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वासना का मस्त खेल-4
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वासना का मस्त खेल-6
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अब तक की इस मस्त सेक्स कहानी में आपने पढ़ा कि प्रिया की चुदाई जारी थी और उसकी कुंवारी चूत की सील टूट चुकी थी. उसकी चूत ने लंड को सहन कर लिया था और अब रस निकलने के कारण चूत में लंड को आने जाने में सुगमता हो चली थी.
अब आगे:
चूंकि प्रिया अब पूरी से तरह मेरा साथ देने लगी थी, इसलिये मैंने अपने धक्कों का माप बढ़ा दिया और तेजी से धक्के लगाने लगा. मेरा पूरा लंड अब उसकी चुत में अन्दर बाहर हो रहा था, जिससे प्रिया की सिसकारियां तेज हो गईं और मेरे हरेक धक्के के साथ वो जोरों से अपने कूल्हों को उचका उचका कर चुदास से भरी आवाजें निकालने लगी ‘इइ.ईईई …श्श्श्श्श्श … अआआआह … उहा … उइइ … ईईई … इश्श्श्श्श … अआह … ह्ह्ह्ह्ह ह्ह्ह्हहा …’
मैंने भी अब थोड़ा और तेजी से धक्के लगाने शुरू कर दिए … जिससे प्रिया की सिसकारियां और भी तेज हो गईं. उसने भी अब अपने पैरों को उठाकर मेरे कूल्हों पर रख लिया और तेजी से अपने कूल्हे उचका उचका कर मुँह से मादक आवाजें निकालने लगी.
प्रिया अब पूरे जोश में थी और मेरी ताल से ताल मिलाकर अपने कूल्हों को उचका रही थी. इसलिये मैं भी अब अपने पूरे जोश में आ गया. मैंने अपनी कमर के ऊपर के हिस्से को अपने हाथों के सहारे ऊपर उठा लिया और अपनी पूरी तेजी व पूरी ताकत से धक्के लगाने लगा.
मेरा आठ इंच का मूसल लंड अब प्रिया की मुनिया को तहस नहस करने पर उतारू था. वो जिस वेग से प्रिया की मुनिया के अन्दर जा रहा था, तो उससे भी दुगने वेग से बाहर आकर फिर से अन्दर जा रहा था. जिसका प्रिया भी अब कोई विरोध नहीं कर रही थी. उत्तेजना के वश वो तो खुद ही ‘इई … इश्श्शश … अआ … ओह्हह …. इईई.श्श्शश … आआह्ह्ह … इईईई श्श्शश … अआह्हह …” की किलकारियां सी मारते हुए अब अपने कूल्हों को उचका उचका कर मेरे मूसल को अधिक से अधिक अपनी मुनिया में उतारने का प्रयास कर रही थी.
मैं अपने मूसल लंड से प्रिया की उस छोटी सी मुनिया के परखच्चे उड़ाने पर उतारू था, तो प्रिया भी अपनी मुनिया की संकरी गुफा में मेरे लंड को दबोचकर मारने का प्रयास कर रही थी. इस धक्कमपेल से हम दोनों की सांसें अब फूल गयी थीं और बदन पसीने से भीगकर बिल्कुल तर हो गए थे. मगर फिर भी हम दोनों ही अपनी मंजिल को पाने के लिये जुटे रहे.
जोरों से धक्के लगाते हुए अचानक से प्रिया गुर्राने सी लगी. उसकी सिसकारियां फिर से कराहों में बदल गईं. मगर ये कराहें अब दर्द की नहीं थीं … बल्कि आनन्द की कराहें थीं. उसने अपने हाथों व पैरों से मेरे शरीर को कस कर पकड़ लिया और किसी बेल की तरह मेरे शरीर से लिपट गयी. उत्तेजना और चरम सुख के चलते एक पल तो वो शायद सांस लेना तक भूल गयी और फिर सुबकते हुए “अहां … आहां … अहां …” की कामुक आवाज निकालते हुए अपनी चुत से प्रेमरस उगलने लगी, जिसने मेरे लंड को नहला दिया.
