तलाकशुदा का प्यार-1

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मेरी कहानियों पे जो प्यार आपका मिलता है वो अभूतपूर्व है, अकल्पनीय है। आप सब का इस प्यार के लिए मैं राहुल श्रीवास्तव दिल से आभार प्रकट करता हूँ आशा है आप अपनी राय कमैंट्स बॉक्स में या ईमेल के जरिये मुझे देते रहेंगे.

मेरी पिछली कहानी थी- भोली मस्त लड़की की ऑफिस में चुदाई

यदि आप नए पाठक हैं तो आप इस कहानी के ऊपर दिए गए मेरे नाम पर क्लिक करके मेरी सभी कहानियों को पढ़ सकते हैं.
जैसा कि आप जानते हो कि मेरी कहानी मेरे अपने अनुभव या मेरे साथ घटित घटनाओं पर आधारित होती हैं. मैं अपनी नौकरी की वजह से सम्पूर्ण भारत का भ्रमण करता हूँ, अनगिनत लोगों से मिलता हूँ, उनके किस्से सुनता हूँ. कुछ किस्से मेरे साथ भी यात्रा के दौरान घटित होते है जिसको मैं आपके सामने कहानी के रूप में ले कर आता हूँ.

ऐसी ही एक सेक्सी दास्ताँ लेकर मैं आपके सामने हूँ. एक ऐसी दास्ताँ जिसमें आपको जीवन की कुछ सच्चाई और और जिंदगी के सबक दे जाएगी.

हुआ कुछ यों कि दिल्ली से मुंबई आते वक़्त राजधानी एक्सप्रेस में एक शख्स संदीप से मेरी मुलाकात हुई. 16-17 घंटे के सफर में मेरी अच्छी दोस्ती हो गई संदीप से! और ऐसी दोस्ती हुई कि उसने पूरा जीवन अपना खोल के रख दिया.
मेरा लेखक दिल नहीं माना और फिर उसकी अनुमति से उसकी दास्ताँ मैं आप तक पंहुचा रहा हूँ. आशा है कि आपको भी पसंद आएगी.

यह कहानी आप संदीप की जुबानी ही पढ़ियेगा, इसमें कामुकता और वासना का तड़का मैंने लगाया है, उम्मीद है आपको पसंद आएगा.

मेरा नाम संदीप है, मैं उत्तरप्रदेश का रहने वाला हूँ और आजकल मुंबई में हूँ.
मैंने शादी 21 साल की उम्र में कर ली और मेरा एक बेटा 12 साल का बेटा भी है. मेरी पत्नी का नाम निधि है. शादी से पहले मैं निधि से नहीं मिला था. वो कानपुर के पास के गांव शुक्लागंज की थी.
निधि बहुत ही तेज़तर्रार लड़की थी.

हम दोनों शादी के बाद आगरा आ गए. शादी के बाद कुछ साल तो सब ठीक चला … पर बाद में हमारे झगड़े बहुत होने लगे कभी पैसों को लेकर तो कभी बेसिक सुख सुविधाओं को लेकर!
मैंने भी और मेहनत करनी शुरू कर दी ताकि मैं और पैसे कमा सकूं और निधि को और ज्यादा सुख सुविधायें उपलब्ध करा सकूं.

इन सब का नतीजा यह हुआ कि मैं काम में इतना मसरूफ होता गया कि मेरी अपनी जिंदगी नर्क हो गई, सेक्स सम्बन्ध तो न के बराबर हो गए.
निधि की ख्वाहिशें बढ़ती जा रही थी.

इस बीच मेरी नौकरी चली गई. निधि ने कुछ दिन तो बर्दाश्त किया पर अंत में वो मुझे छोड़ कर अपने माता पिता के पास चली गई, बात तलाक तक पहुंच गई.

मैं भी अंदर से टूट सा गया. अब मेरे पास न नौकरी थी न बीवी और न मेरा बेटा!
इन सबने मुझे तोड़ कर रख दिया. मेरी मदद को करने से हर उस शख्स ने इंकार किया जिसको मैं अपना समझता था.

ऐसे में एक आदमी फरिश्ता बनकर आया. वो था मेरा एक पुराना बॉस. उन्होंने मुझे नौकरी दी और मुझे इन सब से दूर मुंबई भेज दिया.

