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सम्भोग से आत्मदर्शन-24
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नमस्कार दोस्तो, अब तक आपने प्रेरणा की चुदाई के बारे में पढ़ा.
अब आगे:
फिर एक दिन वो वक्त भी आ ही गया, जब मुझे उस गुप्त कक्ष में जाने के लिए तैयार होने को कहा गया।
मुझे वहाँ गये लगभग पांच महीने होने वाले थे, तब एक दिन मुझे मेरे कक्ष में आकर साधिका ने मेरे ब्रा पेंटी का नाप पूछा और एक मंहगी ब्रा पेंटी का सेट लाकर दे दिया, साथ ही एक आकर्षक गाऊन भी दिया.
मैं वो पहन कर तैयार हो गई।
मुझे सभी देख रहे होंगे, सोच कर मैं संकुचा रही थी पर सभी के लिए यह आम बात थी।
मेरे दिमाग में एक और बात जोर मार रही थी कि मैं वीडियो कैमरा और ट्रांसमीटर गमले से निकाल कर अपनी गांड में कैसे डालूं और उसे अंदर कैसे रख पाऊंगी, और एक खुशी भी थी कि अब बाबा को हम रंगे हाथों पकड़ पायेंगे, उस वक्त मैंने तुम्हें (संदीप) दिल से याद किया, कि तुम भी अब तैयार रहो, हमें मंजिल मिलने वाली है।
पर मुझे जिस बात का डर था आखिर में वही हुआ, मुझे वो छोटा वीडियो कैमरा और ट्रांसमीटर छुपाई जगह से निकालने के लिए बहुत कम समय मिल पाया और मुझे लग रहा था कि मैं पकड़ में ना आ जाऊँ, इसलिए मैंने वीडियो कैमरे को वहीं गमले के पास ही चालू करके छुपा दिया और ट्रांसमीटर को साथ लेकर कमरे में आ गई, और अपनी खुल चुकी गांड में छुपा लिया।
फिर हमें गुप्त कक्ष में ले जाया गया, एक साधक और हम दो साधिका एक प्रथम श्रेणी साधिका के पीछे पीछे चले गये। गुप्त कक्ष में प्रवेश के पहले ही हमारे शरीर को पूरी तरीके से उस साधिका ने चेक किया, तलाशी इतनी बारीकी से की गई कि अगर मैं वो वीडियो कैमरा साथ लाने का साहस करती तो पकड़ी जाती।
साधिका ने अंदर ले जाने के पहले सख्त हिदायत दी थी कि किसी भी चीज के लिए ना नहीं कहना है, गुरु की आज्ञा के साथ साथ मेहमानों की भी बात माननी है। और यहाँ जो कुछ भी तुम लोगों के साथ होगा, उसे इस कमरे के बाहर हमेशा के लिए भूल जाना… इसी में तुम सबकी भलाई है।
सबने हाँ में अपना सर हिलाया। तब उस साधिका ने एक हवन कुंड में हाथ डाल कर भीतर किसी चीज को ढूंढने का प्रयास किया, मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या ढूँढ रही है, फिर उसने कुंड के अंदर कुछ दबाया तो एक दीवार फट के दो भागों में बंटने लगी, और वहाँ छ: बाई छ: के लगभग द्वार बन गया।
मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ पर गुप्त कक्ष मे ऐसे किसी दरवाजे का अनुमान मैं पहले लगा चुकी थी।
फिर कुछ दूरी तक हम गुफानुमा जगह पर चले और आगे जाकर रास्ता बंद था जहां पर एक दान पेटी रखा था, उस साधिका नें उसमें एक कागज का टुकड़ा डाला और कुछ ही पल में वहाँ भी एक द्वार बन गया, इन नई तकनीकों को देख कर मुझे अपने पति की याद आ गई कि ये सब उन्होंने ही बनाया है।
पर मैंने अपने आपको पूर्ण समर्पित साधिका के रूप में दिखाना चाहा, गुप्त कक्ष के अंदर धीमा प्रकाश था, अंदर किसी कलब जैसा माहौल लग रहा था, वहाँ कुछ और दरवाजे या अलमारियां नजर आ रही थी, कुछ में हथियार सजे हुए रखे थे।
सामने खूबसूरत सोफे पर बैठ कर एक अमीर शादीशुदा जोड़ा और बाबा जी मदिरा पान का मजा ले रहे थे, और एक प्रथम श्रेणी साधिका उनके लिए पैक बना रही थी।
उस अमीर जोड़े को देखते ही याद आया कि आज इन्होंने ही तो कुछ घंटे पहले हमारे आश्रम का अच्छी तरह मुआयना किया था।
अब बात कुछ कुछ समझ आ रही थी, जोड़े की महिला ने कहा- मान गये प्रभात जी, आप भी जौहरी हो, हर बार ऐसी चूत पसंद करते हो कि कोई भी उनका दीवाना हो जाये!