अपनी चुत का सारा ज्वार उगलने के बाद प्रिया निढाल होकर बिस्तर पर धम्म से गिर गयी और लम्बी लम्बी सांसें लेने लगी. मैं भी चरमोत्कर्ष के करीब ही था. इसलिये मैं अब ताबड़तोड़ धक्के लगाने लगा. प्रिया की चुत के कामरस से भीगकर मेरा लंड और भी चपल हो गया था और वो और भी तेजी से चुत के अन्दर बाहर होने लगा.
लगातार चार पांच धक्के अपनी पूरी ताकत व तेजी से लगाने के बाद मेरा लंड भी उसकी चुत में लावा उगलने लगा … मैं भी अपना सारा वीर्य प्रिया की चुत में उगलने के बाद ढेर होकर प्रिया पर गिर गया और अपनी उफनती सांसों को काबू में करने की कोशिश करने लगा.
काफी देर तक हम दोनों ऐसे ही पड़े रहे. फिर प्रिया ने धीरे से कराहते हुए मुझे उठने का इशारा किया और मैं उसके बदन पर से लुढ़क कर उसकी बगल में लेट गया. मेरे उठते ही प्रिया उठकर बिस्तर पर बैठ गयी.
तभी उसका ध्यान बेडशीट पर चला गया, जिस पर खून के धब्बे लगे हुए थे.
“हे …भगवान … ये … ये सब क्या है?” उसने हैरानी से बेडशीट पर लगे खून के धब्बों को देखते हुए कहा.
“कुछ नहीं हमारे प्यार की निशानी है ये!” मैंने शरारत से उसकी जांघों पर हल्की थपकी मारते हुए कहा जिससे प्रिया हल्का सा शर्मा गयी और उसने मेरे सीने में दो तीन घूंसे लगा दिए.
“जानवर कहीं के … प्यार क्या कोई ऐसे करते हैं … देखो क्या हाल बना दिया तुमने इसका?” उसने अपनी चुत की तरफ देखते हुए कहा जिसमें से खून और मेरा वीर्य अब भी रिस रहा था.
“कोई नहीं, तो अब तुम बता दो कि प्यार कैसे करते हैं?” मैंने हंसते हुए कहा और प्रिया को फिर से अपने ऊपर खींच लिया.
तभी प्रिया का ध्यान दीवार पर लगी घड़ी पर चला गया, जिसमें दो बज रहे थे.
“छोड़ मुझे अब … सुबह उठना भी है.” कहते हुए प्रिया मुझसे खुद को छुड़वाकर खड़ी हो गयी और जल्दी जल्दी अपने कपड़े पहनने लगी.
कपड़े पहनने के बाद प्रिया ने उस बेडशीट को खींचते हुए कहा- इसे छोड़ … मैं इसे अभी धुलाई कर देती हूँ, कल अगर गलती से मम्मी ने देख लिया, तो तेरा सारा प्यार निकल जाएगा.
वो उस बेडशीट को लेकर अपने कमरे में चली गयी. इसके बाद मैं भी अपने कपड़े पहनकर सो गया. मैं मुश्किल से दो अढ़ाई घण्टे ही सोया था कि किसी के जोरों से हिलाने के कारण मेरी नींद खुल गयी. मैंने आंखें खोलकर देखा तो हाथ में बेडशीट लिये प्रिया मेरे सामने खड़ी मुस्कुरा रही थी.
“तुम तो बड़े स्वार्थी हो … मैं रात भर से सोई नहीं हूँ … और तुम हो कि घोड़े बेचकर सो रहे हो … ये लो पकड़ो इसे, मैंने इसे धुलाई करके सुखा भी दिया है.”
प्रिया ने उस बेडशीट को मेरे ऊपर फेंकते हुए कहा और वापस मुड़कर कमरे से बाहर चली गयी.
प्रिया की इस अदा पर मुझे बड़ा ही तरस और प्यार आ गया, सही में उसने रात में ही उस बेडशीट की धुलाई की और फिर प्रेस करके उसे सुखा लाई थी. मैं उसे कुछ कहता, तब तक वो कमरे से बाहर निकल गयी.
