स्कूल टीचर का तबादला-1

नमस्कार दोस्तो. मैं विक्की एक बार फिर से हाजिर हूं आप लोगों के लिए अपनी एक नयी कहानी के साथ.
मेरी पिछली कहानी थी
पड़ोस का यार चोदे दमदार
मेरी यह कहानी एक औरत की कामुक कहानी है जो कि एकदम से सत्य घटना है.

अब आप लोगों का ज्यादा समय न लेते हुए मैं आज की इस कहानी की शुरूआत करता हूं. ये कहानी सोनल पात्रा की है जो ओडिशा की रहने वाली है. चलिये इस कहानी का मजा लीजिये, सोनल के ही शब्दों में।

दोस्तो, मैं सोनल पात्रा हूं और मैं 28 साल की सेक्सी औरत हूं. मेरा फिगर 34-30-36 का है. मेरी हाइट 5 फिट 4 इंच है. मेरी सेक्सी फिगर के कारण मैं काफी कामुक लगती हूं. मेरा रंग एकदम से गोरा है और मेरे गोरे बदन को देख कर हर कोई मेरा दीवाना सा हो जाता है.

मैं एक सरकारी स्कूल में टीचर की जॉब करती हूं. यह कहानी तब की है जब मेरी नयी नयी शादी हुई थी. हां ये अलग बात है कि मैं शादी से पहले ही चुद चुकी थी. इसलिए मुझे शादी से पहले ही लंड-चूत और सेक्स के बारे में पूर्ण ज्ञान हो गया था.

मेरे पति भी मुझे ठरकी ही मिले. वो बहुत ही चोदू किस्म के इन्सान थे और मैं उनके साथ काफी खुश थी. सेक्स लाइफ में कोई कमी नहीं थी. मेरे पति एक कम्पनी में काम करते थे. बाद में उन्हें उसी कम्पनी के मार्केटिंग विभाग में भेज दिया गया तो वे दूसरे शहरों में जाने लगे. कई कई हफ्ते तक वे घर नहीं आते थे. इसलिए मेरी चुदाई कई कई हफ्तों के बाद होने लगी.

अब आप ही सोचिये, औरत की चूत को हर रोज लंड चाहिए होता है. मेरे पति सेक्स में खूब संतुष्टि देते थे लेकिन यह संतुष्टि केवल 5-6 दिन के लिये ही होती थी. उसके बाद मेरे पति काम पर चले जाते थे और 4-5 महीने मैं प्यासी ही रहती थी.

टीचिंग के लिए मुझे शहर से दूर जाना पड़ता था. मेरी पोस्टिंग एक गांव में हो गयी थी. जिस गांव में मैं पढा़ने के लिए जाया करती थी वह गांव शहर से 25 किलोमीटर की दूरी पर था. मुझे आने जाने में काफी थकान हो जाती थी और रोज इतनी दूर के सफर में तकलीफ भी काफी होती थी.

किसी भी तरह करके मैंने मुश्किल से मैंने 3 महीने का समय पूरा किया. उसके बाद सर्दी का मौसम आ गया. सर्दी में समस्या भी बढ़ गयी थी. एक तो दूर का सफर था और साथ ही ठंड भी बहुत लगती थी.

आप लोग तो जानते ही हैं कि ठंड के मौसम में सफर करना कितना मुश्किल होता है. 4 बजे तक मैं स्कूल में ही होती थी. 4 बजे वहां से निकलती थी तो घर पहुंचने में ही 7 बज जाते थे. इसी परेशानी के कारण मैंने अपना ट्रांन्सफर करवाने की सोच ली थी.

मेरे स्कूल के एक सहायक टीचर से मैंने बात की. उनकी प्रिंसिपल से अच्छी दोस्ती भी थी. उन्होंने मुझे बताया कि स्कूल प्रिंसीपल से बात करके देख लेनी चाहिए, शायद कुछ रास्ता निकल आये.

एक दिन मैं बात करने के लिए प्रिंसीपल सर के पास गयी. उनके पास जाकर मैंने उनसे अपनी समस्या के बारे में बताया कि मुझे यहां पर इतनी दूर स्कूल में आने में समस्या हो रही है.

स्कूल के प्रिंसीपल एक 6 फीट लम्बे और तगड़े बदन वाले हट्टे कट्टे मर्द थे. बात करने पर उन्होंने आश्वासन दिया कि मेरा काम हो जायेगा. प्रिंसीपल सर ने कहा कि वे अपने दोस्त से इस बारे में बात करके देखेंगे.

