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फ्री हिंदी सेक्स स्टोरी: रिश्तों में चुदाई स्टोरी-8
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क्सक्सक्स स्टोरी: रिश्तों में चुदाई स्टोरी-10
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इस फ्री हिंदी सेक्स स्टोरी में अपने पढ़ा कि ससुर बहू की चुदाई का दोनों ने ही मजा लिया. जब बहू बाथरूम में अपनी चुदी हुई चूत धोने गयी तो ससुर भी पीछे पीछे पहुँच गया और …
परिवार में सेक्स की स्टोरी के पिछले में आपने पढ़ा कि महेश ने अपनी बहू की चूत बाथरूम में ले जाकर फिर से गर्म कर दिया और उसे अपना लंड भी चुसवा दिया. फिर वो उसको दोबारा से बेड पर ले आया और उसे चोद कर उसकी चूत को फिर से खोल दिया.
फिर उसके जाने के बाद जब समीर कमरे में आया तो अपनी नंगी पत्नी की खुली हुई चूत को देख कर वो हैरान रह गया और अपने पिता के मोटे लंड के बारे में सोचने लगा.
अगले दिन जब नीलम नहा कर बाहर आई तो उसका ससुर बेड पर बैठा हुआ था. नीलम ने कहा कि आज उसकी चूत दुख रही है तो महेश ने कहा कि वो उसका दर्द ठीक कर देगा.
आगे परिवार में सेक्स की स्टोरी में पढ़ें:
“ओह्ह्ह्ह … अब समझा बेटी मेरा लंड बहुत लम्बा और मोटा है इसीलिए पहली बार लेने में तुम्हें तकलीफ हो रही होगी मगर जैसे ही तुम अगली बार मेरा यह लंड अपनी चूत में ले लोगी तुम्हारा दर्द ख़त्म हो जाएगा क्योंकि फिर तुम्हारी चूत में यह अपनी जगह बना लेगा.”
“ठीक है पिता जी अब आप जाइये.” नीलम ने शर्म से अपना सिर वैसे ही नीचे किये हुए कहा।
“बेटी एक किस तो दे दो न … फिर चला जाऊँगा.” महेश ने अपनी बहू के क़रीब जाते हुए कहा।
“पिता जी आप भी … अच्छा यह लो.” नीलम ने अपने ससुर के गाल पर एक किस देते हुए कहा।
“बेटी यह क्या … अब तुम्हें किस करना भी सिखाना पड़ेगा क्या?” महेश ने अपनी बहू की तरफ देखा.
“पिता जी जाइये न प्लीज!” नीलम ने अपने ससुर को वहां से जाने के लिए मिन्नत की.
“चला जाऊँगा, मगर एक बार तुम्हारे इन मीठे गुलाबी लबों का ज़ायक़ा चख लूं!” महेश ने अपनी बहू की तरफ देखते हुए कहा और नीलम को अपने क़रीब करते हुए उसके होंठों पर अपने होंठों को रख दिया, महेश जितनी देर तक अपनी साँसों को थाम सकता था उतनी देर तक वह अपनी बहू के होंठों का रस चखता रहा।
महेश ने जैसे ही अपनी बहू के होंठों से अपने होंठों को अलग किया नीलम उससे दूर होकर ज़ोर से हाँफने लगी। महेश भी अपनी बहू को देखते हुए हांफ रहा था।
“पिता जी, अब जाइये न … आपने तो मेरी जान ही निकाल दी.” नीलम ने कुछ देर हाँफने के बाद अपने ससुर की तरफ गुस्से से देखा.
महेश अपनी बहू की बात सुनकर कमरे से निकल गया। महेश के जाते ही नीलम ने अपने कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया और बेड पर जाकर लेट गयी।
महेश अपनी बहू के कमरे से निकलकर अपने कमरे में जाने लगा कि अचानक उसके दिमाग में न जाने क्या ख्याल आया और वह अपनी बेटी के कमरे की तरफ मुड़ गया।
महेश ने अपनी बेटी के कमरे के पास आकर जैसे ही दरवाज़े को धक्का दिया तो वह अपने आप खुल गया. महेश ने अंदर दाखिल होकर दरवाज़े को वापस बंद कर दिया, महेश ने देखा कि अंदर कोई भी नहीं है, तभी उसे बाथरूम से पानी गिरने की आवाज़ आई जिसे सुनकर वह समझ गया कि उसकी बेटी नहा रही है।
वो अपनी बेटी के बेड पर जाकर बैठ गया। बेड पर बैठते ही उसे एक और झटका लगा क्योंकि उसकी बेटी के कपड़े वहां पर पड़े हुए थे। महेश को यह समझने में ज़रा भी देर नहीं लगी कि उसकी बेटी अंदर से या तो बिल्कुल नंगी या सिर्फ टॉवल में निकलकर अपने कपड़े पहनती है इसीलिए तो उसके सारे कपड़े बेड पर पड़े थे.