प्रिया की मम्मी के उठने का भी समय हो गया था … इसलिये मैं अब उसके पीछे नहीं गया और बेडशीट को बिछाकर फिर से सो गया.
प्रिया के साथ इतने मजे से दिन निकले कि पता नहीं कैसे हफ्ता भर गुजर गया. प्रिया के पापा ने ऑफिस से एक हफ्ते की ही छुट्टी ली हुई थी और शायद नेहा का भी गांव में दिल नहीं लगा, इसलिए हफ्ते भर गांव रहने के बाद प्रिया के पापा और नेहा गांव से वापस आ गए. मगर कुशल अब भी गांव में ही रहा.
प्रिया और नेहा अब एक ही कमरे में सोने लगीं, मगर फिर भी प्रिया चुपके से रात में मेरे कमरे में आ जाती … जिससे हमारा काम बन जाता था.
प्रिया के साथ तो मेरा काम चल ही रहा था, मगर अब नेहा के आ जाने के बाद मेरा दिल उसको भी पाने के लिए मचलने लगा था. वैसे भी मैं तो उसी को ही पाने की कोशिश कर रहा था, प्रिया तो गलती से फंस गयी थी. अब तो मुझे मालूम भी हो गया था कि उस रात नेहा ने मेरे साथ सम्बन्ध बनाये थे, इसलिए मेरा काम मुझे आसानी बनता भी नजर आ रहा था.
ये बात मैंने प्रिया को भी बताई मगर मेरे साथ देने के बजाए वो मुझसे नाराज हो गयी. हालांकि वो दोनों सगी बहनें ही थीं, मगर फिर भी प्रिया को ये गंवारा नहीं था कि मैं अब नेहा के साथ सम्बन्ध बनाऊं.
खैर … प्रिया तो मेरा साथ देने के लिए तैयार नहीं हुई, मगर फिर भी मैं अब नेहा के अधिक से अधिक पास रहने की कोशिश करने लगा और जानबूझकर उससे उस रात के बारे में बातें करने की कोशिश करता, जिससे नेहा के चेहरे के भाव बदल जाते थे. वो अगर मेरे साथ अकेली होती तो वहां से चली जाती थी और अगर नेहा या सुलेखा भाभी के साथ होती, तो तुरन्त ही बातों का विषय बदल देती थी.
नेहा को भी पता चल गया था कि मैं उस रात की असलियत जान गया हूँ इसलिए मुझसे वो डर डर कर रहती थी. फिर भी अगर कभी हमारा आमना सामना हो भी जाता, तो वो जानबूझकर अनजान बनने का नाटक करने लगती.
मैं अब दिल ही दिल में नेहा को पाने के लिए योजनायें बनाता रहता था. मगर नेहा से अकेले में मिलने का मुझे कोई मौका ही नहीं मिल रहा था.
ऐसे ही तीन चार दिन बीत गए और फिर एक दिन ऊपर वाले ने मेरी सुन ली. उस दिन सुलेखा भाभी अपनी पड़ोसन के साथ बाजार गयी हुई थीं और घर में बस नेहा और प्रिया ही थीं. संयोग से उस दिन मैं भी कम्प्यूटर कोर्स से जल्दी ही घर आ गया था.
मैं घर पहुंचा, उस समय घर के काम निपटाकर प्रिया तो टीवी देख रही थी और नेहा अपने कमरे में शायद ऐसे ही लेटी हुई थी.
अब जैसे ही मुझे पता चली कि सुलेखा भाभी बाजार गयी हुई हैं और घर में बस नेहा और प्रिया ही हैं … मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा. सबसे पहले तो मैंने अब प्रिया को मनाने की कोशिश की. मगर वो कहां मानने वाली थी. मैंने भी अब सोचा कि प्रिया को तो मैं बाद में भी मना सकता हूँ. मगर नेहा को पाने का ऐसा मौका शायद मुझे फिर कभी नहीं मिलने वाला था. इसलिए प्रिया के मना करने के बावजूद भी नेहा के कमरे में चला गया. मुझे नेहा के कमरे में जाने से रोकने के लिए प्रिया मेरे पीछे पीछे भी आई थी, मगर वो दरवाजे पर ही रूक गयी और मैं नेहा के कमरे में घुस गया.
