सम्भोग से आत्मदर्शन-10

This story is part of a series:


  • keyboard_arrow_left

    सम्भोग से आत्मदर्शन-9


  • keyboard_arrow_right

    सम्भोग से आत्मदर्शन-11

  • View all stories in series

अभी तक इस कहानी के पिछले भाग में आप ने पढ़ा कि मैं तनु की मम्मी से सेक्स के बारे में बात कर रहा था, सेक्स की अच्छाइयाँ, सेक्स के बारे में प्रचलित मिथ्या, अनर्गल बातें, नैतिकता, अनैतिकता आदि के बारे में!
आखिर में मैंने आंटी से कहा- आपनी जिन्दगी की कहानी मैं कल सुनूँगा। क्यों सुनाओगी ना?

उन्होंने एक कातिलाना मुस्कुराहट के साथ अपने होंठों में जीभ को दबाया और ‘न’ में सिर हिलाया, आप सब तो जानते होंगे ऐसे ‘न’ का मतलब हाँ होता है।
पर आंटी इस उम्र में ऐसी कामुक अदा दिखायेंगी, मैंने सोचा नहीं था।

दूसरे दिन मैं छोटी के मालिश के वक्त पहुँचा तब मैंने आंटी से उसकी कहानी के बारे में फिर से बात की तो उन्होंने दोपहर के वक्त मुझे आने को कहा. मेरे पास हाँ कहने के अलावा कोई चारा नहीं था। मैं आंटी के पास दोपहर को पहुँचा और वो कुछ कहने से पहले ही शर्माने लगी थी।
तो मैंने साफ कह दिया- चलो आंटी, एक बार आप की चुदाई कर दूँ, हो सकता है तब आप मुझे खुल कर अपनी कहानी बता पायें!
उन्होंने ‘धत्त पागल…’ कहते हुए मुझे प्यार से एक चांटा मारा और कहा- उसकी कोई जरूरत नहीं है, तुम ऐसे ही सुनो।

आंटी ने मुझे उतना खुलकर नहीं बताया था जितना खुलकर मैं आप लोगों को बता रहा हूँ। इसलिए बहुत ज्यादा सोचने के बजाय आप सब कहानी का आनन्द लें।

आंटी ने बताना शुरू किया:

मेरी शादी बहुत कम उम्र में हो गई थी। पहले कम उम्र में ही शादी कर दी जाती थी, और गाँवों या पिछड़े इलाकों में तो आज भी कम उम्र में शादी कर दी जाती है, जो कि कानूनन अपराध भी है।
कम उम्र में शादी की वजह से मैंने अपनी शादी के शुरुआती दिनों में बहुत सी तकलीफें उठाई, शादी के पहले मैं जवानी के खेल से बिल्कुल अनजान थी, पर धीरे धीरे उम्र की खुमारी बढ़ती गई और पति के साथ भरपूर सेक्स खुशियाँ पाने के बावजूद मेरा मन जवान अच्छे या तगड़े पुरुषों के लिए भटक ही जाता था.

हालांकि उस वक्त घरेलू परिस्थितियों की वजह से मैंने खुद को भटकने से बचा लिया।
लेकिन जब इतने सालों बाद मैंने कविता (तनु) की हरकतों के बारे में जाना तो खुद को बहुत कोसा क्योंकि शायद मेरी ही आदतें तनु के अंदर भी आई थी। और सेक्स के प्रति छोटी का इतना डरना भी शायद मेरी ही वजह से है, वैसे तो छोटी के साथ दुष्कर्म जैसी घिनौनी घटना घटी है जिससे उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया।

पर जब वो गर्भ में थी तब भी उसने यह झटका सहा है, नहीं तो क्या पता आज वो खुद को संभाल पाती और इस सदमे से उबर सकती थी। वैसे अगर हमें उस दुष्कर्म के बारे में शुरू से कुछ पता चलता या छोटी कुछ बता पाती तो हम पुलिस केस भी कर सकते थे, पर हमें बहुत देर से पता चला और वो भी महज शंका ही थी।
खैर छोड़ो इन बातों को..!

