This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_left
सम्भोग से आत्मदर्शन-21
-
keyboard_arrow_right
सम्भोग से आत्मदर्शन-23
-
View all stories in series
मेरी सेक्सी कहानी में अभी तक आपने पढ़ा कि प्रेरणा और मैंने वाइल्ड सेक्स करके अनोखा सुख पाया. ऎसी यौन तृप्ति और सुख विरले ही मिलता है, आज हम दोनों ही बहुत ज्यादा खुश थे और पता नहीं कब तक हम यूं ही बातें करते रहे और कब हमारी आँख भी लग गई।
उसके बाद हमने कई तरह से और कई बार सेक्स किये। अब हम एक दूसरे की भावनाओं को, इशारे को और मन को समझने लगे थे। और इसी बीच हमने ट्रांसमिटर और यंत्रों के उपयोग संबंधी अभ्यास भी कर लिए।
प्रेरणा को एक दिन फिर आश्रम जाना था, तब वो अंतिम तैयारी और अपनी योजना की सफलता की गारंटी को चेक करने के लिए बिना यंत्रों के वहाँ गई। तब मैं उसके घर पर ही था, उस दिन प्रेरणा आश्रम से जल्दी लौट आई।
और घर आते ही वो खुशी से झूम उठी, उसने मुझे गले से लगा लिया, पहले खूब हँसी फिर अचानक रोने लगी, और कहने लगी- संदीप अब हमारी मंजिल दूर नहीं है। उस कमीने के आश्रम में मुझे साधवी के रूप में स्वीकार किया जा रहा है, सोमवार को मेरा शुद्धि करण होगा फिर मुझे वहीं रहना होगा, तुम नहीं जानते की मैंने इसके लिए कितने पापड़ बेले हैं। आज मुझसे नियम शर्तों वाले कागज मे हस्ताक्षर कराये गये, और सोमवार को तैयारी के साथ आने को कहा गया। नियम शर्तों में मुझसे कहा गया है कि मैं उनके सभी कार्यों में सहयोग करूँगी सभी चीजों में मेरी रजामंदी होगी। मैं तन मन धन से पूर्णत: समर्पित रहूंगी। और भी बहुत कुछ था जिसमें उन्होंने कानूनी रूप से खुद को बचाने का प्रयास किया है।
मैं प्रेरणा के जाने के दो दिन पहले से ही वहाँ से लौट आया, क्योंकि हम हर तरह से ऐतिहात बरतना चाहते थे। प्रेरणा को मैंने कह रखा था कि वो मुझसे बार बार सम्पर्क ना करे, जब उसके पास बाबा के खिलाफ पूरे सबूत आ जाये और बाबा का भांडा फोड़ करके उसे पुलिस के हवाले करते बने, तभी वो मुझसे संपर्क करे।
मुझे पता था कि प्रेरणा का संदेश बहुत जल्दी आने वाला नहीं था, मेरे अनुमान से उसका संदेश एक या दो महीने के भीतर आ जाना था। मेरी बेचैनी हर दिन हर पल बढ़ती जा रही थी, मैंने शहर के कुछ पुलिस वालों से इस संबंध में बात कर रखी थी, वो मेरे दोस्त जैसे थे जिन्हें मैंने तैयार रहने को कह रखा था, क्योंकि मुझे पता था कि स्थानीय पुलिस का साथ मिलना मुश्किल था।
आंटी और तनु भी उस पल के इंतजार में और प्रेरणा की जिंदगी के डर में चिंतित रहते थे, फिर भी मेरे कहने समझाने पर हम लोगों ने छोटी के इलाज में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।
इस बीच हम सब बहुत खुल गये थे, और प्रेरणा से मिल कर आने के बाद मैं कभी कभी तनु के साथ या आंटी के साथ भी वाइल्ड सेक्स करने लगा था। अब मैंने कई बार छोटी के सामने तनु की कोमल गोरी उभरी हुई गांड को भी बेरहमी से बजाया और ऐसी चुदाई से तनु को खुश होते देख कर छोटी के अंदर भी ऊर्जा का संचार होने लगा। अब छोटी कभी कभी शरमाने भी लगी थी, जो उसके ठीक होने का काफी अच्छा संकेत था।
मैं चाहता तो छोटी से उसकी आपबीती बातें अब पूछ सकता था, पर अब तो रहस्यों से पर्दा उठना ही था तो मैंने सही समय आने का इंतजार किया।
छोटी के शरीर में भी चिकनाई और तंदरुस्ती आ गई थी, उरोज भी आकार में आने लगे थे। वो अभी भी दुबली पतली ही थी उरोज छोटे ही थे, पर शरीर में सुडौलता आने से छोटी खूबसूरत लगने लगी थी, छोटी का रंग रूप और शरीर का आकार प्रकार प्रेरणा से काफी मिलता जुलता था या कहो तो छोटी प्रेरणा की ही बहन लगती थी।
