाया भी पर आंटी को कोई फर्क नहीं पड़ा।
अब मैं निश्चिंत थी कि आंटी अब सुबह से पहले नहीं उठने वाली।

मैंने पतिदेव को फ़ोन लगाया और बताया कि हमने खाना खा लिया है और हम दोनों सोने जा रही हैं।
पति ने कहा- अपना ख्याल रखना.
और फ़ोन कट कर दिया।

अब मैं हर तरफ से निश्चिंत थी।

मैं आईने के सामने गयी और एक एक करके अपने सारे कपड़े उतार दिए और खुद के नंगे बदन को आईने में घूर रही थी। सच कोई भी मर सकता था मेरे इस हुस्न के लिए। बिना कपड़ों के मैं किसी भी पोर्न एक्ट्रेस से ज्यादा हॉट लग रही थी.

फिर मैंने अपने पतिदेव की फेवरेट गुलाबी रंग की ब्रा पैंटी का सेट निकाल कर पहना। मेरे पति कहते थे कि इस ब्रा पैंटी में मैं मुर्दों को भी उठने पर मजबूर कर सकती हूं।

खैर यही पहन कर मैं छत पर गयी अपने आशिक के पास … मैंने स्टोर रूम का दरवाजा खोला.
वो जल्दी से उठ बैठा, मानो मेरा ही इंतजार कर रहा हो।

मैंने स्टोर रूम की लाइट ऑन की. वो तो मुझे देखता ही रह गया. उसके लण्ड को खड़े होने में कुछ सेकंड ही लगे होंगे. उसका लण्ड पैंट के ऊपर से ही चीख चीख के अपना साइज बता रहा था।
उसके लण्ड को मैंने मुठ्ठी में दबोच लिया, उसका लण्ड और फनफना उठा। उसके होंठों पर एक जोरदार किश चिपका दी मैंने और उसके हाथ अपने दोनों नर्म गांड पर टिका दिए।

उसने भी किश करते हुए ही गांड को सहलाना शुरू कर दिया और पैंटी के अंदर से मेरी गांड की गोलाई की माप लेने लगा।

हम दोनों की गर्म सांसें एक दूसरे से टकरा रही थी, अब वो मेरे होंठों को अपने दांतों से काटने लगा था, मुझे दर्द हो रहा था. पर पता नहीं क्यों मैं उसे मना नहीं कर पाई क्योंकि मुझे उस दर्द में ही मजा आ रहा था।

उसकी उंगलियां हरकत कर रही थी. उसके दाएं हाथ के बीच की उंगली ने मेरे गांड के छेद पर गिरफ्त बना ली थी। वो जब भी उस उंगली पर जोर देता, उँगली मेरे गांड के छेद में थोड़ी सी जगह बना लेती और मैं थोड़ा और ऊपर उठकर उसको किश करने लगती।

जब जब वो उंगली पर जोर लगाता था किश करने का मजा ही दुगुना हो जाता।

इसी तरह किश करते हुए हमने 15 मिनट बिता दिए। हमने किश बन्द की और उसके नीचे के कपड़ों को उसके बदन से अलग कर दिया। अब उसका मूसल जैसा लण्ड हवा में बिना किसी सहारे के झूल रहा था.
आह! क्या खूबसूरत दृश्य था।
उसका लण्ड देखकर पृथ्वी की किसी भी स्त्री का मन डोल जाता। मेरा परम सौभाग्य था जो यह लण्ड मेरे सामने बिना कपड़ों के झूल रहा था।

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मैंने उसके नग्न लण्ड को पकड़ा और आगे आगे गांड मटकाते हुए उसे लगभग खींचती हुई ले जाने लगी. वो मेरे पीछे पीछे सीढ़ियों से उतरने लगा। हम टीवी हॉल में पहुंचे और उसे सोफे पर धक्का दे दिया।
वो सोफे पर अपने लण्ड को सहलाते हुए बैठ गया।

मैंने टीवी ऑन किया और एक गाने पर उसके सामने थिरकने लगी.

मेरे हिलते हुए बूब्स और पतली कमर देखकर उसका लण्ड कुलांचें मार रहा था।
अचानक ही वह उठा और मेरे उरोजों को ताकत से मसल दिया. मेरी तो आह ही निकल गयी.