मुझे अपनी तारीफ सुनकर खुशी हुई.
पर वो स्वयं भी बहुत खूबसूरत थी, 37-38 की उम्र और 36-30-36 का शरीर रहा होगा। और वो छोटे आधुनिक कपड़ों में बहुत खास नजर आ रही थी।
तभी जोड़े के मर्द प्रभात ने कहा- तुम्हारी भी पसंद कुछ कम नहीं रहती, एक तो आप बाबा जी के लंड की दीवानी हैं, और दूसरा लंड भी जबरदस्त ढूँढ के निकालती हैं।
तब समझ आया कि ये कमीने आश्रम का मुआयना नहीं कर रहे थे बल्कि अपने लिए चूत और लंड छाँट रहे थे। मेरे रहते हुए, पहले भी बहुत से खास मेहमान आश्रम घूमने आये थे, उसके बाद कुछ साधक या साधिका गुप्त कक्ष में ले जाये जाते थे, शायद मुझे आज पहली बार किसी ने पसंद किया तभी मुझे इस गुप्त कक्ष तक आने का मौका लगा।
प्रभात की उम्र 40-42 की रही होगी, नाटा मोटा गोरा सा आदमी कुरते पजामे में था, शायद वह राजनीति से संबंध रखता होगा।
मुझे उसके सामने ले जाया गया और वो प्रभात खड़ा हो गया. मुझे उसका कुरता पजामा और चड्डी उतारनी थी, और मेरे कपड़ों के लिए मुझे कोई निर्देश नहीं मिला था।
मैंने उसके कपड़े उतार दिए, वो सोफे पर दुबारा बैठ गया और मुझे उसकी जाँघों और लंड को सहलाना खेलना था, पहले से मौजूद साधिका पैग बनाने के अपने काम में लगी हुई ही थी और मेरे साथ जो एक और साधिका गई थी, उसे बाबा जी को निर्वस्त्र करने और उसके लंड और शरीर को सहलाने का काम मिला, साधक उस महिला की ऐसी ही सेवा कर रहा था।
मैं अपने काम में मग्न होने का नाटक करते हुए प्रभात को सहलाने में लग गई।
मैं ट्रांसमीटर को चालू करने और छिपाने के लिए मन ही मन मौके की तलाश कर रही थी, प्रभात का पांच इंच का झांटों वाला लंड अभी लटका हुआ था, पर लग रहा था कि ये खड़ा होने पर काफी मोटा हो जायेगा।
उधर बाबा जी का लंड शायद आधा खड़ा हो चुका था, मेरे अनुमान से वो काफी बड़ा मोटा और लंबा होता होगा, महिला की चूत एकदम से चिकनी थी, काले घेराव के बीच भूरे निप्पल लिये उसके उरोज काफी अच्छे आकार में लग रहे थे, सुडौल शरीर की मलिका चेहरे में चमक लिए अपनी टांगें फैला कर बैठी थी।
वो तीनों पैग पीते हुए बातों में लगे रहे और हम उनके कदमों पर बैठ कर उन्हें सहलाते रहे, उन्हें हमारे छूने सहलाने का बहुत धीमा असर हो रहा था जो दर्शा रहा था कि वो सभी सेक्स और ऐसी मस्ती के कितने अभ्यस्त हैं।
मेरा ध्यान उनकी बातों पर भी था, यह तो तय था कि बाबा एक नहीं बल्कि बहुत सारे अपराधों से जुड़ा हुआ था लेकिन उसका मुख्य व्यवसाय हथियार से जुड़ा हुआ लग रहा था।
मुझे जितनी जानकारी चाहिए थी, वो मुझे लगभग मिल चुकी थी, पर मैं ट्रांसमीटर चालू करने और संदेश भेजने के उधेड़बुन में थी और इसी वजह से मेरा ध्यान थोड़ा भटक गया और मेरे हाथों से प्रभात की झांटें खिंच गई।
प्रभात आहहह करके चिल्ला उठा, और मुझ पर क्रोधित हो गया, बाबा भी क्रोधित हो गये, उन दोनों ने अब मुझे उठा लिया और मेरे कपड़े फाड़ने लगे, साथ ही गालियां देने लगे- साली कुतिया झांट नोचती है, तुझे चुदने की इतनी जल्दी है तो ले मादरचोद सबसे पहले अपनी गांड ही मरवा।