पर किसी भी इंसान की वास्तविक खूबसूरती उसके अंदर से आती है, जब कोई अंदर से खुश हो और मनोबल ऊंचा हो तब वह सामान्य होकर भी खूबसूरत लगने लगता है। और छोटी के अंदर ये खूबसूरती बाबा के भांडा फोड़ होने के बाद ही आ सकती थी।
लेकिन अब वो लगभग ठीक हो चुकी थी, इसलिए उसके साथ हंसी मजाक और अन्य विषयों पर मेरी बातचीत होने लगी थी, उसे पता था कि मैंने उसके लिए कितनी मेहनत की है इसलिए वो मुझे अपना हितैषी समझती थी।
साथ उसने मुझे हर तरीके से देखा जाना समझा था, इसलिए वो मुझे पसंद भी करती थी।
उसका व्यवहार मेरे साथ कुछ ऐसा था जैसे किसी कालेज में पढ़ने वाले एक लड़के और लड़की के बीच दोस्ताना होता है, जहाँ सारी बातें खुल कर होती हैं। ना कोई छोटा, ना बड़ा, ना कोई औपचारिकता, ना लाज ना शर्म… बस उसी के साथ मस्ती करते हुए मैं अपने अंदर की बेचैनी को टालने का प्रयत्न कर रहा था।
लेकिन छोटी का कभी कभी अचानक ही गंभीर हो जाना या उदास हो जाना मुझे फिर चिंता में डाल देता था।
अब छोटी ठीक हो गई थी, इसलिए अब उसे चुदाई वाले इलाज की जरूरत नहीं थी, फिर भी मैं तनु और आंटी से कभी कभी सेक्स संबंध बना ही लेता था। आंटी और तनु दोनों ही चाहती थी कि इस बात का किसी को पता ना चले पर छोटी को लंबे समय से इस काम के समय और तरीके का अनुभव हो चुका था इसलिए वो भांप जाती थी।
फिर जब मुझसे अकेले में पूछती तब मैं उसे सही सही बता देता था और बात उसके और मेरे बीच ही रहती थी क्योंकि अब हम अच्छे दोस्त हो गये थे।
आप सब ये जानना चाह रहे होंगे कि मैं छोटी को चोदूंगा या नहीं, पर सच कहूँ तो इस सवाल का उत्तर मेरे पास भी नहीं है, वैसे मैंने आंटी से कह ही दिया है कि मैं छोटी के साथ ऐसा कुछ भी नहीं करुंगा, और छोटी के साथ मेरा निश्छल रिश्ता बन चुका है।
फिर भी कभी-कभी छोटी की सुंदरता मेरे मन को आकर्षित कर जाती है इसलिए उससे चुदाई का सवाल अभी भी भविष्य के गर्भ में है। अब छोटी खुद भी योग आसन कर लेती है, और अब उसके शरमाने की वजह से मैं उसके मालिश के दौरान उसके पास नहीं रहता।
ऐसे ही दिन चल रहे थे और प्रेरणा की कोई खबर नहीं आ रही थी इसलिए डर और कौतुहल बढ़ता ही जा रहा था। प्रेरणा के जाने से अब तक एक एक दिन मैंने उंगलियों में गिना था।
चार महीने और ग्यारह दिन में उसका कोई अता पता नहीं था और सभी रहस्यों से पर्दा अकेले प्रेरणा ही उठा सकती थी।
मेरे पुलिस वाले दोस्तों ने बड़े अफसरों से बात करके वहाँ छापा मारने का और बाबा को रंगे हाथों पकड़ने का आदेश निकलवा रखा था, वास्तव में वो सिर्फ हमारी मदद नहीं कर रहे थे, उन्हें खुद भी बाबा के काले कारनामे उजागर करने थे, और इस मिशन में हम लोगों ने कूद कर उल्टे उनकी ही मदद की थी।
चार महीने और बाईसवें दिन में एक घटना घटी, जब मैं अपनी बाईक से जा रहा था तब मेरे सामने वाली एक खड्डे में जोर से उछली और उस बाईक में पीछे बैठी महिला नीचे गिर गई, उसे हल्की चोट आई और उसने मेरी ओर आशा भरी निगाहों से देखा, और मदद के लिए इशारा भी किया लेकिन जब किसी महिला की मदद करने जाओ तो लोग गलत समझते हैं, इसलिए छोटी-मोटी बात पर मैं कभी महिलाओं की मदद करने नहीं जाता, हाँ अगर सच में उन्हें कोई बड़ी तकलीफ हो तब जरूर जाता हूं।
उस दिन मुझे लगा कि ज्यादा बड़ी बात नहीं है इसलिए मैं आगे बढ़ रहा था तभी मुझे ऐसे अहसास हुआ कि ये प्रेरणा जैसी है, हालांकि मुझे पता था कि वो प्रेरणा नहीं है, लेकिन उसकी पुकार और इशारे ने मुझे प्रेरणा का साक्षात अहसास करा दिया।
