अंकल सेक्स कहानी हिंदी में पढ़ें कि मैं एक ऑफिस की सफाई करने जाती थी तो वहां एक अंकल मेरी चूचियों को घूरते थे. मुझे भी अच्छा लगता था.
लेखक की पिछली कहानी: साली की चुदाई करके उसकी इज्जत बचाई
हैलो फ्रेंड्स, मैं स्नेहा.
मेरी अंकल सेक्स कहानी हिंदी में लिख रही हूँ.
यह कहानी लड़की की आवाज में सुनें.
काफी अरसा पहले मेरी उन अंकल से पहली मुलाकात हुई थी.
उनकी उम्र 65 साल के करीब थी.
वे रमेश प्रभाकर के ऑफिस में काम करते थे.
मैं उन्हीं प्रभाकर सर के घर में झाड़ू-पौंछे का काम करती थी.
सर के कहने पर मैंने उनके ऑफिस में भी झाड़ू पौंछा करने का काम ले लिया था.
मैं पहले दिन साफ सफाई के लिए जब ऑफिस में गई थी, उस वक़्त अंकल कुर्सी पर बैठे थे.
मैं बिना कुछ कहे, अपना परिचय दिए बिना, अपनी साड़ी को घुटनों तक ले जाकर कचरा निकालने में लग गई.
उस वक़्त मेरी साड़ी का पल्लू सरक गया था. मेरा उस तरफ ध्यान नहीं था.
मैं घुटनों के बल बैठकर कचरा निकाल रही थी और मेरे दोनों यौवन कबूतर बाहर आने को तरस रहे थे.
अंकल अपनी उम्र का लिहाज ना करते हुए चोरी चोरी से मेरे दोनों दूध घूर कर देख रहे थे.
इस बात का मुझे कोई इल्म नहीं था.
मैं अपना काम निपटाकर ऑफिस से निकल गई.
पहले दिन हम दोनों के बीच कोई बात नहीं हो पाई थी या कहो कि हम दोनों ने ही आपस में बात करने की कोई कोशिश नहीं की थी.
दूसरे दिन ऑफिस पहुंची तो अंकल ने मुझसे मेरा परिचय पूछा.
उनकी निगाहें उस वक्त भी मेरी चूचियों पर ही गड़ी थीं.
मैं उनकी नजरों को भांप गई और उन्हें अपने जाल में फंसाने के लिए लहरा कर बात करने लगी.
मैंने हंसते हुए उनकी तरफ देखा और अपना परिचय देते हुए अंकल को बताया- मेरा नाम स्नेहा हैं अंकल जी!
अंकल- स्नेहा बड़ा प्यारा नाम … पर क्या तुझे मालूम है कि तेरे नाम का क्या मतलब होता है?
मैं- हां मालूम है अंकल … मेरे नाम का मतलब होता है प्यार करने वाली.
अंकल- तो तू किसे प्यार करती है?
मैंने कहा- मैं सबको प्यार करती हूँ.
अंकल- क्या मुझे भी?
मैं- हां हां क्यों नहीं अंकल … मैं आपको भी ढेर सारा प्यार करूंगी और आपकी दोस्त बनकर रहूंगी.
मेरी मस्त बातें सुनकर अंकल के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई थी.
दो दिन यूं ही चलता रहा.
ऑफिस साढ़े नौ बजे खुल जाता था और लोगों का आना जाना भी शुरू हो जाता था. इसी लिए तीसरे दिन अंकल ने मुझे आधा घंटे पहले काम पर आने की बात कही थी.
अंकल बोले- तुम लोगों के आने के बाद सफाई के लिए आओगी तो दिक्कत होगी, इसलिए तुम आधा घंटे जल्दी आया करो.
लेकिन हकीकत कुछ और ही थी.
कचरा निकालते समय झुकने से मेरे यौवन उभारों का सीन बड़ा दिलकश नजर आता था.
सभी लोग मेरे मम्मों को घूरें, वह सही नहीं था.
इसी लिए उन्होंने एक बड़े की हैसियत से मुझे आगाह भी किया था कि तू झुक कर काम करती है तो लोग तुझे घूर कर देखते हैं, ये तेरे लिए अच्छा नहीं है.
उनकी बात को मैंने समझ लिया था और स्वीकार भी कर लिया था.
उनकी इस बात से मुझे अंकल ठीक आदमी लगे.