मैं नहीं नहीं करती रही, क्योंकि मैं गांड तो आसानी से मरवा सकती थी पर मेरी गांड में ट्रांसमीटर था, लेकिन मेरे नहीं कहने से उन्होंने और तय कर लिया कि अब तो पहले गांड ही मारेंगे, गुलाबी रंग की ब्रा पेंटी की डिजाइनर सेट को उन्होंने एक पल में तन से अलग कर दिया, मेरा शरीर उन्हें उकसा भी रहा था, और वो मुझे सजा देने के मूड में भी आ चुके थे।
हमारी ये पकड़ धकड़ उस महिला को और ज्यादा रोमांचित कर रहे थे उसने उस साधक का लंड बिना चुसे चाटे अपनी पहले से पनिया रही चूत में ही ले लिया, और खुद उछलने लगी मुझे बाबा और प्रभात के अलावा दोनों साधिका ने भी जबरदस्ती पकड़ा और घोड़ी बना दिया और प्रभात मेरी गांड की तरफ लंड लेकर आ गया. उसने पहले अपनी एक उंगली बेरहमी से मेरी गांड में डाल दी। तभी उसे वहाँ कुछ होने का अहसास हुआ, उन लोगों ने मुझे जबरदस्ती टायलेट किये जैसा बैठा कर गांड से ट्रांसमीटर निकाल लिया।
बाबा तो क्रोध से आग बबूला हो गया, पहले उसने ये सुनिश्चित किया कि ट्रांसमीटर बंद है या नहीं, फिर ट्रांसमीटर बंद पाकर उसने मुझे कई झापड़ और लात घूंसे जड़ दिये और डर के मारे प्रभात की गांड फट गई, वो जल्दी से जल्दी भागने के लिए कपड़े पहनने लगा, उन्होंने अपनी पत्नी को भी जल्दी कपड़े पहनाए और बाबा से कहा कि हमें घर तक सुरक्षित पहुंचा दो।
फिर हम सब वहाँ से बाहर निकल आये और एक हाल में आकर बाबा ने अपने कुछ साधकों को आदेश दिया कि उन लोगों को घर तक छोड़ के आये. मैं उन सभी को रंगे हाथ पकड़वाना चाहती थी, पर ये मौका हाथ से जाते देख मुझे बड़ा अफसोस हो रहा था।
फिर उन्होंने अपने साधकों को बुला लिया, फिर उसने पूछा कि तुम्हें ये सब किसने करने को कहा है?
मैंने झूठ कहा- मेरे पति ने!
और उसने यह भी पूछा कि वो कहाँ रहता है तो मैंने उसे सारी जानकारी तुम्हारे (संदीप) हिसाब से दे दी।
मैंने जानबूझ कर तुम्हारा नाम इसलिए बताया ताकि तुम तक मेरी कोई भी खबर पहुंच तो सके।
उसे लगा कि वो हम दोनों को आसानी से मार देगा, स्थानीय पुलिस तो उससे मिली हुई ही थी, उस बाबा ने इसी घमंड में ट्रांसमीटर चालू करके तुम्हें आश्रम बुला कर मारने के लिए संदेश भेजा।
और उसने मेरी सजा के लिए साधकों से कहा कि इस कुतिया को बिना दवाई खिलाए बेरहमी से चोदो और आखिरी में जब इसका पति आ जाये तब इसकी चूत और गांड में तेजाब डालकर इसे मार देना, इसके पति को भी मौत के घाट उतार देना, और जंगल में जाकर लाश फेंक आना, जैसे उन इंजीनियरों को मार के फेंका था। उन कमीनों को मैंने रुपए पैसे के आफर दिये तब उन्हें बात समझ नहीं आई और आखिरी समय तक अपने घमंड में अड़े रहे कि मेरा पर्दाफाश करेंगे, इसलिए उन्हें मौत की नींद सुलाना पड़ा. मुझे उनकी मुर्खता पर हंसी आती है जब उन्हें पता था कि यहाँ हथियारों की तस्करी होती है तो उसे ये भी पता होना चाहिए था कि वो हथियार उनके लिए भी इस्तेमाल किए जा सकते हैं।
बाबा सच में कमीना था, उसके लिए किसी को मार के फेंकना कोई बड़ी बात नहीं थी, मुझे अपने पति के बारे पता लगते ही आंखों से आंसू आ गये, मैं लगभग मूर्छा की हालत में थी और सभी साधक मुझ पर टूट पड़े, वे सारे हैवान मुझे बेरहमी से चोदने लगे, ये मेरे लिए कोई बहुत ज्यादा बड़ी बात नहीं थी, लेकिन बेमन चुदना और खुशी से चुदाई कराने में फर्क होता है.