फिर वह मुझे पीछे से पकड़कर गर्दन पर चुम्बन करते हुए मेरे 34 के उरोजों को मसलने लगा। मेरा नाचना गाना बन्द हो गया. अब मैं सिर्फ आहें भर रही थी। चूचियों को दबाते हुए वह अपना लण्ड मेरी गांड पर दबा रहा था, मेरी चूत से पानी रिस रहा था।

मैंने पीछे से ही उसका लण्ड मुट्ठी में ले लिया और हिलाने लगी। उसका लण्ड भयावह रूप धारण कर चुका था।

उसने मेरी चूचियों से हाथ हटाया. मैंने उसे फिर से सोफे पर बिठा दिया और उसके हवा में लहराते लण्ड के पास बैठ गयी।

उसके लण्ड की भीनी भीनी खुश्बू मेरे नाक में जा रही थी। मैंने नाक को बिल्कुल करीब ले जाकर लण्ड के आगे का हिस्सा खोला, आह! क्या सुगन्ध थी जो मेरे कलेजे तक समा गई।

अब मैंने उसके लण्ड के आगे के हिस्से को अपने नर्म गुलाबी होंठों में जकड़ लिया और उसका रसास्वादन करने लगी। वो धीरे धीरे लण्ड को आगे की तरफ धक्का देने लगा। मैं मजे लेकर उसके लण्ड को चूस रही थी क्योंकि ऐसा खूबसूरत लण्ड नसीब वालों को ही मिलता है।

तभी मुझे चॉकलेट की याद आयी, मैं जल्दी से किचन में आई और चॉकलेट लिया और वो चॉकलेट को खोलकर उसके लण्ड पर थोड़ा सा लगाती फिर लण्ड चूसती, फिर लगाती फिर चूसती, सच में क्या मजा आ रहा था।

मैं उसका लण्ड इतने चाव से चूस रही थी कि मानो मैंने जीवन में पहली बार लण्ड पाया हो और यह धरती का आखिरी लण्ड हो।

लगभग पन्द्रह मिनट लण्ड चूसने के बाद वह अचानक से उठ खड़ा हुआ और उसने मेरे सर के बाल पकड़ कर पीछे की तरफ खींच दिए और कुत्तों की तरह तेजी से मेरे मुंह में धक्के देने लगा. एक बारगी तो मेरी सांस ही अटक गई।

यही कोई बीस पच्चीस झटकों के बाद उसका गाढ़ा अमृत मेरे मुंह में घुलने लगा। कसम से क्या स्वाद था … जो भुलाये नहीं भूलता।
उसने अपने लण्ड को दबा दबाकर एक एक बूंद मेरे मुंह में गिरा दी।
मैंने भी मजे से एक एक बूंद को गले के नीचे उतार लिया।

वो थक कर सोफे पर बैठ गया था, पर अब मजे लेने की बारी मेरी थी क्योंकि मेरी आग अभी भी जल रही थी।

मैंने ब्रा पैंटी के ऊपर से ही मैक्सी डाली और बैडरूम में गयी और आंटी को आवाज लगाई, फिर उनको हिला कर देखा, आंटी वैसे ही सोती रही। मैं जल्दी से बाहर आई और सीधे किचन में जाकर शहद की शीशी निकाली और फिर अपने शरीर को कपड़ों से मुक्त कर दिया।

मैंने अपनी खिली हुई चूत पर नजर डाली, मेरी चूत चुदाई के लिए लाल हो रही थी। मेरे 34 साइज के चूचे किसी फुटबॉल की माफिक हवा में तने थे। मैंने अपनी चूची की घुंडीयों को मसल कर एक आह भरी और अपने मदमस्त चूतड़ों को मटकाते हुए अपने पागल प्रेमी के पास चल दी।

वो अभी भी उसी सोफे पर बैठा हुआ था, उसकी निगाहें मेरे हवा में लहराते स्तनों पर टिक गई थी. मानो उसकी निगाहें कह रहीं हों कि ये स्तन तो सिर्फ उसी के लिए बनाए गयें हों.

