वासना के पंख-9

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संध्या और मोहन की माँ आपस में गुत्थम गुत्था हो गईं और दोनों की जीभें आपस में एक दूसरे से छेड़खानी करने लगीं। संध्या खींच कर माँ को दर्पण के पास ले आई और उसे दर्पण की ओर खड़ा करके पीछे से उसके स्तनों को मसलने लगी और फिर पीठ पर चुम्मियाँ लेते हुए नीचे की ओर जाने लगी। माँ खुद को दर्पण में नंगी देख रही थी लेकिन दूसरी ओर से मोहन अपनी माँ को पहली बार इतनी करीब से नंगी देख रहा था।

थोड़ी देर बाद संध्या ने सासू माँ को बिस्तर पर धकेल दिया और खुद उनके ऊपर चढ़ गई। दोनों एक दूसरे की चूत चाटने लगीं। संध्या ने माँ को ऐसे लेटाया था कि उनकी चूत सीधे दर्पण की दिशा में ही थी। थोड़ा चूसने के बाद संध्या ने अपने सर ऊपर किया और दर्पण की तरफ इशारा किया कि देखो और फिर माँ की चूत की फांकें खोल के मोहन को दिखाईं।

काफी देर तक चूसा-चाटी करके जब दोनों झड़ गईं तो संध्या ने सासू माँ को लंड दिखाई के बारे में याद दिलाया।

संध्या- माँ जी, मैं चलती हूँ। आपको वो लंड देखना हो तो ये दीवार पर जो दर्पण है इसको देखते रहना अब थोड़ी ही देर में इसमें लंड दिख जाएगा।
माँ- काय दुलेन? बावरी हो गई का?

संध्या ने बस हल्की सी मुस्कुराहट बिखेरी और बाहर चली गई। सासू माँ इसी असमंजस में थीं कि ये क्या मज़ाक है; दर्पण में लंड कैसे दिखेगा? यही सोचते हुए वो दर्पण के सामने जा कर खड़ी हो गईं। मोहन को लगा वो अपना नंगा रूप निहार रहीं हैं तो वो भी देखने लगा कि तभी संध्या अन्दर आई। उसने दर्पण बंद किया लेकिन बंद करते करते उसने दूसरी तरफ का दर्पण थोड़ा सा खोल दिया। दर्पण बंद होने के बाद उसने मोहन के खड़े हुआ लंड को पकड़ कर अपनी ओर खींचा।

संध्या- आजा मेरे राजा! माँ की चूत देख के खड़ा हो गया?

जब सासू माँ ने दर्पण को सरकते हुए देखा तो वो अचंभित रह गईं। उन्होंने जो थोड़ा सा खुल गया था वहां उंगलियाँ डाल कर दर्पण को पूरा सरका दिया और उसके ठीक सामने उसके नंगे बेटा-बहू थे। संध्या लंड को पकड़ कर घुटनों के बल बैठी थी। माँ को कुछ सुनाई तो नहीं दे रहा था लेकिन संध्या अपने पति के लंड से बच्चों की तरह पुचकारते हुए बात कर रही थी।

संध्या- माँ की चूत देख के खड़ा है …? चोदेगा …? मादरचोद बनना है …? ठीक है बन जाना, लेकिन अभी पहले मेरी चुदाई कर।

इतना बोल कर संध्या ने मोहन को दर्पण की तरफ घुमाया और उसके पीछे बैठ कर उसके अन्डकोषों को पकड़ कर दर्पण में दिखा कर चिढ़ाते हुए बोली कि क्या बात है आज कुछ ज्यादा ही बड़ा दिख रहा है। दरअसल उसका उद्देश्य इस लंड के दर्शन माँ को पास से कराने का था। फिर संध्या ने मोहन को बिस्तर पर ऐसे लिटाया कि उसका लंड दर्पण की ओर रहे। फिर ठीक जैसे मोहन को माँ की चूत दिखाई थी वैसे ही मोहन के मुँह पर चढ़ कर अपनी चूत चुसवाते हुए उसने मोहन का लंड चूसना शुरू कर दिया।

जब वो थोड़ा गीला हो गया तो दर्पण की तरफ देख कर उसने ऐसे इशारा किया जैसे बड़ा स्वादिष्ट लंड है। उसके बाद एक मस्त चुदाई हुई जिसमें संध्या ने मोहन के लंड का भरपूर प्रदर्शन किया। आखिर चुदवा के संध्या और मोहन सो गए और मोहन की माँ अपनी चूत रगड़ती रही। अब मोहन को सिर्फ ये पता था कि उसने उसकी माँ को देखा है लेकिन उसकी माँ ने उसे भी देखा ये उसे नहीं पता था। अगले दिन संध्या ने अपनी सासू से अकेले में बात की।