मेरे सारे बदन और सारे छेद दुखने लगे, लेकिन उन्होंने तो मुझे मेरी मौत तक चोदने का प्लान किया था और ऐसे मैं ना मरती तो अंत में हथियार या एसिड डाल कर मार देते।
उन्हें अहसास भी नहीं था कि तुम इतना बड़ा फोर्स लेकर और इतनी जल्दी आ जाओगे, उन्हें लगा था कि तुम अकेले ही आओगे जैसे फिल्मों में हीरो आता है, और वो तुम्हें मार देंगे।
तुम्हारे आते तक मेरी चुदाई केवल पंद्रह मिनट ही हुई थी, उसके बाद क्या हुआ, यह तो तुम जानते ही हो, पर मुझे ये बताओ संदीप कि तुम वहाँ इतनी जल्दी कैसे पहुंचे?
उसकी आपबीती कहानी से हम सभी की आंखों में आंसू थे.
मैंने कहा- टैलिपैथी से तुम्हारा संदेश मुझे पहले ही मिल गया था!
अब प्रेरणा और फफक कर रो पड़ी और मुझसे लिपट कर कहने लगी- ओह संदीप, तुम नहीं होते तो मेरी जिन्दगी का मकसद पूरा नहीं हो पाता और मैं भी जिंदा नहीं होती।
उस वक्त माहौल भावुक हो उठा था, फिर धीरे धीरे सभी सामान्य होने लगे.
छोटी के लिए रिश्ता ढूंढने की बात होने लगी, प्रेरणा के लिए रोजगार और आंटी के कोई सहारा ढूंढना था। उन्होंने इन सबके लिए मुझ पर कोई बोझ नहीं डाला पर सबकी उम्मीद मुझसे थी, और मैं भी उनकी जिन्दगी को सही करना चाहता था, लेकिन इन सबके लिए थोड़ा वक्त तो लगना ही था।
फिर प्रेरणा को एक स्कूल टीचर का काम मिल गया, उसने आजीवन शादी ना करके आंटी के साथ रहना तय किया, जिससे छोटी की शादी के बाद आंटी को सहारा भी मिल जायेगा, और जिस्म की जरूरत के लिए उन्हें लगा कि मैं उनकी भूख मिटा दूंगा।
अब सिर्फ छोटी के लिए अच्छा रिश्ता ढूंढना था, इसी बीच प्रेरणा ने एक दिन कहा- मुझे अपने घर जाकर सारे सामान समेटने हैं और घर जमीन सब बेच कर यहीं कोई फ्लैट या जगह खरीदना है, वैसे मैंने वहाँ दलालों को कह रखा है, पर हमें खुद जाकर वहाँ ये सारे काम करने होंगे।
मैंने ‘ठीक है’ कहा और फिर मैंने अपना एक हफ्ते का समय निकाला, इस दौरान छोटी भी साथ जाने की जिद करने लगी क्योंकि वो यहाँ रह कर भी क्या करती, आँटी ने मेरे कहने पर उसे साथ जाने की इजाजत भी दे दी।
हम तीनों मेरी कार से प्रेरणा के मकान पहुंचे, छोटी आज कुछ ज्यादा ही खुश थी, प्रेरणा ने हमें घर में बिठाया और वो खुद चाय नाश्ता बनाने लगी.
तभी छोटी ने अचानक मेरा गाल चूम लिया और खुश होकर दूसरी तरफ देखने लगी, मुझे उसका इशारा समझ आ गया था, और यहाँ साथ आने का कारण भी समझ आ गया, और मेरे लंड देव ने भी सलामी दे दी।
कहानी जारी रहेगी, छोटी की चुदाई अगली कहानी में.
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