मैंने तुरंत रुक कर उस महिला की मदद की, और ईश्वर के इस इशारे को जानने का प्रयास किया तब मुझे टेलीपैथी वाली बात याद आ गई।
मैं समझ गया कि हो ना हो, प्रेरणा मुझसे बात करना चाहती है।
फिर मैंने जल्दी से पुलिस वालों को वहाँ जाने के लिए तैयरी करने को कह दिया, उन्होंने पूछा कि तुम्हें कोई संदेश मिला है क्या, तो मैंने यूं ही हाँ कह दिया। क्योंकि मेरी योजना के अनुसार प्रेरणा का संदेश आये ना आये मैं पांच महीने बाद बाबा के आश्रम में छापा मरवा ही देता।
और पांच महीने में अब सिर्फ आठ दिन रह गये थे, इसलिए मैंने सोचा कि प्रेरणा का कोई संदेश आये ना आये, हम कल आश्रम के लिए पुलिस टीम के साथ निकल जायेंगे।
मामला बड़ा था इसलिए तीन बसों में पुलिस फोर्स भर कर गाड़ी सुबह निकलने को तैयार हो गई। मैंने जो ट्रांसमीटर प्रेरणा के साथ भेजा था, उसकी जानकारी आने वाली मशीन अपने साथ रख ली और बस में उसे चालू करके ही बैठा रहा मानो प्रेरणा का संदेश आने वाला ही हो।
लगभग चार घंटे के सफर का हमने आधा तय कर लिया था, बेचैनी और बढ़ती रही, मैंने मशीन पर टकटकी जमा दी और ईश्वर से प्रार्थना करने लगा, और जब सिर्फ तीस मिनट का रास्ता बाकी था तभी प्रेरणा का एक संदेश आया.
तब मेरी खुशी का ठीकाना ना रहा लेकिन खुशी से ज्यादा डर था कि ‘क्या हुआ’ ‘क्या हो सकता है।’
मैंने तुरंत ही संदेश सुना उसमें प्रेरणा की नहीं, उस बाबा की आवाज थी और वो कह रहा था- तुमने बहुत चालाकी दिखाई थी बालक, पर तुम्हारी चालाकी से मेरा कुछ नहीं बिगड़ने वाला, तुम्हें मुझ तक पहुँचने में कम से कम एक दिन या चार पांच घंटे लगेंगे, उतनी देर में तो ये कुतिया सिर्फ चुदाई से मर जायेगी और इसकी लाश भी ठिकाने लग चुकी होगी। और तुझे तो बाद में देख लूंगा! पहले इस कुतिया से निपटना होगा।
इस संदेश ने मेरे होश उड़ा दिए, माजरा साफ था कि प्रेरणा उनके पकड़ में आ चुकी थी और उसकी जान खतरे में थी, ये संदेश पुलिस के आला अधिकारी भी सुन रहे थे, इसलिए उन्होंने गाड़ी तेज चलाने का आदेश दिया. बाबा को लगा हमें शहर से आने में देर लगेगी, लेकिन उसे क्या पता था कि हमारी टेलीपैथी की वजह से हम उसके करीब ही थे।
हमने तीस मिनट का रास्ता केवल बीस मिनट में तय कर लिया, और आश्रम में सभी दरवाजे जितना हम जानते थे, उन पर हथियारों से लेस फोर्स और पुलिस के जवानों ने धावा बोल दिया।
पुलिस का एक दस्ता मुझे अपने बीच सुरक्षित रखता हुआ आश्रम के अंदर घुसने लगा, प्रेरणा वहाँ लंबे समय से आ जाकर बहुत कुछ जान चुकी थी और उसने वो सारी बातें मुझे भी बता रखी थी,
मैंने उसी आधार पर आश्रम के गुप्त कक्षों तक पुलिस को पहुँचाया, वहाँ गोली बारी, लड़ाई सब कुछ फिल्मी ड्रामे की तरह हुआ फिर वह कमरा भी मिला जहाँ प्रेरणा लगभग बेहोश और नग्न पड़ी थी और उसे चार वहशी चोद रहे थे, और आस पास पंद्रह और लोग नग्न होकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे।
सबने मिलकर प्रेरणा को बचाया, कपड़े पहनाये, और मुंह में पानी छिड़का फिर पूछने पर प्रेरणा ने छिपाये हुए वीडियो कैमरा की जगह बताई, और बताया कि बाबा के हाथ सिर्फ ट्रांसमीटर ही लगा था।
तो उसे पुलिस ने कब्जे में ले लिया और बाबा ने भी अपनी गिरफ्तारी ये सोच कर आसानी से दे दी कि उनके अनुयायी हंगामा करके उन्हें बचा लेंगे।
तभी तनु छोटी और उसकी माँ भी वहाँ पहुँच गई क्योंकि मैंने ही उन्हें अपने पीछे दूसरी गाड़ी से बुला लिया था।
उस पाखंडी बाबा को देख कर छोटी की आंखों में शोले नजर आने लगे और आंखों से आंसू बह गये. छोटी बाबा के पास बढ़ने लगी, आंटी ने उसे रोकना चाहा तो मैंने ही कहा- उसे जाने दो.