पर अब बारी चूचियों की नहीं थी। मैंने अपनी चूत पर शहद की बरसात की और अपने उस हवशी प्रेमी को धक्के से उसी सोफे पर लिटा दिया, फिर एक पांव उसके शरीर के ऊपर से सोफे पर रखा और दूसरे पांव को फर्श पर ही टिका दिया और इस तरह मेरी चूत उसके मुंह से कुछ ही फासले पर रह गयी।

मैंने यह फासला खत्म करते हुए अपनी शहद से सनी हुई चूत को उसके होंठों से लगा दिया। उसने अपनी जीभ लपकायी औऱ चूत का रसास्वादन शुरू किया। उसकी गर्म जीभ का एहसास पाते ही मेरे निप्पल्स और तन गए।

मैं अपनी चूचियों को खुद ही भींचने लगी। उसने चूत चाटने की गति थोड़ी तेज की और जीभ को अंदर तक डालने लगा। मैं तो पागल ही हो गयी थी, मेरे पूरे बदन में आग सी गर्मी दौड़ रही थी। मैं अपनी पूरी चूत उसके मुंह में समा देना चाहती थी.

वो अपने तीखे दांत मेरी चूत में धँसाने लगा, मानो ये चूत न हो पाव भाजी के दो टुकड़ें हों। मुझे भी अपनी पाव भाजी उसे खिलाने में बहुत मजा आ रहा था।

मैंने उसके चेहरे की तरफ देखा, वो पूरी लगन से चूत चाटने में लगा हुआ था। मेरी चूत से निकलता हुआ पानी उसके मुहं के लार से मिलता हुआ, उसके होंठों के किनारे से बह रहा था। वो बीच बीच में अपने हाथों से मेरे निपल्स मरोड़ देता, इससे चूत चुसाई का मजा दोगुना हो जाता।

अब मेरी चूत लण्ड मांग रही थी, जीभ उसके लिए पर्याप्त नहीं थी। मैंने उसके लण्ड को टटोला, उसका लण्ड भी पूरा तन चुका था और चुदाई के लिए तैयार था.

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पर तभी मेरे खुरापाती दिमाग में एक और खतरनाक आईडिया आया। मैंने उसके मुंह से चूत हटाई और उसका हाथ पकड़कर उसे लेकर बेडरूम की तरफ चल दी।

उसे बेडरूम के दरवाजे पर खड़ा करके एक बार आंटी को हिलाया और पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद उस चोदू को अंदर आने का इशारा किया।

उससे पहले उसके मूसल जैसे लण्ड ने कमरे में प्रवेश किया। मैं बिस्तर पर आंटी के बगल घुटनों के बल झुक गयी और अपनी गांड मटका कर उसे न्यौता दिया।

मेरा निमन्त्रण तो उसे मेरी तरसती हुई चूत में लण्ड डालने के लिए था पर उसने मेरी गांड के फांकों को अलग किया और मेरी खिली हुई गांड के छेद पर जीभ टिका दी।
मैंने इसका विरोध भी नहीं किया क्योंकि गांड चूसने में उसका जवाब नहीं था.

वो गांड के कोनों में जीभ फिरा रहा था और मैं आंटी के बगल झुककर सिसकारियाँ भर रही थी। उसने मेरी गांड के छेद को थूक से भर दिया था।

अचानक उसने मुझे पलट दिया और मुझे पीठ के बल पट कर दिया और मुझे अपनी तरफ खींच लिया।
अब मेरा पूरा बदन बिस्तर पर था और गांड का हिस्सा बिस्तर से बाहर हवा में था।

मैंने अपनी दोनों टांगों से उसकी कमर में कैंची बांध ली। अब परीक्षा का समय था, उसके लण्ड का टोपा मेरे चूत के मुहाने पर था। मैं पागल हो रही थी उसका हल्लबी लण्ड लेने को!

पर मेरा पागलपन तुरन्त उतर गया जब उसका लण्ड पहले ही झटके में मेरी आधी चूत में समा गया।
मेरी चूत उसका इतना मोटा लण्ड झेलने के मूड में नहीं थी.

नतीजा ये हुआ मैं कराह उठी, मैं एक झटके में बेड से ऊपर उछल गयी। मैंने उसके हाथों पर अपने नाखून धंसा दिए। मैंने अपने पैरों की कैंची खोल दी पर उसने मेरी जांघों को दबोच रखा था, मैं पीछे नहीं जा सकी।

मेरे सामने रोने के अलावा कोई चारा नहीं था। मेरी आँखों से आंसू छलक पड़े।

वो आगे की तरफ झुका और मेरी गर्दन पर धीरे धीरे काटने लगा। इससे मेरा थोड़ा ध्यान भटका.