फिर कुछ और समय बीता और बात उन दिनों की है… जब छोटी मेरी कोख में थी। मुझे गर्भ ठहरे एक ही महीने हुए थे कि मैंने जिद पकड़ ली, अगर अभी मायके नहीं जाऊंगी तो डिलवरी तक या उसके बाद भी मैं मायके में जाकर नहीं रह पाऊंगी क्योंकि ऐसे समय में सफर करना मना रहता है और मेरे ससुराल वाले भी नहीं भेजते, कविता की पैदाईश के समय कम उम्र और कमजोरी की वजह से मुझे बहुत तकलीफ हुई थी इसलिए मुझे पता था बाद में मायके जाना संभव नहीं होगा।

मेरे पति और ससुराल वाले मान गये, मैं एक महीने के लिए अपने मायके चली गई। वो मार्च का महीना था होली का त्योहार आने वाला था, सभी जगहों पर होली की तैयारियाँ शुरू हो चुकी थी, मैं नीले रंग की साड़ी पहने अपने मायके के छत से पूरे गाँव का मुआयना करने लगी कि तभी मुझे नीचे गली में सायकल पर सवार मेरी पुरानी सहेली कुंती नजर आई, मैंने उसे हाथ हिला कर अपनी उपस्थिति बतानी चाही पर उसने नहीं देखा और उसी रास्ते से बाइक पर आ रहे दो लड़कों ने मुझे देखा, दोनों ने मुझे खा जाने वाले नजर से देखा, एक दिखने में ठीक ठाक था लेकिन एक हट्टा कट्टा और काला कलूटा सा था।
मैंने मुंह फेर लिया और नीचे उतर आई।

दो दिन बाद मैं बाजार से ऑटो में बैठ कर आ रही थी, तभी मुझे मेरी सहेली कुंती फिर सायकल पे तेजी से जाती नजर आई, मैंने आवाज लगाने कि कोशिश कि पर वो सुन नहीं पाई, मैंने ऑटो वाले को उसके पीछे चलने को कह दिया, वो बहुत तेज सायकल चला रही थी और रास्ता संकरा था तो ऑटो धीमी ही चल पा रही थी, इसलिए वो सायकल में होकर भी ऑटो से आगे ही रही।
और चार पाँच गलियों पर मुड़ने के बाद एक बड़े से मकान के पोर्च में अपनी सायकल टिका के दरवाजे पर गई शायद दरवाजा खुला था तो वह तुरन्त ही अंदर चली गई। हम भी उनके पीछे ही वहाँ पहुंचे पर तब तक वो अंदर जा चुकी थी।

आप सब तो जानते हैं आजकल बहुत कम समय में रास्ते मकान और मोहल्ले इतने बनते उजड़ते हैं कि कुछ ही दिनों में पहचानना मुश्किल हो जाता है। मुझे भी ये मोहल्ला नया बसा हुआ सा लग रहा था, मैंने ऑटो वाले को पूछा तो उसने कहा कि हाँ मैडम कुछ मकान पहले भी थे पर रास्ते और सरकारी निर्माण की वजह से ज्यादा बदल गया है।

फिर मैंने ऑटो वाले को मुझे वहीं उतारने को कहा, तो उसने मेरा चेहरा गौर से देखा और कहा- आप यहाँ उतरोगी?
मैंने कहा- हाँ मुझे यहीं उतरना है, तुम्हें कोई दिक्कत है क्या?
उस ने मुस्कुराते हुए कहा- भला मुझे क्या दिक्कत हो सकती है।
और वो वापस जाने लगा.
मैंने नोटिस किया कि मेरे वहाँ उतरने की बात कहते ही उस का मुझे देखने का नजरिया बदल गया था।