संध्या- देखा ना फिर आपने जो लंड मैंने दिखाया था। कैसा लगा?
माँ- ना बहू … मैं अपनेई मोड़ा संगे … नईं नईं … जे ना हो सके।
संध्या- आपने ही तो कहा था बात बाहर गई तो बदनामी होगी। अब ये तो घर के घर में ही है किसी को कानो कान खबर नहीं होगी। आपको इतना चाहते हैं ये … बड़े प्यार से ही चोदेंगे। इतने प्यार से तो प्रमोद के पापा ने भी नहीं चोदा होगा।
माँ- मो से नईं होएगो जे सब। तूई आ जाऊ करे एक चक्कर सोने से पेलम, उत्तोई भोत है।

रात को सोने से पहले संध्या अपनी सासू के पास गई एक बार फिर मोहन को अपनी चुसाई-चटाई का खेल दिखाया और जब सासू माँ को झड़ा के वापस आ रही थी तो सासू माँ का मन किया कि वो आज फिर उनकी चुदाई देखें। संध्या दरवाज़े तक पहुँच ही गई थी कि सासू माँ ने उसे रोका।

माँ- बहू! सुन … आज बी कांच खुल्लो छोड़ दइये नी।
संध्या- नहीं, आज खिड़की नहीं दरवाज़ा खुला छोडूंगी; आने का मन हो तो आ जाना। ज्यादा कुछ नहीं तो लंड ही चूस लेना। मैं अपनी चूत इनके मुँह पे दबा के बैठी रहूंगी तो पता नहीं चलेगा कि मैं चूस रही हूँ या तुम।
इतना कह कर संध्या चली गई।

माँ कुछ देर तक तो उम्मीद लगाए बैठी रही कि शायद दर्पण खुल जाएगा, लेकिन फिर बैचैनी से कमरे में इधर उधर नंगी ही चक्कर काटने लगी। आखिर सोचा खिड़की ना सहीं दरवाज़ा तो खुला है, क्यों ना वहीं जा कर बहू की चुदाई के दीदार कर लिए जाएं। उसने सोच लिया था कि इससे ज्यादा कुछ नहीं करेगी। बस बहू की चुदाई देखते देखते अपनी चूत में उंगली कर लेगी और वापस आ जाएगी।

मोहन के कमरे की अटैच्ड बाथरूम कुछ बड़ी थी और दरवाज़े से लगी हुई थी इस वजह से कमरे का दरवाज़ा पूरा भी खोल दो तो अन्दर का पूरा कमरा दिखाई नहीं देता था। हिम्मत करके माँ ने कमरे के अन्दर नग्नावस्था में ही प्रवेश किया और बाथरूम की दीवार के किनारे खड़े होकर अन्दर झाँका। अन्दर का दृश्य ठीक वैसा ही था जैसा संध्या ने वादा किया था।

संध्या, मोहन के ऊपर चढ़ी हुई थी और वो दोनों एक दूसरे के कामान्गों को चूस व चाट रहे थे। एक तो माँ के दिल की धड़कन तभी से बढ़ी हुई थी जब से वो नंगी अपने बेटे के कमरे में दाखिल हुई थी, ऊपर से ये दृश्य देख कर तो उसके हाथ पैर ही ढीले पड़ने लगे थे। एक तरफ़ा दर्पण के पीछे से चुदाई देखना तो लाइव टीवी जैसा था लेकिन ये सचमुच में आमने सामने का जीवंत अनुभव था।

उत्तेजना का मारे माँ की चूत से रस टपकने लगा। लेकिन अब तक भी ये उत्तेजना उसके बेटे के लिए नहीं थी। ये तो बस पहली बार था जब वो अपनी आँखों के सामने चुदाई होते देख रही थी और वो भी जब खुद वहां नंगी खड़ी थी। ये भी सच था कि उसने एक साल से भी ज्यादा समय से लंड नहीं देखा था और ऐसा जवान पहलवान लंड तो पता नहीं कब देखा था उसे याद तक नहीं था। उसकी चूत तो बस वो लंड देख रही थी। वो किसका लंड था ये ना तो उसकी चूत को दिखाई दे रहा था ना उसकी आँखों को; क्योंकि मोहन का चेहरा तो संध्या की पिछाड़ी के नीचे छिपा पड़ा था।