महेश का लंड अपनी बेटी के जिस्म को सिर्फ टॉवल में देखने के बारे में सोचकर ही ज़ोर के झटके खाने लगा।
उसने बेड पर पड़ी हुयी अपनी बेटी की पेंटी को उठाया और उसे अपने नाक के पास ले जाकर सूँघने लगा। पेंटी धुली हुई थी इसीलिए महेश को उसमें से कोई भी गंध महसूस नहीं हुई।
महेश ने एक बार अपनी बेटी की पेंटी को चूमा और अपनी धोती को आगे से खोलकर उसे अपने पूरे लंड पर जगह जगह रखकर महसूस करने लगा, महेश यह सोचकर अपनी बेटी की पेंटी को अपने लंड पर महसूस कर रहा था कि थोड़ी देर बाद उसके लंड से लगी हुई पेंटी उसकी बेटी की चूत में फँसी हुई होगी।
अचानक बाथरूम से पानी गिरने की आवाज़ बंद हो गई तो महेश समझ गया कि उसकी बेटी नहा चुकी है इसीलिए उसने अपनी बेटी की पेंटी को उसी जगह रखा और खुद वहां से उठ कर सोफ़े पर जाकर बैठ गया। महेश बेड से इसलिए उठा था कि उसकी बेटी जैसे ही बाथरूम से निकले उसे पता न लगे कि वह यहाँ पर है. सोफा थोड़ा साइड में था। इसीलिए महेश को वहां पर बैठने में कोई झिझक नहीं हुई.
ज्योति नहाने के बाद तौलिया लपेटकर अपने कमरे में आती थी और कमरे में आकर वह उसी तौलिये को अपने जिस्म से हटाकर अपने जिस्म को पौंछती थी और अपने कपड़ों को पहन लेती थी।
हर रोज़ की तरह आज भी ज्योति ने अपने जिस्म पर टॉवल लपेटा और बाथरूम से निकल आई।
ज्योति बाथरूम से निकल कर अपने बेड की तरफ बढ़ने लगी। उसे यह पता नहीं था कि उसका पिता सोफ़े पर बैठा हुआ है, महेश जो चुपचाप सोफ़े पर बैठा हुआ था, उसका लंड अपनी बेटी के टॉवल में लिपटे हुए आधे नंगे जिस्म को देख कर ज़ोर के झटके खाने लगा और महेश का गला भी अपनी बेटी की जवानी को देख कर ख़ुश्क होने लगा जिसे वह अपनी थूक से गीला करने की कोशिश करने लगा।
बेड के पास आकर हर रोज़ की तरह ज्योति अपने तौलिये को अपने जिस्म से अलग करते हुए अपनी टांगों को एक एक करके बेड पर रखते हुए पौंछने लगी। तौलिया हटते ही अपनी बेटी के नंगे चिकने पेट और उसकी गोरी सी गांड को देख कर महेश की तबियत बिगड़ने लगी. महेश का मन हो रहा था कि अभी जाकर अपने लंड को अपनी बेटी की गांड में घुसेड़ दे. मगर वह ऐसा नहीं कर सकता था।
महेश मन ही मन में दुआ कर रहा था कि उसकी बेटी एक दफ़ा सीधी हो जाये ताकि उसे अपनी बेटी की असल जन्नत का दीदार हो सके। महेश सोच रहा था कि जब उसकी बेटी की गांड ही इतनी प्यारी है तो उसकी चूत और चूचियों का क्या आलम होगा और यही सोच कर उसका हाथ अपने आप उसकी धोती के अंदर अपने लंड तक पहुंच गया था.