खैर मैंने भी दरवाजे को खोल कर अंदर कदम रखा पर दूसरे का घर था इसलिए धीरे से झाँकते हुए अंदर जाना ठीक समझा, बाहर बैल लगी होती तो शायद मैं बेल बजा कर ही अंदर जाती, अंदर मैं जहाँ पहुंची वो शायद उस बड़े से मकान का हाल ही था। क्योंकि उस से लगे छोटे बड़े चार-पाँच कमरे थे।
मुझे दायीं ओर से कुछ आवाज आई और मेरे पाँव उस दिशा में बढ़ चले, आवाजें सामान्य से हट कर थी इसलिए मैंने खामोशी से कदम बढ़ाया कमरों के दरवाजे खिड़कियाँ हाल में खुलते थे इसलिए टिके हुए थे उन की कुंडी बंद नहीं थी।
मैंने आवाज आ रहे कमरे की खिड़की से झांका तो मेरे पैरों तले जमीन ही खिसक गई… वहाँ तीन मर्द और एक लड़की थी तीन मर्द कौन थे मैं नहीं जानती पर वो लड़की मेरी सहेली कुंती थी, और वो एक काले भद्दे आदमी की जांघ पर बैठी थी। मुझे मामला समझते देर ना लगी इसलिए मैंने चुप रहकर सब कुछ देखना ही सही समझा।

एक बार तो मैंने वापस भी लौटना चाहा, पर ऐसे दृश्यों को आप ना चाह कर भी देखना चाहते हैं और फिर यहाँ मुझे कोई देख भी नहीं पा रहा था और होली के माहौल में नगाड़े की आवाज भी आ रही थी शायद इस लिए भी किसी को मेरी मौजूदगी का पता नहीं चला और इन्हीं मौकों को सोच कर मैंने लाईव सेक्स देखने की सोची।

कमरा दस बाई दस का रहा होगा, नीचे सिर्फ एक चटाई और पतला सा गद्दा लगा था, कमरा देख के लग रहा था कि यहाँ कोई पढ़ने लिखने या अकेले रहने वाला आदमी ही किराए पे रहता होगा। और उन मर्द में दो वही थे जिसे उस दिन मैंने गाड़ी में अपने घर के छत से देखा था और एक और भी था जो कम उम्र का लगभग 25-26 वर्ष का लड़का नजर आ रहा था, उस की हाईट हेल्थ भी कम ही थी, पर दिखने में ठीक ठाक ही लग रहा था।
उन में से एक काले आदमी ने दूसरे काले आदमी से कुंती के बूब्स मसलते हुए कहा- अबे कौशल, देख इस लौंडे ने क्या मस्त माल पटाया था, साला अगर हमने रमेश और इस कुंती रांड की चुत चुदाई का वीडियो बना के ब्लैकमैल नहीं किया होता तो ये हमारे हाथ कभी नहीं आती, और देख अब ये रमेश और कुंती भी हमारे साथ सेक्स में शामिल हो कर कैसे मजा लेते हैं।
क्यों बे रमेश… क्यों रे कुतिया कुंती.. उस कम कद काठी के लड़के रमेश और मेरी सहेली ने कहा- हाँ जी राणा जी, पहले तो हमें डर और गलत लगता था पर अब हमें भी अच्छा लगता है।

मैं तो उन की बातें सुन कर ही डर गई क्या मेरी सहेली इन तीन लोगों से एक साथ चुदवाती है? और मामले के साथ मैं उन सब का नाम भी जान गई थी। बस अब तो ये सब सुन कर और सोच कर मेरी चूत भी कुलबुलाने लगी थी।