कहते हैं कि मुंबई सपनों का शहर है. मैं भी आ गया और न्यू मुंबई एरिया में 1 रूम सेट किराये पे लेकर रहने लगा. यहाँ मुझे कोई नहीं जानता था. निधि और मेरे बेटे से मेरा नाता टूट ही गया था और सेक्स तो जीवन में था ही नहीं. अब मैं घर से फैक्ट्री और फैक्ट्री से घर तक सीमित रह गया.

मेरी तरक्की होती गई, मैं 1 रूम से ३ रूम फ्लैट में आ गया. पूरी फैक्ट्री मेरे भरोसे हो गई.

जब मेरे बॉस ने एक नई फैक्ट्री दमन में डालने का फैसला किया तो मैं दमन आ गया.
मेरा घर फैक्ट्री साइट से मात्र 1 किलोमीटर की दूरी पर था. मैं कभी पैदल तो कभी कार से जाता था साइट पर.

यहाँ दमन में मेरी ज़िंदगी में रंगीन पल आया.

ऐसे ही एक दिन काफी देर रात लगभग 12.30 का टाइम होगा, फैक्ट्री में ओवरटाइम करवा के जब मैं घर वापस आ रहा था तो मुझे एक लड़की या ये कहिये एक महिला ने हाथ देकर रोका. मैंने कार रोक कर पूछा तो पता चला कि वो मुंबई से आई थी और उसका पर्स और कपड़े एक का बैग कोई लेकर भाग गया है. उसके पास अब कोई भी आइडेंटिटी, रूपए, मोबाइल और कपड़े नहीं थे. वो मदद चाहती थी कि मैं उसकी मुंबई तक पहुंचने में मदद करूं.

पता नहीं क्या सोचकर मैं मदद को तैयार हो गया. फिर मैंने उसको अपने साथ लिया और एक रेस्टोरेंट में खाना खिलाया, वापी स्टेशन तक ले गया, जहाँ मैंने उसको टिकट दिलवाया और उसको कुछ पैसे भी दिए.
उसने मेरा नंबर माँगा, वो भी दे दिया.

इस बात को काफी दिन हो गए और मैं भूल भी गया था और तो और … मैंने उसका नाम भी नहीं पूछा था.

करीब एक साल बाद मुझे एक कॉल आई. उस समय मैं मुंबई में ही था. बहुत मीठी से आवाज़ आई- हेलो, मिस्टर संदीप जी बोल रहे हैं?
मैं- जी हाँ बोल रहा हूँ. आप कौन?
“आपने मुझे पहचाना नहीं … काफी दिन पहले आपने मेरी मदद की थी.”
तब मुझे उस लेडी की याद आई- ओह्ह … अब आपको याद आई मेरी? वो भी साल के बाद?
“नहीं … याद तो मैंने आपको बहुत किया. पर फ़ोन नहीं किया क्योंकि मैं आपको परेशान नहीं करना चाहती थी.”

“अच्छा आप बताइये … आज कैसे याद आई आपको मेरी?”
“कुछ नहीं … याद तो आपको बहुत किया क्योंकि आपने जो निस्वार्थ मेरी मदद की वो मैं भूल नहीं सकती. अभी मैं मुंबई में हूँ और आपसे मिलना चाहती हूँ. क्या आप मुझसे मिलना चाहेंगे?”
“मुंबई में हूँ से क्या मतलब?” आप तो शायद मुंबई में ही रहती थी.
“जी नहीं, अब मैं चंडीगढ़ में रहती हूँ. मैं सब कुछ छोड़ कर अब अपने माता पिता के साथ रहती हूँ. किसी काम के सिलसिले में आई थी तो सोचा आपसे मिल कर आपका शुक्रिया अदा कर दूँ.”

“बताइये आप कहाँ हैं?” मैंने पूछा.
“मैं इस समय बांद्रा में एक फ्रेंड के यहाँ हूँ. क्या हम लोग लिंकिंग रोड में मिल सकते है?”

करीब एक घंटे बाद मैंने पहुंच के फ़ोन किया. हम वहां मिले. आज वो कुछ ज्यादा ही खूबसूरत लग रही थी. उस दिन परेशानी में ठीक से देखा नहीं होगा मैंने!

‘सिल्क’ यह उसका नाम नहीं है पर मैं उसको इस कहानी में सिल्क ही बुलाऊंगा. सिल्क इसलिए कि वो सिल्क जैसी ही दिखती थी. बहुत गोरी तो नहीं थी पर आप उसे गोरी कह सकते हैं. फिर भी स्किन का ग्लो बहुत था. करीब 30-31 साल की सिल्क एक आकर्षक महिला थी जो किसी भी मर्द को दीवाना बना दे.