ज्योति ने अपनी टांगों को पौंछने के बाद थोड़ी देर तक अपने बालों को पौंछा और फिर तौलिया बेड की तरफ फ़ेंक दिया। ज्योति ने तौलिया फेंकने के बाद अपनी पेंटी को उठाया और सीधी होकर उसे पहनने लगी।
महेश का पूरा जिस्म ज्योति के सीधे होते ही मज़े से कांप उठा। अपनी बेटी की गुलाबी चूत जिस पर एक भी बाल नहीं था, उसे देख कर महेश के मुंह का पानी सूखने लगा. शायद वह अभी अपनी चूत के बाल साफ़ करके आई थी.
महेश के लंड ने 3-4 बार ज़ोर के झटके दिए जिस वजह से उस में से प्रीकम की एक दो बूँद निकल गई. महेश अपनी बेटी के पूरे जिस्म को बड़े गौर से देख कर अपने लंड को सहला रहा था।
ज्योति झुक कर अपनी पेंटी को पहन रही थी जिस वजह से उसकी निगाह अपने पिता की तरफ नहीं गयी।
वह पेंटी पहनने के बाद फिर से अपनी ब्रा को उठाने के लिए उलटी हो गई। महेश ने सीधा होते हुए अपनी बेटी की गोल गोल चूचियों को भी अपनी आँखों में क़ैद कर लिया। ज्योति की चूचियों के दाने भी उसकी बहू की चूचियों की तरह गुलाबी थे.
ज्योति ब्रा उठाने के बाद जैसे ही सीधी होकर उसे पहनने लगी उसकी नज़र अपने पिता पर गयी, जो अपने हाथ को अपनी धोती में डाले हुए था. अपने पिता को देखकर शर्म और डर के मारे ज्योति के मुँह से एक चीख़ निकल गयी।
ज्योति ने जल्दी से अपनी साड़ी उठा कर अपने जिस्म को आगे से ढक दिया।
“अरे क्या हुआ बेटी तुम तो ऐसे डर गयी जैसे अपने सामने कोई साँप देख लिया हो?” महेश ने सोफ़े से उठकर अपनी बेटी के सामने खड़े होकर मुस्कराते हुए कहा।
“पिता जी, आपको शर्म आनी चाहिये!” ज्योति ने गुस्से से सिर्फ इतना कहा।
“वाह बेटी मुझे शर्म आनी चाहिए और तुम जो हर रात को अपने भाई का बिस्तर गर्म करती हो?” महेश ने अपनी बेटी के सामने ही अपना हाथ अपनी धोती के अंदर डालते हुए कहा।
“पिता जी प्लीज… आप यहाँ से चले जाइये.” ज्योति ने शर्म और गुस्से से अपना कन्धा नीचे करते हुए कहा.
ज्योति की आँखों से आंसू निकल आये थे।
“अरे बेटी, यह वक्त आंसू बहाने का नहीं बल्कि मज़े लेने का है. जब तुम अपने भाई के साथ सब कुछ कर चुकी हो तो अपने इस पिता पर भी थोड़ी दया कर दो. वैसे भी मेरा लौड़ा तुम्हारे भाई से बड़ा और तगड़ा है. तुम्हें इससे वह मजा आएगा कि तुम ज़िंदगी भर इसे अपनी चूत में लेने के लिए मिन्नतें करती रहोगी.” महेश ने अपनी धोती से अपने खड़े लंड को निकालकर ज्योति की आँखों के सामने करते हुए कहा।
“पिताजी जाइये, मैं आपके साथ कुछ नहीं कर सकती.” ज्योति की साँसें अपने पिता के लंड को देखते ही ज़ोर से चलने लगी और उसने अपनी नज़रों को वहां से हटाये बिना कहा।
“तुम कुछ मत करो, मगर एक बार इसे अपने हाथों में तो लेकर देखो.” महेश अपनी बेटी को इस तरह से अपने लंड की तरफ घूरता हुआ देख कर समझ गया कि चिड़िया दाना चुगने के लिए तैयार है इसीलिए उसने अपने लंड को अपने हाथ से ऊपर नीचे करते हुए अपनी बेटी से कहा।
