वासना की न खत्म होती आग-12

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    वासना की न खत्म होती आग भाग-13

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अब तक आपने पढ़ा..
कांतिलाल ने मेरे साथ जबरदस्त सम्भोग किया था.. मैं उनसे अलग हो कर निढाल पड़ी थी।
अब आगे..

मैं अभी सुस्त हुई ही थी कि मेरा वो पुराना मित्र अपने लिंग को हाथों से हिलाता हुआ मेरी ओर बढ़ा। उनका लिंग पूरी तरह तनतनाया हुआ सीधा खड़ा था। मेरे पास आकर उन्होंने झुक कर मेरी टांगों को जांघों के पास से पकड़ कर अपनी और खींचा।

अब वो मेरे साथ सम्भोग करना चाहते थे। जाहिर है इतनी देर मुझे और बाकियों को सम्भोग में लिप्त देख कर उनकी भी उत्सुकता और उत्तेजना काफी बढ़ गई होगी।
तभी मैंने कहा- मैं थक गई हूँ थोड़ा आराम कर लेने दो।

वो मेरी भावनाओं का ख्याल रखते हुए मुस्कुरा दिए और अब वे बबिता और रामावतार जी की तरफ बढ़ गए।
इधर कांतिलाल जी पूरे सुस्त पड़े थे, अब मेरे पास बाकियों को देखने का पूरा मौका था.. तो मैं उठ कर बैठ गई।

मेरे ठीक सामने बबिता, रामावतार जी और रमा जी थे।
वो नजारा सच में बहुत ही उत्तेजक था।

रमा कुर्सी पर हाथ रख कर आगे की ओर झुकी हुई थी और रामावतार जी उसके चूतड़ों को पकड़ कर अपने लिंग को रमा जी की योनि में घुसाए हुए जोर-जोर से प्रहार किए जा रहे थे। वहीं बबिता बार-बार रामावतार जी के पीछे खड़ी होकर उनके बदन को चूम रही थी.. साथ ही वो नीचे हाथ लगा कर उनके अन्डकोषों को भी सहला रही थी।

रमा जी पूरी मस्ती में लग रही थी और रामावतार जी के हर धक्के पर कामुक भरी सिसकारी ले रही थी।

तभी मैंने अपनी बायीं ओर देखा.. कांतिलाल जी के बगल में एक और उत्तेजक नजारा था, शालू नीचे बिस्तर पर लेटी हुई थी और उसकी एक टांग विनोद के कंधे पर थी.. दूसरी टांग को विनोद ने नीचे बिस्तर पर अपनी बाएं हाथ से दबा रखा था। जिससे शालू की दोनों टाँगें फ़ैल गई थीं।

विनोद ने अपनी दोनों टाँगें सीधी कर रखी थीं.. और उसका लिंग शालू की योनि के भीतर था। शालू बहुत ही जोश में लग रही थी। शायद इसी वजह से इस पीड़ादायक अवस्था में भी वो विनोद का साथ दे रही थी, उसने एक हाथ से विनोद का हाथ पकड़ रखा था और दूसरे हाथ से उसके सिर के बालों को पकड़ा हुआ था।

विनोद पूरी ताकत लगा कर शालू को धक्के मार रहा था और शालू मस्ती में कराह रही थी और मजे ले रही थी।

उन दोनों की स्थिति ऐसी थी कि मैं विनोद का लिंग शालू की योनि में अन्दर-बाहर होता देख रही थी। उसकी दोनों टाँगें खुली किताब की तरह फैली हुई थीं और उनके बीच विनोद का लिंग तेज़ी से अन्दर-बाहर होता हुआ दिख रहा था।

विनोद के हर धक्के पर शालू की योनि खुलती बंद सी लगती थी और उसकी योनि के ऊपरी हिस्से पर सफ़ेद झाग सा जम गया था। मुझे यकीन था कि वो पहले एक-दो बार झड़ गई होगी और उसकी योनि ने पानी छोड़ा था.. तभी तो विनोद का लिंग भी चिपचिपा और चमकीला सा दिख रहा था.. जो शालू के योनि से निकले रस की गवाही दे रहा था।
वो दोनों एक दूसरे में घुल से गए थे।

विनोद जोर-जोर से और भयंकर तेज़ी से धक्के मार रहा था, शालू ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह… ’ करते हुए आवाजें निकाल रही थी।
फिर जब विनोद धीमा होता तो शालू उसे बालों से पकड़ कर खींचती और अपने होंठों से होंठ लगा कर चूमने और चूसने लगती।

इस बीच विनोद धीमे-धीमे अपनी कमर को घुमाता और शालू की योनि में लिंग पूरा घुसा कर दबाता जाता। मैं भी इस तरीके से काफी वाकिफ थी क्योंकि इस तरह लिंग का सुपारा बच्चेदानी में बड़े प्यार से रगड़ खाता है और मीठे दर्द के साथ गुदगुदी सा मजा देता है।

फिर मैंने रमा की तरफ ध्यान दिया, रामावतार जी अभी भी उसे पीछे से धक्के मारे जा रहे थे और बबिता उनके पीछे थी।

फिर मेरा वो पुराने मित्र ने बबिता के पीछे जाकर उसके स्तनों को पकड़ा और उसकी गर्दन को चूमने लगा। उसने बबिता को खींचा.. तो वो रामावतार जी से अलग हो गई और पीछे मुड़ कर मेरे मित्र के सामने होकर उसके होंठों से होंठ लगा कर चूमने लगी।

मित्र ने उसे चूमते हुए उसके चूतड़ों को दबोचते हुए इशारा किया और बबिता वहीं नीचे झुक गई। वो घुटनों के बल खड़ी होकर मेरे मित्र का लिंग अपने मुँह में भर कर चूसने लगी.. इससे उनका लिंग और भी तनतना उठा।

बबिता मेरे ख्याल से पहले से गीली थी क्योंकि मेरे सम्भोग से पहले रामावतार जी उसकी योनि को चूस रहे थे।

कुछ मिनट चूसने के बाद बबिता जमीन पर पीठ के बल लेट गई और अपनी टाँगें घुटनों से मोड़ कर अपनी जांघें फैला दीं। इस तरीके से ऐसा लग रहा था जैसे वो मेरे मित्र को आने का न्यौता दे रही हो।

मेरे मित्र तनिक भी देरी किए बिना बबिता के ऊपर ठीक उनकी जांघों के बीच लेट गए, फ़िर अपनी जुबान से दाहिने हाथ में थूक लगा के अपने लिंग के सुपारे पर मलते हुए बबिता के ऊपर झुके ओर लिंग को योनि के छेद पर टिका दिया, बबिता ने भी उनको गले से पकड़ते हुए सहारा दिया।

आगे देखते हैं कि इस सामूहिक सम्भोग के खेल में और क्या-क्या हुआ।
आपके मेल का स्वागत है।
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कहानी जारी है।

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