उत्तेजना में माँ को होश नहीं रहा कि चूत में उंगली करते करते उसके शरीर के कुछ हिस्से दीवार की ओट से बाहर निकल रहे हैं और ज्यादा हिलने-डुलने के कारण संध्या की नज़र में भी आ चुके हैं। अचानक से जब माँ ने देखा कि संध्या ने चूसना बंद कर दिया है और वो बस मुठिया रही है तो उनकी नज़र संध्या के चेहरे की तरफ गई और देखा कि संध्या उनको ही देख कर मुस्कुरा रही है।

संध्या ने अपने एक हाथ, चेहरे हाव-भाव और आँखों से ही इशारा करके सासू माँ को कह दिया कि बड़ा मस्त लौड़ा है … एक चुम्मी तो बनती है। माँ से भी रहा नहीं गया। उसे बहू बेटा कुछ याद नहीं रहा, बस उसकी काम-वासना की प्यास बुझाने वाली साथी के हाथ में एक मस्त लंड दिखाई दिया जिसे वो अपने से दूर नहीं रख पाई और संध्या के पास चली गई। संध्या ने अपने हाथ से लंड का सर माँ की ओर झुका दिया। माँ ने पहले तो मोहन के लंड की टोपी पर एक छोटी सी पप्पी ली; फिर उससे रहा नहीं गया तो उसने सीधे उसे संध्या के हाथ से छीन कर दोनों हाथों से पकड़ कर अपने मुँह में भर लिया और अपनी जीभ से चाटने लगी जैसे बिल्ली लपलप करके दूध पीती है।

इस सब में एक बात जो माँ के दिमाग को सोचने का मौका नहीं मिला वो ये कि मोहन जब 4 हाथ अपने लंड पर महसूस करेगा तो क्या वो समझेगा नहीं कि वहां संध्या के अलावा भी कोई है। वही हुआ भी मोहन ने तुरंत संध्या को अपने ऊपर से अलग किया और सामने देखा कि उसकी वही माँ उसका लंड शिद्दत से चूस रही है जिसने उसे इसलिए दूध पिलाने से मना कर दिया था कि वो अपना लंड सहला रहा था।

मोहन- ये क्या कर रही हो माँ!

माँ इतनी मग्न थी कि उसने जवाब देने के लिए लंड चूसना बंद करना ज़रूरी नहीं समझा और संध्या की तरफ इशारा कर दिया। शायद वो ये कहना चाह रही थी कि इसकी वजह से वो ये कर रही है; लेकिन संध्या ने इस मौके का फायदा उठा कर मस्त जवाब दिया।

संध्या- बचपन में जितना दूध पिया है ना माँ का अब माँ को अपने दूध का क़र्ज़ वापस चाहिए।
मोहन- क्यों नहीं माँ! तूने जितना भी दूध पिलाया है उसकी मलाई-रबड़ी बना बना के वापस करूँगा। चूस ले माँ … जितना मन करे चूस ले।
संध्या- जिस तरह से माँ जी मथ-मथ के चूस रहीं हैं मुझे तो लगता है सीधा घी ही निकलेगा। हा हा हा …

अब माँ अपने बेटे का लंड चूसे और उसमें से प्यार का फ़व्वारा ना छूटे, ऐसा कैसे हो सकता था। जल्दी ही मोहन ने अपनी माँ का मुँह मलाई से भर दिया और माँ भी उसे बिना रुके गटक गई। आज माँ ने ना केवल अपने बेटे का बल्कि पहली बार किसी का भी वीर्यपान किया था। अचानक जब उनकी मोहन से नज़रें मिलीं तो उसकी वासना का सपना टूटा और उसे अहसास हुआ कि ये क्या हो गया। वो उठ कर जाने लगीं।

माँ- मैं चलत हूँ अब। तुम दोई कर ल्यो अपनो काम।
संध्या- अरे माँ जी … अभी से कहाँ … आपने हमको तो मौका दिया ही नहीं अपनी सेवा का।

संध्या ने लपक के उनको जाने से रोक लिया और प्यार से पकड़ के पलंग पर बैठा दिया। संध्या खुद ज़मीन पर घुटनों के बल बैठ गई और माँ की चूत चाटने लगी। मोहन उनके स्तन सहलाने लगा तो माँ भी वैसे ही आँख मूँद कर लेट गई। अब तो मोहन को और आसानी हो गई वो दोनों हाथों से माँ के दोनों स्तनों को मसलने लगा और बारी बारी से दोनों के चूचुक भी चूसने लगा। उधर संध्या भी एक हाथ से अपने पति के लंड को मसल मसल कर खड़ा करने लगी।

