तीन पत्ती गुलाब-38

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हे लिंग देव !!! आज तो तुमने सच में ही लौड़े लगा ही दिए। सुबह-सुबह गौरी के घर से समाचार आया कि उसकी भाभी को लेबरपेन (जचगी का दर्द) शुरू हो गया है और उसे अस्पताल ले जाना होगा।

रात के घमासान के बाद गौरी की तो उठने की भी हिम्मत नहीं थी। मैंने देखा गौरी के चहरे पर थकान और उनींदापन सा था। उसे यहाँ से जाना कतई पसंद नहीं आया था। पर क्या किया जा सकता था गौरी को तो घर जाना ही पड़ा।

मधुर ने उसे पांच हज़ार रुपये देते हुए यह भी कहा कि वह ज्यादा दिन उसे वहाँ नहीं रुकने देगी और गुलाबो को कहकर वहाँ अंगूर या किसी और को बुलाने के लिए बोल देगी।
मधुर के पीछे स्कूटी के पीछे बैठकर घर जाते समय उसने कातर नज़रों से मेरी ओर देखा।
मुझे लगा वह अभी रोने लगेगी।

अगले 3-4 दिन तो बस गौरी की याद में ही बीते। मधुर तो वैसे भी आजकल सेक्स में ज्यादा रूचि नहीं दिखाती है। सितम्बर माह शुरू हो चुका है और इसी महीने के अंत तक मुझे भी ट्रेनिंग के लिए बंगलुरु जाना पड़ेगा।

कई बार तो मन करता है यह नौकरी का झेमला छोड़-छाड़कर किसी शांत जगह पर किसी आश्रम में ही रहना शुरू कर दूं।

और फिर एक अनहोनी जैसे हम सब का इंतज़ार ही कर रही थी।

कोई 3 बजे होने मधुर का फ़ोन आया।
“प्रेम! वो … वो … गौरी के साथ एक अप्रिय घटना हो गई है.” मधुर की आवाज काँप सी रही थी।
“क … क्या हुआ? कहीं एक्सीडेंट तो नहीं हो गया?” मेरी तो जैसे रूह ही कांप उठी और मेरा दिल किसी अनहोनी की आशंका से धड़कने लगा था।

“प्लीज एक बार आप घर आ सकते हो तो जल्दी आ जाओ.”
“ओह … गौरी ठीक है ना?”
“आप जल्दी आ जाओ हमें गौरी के घर चलना होगा.”
मुझे तो लगा मुझे सन्निपात (लकवा) हो गया है।
हे लिंग देव! ये क्या हो गया।

मैं ऑफिस का काम समझाकर घर पहुंचा तो मधुर मेरा इंतज़ार ही कर रही थी।

हम दोनों गुलाबो के घर पहुंचे। मधुर तो यहाँ कई बार आई भी है पर मेरे लिए यह पहला मौक़ा था। मधुर कार से उतर कर जल्दी से घर के अन्दर चली गई और मैं बाहर ही खड़ा रहा।
कोई आधे घंटे के बाद मधुर गौरी को साथ लिए बाहर आई।

गौरी के कपड़े अस्त व्यस्त से थे और वह बहुत घबराई हुई सी लग रही थी। मधुर उसे सांत्वना दे रही थी।

घर आने के बाद मधुर ने गौरी से कहा- तुम हाथ मुंह धोकर कपड़े बदल लो मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूँ। पता नहीं सुबह से कुछ खाया भी है या नहीं?
“मेली इच्छा नहीं है.” गौरी ने कहा।
“मैंने गुलाबो को बोला भी था किसी और को बुला लो पर घर वाले तो सब बस तुम्हारी जान के पीछे पड़े हैं.”
गौरी तो अब रोने ही लगी थी।

“ना … मेरी लाडो … अब तुम उस घटना को भूल जाओ। किसी से कुछ बताने की जरूरत नहीं है और अब मैं तुम्हें किसी भी कीमत पर दुबारा वहाँ नहीं जाने दूँगी. मैंने बोल दिया है गुलाबो को।”
फिर गौरी बाथरूम चली गई और मधुर चाय नास्ता बनाने रसोई में चली गई।
“मैं थोड़ी देर मार्किट में जाकर आता हूँ.” कहकर मैं घर से बाहर आ गया।

इस आपाधापी में शाम के 6 बज गए थे। मुझे कोई विशेष काम तो नहीं था पर अभी थोड़ी देर गौरी और मधुर को अकेले छोड़ना जरूरी था। पता नहीं क्या बात हुई थी? गौरी के सामने मैं यह सब नहीं पूछना चाहता था।

रात को गौरी तो सोने चली गई और फिर मधुर ने जो बताया वो संक्षेप में इस प्रकार था।

गौरी की भाभी के लड़का हुआ था। बच्चा कमजोर था तो उसे आईसीयू में रखना पड़ा था। डॉक्टर बता रहे थे कि नवजात को इन्फेक्शन है और साथ में पीलिया भी है। बेचारी गौरी पहले घर का काम करती और फिर भाभी और अन्य लोगों का खाना लेकर अस्पताल के चक्कर काटती रहती है।