तभी कुंती ने कहा.. पर राणा जी मुझे… उस के इतना ही कहने पर राणा ने उसे चुप कराते हुए कहा… इइइइस्स्स्स देखो कुंती किसी लड़की के लिए क्या चीजें जरूरी हैं मैं जानता हूँ। तुम्हें शादी के लिए ये तुम्हारा बायफ्रेंड तो मिल ही गया है इसकी पढ़ाई के बाद तुम्हारी शादी का खर्चा मैं उठा के तुम लोगों की शादी करवा दूँगा, और अब ये तो सब जानता ही है इसलिए तुम्हें बदनामी जैसा भी कुछ डर नहीं रहेगा, और मेरी इस कोठी में किसी का आना जाना भी तो नहीं होता, यहाँ सिर्फ ये लड़का रमेश और पढ़ने वाले दो और लड़के ही तो रहते हैं, ऐसे भी जब हमारा यहाँ मिलना होता है उन्हें भी भगा देते हैं। तुम्हें अब किस बात का डर है?
और फिर जब से तुम्हारे पिता गुजरे हैं, तुम्हारी बीमार माँ का और तुम्हारे छोटे भाई का खर्च भी तो मैंने ही उठाया है ना, नहीं तो पेंशन के सहारे घर और पढ़ाई का खर्च अच्छे से नहीं चल पाता। अब तुम हमें खुश करती रहो, और अगर मगर को डाल दो अपनी गांड में।
कुंती ने भी गहरी सांस लेते हुए अपनी कुरती एक झटके में उतार फेंकी जैसे वो कह रही हो कि लो ठीक है जैसा तुम चाहो।

उस राणा को मैं पहले से जानती थी वो हमारे गाँव के जमींदार का बिगड़ैल लड़का था, आते जाते किसी को भी छेड़ना उसके लिए आम बात थी पहले तो वो ठीक ही दिखता था पर अब उसका शरीर और भद्दा हो गया था।
शायद वो ये सब लंबे समय से कर रहे थे तभी तो कुंती के तने हुए चौंतीस साइज के गोरे उरोजों को नीले ब्रा में फडफड़ाते देख कर भी वो टूट नहीं पड़े, बल्कि आराम से बैठे रहे ताकि कुंती ही आके उनके कपड़े निकाले बस रमेश ही अपने कपड़े खुद निकालने लगा।
लेकिन कुंती का दमकता शरीर चिकनी कमर और कमाल सुडौल कंधे और स्तन ने उनके लंडों में तनाव ला दिया था तभी तो वो कपड़ों के ऊपर से ही अपने लंड सहलाने और एडजस्ट करने लगे थे।

नगाड़े की आवाज में उनकी आवाज बहुत स्पष्ट नहीं आ रही थी, पर मेरी मौजूदगी छुपी रहे इसके लिए नगाड़े की तेज आवाज का आते रहना जरूरी भी था। शायद उन लोगों ने पहले से शराब पी रखी थी, पर कोई भी आपे से बाहर नहीं था।

अब कुंती सफेद सलवार और आकर्षक नीली ब्रा में अपने उन्नत उरोजों के बीच की घाटी को दिखाती हुई कौशल के पास चली गई और उस के गालों का चुम्बन करते हुए उस के शर्ट की बटन खोलने लगी।
कौशल का काला चिकना भारी बदन शर्ट के खुलते ही दिखने लगा, उस ने बनियान नहीं पहनी थी, वो बहुत काला था शरीर पर बाल नहीं थे इसलिए तेल लगाये जैसी चमक थी, बारह पंद्रह साल की लड़कियों से बड़े तो उस के खुद के स्तन दिख रहे थे। कुंती की आँखों में अब तक शर्म के दर्शन एक बार भी नहीं हुए थे, और मुझे देखो खिड़की के बाहर से भी ये नजारा देख कर शरमा रही थी और मेरी योनि में पानी आने लगा था, मेरी कामुकता जागृत होने लगी थी।

कहानी जारी रहेगी.
आप अपनी रायमुझे मेरी ई मेल पर भेज सकते हैं।
[email protected]
[email protected]

More Sexy Stories  मैने कैसे आंटी को चोदा