फिर मस्त लुगाई के मस्त दूध चुत देखने को मिलेगी तो अंकल जैसा आदमी भी देखेगा ही. तो मैंने उनकी नजरों को नजरअंदाज कर दिया था.
फिर देखते ही देखते हम लोगों के बातचीत का सिलसिला अच्छा चलने लगा था.
हम दोनों एक दूसरों से अपनी सारी बातें करने लगे थे.
हमारा रिश्ता सहज रूप से उम्र के लिहाज से बाप बेटी का ही हो सकता था मगर उम्र ने हमारे बीच कुछ और ही रिश्ता बना दिया था.
ये एक प्यार का रिश्ता था … जिसे हम दोनों ने मन ही मन स्वीकार लिया था.
मैं उनके पास बैठ जाती तो अंकल कभी मेरे सर पर हाथ फेरने के साथ साथ गोरे चिकने गाल को सहला देते थे.
कभी मैं अपना दुखड़ा उनके सामने रोती तो अंकल एक बड़े की हैसियत से मुझे अपने गले से लगा लेते थे.
इस तरह से हमारे बीच गजब की नजदीकियां बढ़ गई थीं.
हम लोगों की रोजाना दफ़्तर में मुलाकात होती थी, खूब सारी बातें होती थीं.
वे मुझे पैसों से मदद भी कर देते थे.
इसी वजह से शायद हमारा रिश्ता काफी प्रगाड़ हो गया था.
अब मैं अंकल से खुलकर मिलने लगी थी.
हमारे बीच की बातों में ऐसा लगता था कि मैं उनकी सगी जैसी ही हूँ.
वो मुझे अपने घर भी बुला लेते थे, कभी मेरे घर आ जाते थे.
मैं उनसे पूरे अधिकार से बात करने लगी थी.
कभी कभी अंकल मुझे अपने पैरों में तेल लगवाने के लिए कह देते थे, तो मैं उनकी टांगों को खोल कर उनकी मालिश कर देती थी.
उनका लंड उठने की कोशिश करता था मगर वो ज्यादा नहीं उठ पाता था.
अंकल का लंड तब ज्यादा कड़क होने लगता था, जब मैं उनके ऊपर झुक कर अपने मम्मे दिखाती हुई तेल लगाती थी.
वो भी अब बिंदास मेरे दूध देखते थे और मेरी बांहों पर हाथ फेर कर अंह आंह करने लगते थे.
मैं भी समझती थी कि अंकल का मूड बन रहा है मगर मैं सब कुछ देख कर अनदेखा कर देती थी.
फिर वैलेंटाइन दिन के दिन पहले अंकल ने मुझे लाल रंग की साड़ी दी और दूसरे दिन उसी साड़ी को पहन कर दफ़्तर में आने का कहा.
जिसे मैंने खुशी खुशी कुबूल कर लिया था और साड़ी पहनकर दफ्तर आ गई थी.
उस दिन उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद भी दिया था.
मैंने भी उनके चरण स्पर्श किए थे.
उन्होंने मुझे अपने पैरों से उठाकर अपने बाहुपाश में कैद कर लिया था. मेरे माथे पर चुम्बन अंकित किया था और काफी देर तक मुझे अपने सीने से लगाए रहे थे.
उनके सीने से लगे रहने से मेरे दोनों मम्मे अंकल के सीने में गड़ गए थे और वो मेरी पीठ पर हाथ फेर कर मुझे चिपकाए रहे थे.
मुझे भी उनके सीने से लग कर बड़ा सुखद लग रहा था.
यह सब हमने बाबा की तस्वीर के सामने उनकी अनुमति समझ कर किया था. बाबा खुद हमारे प्यार के इस मंजर के साक्षी बने थे.
अंकल ने मेरी नाक और होंठों के नजदीक चुंबन भी किया था.
कुछ देर बाद मैंने महसूस किया कि अंकल का लंड मेरी चुत पर गड़ने लगा था.
मैंने भी अपनी चुत को अंकल के लंड पर घिस कर उन्हें अपनी सहमति जता दी थी.
मेरी चुत का स्पर्श पाते ही अंकल ने अपने एक हाथ को मेरी गांड पर रख दिया और उसे मसल दिया.
मेरी आवाज निकल गई- आह धीरे करो न!
अंकल ने उसी समय अपना एक हाथ मेरे दूध पर रख दिया और उसे दबा दिया.
मैं मस्त होने लगी, तभी कुछ आहट हुई और मैं अंकल से अलग हो गई.