जैसे ही लंड खड़ा हुआ, संध्या ने उसे खींच कर अपनी तरफ आने का इशारा किया। मोहन समझ गया और आगे सरक गया। संध्या ने उसे अपने मुँह में ले कर बस गीला करने के लिए ज़रा सा चूसा और फिर अपने हाथ से मोहन के लंड को उसकी माँ की चूत पर रगड़ कर सही जगह सेट कर दिया और मोहन के नितम्बों पर एक चपत लगा कर उसे चुदाई शुरू करने का सिग्नल भी दे दिया।

मोहन ने धीरे धीरे अपना लंड अन्दर की ओर धकेलना शुरू किया। माँ की चूत ज्यादा टाइट तो नहीं थी लेकिन इतनी ढीली भी नहीं थी कि कसावट महसूस ना हो। एक तो काफी समय से ये चूत चुदी नहीं थी तो थोड़ी कसावट आ गई थी उस पर ऐसा मुशटंडा लौड़ा तो ज़माने बाद उनकी चूत में घुसा था। माँ तो उस लौड़े को अपनी चूत में महसूस करते करते एक बार फिर भूल गईं थीं कि ये उनके बेटे का ही लंड था। मोहन ने धीरे धीरे चुदाई शुरू कर दी। उधर स्तनों का मसलना और चूसना अभी भी वैसे ही जारी था, और अब तो संध्या ने भी एक चूचुक चूसने की ज़िम्मेदारी खुद ले ली थी।

दोनों स्तनों को एक साथ मसला और चूसा जा रहा था और ज़माने बाद इतना मस्त लंड माँ की चूत चोद रहा था। माँ तो मनो जन्नत की सैर कर रही थी। इस सबके ऊपर संध्या ने एक और नया काम कर दिया। वो अपना हाथ माँ-बेटे के नंगे जिस्मों के बीच ले गई और अपनी उंगली से माँ की चूत का दाना सहलाने लगी। ये तो जैसे सोने पर सुहागा हो गया। माँ का बदन इस चौतरफा सनसनी तो बर्दाश्त नहीं कर पाया और वो झड़ने लगी। लेकिन मोहन तो अभी अभी झड़ के निपटा था वो अभी कहाँ झड़ने वाला था तो कोई नहीं रुका सब वैसे ही चलता रहा और माँ झड़ती रही।

थोड़ी देर बाद जब अतिरेक की भी अति हो गई तो झड़ना बंद हुआ लेकिन चुदाई अभी भी वैसी ही चल रही थी। आखिर जब माँ दूसरी बार भी झड़ गई तो संध्या ने मोहन को रुकने को कहा। फिर संघ्या नीचे लेटी और माँ को अपने ऊपर आ कर एक दूसरे की चूत चाटने की मुद्रा में लेटने को कहा। संध्या और मोहन की माँ एक दूसरे की चूत चाट रहीं थीं और ऐसे में मोहन ने फिर से माँ चोदना शुरू किया। संध्या अब भी माँ कि चूत का दाना चूस रही थी और अपने दोनों हाथों से उनके स्तन मसल रही थी।

इस बार जब माँ ने झड़ना शुरू किया तो वो पागलों की तरह संध्या की चूत चाटने लगीं और मोहन ने भी ये देख कर जोश में चुदाई की रफ़्तार बढ़ा दी। आखिर माँ का झड़ना बंद होते होते संध्या और मोहन भी झड़ गए। मोहन ने अपना लंड तब तक माँ की चूत से नहीं निकाला जब तक उसके लंड से वीर्य की आखिरी बूँद तक नहीं निकल गई। लेकिन जब उसने लंड बाहर निकाला तो संध्या ने माँ की चूत को चूस चूस के सारा वीर्य अपने मुँह में भर लिया फिर उसने पलट कर माँ को सीधा किया और उनको फ्रेंच किस करके अपने मुँह में भरा सारा माल माँ के मुँह में डाल दिया। माँ ने भी झट उसे पी लिया।

संध्या- आपके दूध का क़र्ज़ है मैं क्यों उसमें मुँह मारूं? हे हे हे …

इस बात पर सभी हंस दिए और इस तरह मोहन मादरचोद बन गया।

मोहन को तो उसका पहला प्यार चोदने को मिल गया लेकिन क्या संध्या को भी एक नए लंड की ज़रुरत पड़ेगी। अगर हाँ तो वो लंड किसका होगा? ये हम देखेंगे अगले भाग में।

प्यारे पाठको, मेरी कामुक कहानी पर आप अपने विचार मुझे [email protected] पर भेजें!

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