3-4 दिन बाद जच्चा-बच्चा घर आ गए।

तीन दिन बाद आज सुबह गौरी दवाई लेने अस्पताल अस्पताल गई थी तो आते समय उसी अस्पताल में भर्ती किसी मरीज को देखने आये मोहल्ले के एक जानकार लड़के ने गौरी को अपनी बाइक पर घर छोड़ देने के लिए कहा।

रास्ते में उसने सुनसान जगह पर उसने गौरी के साथ छेड़-छाड़ करने की कोशिश की। गौरी ने अपने आप को किसी तरह छुड़ाया और उसके शोर मचाने से वहाँ कुछ लोग आ गए। और फिर उस लड़के को पकड़ कर खूब पिटाई की.

और बाद में गौरी के घरवालों को समाचार दिया तो गौरी का बाप 8-10 लोगों को लेकर मौके पर आ गया। वह सब तो उस लड़के को जान से मार देने पर उतारू हो गए थे। इस बीच लड़के के घर वाले भी आ गए। वह लड़का बार-बार बोलता जा रहा था उसने कुछ नहीं किया। गौरी के अस्त व्यस्त कपड़ों पर खून के दाग लगे देखकर सभी यह सोचे जा रहे थे कि जरूर इसके साथ दुष्कर्म हुआ है।

गौरी का बाप पुलिस बुलाने पर जोर देने लगा। लड़के वाले घबरा गए थे और बीच बचाव करने लगे थे। साथ के लोगों ने समझाया बुझाया और फिर एक नेता टाइप के आदमी ने, जो लड़के वालों के साथ आया था गौरी के बापू को एक तरफ ले जाकर कुछ समझाया। और फिर उसने लड़के वालों से एक लाख बीस हज़ार रुपये गौरी के बाप को देने का फैसला किया कि यह मामला पुलिस तक ले जाने के बजाय यहीं निपटा दिया जाए।

चूंकि लड़की का मामला है इसलिए उसकी और परिवार की भी इज्जत की दुहाई देकर मामला वहीं रफा दफा कर दिया। बेचारी गौरी से तो किसी ने कुछ पूछने की भी जरूरत नहीं समझी।
बाद में गौरी ने मधुर को फ़ोन पर इस घटना की जानकारी दी। आगे की कहानी तो आप जान ही चुके हैं।

“प्रेम! इस समय गौरी की मानसिक हालत ठीक नहीं है। उसे बहुत बड़ा सदमा पहुंचा है। तुम भी 2-4 दिन उससे कुछ मत पूछना और कहना।”
“हुम्म …” मेरे मुंह से बस यही निकला। ये गौरी के घर वाले भी अजीब हैं।

अगले 2-3 दिन स्कूल से छुट्टी लेकर घर पर ही रही। गौरी अब कुछ संयत (नार्मल) होने लगी है। आज सुबह मधुर स्कूल चली गई है। गौरी ने चाय बना दी थी और हम दोनों चाय पी रहे थे। गौरी पता नहीं किन ख्यालों में डूबी थी।
“गौरी एक बात पूछूं?”
“अं… हाँ…” आज गौरी के मुंह से ‘हओ’ के बजाय ‘हाँ’ निकला था।
“तुम्हारी तबीयत अब ठीक है ना?”
“हओ” उसने उदास स्वर में जवाब दिया।
“गौरी मैं तुम्हारी मानसिक हालत समझ सकता हूँ और अब उन बातों को एक बुरा सपना समझ कर भूलने की कोशिश करो और फिर से नई जिन्दगी शुरू करो।”

गौरी ने मेरी ओर देखा। मुझे लगा गौरी की आँखें डबडबा आई हैं। मैं उठकर गौरी के पास आ गया और उसके पास बैठ कर उसके सिर पर हाथ फिराने लगा। गौरी की आँखों से तो जैसे आंसुओं का झरना ही निकल पड़ा।
“इससे अच्छा तो मैं मलर जाती।”
“ओह… तुम ऐसा क्यों बोलती हो?”

“अब मैं जी कर क्या करुँगी? किसी को मेरी परवाह कहाँ हैं, सबके अपने-अपने मतलब के हैं। पैसा मिलते ही बाप तो दारु की बोतल ले आया। मोती (गौरी का भाई) इन पैसों से बाइक लेने के लिए झगड़ा करने लगा और अनार दवाई और घर खर्च के लिए पैसे माँगने लगी। सब मेरे बदले मिली खैरात से मजे करना चाहते हैं किसी को मेरी ना तो परवाह है और ना ही मेरे साथ हुई इस दुर्घटना का दुःख। सच कहूं तो मेरा मन तो आत्मह्त्या कर लेने का कर रहा है।” कहकर गौरी सुबकने लगी थी।

गौरी अपनी जगह सही कह रही थी। सबके अपने-अपने स्वार्थ हैं और सभी गौरी को इस्तेमाल कर रहे हैं। जैसे गौरी एक जिन्स (मंडी में बिकने वाली वस्तु) है।