निधि से भी तलाक हो चुका था तो काफी साल से मैं सेक्स से दूर था. एक तरह से मैंने अपने ख्याल से सेक्स जैसे शब्दों को निकाल दिया था. मुंबई आने के बाद अपने आप को काम में इतना मसरूफ कर लिया था कि सेक्स का ध्यान भी नहीं आता था. दिनचर्या कुछ ऐसी थी कि सुबह उठना, फ्रेश होकर ऑफिस और वहां से आकर सो जाना!
खैर सिल्क को देखने के बाद मेरे मन में सिल्क के साथ सेक्स की इच्छा हुई.

खैर किसी तरह अपने पे कण्ट्रोल करके उसकी खूबसूरती को निहारने लगा.
सिल्क- कहाँ खो गए?
मैं- कुछ नहीं … बस आपकी खूबसूरती में खो सा गया था. सॉरी!
न जाने मेरे मुँह से ये सब निकल गया.

इस पर वो थोड़ा सा शरमाई … फिर बोली- मैं इतनी भी खूबसूरत नहीं हूँ … आप झूठी तारीफ कर रहे हो!
“अरे नहीं … मैं सच बोल रहा हूँ.” मैंने कहा.
“अच्छा ठीक है.” पर मुझे पता है कि मैं इतनी खूबसूरत नहीं हूँ. आपने कहा है तो मान लेती हूँ.”
“मैं सच कह रहा हूँ … आप सच में खूबसूरत लग रही हैं.”
सिल्क- अब जाने भी दीजिये … मत कीजिये इतनी तारीफ!

फिर मैंने पूछा- आप कॉफी लेंगी?
और दो कॉफी आर्डर करके मैं उनसे बात करने लगा.

सिल्क एक स्वतंत्र नारी थी. शादी का अनुभव उसका भी बुरा था कुछ मेरी ही तरह … उसका पति से तलाक हो चुका था और अब वो चंडीगढ़ में रहती थी. वो एक विदेशी कंपनी में बड़ी अधिकारी थी और काफी समय के बाद मुंबई आई थी.

उस दिन भी वो दमन पिछली कंपनी के काम से गई थी. कुछ संयोग ऐसा हुआ कि मुझसे मुलाकात हुई और मैंने उनकी मदद कर दी.

सिल्क ने बताया कि उस दिन उसके साथ उसका एक सहकर्मी था. पर उसके घर में कुछ अनहोनी हो जाने के कारण उसको सिल्क को अकेले छोड़ के जाना पड़ा और उस बुरे दिन में उसकी कार सॉरी टैक्सी भी ख़राब हो गई उसको सुनसान रास्ते में अकेले चलना पड़ा. और फिर कुछ लोगों ने उसका पर्स और सब कुछ छीन लिया.

खैर ये सब बातें मेरे साथ हुई जिसको मैंने संक्षेप में आपको बताया. मैंने भी अपनी राम कहानी सिल्क को सुनाई.
आप ऐसा मान लीजिये कि हम दोनों एक ही नाव में सवार थे.

कब 3 घंटे बीत गए पता ही नहीं चला. बातों बातों में यह भी पता चला कि उसकी वापिसी की फ्लाइट भी थोड़ी देर बाद थी. वो चंडीगढ़ वापस जा रही थी. उसने मेरे से मिलने के लिए अपना काम जल्दी ख़त्म कर लिया था.

उसके जाने की बात सुनकर मैं कुछ उदास सा हो गया जिसको सिल्क ने समझा. उसने अपना नंबर दिया और कहा- हम फ़ोन पे कनेक्ट रहेंगे.

खैर यह छोटी सी मुलाकात मेरे सुने जीवन में कुछ उम्मीद जगा गई क्योंकि मैं जीवन से इतना निराश था कि कई साल से अकेला रहता हुआ मैं अपनी एक अलग ही दुनिया में बस गया था.
खर्चे मेरे थे नहीं … तो सारा पैसा जुड़ जाता था. किसके लिए जोड़ रहा था, यह मुझे भी नहीं पता था. परिवार से नाता कब का टूट चुका था. हाँ माता पिता को मैं हर माह पैसा भेज देता था. साल में एक बार मिल भी आता था उनसे.