जब कोई नहीं आया तो उन्होंने मुझे भी अपनी तरफ से वेलेंटाइन डे विश करने का अनुरोध किया.
अंकल- मैंने अपने प्यार का इजहार करके, तुम्हें अपनी वेलेंटाइन बनाकर तुम्हारे साथ यह सब किया है. तुम भी अपनी तरफ से मुझे विश कर सकती हो.
मैंने अपनी दोनों बांहों को उनकी ओर फैला दिया था और अंकल जी मेरे आगोश में फिर से कैद हो गए थे.
यह नजारा हमारी जिंदगी का बेहतरीन पल था, जिसे हम दोनों कभी नहीं भुला पाए थे.
उसके बाद दूसरे दिन हम दोनों लोग मेरे घर में मिले थे.
वे मुझे प्यार करने आए थे. उन्होंने मुझे अपने गालों पर चुम्मा देने का संकेत दिया था.
हम दोनों उस वक़्त किचन में थे और मेरा छोटा लड़का बाहर हॉल में कंप्यूटर पर गेम खेल रहा था.
उस बात को नजरअंदाज करते हुए मैंने उनके कान के नीचे हल्का सा चुम्बन ले लिया था.
इस पर उन्होंने मुझे गले लगाकर मेरे गालों को चूम लिया था. उनकी यह हरकत मुझे बहुत ही अच्छी लगी थी.
बाद में उन्होंने सिर दर्द होने की शिकायत की थी. मैंने अपने दोनों हाथों से उनका सिर दबाया था. मैं हर एक पल एन्जॉय कर रही थी.
मैंने भी सिर दर्द का बहाना बताया, तो उन्होंने मेरा सिर दबाया था.
मैं आज खुद नहीं चाहती थी, हमारी मुलाकात सस्ते में खत्म हो जाए तो मैंने दूसरे स्टंट का सहारा लिया था.
मैंने कहा- मुझे छाती में दर्द हो रहा है.
मैं चाहती थी, वह खुद मेरे इस दर्द का इलाज करें; इसलिए मैंने अपने ब्लाउज के दो हुक्स खोल दिए थे.
मेरी छातियों का उभार साफ दिख रहा था और वह टकटकी लगाये मेरे मम्मों को घूर रहे थे.
उनकी बॉडी लैंग्वेज साफ बता रही थी कि वो गर्म होने लगे थे.
अंकल मेरी छाती का इलाज करना चाहते थे लेकिन शर्म और मर्यादा रुकावट बन गई थी.
फिर भी वह अपने आप पर नियंत्रण नहीं कर पाए थे.
उन्होंने अपने दाएं हाथ की एक उंगली मेरे ब्लाउज की भीतर डालकर मेरी छातियों के बीच की कंदरा पर रख दी थी.
मुझे उनकी यह हरकत बहुत ही भा गयी थी. मेरी भीतर कुछ कुछ होने लगा था.
कुछ ही देर में अंकल बिंदास मेरी छाती को सहलाने लगे. इतना ही नहीं अंकल ने मेरी गांड पर हाथ लगाकर बड़े प्यार से उसे सहलाया भी था. मुझे भी उनकी ये हरकतें अच्छी लगी थीं.
फिर भी मैंने नाराजगी जताते हुए सवाल किया- आपने यहां हाथ क्यों लगाया?
वे कुछ नहीं बोले.
मैंने दोबारा सवाल किया- क्या आपको मेरे साथ ऐसा करना अच्छा लगा था?
उस पर उन्होंने जवाब दिया था- अगर तुम्हें अच्छा लगा है, तो अच्छा … नहीं तो बुरा.
उस पर मैंने जो जवाब दिया था, उससे वो भी चकित हो गए थे.
मैं- मुझे अच्छा लगा था.
मेरी इस बात से सब कुछ बदल गया था.
उन्होंने कहा- मैं तुम्हें पाना चाहता हूँ.
मैंने कहा- मैं आपकी ही हूँ, जैसे चाहें आप मेरे साथ खेल सकते हैं.
तभी मेरा बेटा ट्यूशन के लिए निकल गया. वो अपने दोस्त के साथ एक मैडम से पढता था और उसे दो घंटे लग जाते थे क्योंकि दोनों दोस्त ट्यूशन के बाद बाहर ही खेलने लगते थे.
उसके जाते ही मैंने भीतर से दरवाजा बंद कर दिया था. मैं जाकर सोफे पर बैठ गई.