आप लोग तो जानते ही हो कि अगर सरकारी काम कहीं भी करवाने जाओ तो बिना रिश्वत के तो कोई काम होने से रहा. इसलिए ये समस्या मेरे साथ भी आने वाली थी. जब मेरे सामने ये समस्या आई तो मैंने कहा कि कोई बात नहीं सर इस काम में जितने भी पैसे लगेंगे मैं देने के लिए तैयार हूं.

वो बोले- सोनल जी, देखिये, इसमें मेरा तो कुछ फायदा नहीं है. काम तो आपका ही हो रहा है. बदले में मुझे भी कुछ मिलना चाहिए कि नहीं?

मैं समझ गयी थी कि उसे क्या चाहिए था. उस दिन मैंने एक पीले रंग की कुर्ती और उजले रंग की लेगिंग पहन रखी थी. मेरे कपड़ों की फिटिंग काफी टाइट थी जिसमें से मेरे शरीर का हर एक अंग उभर कर आ रहा था.

अब आप सोच ही सकते हैं कि एक गोरी चिट्टी औरत जिसका फिगर भी इतना कमाल हो और जो देखने में भी इतनी सुंदर हो, उसके लिये एक मर्द की नियत भला कैसे न फिसल जाती.

मैंने भी साफ साफ शब्दों में बात करते हुए सर से कह दिया- सर आपको जो कुछ रूपया पैसा जितना भी चाहिए आप मुझे कह सकते हैं. मैं आपसे सिर्फ इतना चाहती हूं कि आप किसी भी तरह मेरा ट्रान्सफर यहां से करवा दीजिये. मेरे तबादले के बदले में आपको जो पैसा चाहिए होगा वो आपको मिल जायेगा.

ये बात सुन कर वो उठ कर आये और मेरी तरफ आते हुए अपने लंड को खुजलाने लगे. लंड को खुजलाते हुए वो मेरे करीब आये और मेरे कंधे पर हाथ रख कर अपने हाथ से मेरे कंधे पर सहलाने लगे. उनकी इस हरकत से मैं हैरान सी रह गयी.

मैंने गुस्से में आकर कहा- सर, आपने मुझे समझ क्या रखा है? मैं कोई बाजारू औरत नहीं हूं.
ये कह कर मैं गुस्से उनके रूम से बाहर आ गयी. उस दिन मैं गुस्से में ही घर लौट गयी.

मगर घर पहुंच कर प्रिंसिपल की ये हरकत मुझे चैन से लेटने या बैठने नहीं दे रही थी. रात को बेड पर लेटे हुए मेरे मन में दिन में हुई घटना के बारे में ही विचार आ रहे थे. मेरे घर में भी कोई नहीं था. मैं घर पर बिल्कुल अकेली थी. प्रिंसिपल के बारे में बार बार सोच रही थी.

बाकी दिनों में तो जब मैं घर में जब थकी हुई आती थी तो पति ठुकाई कर देते थे और मेरी सारी थकान उतर जाती थी. मगर आज रात तो मैं बहुत तनहा महसूस कर रही थी. बस किसी तरह करवटें बदलते हुए ही रात काट ली मैंने.

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अगले दिन जब मैं स्कूल में पहुंची तो मुझे पता चला कि मेरी ड्यूटी अब और आगे 10 किलोमीटर की दूरी पर एक दूसरे स्कूल में लगा दी गयी है. मेरा दिमाग खराब हो गया. मैं गुस्से में भन्नाती हुई सीधा प्रिंसीपल के रूम में गयी.

मैंने जाकर तीखे अंदाज में कहा- सर मैंने आपको बताया था न कि मैं पहले ही बहुत परेशान हूं. मेरी ड्यूटी यहां से और ज्यादी दूरी पर लगा दी गयी है. अब रोज इतनी दूर का सफर कैसे करूंगी. आपने ड्यूटी लगवाने से पहले एक बार भी नहीं सोचा?