“नहीं पिता जी, मुझे शर्म आती है.” ज्योति ने अपने पिता के लंड को गौर से घूरते हुए कहा उसका दिल अपने पिता के इतने बड़े लंड को नज़दीक से देख कर बहुत ज़ोर से धड़क रहा था और उसका पूरा जिस्म भी गर्म हो गया था।
महेश ने अपनी बेटी के एक हाथ को पकड़ कर अपने लंड के ऊपर रख दिया।
“आआह्ह पिता जी … यह क्या किया आपने?” ज्योति ने अपने हाथ को अपने पिता के गर्म और सख्त लंड पर पड़ते ही ज़ोर से सिसकारी भरते हुए कहा। ज्योति का पूरा जिस्म अपने हाथ को अपने बाप के लंड पर पड़ते ही सिहर उठा और उसके पूरे जिस्म को जैसे चींटियाँ काटने लगीं, ज्योति की साँसें बहुत ज़ोर से ऊपर नीचे हो रही थीं और उसे अपना हाथ वहां रखे हुए अजीब किस्म का मज़ा आ रहा था।
“क्या हुआ बेटी … तुम्हें अच्छा नहीं लगा क्या?” महेश ने अपने हाथ से अपनी बेटी के हाथ को अपने लंड पर आगे पीछे करते हुए कहा।
“ओहहहहह पिता जी छोड़िये ना!” ज्योति अपने हाथ को अपने पिता के पूरे लंड पर आगे पीछे होने के कारण मजा लेते हुए बोली.
उसे इतना मजा आ रहा था कि उसकी चूत से पानी बहना शुरू हो गया था मगर वह सिर्फ अपने पिता को दिखाने के लिए मना कर रही थी जबकि उसको अपने पिता के लंड को हाथ में लेने के बाद मजा आ रहा था.
“बेटी छोड़ दूंगा, मगर पहले थोड़ी देर तुम इसे महसूस तो कर लो.” महेश ने अपनी बेटी के हाथ को वैसे ही अपने लंड पर आगे पीछे करते हुए कहा।
थोड़ी देर में ही ज्योति खुद अपने हाथ को अपने पिता के लंड पर आगे पीछे करने लगी जिससे उसका पूरा जिस्म तप कर आग बन चुका था.
महेश ने मौका देखकर अपना हाथ अपनी बेटी के हाथ से हटा दिया और ज्योति के एक हाथ से पकड़ी हुई उसकी साड़ी को जो उसने अपने सीने के आगे रखी हुई थी अपने हाथ से खींचकर छीन लिया।
महेश ने साड़ी को बेड पर फ़ेंक दिया।
“पिता जी?” ज्योति अपने सीने के आगे से अपनी साड़ी के दूर होते ही होश में आते हुए अपने दोनों हाथों से अपनी चूचियों को ढकने लगी।
“बेटी इतना शर्माओ मत, अपने भाई का लंड भी तो आराम से ले लेती हो. वैसे मैं कुछ नहीं करूँगा … बस जब तक तुम मेरे लंड को महसूस करती हो तब तक मैं अपनी प्यारी बेटी की चूचियों को गौर से देखना चाहता हूं.” महेश ने अपने बेटी को कमर से पकड़ते हुए बेड पर बिठाते हुए कहा और खुद भी अपनी धोती को उतारकर उसके साथ बैठ गया।
“नहीं पिता जी, मुझे शर्म आती है.” ज्योति ने शर्म से वैसे ही अपनी चूचियों को अपने हाथों से ढके हुए कहा।
“बेटी शरमाओ मत, मैंने कहा न … मैं आगे कुछ नहीं करूंगा.” महेश ने अपनी बेटी के एक हाथ को ज़बरदस्ती खींच कर अपने लंड पर रखते हुए कहा।
ज्योति का पूरा जिस्म फिर से अपने पिता के गर्म लंड को छूने से कांप उठा और उसका हाथ अपने आप महेश के लंड पर आगे पीछे होने लगा।
“बेटी कितनी प्यारी चूचियां हैं तुम्हारी!” महेश ने अपनी बेटी के दूसरे हाथ को भी अपने हाथ से पकड़कर उसकी चूचियों से हटा दिया और उसकी दोनों गोरी गोरी चूचियों को देखकर उसकी तारीफ करते हुए कहा।
महेश ने अचानक अपने एक हाथ से अपनी बेटी की एक चूची को पकड़ कर अपनी मुट्ठी में भर लिया और उसे धीरे धीरे दबाने लगा।