अंकल आकर मेरी बाजू में बैठ गए और मेरे कंधों पर अपना हाथ रख दिया.
मैंने उस वक़्त टी-शर्ट पहनी थी तो मैंने तुरंत मेरी टी-शर्ट ऊपर करके अपने दोनों दूध उनके सामने खोल दिए थे.
अंकल मेरे स्तनों को हाथ से दबाने लगे और एक दूध को अपने मुँह में लेकर मेरा दूध पीने लगे.
मुझे उनकी यह हरकत बहुत ही अच्छी लगी, मैं काफी दिनों बाद किसी मर्द से अपने दूध चुसवा रही थी.
मैंने नशीली आवाज में अंकल से सवाल किया- आह इस्स … आप यह क्या कर रहे हो?
अंकल मेरी आंखों में आंखें डालकर बोले- एक छोटे बच्चे की तरह तुम्हारा दूध पी रहा हूं.
मैंने उनके सर को अपने हाथ से खींच कर अपने दूध से लगा दिया और कहा- पी लो मेरा बच्चा … मेरा बच्चा भूखा है न आंह पी लो.
अंकल मस्ती से मेरी चुचियों को चूसने लगे और दबाने लगे. अंकल के ऐसा करने से मेरी चूत में उस वक़्त कुछ हो रहा था.
मेरी चुचियां भी उनके छूने से कड़क हो गई थीं.
उसके बाद उन्होंने मुझे गले लगाकर मेरे होंठों पर लंबा चुंबन लेते हुए कहा- मुझे तुम्हारा दूध पीना अच्छा लगा. तुम मुझे अब अपना दूध पिलाती रहना.
उसके बाद उन्होंने मेरे होंठों को चूमा था और मैंने कोई एतराज नहीं जताया था.
इसका एक ही मतलब था कि मैं उनसे प्यार करने लगी थी.
अंकल की दूध पीने की डिमांड सुनकर मैंने उनसे वादा कर दिया था कि आप जब भी मेरे घर आएंगे, तो मैं आपको अपना दूध पिलाऊंगी.
मैं अंकल से बहुत कुछ चाहती थी इसलिए मैं उनसे सवाल किया- आप मेरे साथ क्या क्या करोगे?
वो बोले- मैं तुम्हें लिटाकर तुम्हारे पर चढ़ जाऊंगा.
‘मेरे ऊपर चढ़ कर आप क्या करोगे?’
अंकल- वो ही करूंगा, जो एक मर्द औरत के ऊपर चढ़ कर करता है.
मैंने उनसे साफ़ भाषा में पूछना ठीक समझा- क्या आप मेरी चूत में अपना लौड़ा डालोगे?
उन्होंने हां में जवाब दिया.
उस पर मैंने बिंदास सवाल किया- आपका लंड खड़ा होता है?
अंकल बोले- तुम चूस कर खड़ा कर देना!
मैंने ओके कह दिया.
फिर मैं पूछा- आपका कितनी देर तक खड़ा रह सकता है?
अंकल बोले- वो तुम चिंता मत करो, मैं दवा ले लूंगा.
मैंने हां में सर हिला दिया और आगे पूछा- आप मेरे पूरे कपड़े उतरवाओगे या ऐसे ही अपना लौड़ा मेरी चूत के अन्दर डाल दोगे?
अंकल- कपड़े पूरे उतार दोगी तो ज्यादा मजा आएगा. वर्ना मैं तुम्हारे कपड़े ऊपर करके लौड़ा भीतर डाल दूंगा.
मैंने कहा- ओके कब करोगे.
अंकल बोले- मैं तो अभी भी राजी हूँ, तुम अपनी सुविधा देख लो.
मैंने कहा- आप कल ग्यारह बजे के बाद आ जाना.
उस समय तक मेरे पति और बच्चे सब घर से बाहर निकल जाते थे.
दूसरे दिन वह मेरे घर आये तो मैंने उन्हें बिठाया और उनसे बात करने लगी.
अंकल बोले- अपना दूध पिलाकर बात करो न!
मैंने अपना एक दूध अंकल के मुँह में दिया और वो मेरी गोद में सर रखकर मेरी चूची चूसने लगे.
मैंने पूछा- क्या आप मेरी चूत में उंगली डालना चाहोगे?
अंकल- भला कौन चूतिया इसके लिए मना करेगा!