वो अहसान सा करते हुए बोले- मैं इसमें क्या कर सकता हूं सोनल जी. ये ऊपर से ऑर्डर हुए हैं. मैंने इसमें कुछ नहीं किया है.
मैंने कहा- ये सब आप के द्वारा ही की गयी हरकत है.
वो बोले- मैंने कुछ नहीं किया है सोनल जी. हां अगर आप ने मेरी बात मान ली होती तो शायद मैं आपके लिए कुछ कर भी सकता था. मगर आप तो गुस्सा हो गयीं.

मैंने कहा- मैं आपके बारे में पूरे स्कूल में बता दूंगी.
वो बोले- हां, बिल्कुल, आप बता सकती हैं. बताने से पहले मगर अपने बारे में भी सोच लीजियेगा. यदि कल आपने मेरी बात मान ली होती तो आप किसी और स्कूल में होतीं, जो आपकी सुविधा के दायरे में होता. वैसे मेरे पास अभी भी विकल्प के दरवाजे खुले हुए हैं. आपके पास आज शाम तक का समय है. आप विचार कर लीजिये. उसके बाद बता दीजियेगा. वरना कल से तो आपको अपने नये स्कूल में जाना ही होगा.

गुस्से में बड़बड़ाते हुए मैं प्रिंसीपल के रूम से निकल गयी. मेरा दिमाग खराब हो गया था. स्टाफ रूम में जाकर मैं बैठ गयी और सोचने लगी. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं. अगर मैं किसी को इस बारे में बताऊंगी तो पहले तो मेरी ही बदनामी होगी.

यदि बात फैली तो फिर बात मेरे पति तक भी पहुंचेगी. जब मेरे पति को इस बारे में पता चलेगा तो पता नहीं वो मेरे साथ में क्या करेंगे. अगर उन्होंने मुझे अपने साथ न रखने का सोच लिया तो मैं कहां जाऊंगी.

इसी उधेड़बुन में उस दिन मैं क्लास में अच्छे से नहीं पढ़ा पायी. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि अब मुझे क्या करना चाहिेए. घड़ी में 3.30 का समय हो गया था. चार बजने में आधे घंटे का ही समय रह गया था और मैं अभी तक किसी संतोषजनक निर्णय को लेने में सफल नहीं हो पायी थी.

मैं स्टाफ रूम में सिर पकड़े हुए बैठी ही थी कि तभी चपरासी ने मेरे पास आकर कहा- मैडम, आपको प्रिंसीपल सर ने अपने ऑफिस में बुलाया है.
छुट्टी हो चुकी थी और सारे टीचर एक एक करके चले गये थे. स्कूल में चपरासी, प्रिंसीपल और मेरे अलावा शायद कोई और नहीं था.

उठ कर मैं सर के पास गयी. मैं जाकर बैठ गयी. चपरासी को सर ने बाहर जाने के लिए कह दिया. सर ने कहा कि जाते समय स्कूल को वो खुद ही बंद कर देंगे. सर के ऐसा कहने पर वो वहां से बाहर चला गया.

उसके जाने के बाद सर ने कहा- तो कहिये सोनल जी, क्या सोचा है आपने? आपका तबादला आपको अपने घर के बगल वाले स्कूल में चाहिए या फिर इस स्कूल से भी 10 किलोमीटर आगे किसी और स्कूल में चाहिए है?

मैंने कहा- सर अगर किसी को पता चल गया तो?
वो बोले- उसकी चिंता आप क्यों करती हैं, मैं विश्वास दिलाता हूं कि किसी को हमारे बीच की बात का पता नहीं चलेगा.

संकोचवश मैंने कहा- जी ठीक है, आप जैसा कहेंगे मैं वैसा करने के लिए तैयार हूं.
मेरे हां करते ही वो झट से उठ कर रूम के दरवाजे की ओर चले. उन्होंने फटाक से दरवाजा अंदर से बंद कर दिया.

मैं उठ गयी और हाथ बांध कर खड़ी हो गयी. वो मेरे पास आये और मुझे घूरने लगे.
मुझे सिर से पैर तक घूरते हुए उसने कहा- वाह! क्या चीज हो यार तुम सोनल. जिस दिन तुमको मैंने पहली बार स्कूल में देखा था उसी दिन से तुम मेरी नजर में चढ़ गयी थी.

उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखा और प्यार से सहलाने लगे. मैं चुपचाप खड़ी थी. मुझे अजीब सा लगने लगा. मैं डर रही थी. मेरी आंखों में आंसू आने लगे थे.
वो बोले- अरे पगली, रो क्यूं रही हो? अगर ट्रान्सफर करवाना है तो पजामी तो तुमको मेरे सामने ढीली करनी ही होगी.