“आह्ह्ह्ह पिता जी … वहां से अपना हाथ हटाइये ना!” ज्योति ने ज़ोर से सिसकते हुए कहा।
अपने पिता के हाथ को अपनी चूची पर महसूस करते ही उसकी हालत खराब होने लगी थी. उसकी चूत से पानी निकल रहा था जिस वजह से वह ज़ोर से अपने पिता के लंड को आगे पीछे करने लगी।
महेश का लंड पूरी मस्ती में आकर झटके खा रहा था जिस वजह से वह ज्योति के एक हाथ में समा ही नहीं पा रहा था।
“बेटी, अपने दोनों हाथों से पकड़ कर हिलाओ इसे!” महेश ने अपनी बेटी को समझाते हुए कहा।
ज्योति अपने पिता की बात सुनकर अपने दोनों हाथों से उसके लंड को पकड़ कर आगे पीछे करने लगी, ज्योति का पूरा जिस्म पसीने से भीग चुका था और वह तेजी से साँसें ले रही थी।
महेश भी अब बारी-बारी अपनी बेटी की दोनों चूचियों को अपने हाथ से दबा रहा था. वह अपनी बेटी की चूचियों को दबाते हुए उसकी चूचियों के गुलाबी दानों को एक एक करके अपनी उँगलियों के बीच लेकर मसल भी रहा था जिस वजह से ज्योति के मुंह से ज़ोर की सिसकारियां निकल रही थी और वह ज्यादा गर्म हो रही थी।
महेश अब अपने एक हाथ को अपनी बेटी की चूची से हटा कर नीचे ले जाने लगा, वह अपने हाथ से अपनी बेटी के चिकने पेट को सहलाते हुए उसकी पेंटी तक पहुँच गया।
ज्योति के मुंह से ज़ोर की सिसकारी निकल गयी और उसके दोनों हाथ उसके पिता के लंड पर ज़ोर से कस गए। महेश अपनी बेटी की इस हरकत से समझ गया कि वह अब पूरी गर्म हो गई है इसलिए उसने अपने हाथ से अपनी बेटी की चूत को उसकी गीली पेंटी के ऊपर से ही मसलना शुरू कर दिया।
मज़े से ज्योति की आँखें बंद होने लगी थी. उसे अपने पूरे शरीर में बहुत ज्यादा उत्तेजना महसूस हो रही थी और वह अपने दोनों हाथों से अपने पिता के लंड को मज़बूती से पकड़े हुए आगे पीछे कर रही थी। महेश भी अपने हाथ को तेज़ी के साथ अपनी बेटी की चूत पर चला रहा था।
“उम्म्ह… अहह… हय… याह… पिता जी ओह्ह ह्ह्ह” अचानक ज्योति का पूरा जिस्म अकड़ने लगा और उसकी चूत ज़ोर के झटके खाते हुए झड़ने लगी। झड़ते हुए ज्योति के मुंह से ज़ोर की सिसकारियां निकलने लगीं।
ज्योति का हाथ झड़ते हुए महेश के लंड पर इतना कसकर आगे पीछे होने लगा कि वह भी अपने आप को रोक नहीं पाया।
महेश के मुँह से भी ज़ोर जोर से सीत्कार फूट निकले और उसके लंड से वीर्य की बारिश होने लगी। महेश के लंड से वीर्य की बूँदें निकल कर ज्योति के जिस्म और उसकी जांघों पर गिरने लगीं, ज्योति जब तक खुद झड़ती रही, तब तक वह अपने पिता के लंड को ज़ोर से पकड़ कर निचोड़ती रही।
ज्योति ने जैसे ही पूरी तरह झड़ने के बाद अपनी आँखें खोली शर्म के मारे उसने अपने हाथ को अपने पिता के लंड से हटा लिया और वह खुद के कपड़े लेकर बाथरूम में भाग गयी।
महेश भी झड़ने के बाद थक गया था. वह अपनी बेटी के आने का इंतज़ार करने लगा, थोड़ी ही देर में ज्योति कपड़े पहन कर बाहर निकली मगर वह बेड की तरफ आने की बजाय सोफ़े पर जाकर बैठ गयी।
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