नेहा बिस्तर पर आराम से लेटी हुई थी. मुझे देखते ही वो थोड़ा घबरा सी गयी और तुरन्त उठकर बिस्तर पर बैठ गयी.
“उस रात के बाद तुम मुझसे मिली क्यों नहीं?” मैंने अब उसके पास ही बिस्तर पर बैठते हुए कहा.
“क्क्.क. कौन सी रात? तुम क्या कह रहे हो मुझे नहीं पता?” नेहा ने घबराहट में हकलाते हुए कहा और बिस्तर से उठकर खड़ी हो गयी.
मैंने भी अब उसका हाथ पकड़कर उसको अपनी तरफ खींच लिया, जिससे वो बुरी तरह घबरा गयी.
“य.ये …क् … क्या कर रहे हो? छ.छोड़ो मेरा हाथ!” नेहा ने हकलाते हुए कहा.
नेहा थोड़ा घबरा तो रही थी मगर पहले के जैसे नहीं कि मेरा हाथ छुड़ाकर वहां से भाग जाए, वो अब भी अपने आपको सामान्य ही दिखाने का प्रयास कर रही थी. पता नहीं ये बदलाव उसमें कैसे आ गया था. पहले तो वो अकेले में मेरे साथ एक मिनट भी नहीं रुकती थी, मगर आज उसने वहां से भागने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं की.
“अब ज्यादा मत बनो, मुझे सब पता चल गया है!” मैंने उसको अपनी तरफ खींचते हुए कहा और उसे बांहों में भरकर अपनी गोद में बिठा लिया, जिससे मेरा उत्तेजित लंड सीधे उसके भरे हुए कूल्हों की गहराई में कहीं खो सा गया. मेरे उत्तेजित लंड का अपने कूल्हों पर स्पर्श पाते ही नेहा के बदन ने झुरझुरी सी ली.
“छ्छ.छो.ड़ … छोड़ो मुझे … मुझे नहीं पता तुम क्या कह रहे हो?” नेहा ने अपने आपको छुड़ाने की कोशिश करते हुए घबराई सी आवाज में कहा.
घबराहट के कारण उसके मुँह से अब ठीक से आवाज नहीं निकल रही थी.
मैं अब कहां छोड़ने वाला था, मैं उसको अपनी बांहों में भरकर बैठे बैठे ही बिस्तर पर लुढ़क गया और वो ‘क्क्या कर रहे हो? छ.छोड़ो … छोड़ो मुझे …’ करती रह गयी.
नेहा को बांहों में भरकर मैं अपनी पीठ के बल बिस्तर पर लेट गया था, जिससे नेहा मेरे ऊपर आ गयी और मैं उसके नीचे था. नेहा का मुँह ऊपर की तरफ ही था. इसलिए मैं अब अपने दोनों हाथों को उसकी गोलाईयों पर ले आया और एक साथ उसकी दोनों चूचियों को पकड़ कर मसलने लगा.
नेहा अब सहम सी गयी और “अआह … ये क्या कर रहे हो? छोड़ो … छोड़ो मुझे!” उसने जोरों से कसमसाते हुए कहा और उठने का प्रयास करने लगी. मगर तभी मैंने करवट बदलकर उसको नीचे गिरा लिया. कसमसाकर उसने अब फिर से उठने की कोशिश तो की, मगर तब तक मैंने नेहा के ऊपर आकर उसके बदन को अपने शरीर के भार से दबा लिया. नेहा का मखमली बदन अब मेरे नीचे था और मैं उसके ऊपर लदा था.
नेहा के ऊपर आकर मैंने उसके कोमल गालों पर चूमना शुरू कर दिया और साथ ही एक हाथ से उसकी एक चूची को भी फिर से दबोच लिया. घबराहट के कारण नेहा का बदन अब हल्का हल्का कांपने लगा था.