“नहीं मेरी प्रियतमा… ऐसा नहीं बोलते… तुम्हारे बिना मैं और मधुर कैसे रह पायेंगे? ज़रा सोचो?”
कहकर मैंने रोती हुई गौरी को अपने सीने से लगा लिया और उसके सिर पर हाथ फिराने लगा।

“अब मैंने भी फैसला कर लिया है, मैं ना तो अब घर जाऊँगी ना कभी घरवालों का मुंह देखूँगी। अगर उन लोगों ने ज्यादा कुछ किया तो मैं जहर खा लूंगी। अब मैंने भी अपने हिसाब से अपनी जिन्दगी जीने का फैसला आकर लिया है।”

“ओह… तुम चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा। मैं नहा लेता हूँ तुम आज मेरी पसंद का बढ़िया सा नाश्ता बनाओ हम दोनों साथ में नाश्ता करेंगे… शाबाश अच्छे बच्चे.” कहकर मैंने गौरी के गालों को थपथपाया। लगता है गौरी आज गौरी का मूड बहुत खराब है।

नाश्ता करते समय मैंने गौरी द्वारा बनाए पराठों की तारीफ़ करते हुए पूछा- गौरी तुम्हें थोड़ा अच्छा तो नहीं लगेगा पर एक बात पूछूं?
“क्या?”
“वो… दरअसल उस दिन उस लड़के ने तुम्हारे साथ किया क्या था?” मुझे लगा गौरी आनाकानी करेगी।
“मुझे इसी बात का तो दुःख है.”
“क्या मतलब?” अब मेरे चौंकने की बारी थी।

“किसी ने भी मेरे से यह जानने की जरूरत ही नहीं समझी कि हुआ क्या था?”
“ओह… क… क्या हुआ था?” मैंने झिझकते हुए पूछा।

“उस लड़के ने रास्ते में सु-सु करने के लिए एक सुनसान सी जगह पर बाइक रोकी। मुझे भी लग रहा था कि मेरा एमसी पैड सरक गया है। मुझे डर था कहीं कपड़े ना खराब हो जाए तो मैं भी झाड़ियों में सु-सु करने और पैड ठीक करने बैठ गई। मुझे क्या पता वह लड़का मुझे पीछे से देख रहा था। अचानक वह मेरे पीछे आ गया और मुझे पकड़कर अपनी ओर खींचने लगा। फिर वह मुझे पैसों का लालच भी देने लगा तो मैं जोर-जोर से चिल्लाने लगी तो वहाँ पर 3-4 आदमी आ गए मेरे अस्त व्यस्त कपड़े और नीचे के कपड़ों पर लगा खून देखकर उन्होंने समझा कि यह लड़का मेरे साथ दुष्कर्म कर रहा था। पहले तो उन लोगों ने उसे खूब मारा और फिर मेरे मोबाइल से घर वालों को फोन करके बुला लिया।”

“और वो दुष्कर्म वाली बात?”
“मैंने बताया ना उसने मेरा हाथ पकड़कर अपनी ओर खींचने की कोशिश की थी। मैंने अपना हाथ छुड़ाकर उसे धक्का दे दिया था और सड़क की ओर भाग आई थी। वह दौड़ता हुआ मेरे पीछे आया फिर मेरे शोर मचाने से लोग आ गए थे।”
“इसका मतलब उसने तुम्हारे साथ दुष्कर्म जैसा तो कुछ किया ही नहीं?”
“किच्च…”

“क्या मधुर को तो इस बात का पता है?”
“पता नहीं … मुझे रोता हुआ देखकर दीदी ने मुझे अपनी कसम देकर कहा कि अब तुम्हें इस बारे में किसी से कोई बात नहीं करनी है, जो हुआ उसे भूल जाओ.”
“ओह…” मेरे मुंह से बस इतना ही निकला।

प्रिय पाठको और पाठिकाओ! मुझे मधुर के इस व्यवहार पर जरूर शक हो रहा है। मधुर तो उड़ते हुए कौवों के टट्टे (आंड) गिन लेती है तो यह बात उससे कैसे छिपी रह सकती है कि गौरी को उस दिन महीना (पीरियड) आया हुआ था? पता नहीं मधुर के मन में क्या चल रहा है। सबसे बड़ी हैरानी की बात तो यह है कि ना तो उसने गौरी से दुष्कर्म के बारे में कोई सवाल किया ना ही उसे कोई दवाई या पिल्स लेने को कहा.

मैं मधुर से इन सब बातों को पूछना तो चाहता था पर बाद में मैंने अपना इरादा बदल लिया।

चलो आज 4-5 दिन के बाद गौरी से सम्बंधित चिंता ख़त्म हो गई। मैंने आज जान बूझकर गौरी के साथ तो कोई अन्यथा हरकत (बकोल गौरी-शलालत) नहीं की अलबत्ता रात में मधुर को दो बार कस-कस के रगड़ा।
दूसरे दिन वह जिस प्रकार वह चल रही थी आप जैसे अनुभवी लोग अंदाज़ा लगा सकते हैं कि रात को उसके क्या हालत हुई होगी।

कहानी जारी रहेगी.
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