फिर छोटी ने बाबा के पास जाकर उसकी धोती को खींच दिया, वो कमीना बाबा अंदर से नंगा था।
और फिर छोटी ने बाबा के दाईं जांघ के जख्म के निशान पर हाथ फेरा और कहा- कुछ याद आया कमीने?
बाबा ने कुछ नहीं कहा, सर झुका दिया, हम भी ये समझ गये थे कि उस जख्म का छोटी से जरूर कोई ताल्लुक है।
लेकिन सारे रहस्य अब प्रेरणा और छोटी मिल कर हमें बताने वाले थे जिसका हमें अब तक इंतजार था।
फिर मैंने पुलिस वालों को इशारा किया कि वो अपनी कार्यवाही करें।
और छोटी वहीं घुटनों पर बैठ कर फूट फूट कर रोने लगी.
मैंने कहा उसे रोने दो… आज उसके मन को हल्का लगेगा।
फिर हम भी पुलिस की सुरक्षा के साथ घर वापस आ गये। बाद में हाथ आये वीडियो और प्रेरणा, छोटी के साथ ही उनकी कुछ और साधवी ने बाबा की पोल पट्टी खोल दी, वे भी पीड़ित थी।
बाबा के ऊपर सबसे बड़ा आरोप यह लगा कि वो हथियारों का व्यवसाय करता था, उसके तार और कुछ बड़े लोगों से भी जुड़े थे, वो सभी भी चपेट में आ ही गये। और वो वहशी बाबा अक्षत यौवना लड़कियों को अपना शिकार बनाता था, और जब किसी अक्षत यौवना का शील भंग होता, तब उसके खून से वो यज्ञ करता था, जिससे उसके अनुसार उसकी आयु बढ़ती थी।
हालांकि ये सिर्फ एक विकृत मानसिकता मात्र थी पर उस दुष्ट को ये कौन समझाए।
बाबा के पकड़े जाने की खबर सुन कर कुछ और पीड़ितों ने भी साहस दिखाते हुए अपना बयान दर्ज करवाया और इस तरह बाबा अपने अनुयायियों के विरोध के बावजूद बच ना सका।
पर छोटी और प्रेरणा के साथ क्या क्या हुआ, यह जानना अभी बाकी था, जिसे हम अब घर जाकर पूछने जानने वाले थे।
बाबा के साधक और साधवियों में से बहुत लोग भाग खड़े हुए पर बहुत लोग बाबा के साथ हिरासत में ले लिए गये।
प्रेरणा ने यह भी बताया कि उनके सभी साधक और सभी साधवी दोषी भी नहीं हैं, कुछ लोग नये थे इसलिए वो बाबा के अंदरूनी काम नहीं जानते थे।
ऐसे लोगों को प्रेरणा के बयान पर छोड़ दिया गया।
छोटी की आंखों के सामने सबको सजा हुई थी, इसलिए छोटी अब पूरी तरह ठीक हो गई थी, और अभी प्रेरणा भी हमारे साथ ही रहती थी, क्योंकि सबका सब कुछ बिखर चुका था सबको संभलने में समय लगना था।
अब आश्रम के अंदर की बातों और छोटी से जुड़ी बातों को और विस्तार जानने आ वक्त आ गया था, और आप सबकी तरह ही मेरी भी कौतुहल बढ़ता ही जा रहा था।
कहानी जारी रहेगी.
मेरी कहानी पर आप अपनी राय निम्न ईमेल पर भेजें!
[email protected]
[email protected]