“छ्छ् छो ड़ दो मुझे … प्रिया … प्रिया आ जाएगीईई … छोड़ अओ ना!” उसने कसमसाते हुए धीरे से कहा.
“वो नहीं आएगी … वो अपनी सहेली के घर चली गयी है और हां, उसे तो पहले से ही सब कुछ पता है … उसने ही तो मुझे बताया कि उस रात तुम मेरे साथ थीं.” मैंने उसके कानों के पास चूमते हुए कहा.
यह सुनते ही नेहा को झटका सा लगा. “क्या …आआ?” नेहा के मुँह से हैरानी से निकला और वो बिल्कुल स्थिर सी हो गयी.
इस वक्त नेहा ने नीचे एक ढीला सा लोवर पहना हुआ था और ऊपर कुर्ते के जैसा ही कुछ पहना हुआ था, जो कि काफी ढीला था. मौके का फायदा उठाकर मैंने भी अब धीरे से अपना हाथ उसके कुर्ते में घुसा दिया, कुर्ते के नीचे उसने ब्रा पहनी हुई थी, इसलिए मैं अब ब्रा के ऊपर से ही उसकी दोनों चूचियों को मसलने लगा.
मेरे होंठ भी अब उसके गालों को चूमते हुए उसके रसीले होंठों पर आ गए थे. मैंने देर ना करते हुए तुरन्त उसके होंठों को अपने मुँह में भर लिया और उन्हें धीरे धीरे चूसना शुरू कर दिया.
नेहा मेरा अब इतना विरोध तो नहीं कर रही थी, मगर वो अब भी कसमसा रही थी. उसकी निगाहें कमरे के दरवाजे पर ही टिकी हुई थी, जो कि खुला हुआ था. उसको डर था कि कहीं प्रिया ना आ जाए. मुझे तो विश्वास था कि प्रिया अब इस कमरे में नहीं आएगी, मगर फिर भी नेहा का ये डर दूर करने के लिए मैं उसको छोड़कर अलग हो गया और जल्दी से जाकर कमरे का दरवाजा बन्द कर दिया.
मेरे छोड़ने पर नेहा अब उठकर बिस्तर पर बैठ गयी. उसने वहां से जाने का बिल्कुल भी प्रयास नहीं किया बल्कि वैसे ही बिस्तर पर बैठी रही. कमरे का दरवाजा बन्द करके मैं भी अब जल्दी से वापस उसकी तरफ लपका और उसे बांहों में भरकर फिर से बिस्तर पर लुढ़क गया. अब उसने मेरा बिल्कुल भी विरोध नहीं किया और चुपचाप मेरे साथ बिस्तर पर लेट गयी.
नेहा को बिस्तर पर गिराकर मैं फिर से उसकी गर्दन व गालों पर चूमने लगा. उसके गालों पर चूमते हुए धीरे धीरे मैं उसके होंठों पर आ गया और उसके रसीले होंठों को मुँह में भर कर चूसना शुरू कर दिया, जिसका नेहा अब कोई विरोध नहीं कर रही थी.
उसके होंठों को चूसते हुए मैंने अपनी जुबान धीरे से उसके होंठों से होते हुए उसके मुँह के अन्दर घुसा दी, जिसे नेहा ने भी अब हल्का हल्का चूसना शुरू कर दिया.
इस चूमाचाटी के चलते मैंने अपने एक हाथ को फिर से उसके कुर्ते में घुसा दिया था. उधर नेहा मेरे होंठों को चूसने में व्यस्त रही कि तब तक मैंने कुर्ते के अन्दर ही अन्दर उसकी दोनों चूचियों को ब्रा की कैद से आजाद करके नंगी कर लिया और बारी बारी से उसकी दोनों चूचियों को मसलना शुरू कर दिया. इससे नेहा ने भी मेरे होंठों को अब थोड़ा जोरों से चूसना शुरू कर दिया.
शायद नेहा भी अब उत्तेजित हो गयी थी क्योंकि उसकी सांसें अब तेजी से चलने लगी थीं.