सिल्क से मेरी बात फ़ोन पे तकरीबन रोज़ ही होने लगी. शायद हम दोनों ही विवाहित जीवन के कष्टमय दौर से गुजर चुके थे तो दोनों एक दूसरे का दर्द जानते थे. और धीरे धीरे हम करीब भी आने लगे. पर यौनाकर्षण जैसी कोई बात नहीं थी.

अब सब कुछ ठीक हो चुका था. कई बार माता पिता शादी के लिए भी कह चुके थे पर हर बार मैं आदर के साथ मना कर देता था.

इस बीच मेरा दिल्ली का एक हफ्ते का प्लान बना जिसे मैंने सिल्क को बताया. सोमवार को पहुंच कर शुक्रवार को वापस आना था.
जब सिल्क को प्रोग्राम पता चला तो उसने कहा कि मैं संडे को वापस जाऊं और साथ ही ये भी बोला कि वो शुक्रवार को दिल्ली आ जाएगी और वो साथ में दो दिन गुजारेंगे.

पहली बार मुझे लगा कि सिल्क मुझे पसंद करती है. बहुत साल बाद लण्ड में कुछ हरकत सी महसूस हुई और काफी साल बाद पहली बार सिल्क को सोच कर मुठ मारी, ढेर सारा गाढ़ा वीर्य निकला और निकले भी क्यों नहीं … इतने सालों से इकट्ठा जो हुआ पड़ा था.

सब कुछ योजना के अनुसार हुआ … शुक्रवार आ गया.
आज मैं कुछ बेचैन था और बहुत बेसब्री से सिल्क का इंतज़ार कर रहा था. मैं कुछ जल्दी ही होटल वापिस आ गया क्योंकि सिल्क कार ड्राइव कर के आ रही थी.

करीब 5 बजे सिल्क ने होटल में कदम रखा और चेक इन किया. यह एक बढ़िया होटल था कनाट प्लेस के बहुत पास और उसकी बुकिंग मैंने अलग से करवा के रखी थी. हम दोनों के रूम अलग फ्लोर पर थे.

अपने रूम में पहुंच कर सिल्क ने मुझे कॉल किया. उसने रूम नंबर पूछा.

थोड़ी देर में मेरे रूम की बेल बजी और जिसका मुझे इंतज़ार था वो मेरे सामने थी.
सफेद जीन्स और लाल टॉप में, गले में स्कार्फ, खुले कर्ली बाल, आँखों में काजल, सुर्ख होंठ, हील वाली सफेद सैंडल, उफ्फ … क़यामत तक समय रूक जाए!
रूपसी अप्सरा … वो किसी भी तरह से 30 या 32 साल की नहीं लग रही थी. वो 24-25 साल से ज्यादा की लग नहीं रही थी. वो एक चंचल अल्हड़ नवयौवना लग रही थी.

सबसे पहला रिएक्शन मेरे लण्ड ने दिया. वो अचानक से ठुमकने लगा.

बहुत जिंदादिली से वो मिली. मेरा मन तो बाँहों में लेने का था पर कण्ट्रोल करके सिर्फ शेक हैंड किया.
पर मुझे लगा कि वो भी मुझे बाँहों में लेने को मचल रही थी. या यह कहिये कि एक आग थी जो दोनों तरफ लगी थी. पर पहल कौन करे ये दोनों को समझ में नहीं आ रहा था,

फिर शुरू हुआ बातों का सिलसिला … साथ में कॉफी!

आठ बजे हम दोनों घूमने के लिए निकले. कनाट प्लेस में एक खूबसूरत रिस्ट वाच खरीद कर मैंने उसको गिफ्ट की जिसको उसने तुरंत पहन लिया. साथ ही सिल्क ने भी ठीक वैसी ही घड़ी मेरे लिए ली जिसको मैंने भी तुरंत पहन लिया.
पूरे समय सिल्क मेरा हाथ अपने हाथ में लिये रही. कोई भी देखकर यही समझता कि हम दोनों पति पत्नी हैं.

उसके बाद वहीं एक अच्छे रेस्तरां में हमने डिनर लिया, साथ में एक एक का वोडका तड़का लगाया और होटल आ गए.

मैं सोच ही रहा था कि उसको कैसे अपने साथ और देर तक रोकूं.
तभी सिल्क ने आग्रह किया- आप मेरे रूम में चलिए ना!

कहानी जारी रहेगी.
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