उस दिन मैं एक सूट सलवार पहन कर गयी हुई थी.
वो बोले- चल अपना पजामा नीचे कर.
उस दिन मैंने नीचे से पैंटी भी नहीं पहनी हुई थी. मैं अपनी नजरें झुकाये हुए पत्थर बन कर खड़ी हुई थी.

वो बोले- अरे यार … तुम तो ऐसे नाटक कर रही हो जैसे आज तक तुमने अभी तक ऐसा कुछ किया ही नहीं, तुम्हारे पति के साथ भी तो तुम ये सब कर ही चुकी हो, तो फिर मेरे सामने एक बार कर लोगी तो क्या फर्क हो जायेगा, चलो इतना मत सोचो, जल्दी से अपनी पजामी को खोलो मेरी जान।

रोते रोते मैंने अपनी पजामी को खोलना शुरू कर दिया.
वो ललचाई जुबान से बोले- हां शाबाश खोलो खोलो. घबराओ नहीं. मैं तुम्हें कुछ नहीं करूंगा. बस एक बार तुम्हें बिना कपड़ों के देख लूं बस. तुम बिल्कुल चिंता न करो.

मैंने पजामा खोल दिया और मेरी चूत नीचे से नंगी हो गयी. सर ने मुझे पीछे सोफे पर धक्का दे दिया और मेरी टांगें फैल कर मेरी चूत सर को सामने साफ दिखाई देने लगी.
मेरी बालों वाली चूत और मेरी गोरी जांघें देख कर सर ने सिसकारते हुए कहा- आह्ह … क्या चूत है यार।

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मेरे पास कोई चारा नहीं था. मेरी इज्जत जो मेरी चूत के साथ ही नंगी हो गयी थी अब मैं कुछ नहीं कर सकती थी क्योंकि मेरी चूत को तो उस ठरकी प्रिंसीपल ने देख ही लिया था. मगर मेरे पास दूसरा कोई रास्ता भी तो नहीं था. और बड़ी बात तो यह थी कि मुझे भी चूत चुदाई की जरूरत थी तो कहीं ना कहीं मैं भी प्रिंसिपल के लंड का मजा लेना चाह रही थी. लेकिन मैं यह नहीं दिखा सकती थी कि मैं अपने मजे के लिए ये सब कर रही हूँ.

इतने में ही प्रिंसिपल नीचे मेरी टांगों के पास आकर बैठ गया. घुटनों पर बैठ कर वो मेरी दोनों टांगों को चौड़ी करके मेरी बालों वाली चूत को ध्यान से देखने लगा. उसने मेरी चूत पर उंगली से सहला कर देखा. मुझे भी मजा सा आया.

उसके बाद उन्होंने मेरी चूत के दाने पर उंगली से घिसना शुरू किया. अब मेरा ध्यान मेरी परेशानी से हटने लगा. सर की उंगली से चूत को घिसवाने में मुझे मजा सा आने लगा. उन्होंने मेरी चूत के छेद में उंगली फंसाने की कोशिश की तो मैंने उनके हाथ को पकड़ लिया.

सर ने मेरी ओर गुस्से देखा और मुझे आंखें दिखाने लगे. मैंने उनके हाथ को छोड़ दिया. उन्होंने मेरे दोनों हाथों को पीछे ले जाकर अपने हाथ से पकड़ लिया और दूसरे हाथ से फिर मेरी चूत को छेड़ना शुरू कर दिया.

कुछ देर तक वो मेरी चूत की फांकों को छेड़ते रहे. उसके बाद उन्होंने मेरी चूत में उंगली दे दी और उसे अंदर बाहर करने लगे. मेरी चूत को मजा आने लगा. मैं अब चूत में उंगली का मजा ले रही थी.

उसके बाद सर ने मेरी चूत पर मुंह रख दिया और मेरी चूत को चूसने लगे. कभी मेरी चूत को होंठों से चूमने लगे और कभी जीभ अंदर देकर उसको चूसने चाटने लगते. मेरे मुंह से भी अब सिसकारियां निकल रही थीं. आह्ह … उफ्फ करते हुए मैं प्रिंसीपल से अपनी चूत चटवाने लगी.