फिर वो धीरे धीरे नीचे आया और मेरी चूचियों को चूमने चूसने लगा। इससे मैं थोड़ा नशे में आई और उसके सर पर हाथ फेरने लगी और चूत को ढीला छोड़ दिया।

पांच मिनट बाद वो किसी मंझे हुए खिलाड़ी की तरह धीरे धीरे अपनी कमर चलाने लगा। उसके बाद उसने अपना पूरा लण्ड डालने में पांच मिनट लगा दिए। अब मुझे भी अच्छा लगने लगा था। मैं भी मंद मंद सिसकारियां लेकर कमर हिला रही थी। मैंने फिर से अपने पैरों की कैंची बनाकर उसके कमर में फंसा दी।

कुछ देर इसी तरह धक्के खाने के बाद हमने पोजीशन बदली। उसे बिस्तर पर लिटाकर मैं उसके रॉकेट से खड़े लण्ड की सवारी करने लगी और आसमान की ऊंचाइयों को छूने लगी।

मैं तेजी से ऊपर जाती और उससे भी तेजी से नीचे आती, जब मेरी नर्म गांड के दोनों गोले तेजी से उसकी जांघों से टकराते तो थप-थप की आवाज आती।

उसका लण्ड झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था, हम लगभग आधे घंटे से चुदाई कर रहे थे, मेरी चूत में जलन होने लगी थी।

अंत में मैंने मेरा प्रिय आसन डॉगी स्टाइल चुना।

वो बेड से नीचे उतर गया और मैं बेड के किनारे पर आ गयी। मैं बेड पर घुटनों के बल झुक गयी और उसने अपना लण्ड मेरी चूत में लगा दिया और खुद भी झुककर मेरे चूचियों को कस कर पकड़कर छप-छप, छप-छप की आवाज से धक्के लगाने लगा।

आज मैं पूरी जिंदगी का सुख एक साथ भोग रही थी।

उसने मेरे स्तनों को छोड़ दिया और दोनों हाथों से मेरे बाल पकड़ कर अपनी तरफ खींच लिया। मेरी भारी भरकम चूचियाँ उसके हर दमदार धक्कों के साथ हवा में झूल रही थी।

दो तीन मिनट बाद ही मेरा शरीर ऐंठने लगा, मेरी चूत में चींटियों का झुंड एक साथ चल पड़ा. मैं चीखने लगी, मैंने आंटी की भी परवाह नहीं की। मेरी चूत से कामरस की नदी बहने लगी।

मुझे झड़ती देख उसने भी अपनी गति दुगुनी कर दी। बीसियों झटकों के बाद वह काम्पने लगा और मेरी नंगी पीठ से चिपक गया और मेरी चूचियों को पकड़ कर दबाने लगा।

उसके लण्ड ने मेरी चूत में ही अपना ज्वालामुखी छोड़ दिया। दोनों के कामरस एक होकर मेरी जांघों से होते हुए बहने लगा।

मैं बिस्तर पर गिर गयी, वो भी निढाल होकर मेरे ऊपर ही लेटा रहा. उसका लण्ड अभी भी मेरे चूत के अंदर ही था।
आज मेरी आत्मा तृप्त हो गयी थी।

उस पूरी रात में हमने तीन बार चुदाई की। पूरी रात इतनी थकान होने के बावजूद मैं सोई नहीं थी क्योंकि मुझे इस चमत्कारी लण्ड के मजे लेने थे।

सुबह 5 बजे मैंने घर का गेट खोलकर उसे घर के बाहर किया और घर के बाहर ही उसे अंधेरे में पांच मिनट तक किश किया, फिर मैंने उसे अलविदा कहा और अपने कमरे में आ गयी।

नींद की गोली की वजह से आंटी जी सुबह 8 बजे उठी, उन्होंने मुझे उठाया पर मैं सोती ही रही।
सच कहूं तो मुझसे उठा नहीं जा रहा था।

मैं सोती रही जब तक कि दोपहर 2 बजे मां बाऊजी घर आ गए और रिंग बेल बजाने लगे।

मैंने जाकर गेट खोला और सर दर्द का बहाना बता कर फिर वापस आकर लेट गयी।

ये चुदाई मेरे लिए यादगार रही।

आप भी अपने यादगार पलों को हमारे साथ बांटिए और इस कहानी से सम्बंधित सुझाव य शिकायत मेरे इस मेल आईडी [email protected] पर भेजें और कहानी लेखन के प्रति मेरा उत्साह बढ़ाएं।
मेरी गर्म सेक्स कहानी आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद।
आपका अपना रघु पाठक

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