एक हाथ से उसकी चूचियों का मर्दन करते हुए मैंने अब दूसरे हाथ से उसके कुर्ते को भी धीरे धीरे ऊपर खिसकाना शुरू कर दिया. जैसे जैसे उसका कुर्ता ऊपर हो रहा था, उसके बदन की चिकनाहट को देखकर मेरी आंखों की चमक भी बढ़ने लगी थी. मगर जल्दी ही नेहा को इसका अहसास हो गया, इसलिए उसने मेरा हाथ पकड़ लिया.
नेहा ने मेरे होंठों को को छोड़ते हुए ‘नहींईई …’ कहा और वापस अपने कुर्ते को नीचे करने लगी. लेकिन मैं कहां मानने वाला था. मैं भी अब तुरंत ही खिसक कर थोड़ा सा नीचे हो गया और अपने गीले होंठों को उसके नंगे पेट पर रख दिया, जिससे वो सिहर सी गयी.
मैं अब रुका नहीं … धीरे धीरे उसके नंगे पेट पर से चूमते और चाटते हुए उसकी चूचियों की तरफ बढ़ने लगा, जिससे नेहा मचलने लगी और उसकी सांसें और भी तेज़ हो गईं. कुछ देर तो नेहा ये सहती रही, फिर शायद उससे ये बर्दाश्त नहीं हुआ इसलिए मुझे रोकने के लिए उसने अब अपने दोनों हाथों से मेरे सिर को पकड़ लिया. मगर मैं मानने वाला नहीं था. नेहा के पकड़ने के बावजूद भी मैं धीरे धीरे ऊपर बढ़ता रहा. जैसे जैसे मैं ऊपर उसकी चूचियों की तरफ बढ़ता गया, वैसे वैसे ही नेहा के हाथों की पकड़ मेरे सिर पर कसती गयी.
जब नेहा के दोनों हाथ मेरे सिर को पकड़ने में व्यस्त थे, तभी मौके का फायदा उठाकर मैंने झटके से कुर्ते को उसकी चूचियों के ऊपर तक खिसका दिया. उसकी चूचियों को मैंने ब्रा की कैद से पहले ही आजाद किया हुआ था. अब जैसे ही मैंने उसके कुर्ते को उठाया उसके दोनों सफेद कबूतर मेरे सामने आ गए. नेहा शर्मा गयी और “ओय्य्ययय … नहींईईई … ईई.ई …” की आवाज के साथ उसने मेरे सिर को छोड़कर तुरन्त ही दोनों हाथों से अपनी चूचियों को छुपा लिया.
मैंने भी उसके दोनों हाथों को पकड़ कर उसकी चूचियों पर से हटा दिया और उसकी दूधिया गोरी चूचियों को ध्यान से देखने लगा. शर्म के कारण नेहा अब दोहरी हो गयी और ‘नहींईईई … ऐसा मत करो … प्लीईज … ऐसे ही कर लो … मुझे शर्म आ रही …’ कहते हुए अपने सिर को इधर उधर करने लगी.
“आज तो देखने दो प्लीज … उस रात तो अन्धेरा था इसलिए कुछ दिखा नहीं, आज तो देखने दो प्लीईईईज!” मैंने उसकी दूध सी सफेद गोरी चिकनी चूचियों को ध्यान से देखते हुए कहा और उसके कुर्ते को खींचकर पूरा ही बाहर निकालने लगा.
“देख तो लिया … बस्स्स … अब … प्लीईईज अब … पूरा मत उतारो … मुझे शर्म आ रही है.” नेहा ने मुझे रोकते हुए कहा.
लेकिन मुझे तो होश ही कहां था. मैंने झटके से उसके कुर्ते को उतारकर उसके बदन से अलग कर दिया.
“ओय्य्य … उह्ह्ह …” नेहा ने कराहते हुए कहा और जल्दी से उठकर बैठ गयी.
नेहा ने अब फिर से दोनों हाथों से अपनी चूचियों को छुपा लिया था. मगर उसके बैठने से मेरा काम आसान हो गया. मैंने अब पीछे से उसकी ब्रा को भी खोलकर निकाल दिया और वो “नहींई.ई … नहींईई …” करती रह गयी.
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कहानी जारी है.