मेरी सिसकारियां सुन कर प्रिंसीपल सर को और ज्यादा जोश आ गया और वो मेरी चूत के बालों को नोचते हुए मेरी चूत के छेद में अपनी जीभ से लपलपाने लगे. मैं एकदम से चिहुंक उठी. सर की इस हरकत ने मुझे अंदर तक हिला कर रख दिया.

वो जोर जोर से मेरी चूत को चूसने लगे. अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था. मैंने कहा- आह्ह सर .. ये आप क्या कर रहे हैं.
मगर वो मेरी बात को नहीं सुन रहे थे. बस लगातार वो मेरी चूत को चूसते ही जा रहे थे. मेरी हालत खराब हो रही थी.

उत्तेजना में आकर मैंने उनके सिर को अपनी चूत पर दबाना शुरू कर दिया. मैं अपनी चूत को उनके मुंह की ओर धकेलने लगी और वो अभी भी उतनी ही तेजी से मेरी चूत में जीभ से चूसते रहे.

उनको पता लग गया था कि मैं बहुत ज्यादा गर्म हो गयी हूं और जल्दी ही झड़ने वाली हूं. मैं सच में काफी गर्म हो गयी थी और ऐसा लग रहा था कि मेरी चूत ज्यादा देर बर्दाश्त नहीं कर पायेगी.

मैं सिसकारियां लेते हुए सर के बालों को सहलाते हुए उनका मुंह अपनी चूत में दबाती रही. मेरे मुंह से जोर जोर की कामुक आवाजें निकलने लगीं- आह्ह … मर गयी … ओह्ह सर … आह्ह … मैं तो गयी.

वो बोले- अभी नहीं साली रंडी, अभी तो मुझे तेरी चूत में लंड भी डालना है.
इतना कह कर वो उठ गये. मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था. मैं सर के सामने ही अपनी चूत में उंगली करने लगी. मैंने तेजी से उंगली चलाते हुए अपनी चूत को रगड़ डाला और मेरी चूत से पानी निकल गया.

मैं थोड़ी शांत हुई और हांफने लगी.
सर मेरे पास आकर मेरे होंठों पर अंगूठे से फिराते हुए बोले- वाह रे रांड, तू तो बहुत ही चुदक्कड़ चीज है. इतना गजब माल मेरे स्कूल में इतने दिनों से घूम रहा था. मुझे तो तेरी गर्मी का अंदाजा भी नहीं था साली. तुझे तो आज ही चोदना पड़ेगा. ये बता इस वक्त तेरे घर में कौन कौन है?

पजामे का नाड़ा बांधते हुए मैंने कहा- कोई नहीं है. सास-ससुर अपने पैतृक घर में रहते हैं और मेरे पति शहर से बाहर गये हुए हैं. घर में मैं अकेली ही रहती हूं.

वो बोले- तब तो और अच्छी बात है. तू आज रात में ही चुद ले मेरे लंड से. मैं तेरी चूत मारने के लिए बहुत बेचैन हूं. अगर तूने आज मेरी प्यास को बुझा दिया तो तेरा तबादला टीचर के तौर पर नहीं बल्कि प्रिंसिपल के तौर पर होगा. मैं वादा करता हूं.

मैं उनकी बात सुनकर हैरानी से उनकी ओर देखने लगी और सोचने लगी कि कहां मैं दूसरे स्कूल में धक्के खाने की सोच रही थी, यहां तो मुझे चूत के बदले में प्रमोशन भी फ्री मिल रहा है. हम दोनों उनके केबिन से बाहर आ गये.

उन्होंने अपनी गाड़ी निकाली और स्कूल के गेट के बाहर ले जाकर रोक दी. कार से नीचे उतर कर उन्होंने स्कूल के मेन गेट को बंद किया और वापस से गाड़ी में आकर बैठ गये.

अपने प्रिंसिपल सर के साथ मैं उन्हीं की गाड़ी में अपने घर की ओर चल दी. उन्होंने अपने फोन पर किसी को कुछ मैसेज लिखा और फिर गाड़ी की स्पीड तेज कर दी.

कहानी अगले भाग में जारी रहेगी. कहानी में आपको मजा आ रहा होगा. मुझे इस कहानी के बारे में अपना फीडबैक जरूर भेजें. मुझे आप लोगों की प्रतिक्रियाओं का इंतजार है.
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कहानी का अगला भाग: स्कूल टीचर का तबादला-2

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