मैंने चड्डी उतारकर उनका हाथ मेरी चूत पर रख दिया और अंकल ने अपनी तीन उंगलियां मेरी चुत में आखिरी तक घुसेड़ दी थीं.
उनकी इस हरकत से उंगलियां भीग गईं तो मैंने उन्हें साबुन से हाथ धोने की कह दी थी मगर अंकल ने मेरी चुत रस से भीगी उंगलियों को चूस लिया था.
फिर मैंने उनका लंड चूसना शुरू किया.
हर बार एक के बाद हम सेक्स के सारे आसनों का इस्तेमाल करने लगे थे.
मैं अपने स्तन खोलकर उनको दूध पिलाने लगी थी और उसी हालत में मैं धीरे से जमीन पर लेट गई.
मैंने उनको अपने शरीर पर लेकर अपना दूध पिलाती हुई चुदवा लिया था.
पहली बार की चुदाई में मैंने अंकल का लंड अपनी चुत में लिया था तो मैं सिहर गई थी.
अंकल का लंड काफी मोटा था और दवा के असर से काफी कड़क हो गया था.
उस दिन अंकल ने मेरी चुत में लंड पेला और मुझे चोदने लगे थे.
मैंने भी अपनी दोनों टांगें हवा में उठा कर अंकल के मस्त लंड से चुदवाना शुरू कर दिया था.
चुदाई के बाद अंकल ने पूछा- मेरा लंड कैसा लगा?
मैंने कहा- मेरे पति से डबल था.
अंकल खुश हो गए.
इसी तरह से अंकल मेरे दूसरे पति बन गए थे.
कुछ ही दिनों में ऐसा कुछ भी नहीं बचा था जो मैंने उन्हें नहीं दिया हो.
फिर भी मैं बहुत ही डरती थी कि अगर मेरे पति को पता चल गया तो वह मुझे छोड़ देगा.
मैंने अंकल को ये बताया भी था.
लेकिन अंकल अब हमेशा ही मुझे चोदने के लिए जिद करने लगे थे.
इंकार करने पर नाराज हो जाते थे.
फिर मैं उनको उनके मन की करने देती थी.
कभी बेडरूम में नंगी होकर लंड चुत में ले लेती थी तो कभी किचन में वो मेरी साड़ी उठा कर मुझे चोद देते थे.
अंकल मुझे चोदते समय मेरे मम्मों को पकड़ लेते थे, या मेरे ऊपर चढ़ कर मेरा दूध पीने लगते थे.
अब तो अंकल मेरी चूत के अलावा मेरी गांड में भी अपना लौड़ा डालने लगे थे.
वो सेक्स के समय मेरे दोनों होंठों को कसकर चूमते थे, मेरी जुबान को भी मुँह में लेकर चूसते थे.
हालांकि हमारी चुदाई रोज नहीं हो पाती थी लेकिन अंकल मुझे फोन रोजाना करते थे. वो ‘आई लव यू …’ कहकर अपने प्यार का इजहार करते थे.
मैं भी उसी अन्दाज से उन्हें जवाब दे देती थी.
सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन कोरोना के आने से सब कुछ खत्म हो गया.
हमारा मिलना भी बंद हो गया.
अंकल मुझे हमेशा एक ही हिदायत देते थे कि बाथरूम में नहाते समय अपनी चूत और गांड में उंगली डालना और सोचना कि मैं यह तुम्हारे साथ कर रहा हूं.
मैं वो सब करके अपनी आग शांत कर लेती थी.
मेरे पति का लंड कबाड़ हो चुका था और अंकल का लंड मिल नहीं रहा था.
कोरोना की अवधि खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी.
इस हालत में हम दोनों ने फोन सेक्स का सहारा लिया था.
हम लोग गंदी गंदी बातें करके अपना दिल बहला लेते थे.
मैं अंकल को कभी दूध वाले अंकल कहती थी, तो कभी लौड़े वाले अंकल कहकर बुला लेती थी.
अंकल भी मुझे स्नेहा दूध वाली कहकर बुलाते थे.
उन्होंने मेरा मोबाईल नंबर अपने मोबाइल में ‘स्नेहा तेरा दूध अमृत …’ के नाम से सेव किया हुआ था.
भगवान ने खुद हमारा रिश्ता बनाया था.
मैं अंकल से मिलने को बेताब हूँ.
जैसे ही अंकल का लंड चुत में फिर से लूंगी, मैं अपनी चुदाई की कहानी का अगला भाग आपके लिए लिखूंगी.
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