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रिटायरमेंट के बाद सेक्स भरी मस्ती-1
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रिटायरमेंट के बाद सेक्स भरी मस्ती-3
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इतवार का दिन था, ममता आज की छुट्टी ले चुकी थी, इसलिये मैंने खुद ही ब्रेड ऑमलेट बनाकर नाश्ता किया और चाय का मग लेकर ड्राइंग रूम में आ गया. हाथ में चाय का कप पकड़े मैं न्यूज पेपर पढ़ रहा था कि शैली आ गई.
लाल रंग का टॉप और प्रिन्टेड स्कर्ट में गजब ढा रही थी. किताब के बीच में ऊंगली फंसाकर ऐसे आई थी कि जैसे कुछ पढ़ रही थी और समझ न आने पर पूछने आई थी.
यही बात सच निकली, उसने आते ही किताब खोली और पूछने लगी. मैंने उसके हाथ से किताब पकड़ी और उससे दरवाजा बंद करने को कहा. वो दरवाजा बंद करके आई तो मैंने उसकी पैन्टी उतार दी और अपनी लुंगी सामने से हटाकर उसकी स्कर्ट ऊपर उठाकर उसको अपनी गोद में बिठा लिया.
शैली ने मेरा लण्ड पकड़कर अपनी बुर के लबों पर रखा और उस पर बैठकर फुदकने लगी. जैसे जैसे शैली फुदक रही थी, लण्ड उसकी बुर के अन्दर होता जा रहा था.
इस बीच रेखा आ गई, उसने दरवाजा बंद देखकर आवाज लगाई लेकिन हम लोग अपनी मस्ती में डूबे हुए थे कि ध्यान ही नहीं दिया.
जब दरवाजा नहीं खुला तो रेखा पीछे के आंगन वाले दरवाजे की ओर बढ़ी, रास्ते में ड्राइंग रूम की खिड़की पड़ती थी जो इत्तेफाक से खुली हुई थी. रेखा वहां से गुजरी तो उसकी नजर ड्राइंग रूम में पड़ी जहां उसने देखा कि शैली स्कर्ट उठाकर दादू की गोद में बैठी है और दादू का लण्ड अपनी बुर में लेकर उचक रही है.
जैसे ही उसने यह देखा तो पीछे हट गई.
लेकिन मैं जान चुका था कि उसने देख लिया है. मैंने शैली को गोद में उठा लिया और बेडरूम की ओर चल पड़ा. लण्ड बुर के अन्दर ही था. बेडरूम में जाकर मैंने कॉण्डोम चढ़ाया और धकाधक पेल कर जल्दी से डिस्चार्ज किया और शैली को बिना यह बात बताये पढ़ाया और उसके घर भेज दिया.
अगले दो दिन तक न शैली और न मैंने उसको बुलाया.
इस घटना के तीसरे दिन जब शैली कॉलेज गई तो रेखा आई और बोली- चाचा जी, आपसे कुछ बात करनी है.
मुझे काटो तो खून नहीं लेकिन मरता क्या न करता. मैंने कहा- बैठो, बताओ क्या बात करनी है?
रेखा ने कहा- चाचा जी, चाची को मरे काफी टाइम हो गया और इनको मरे हुए भी छह साल हो गये. आदमी हो या औरत शारीरिक जरूरतें दोनों की होती हैं. अगर आदमी का लण्ड फड़फड़ाता है तो औरत की चूत भी कुलबुलाती है. आप को देखकर मेरे मन में भी आया था कि हम दोनों एक दूसरे की जरूरतें पूरी कर सकते हैं लेकिन मैं दो बातें सोचकर रह गई. पहली कि आपका और मेरा रिश्ता ससुर बहू का है और दूसरी यह कि 60-62 साल की उम्र में आपके शरीर में वो क्षमता कहाँ बची होगी.
लेकिन परसों शैली को आपकी गोद में देखकर मेरे दोनों सवालों का उत्तर मुझे मिल गया. पहला कि अगर दादू और पोती चुदाई का मजा ले सकते हैं तो ससुर बहू क्यों नहीं. दूसरा अगर शैली लेटकर चुदवा रही होती तो मुझे आपके लण्ड की ताकत का अन्दाजा न हो पाता लेकिन खड़े लण्ड पर गोद में बैठकर चुदवाना तभी सम्भव है, जब लण्ड दमदार हो.
तो चाचा जी मेरा निवेदन है कि बरसों से प्यासी इस चूत पर भी दया करो. अपने लण्ड को मेरी चूत की सैर करा दो चाचा जी, अब रहा नहीं जाता.
इतना कहकर रेखा बेडरूम में चली गई. मैंने ड्राइंग रूम का दरवाजा बंद किया और बेडरूम में पहुंचा तो रेखा कपड़े उतारकर नंगी हो चुकी थी. मेरे बेडरूम में पहुंचते ही उसने मेरी लुंगी खींचकर अलग कर दी और मुझे बेड पर लिटाकर मेरा लण्ड चूसने लगी. मेरा लण्ड चूसते चूसते वो अपनी चूत भी सहला रही थी.
मैं 69 की पोजीशन में आ गया और अपनी जीभ की चोंच बनाकर उसकी चूत में डालकर हिलाने लगा.
रेखा से अब रहा नहीं जा रहा था, वो उठी और मेरे ऊपर सवार हो गई. मेरा लण्ड पकड़कर अपनी चूत पर बेतहाशा रगड़ने लगी. रगड़ते रगड़ते उसने मेरा लण्ड अपनी चूत में ले लिया और मुझे चोदने लगी.
लेकिन थोड़ी देर में वह थक गई और रुक गई, बोली- मुझे प्यास लगी है, मैं पानी पीकर आ रही हूँ.
इतना कहकर वो रसोई की ओर चल दी.
उसके पीछे पीछे मैं भी चल दिया. पानी पीकर जैसे ही रेखा पलटी, मैंने वहीं रसोई में दबोच लिया और और उसकी एक टांग उठाकर रसोई स्लैब पर रख दी और अपने लण्ड का सुपारा उसकी चूत पर रखकर ठोक दिया.
जब लण्ड को अन्दर बाहर करना शुरू किया मैंने तो थोड़ी देर बाद रेखा बोली- मेरी टांग नीचे उतार दो, दर्द हो रही है.
मैंने उसकी टांग नीचे उतार दी और उससे कहा- घोड़ी बन जाओ.
रेखा बोली- चाचा जी, घोड़ी बनाओ चाहे कुतिया बनाओ … लेकिन आज मेरी चूत का भुर्ता बना दो, कई साल से प्यासी है.
वहीं रसोई में रेखा को कुतिया बनाकर पीछे से उसकी चूत में लण्ड पेलकर मैं धीरे धीरे चोदने लगा, जब धक्के पड़ने लगे तो बोली- चाचा जी बेड पर ले चलो, मेरा काम तो हो गया, अब आप अपना निपटा लो.
रेखा को लेकर मैं बेडरूम में आ गया और अपने लण्ड पर कॉण्डोम चढ़ा लिया. रेखा के चूतड़ के नीचे दो मोटे मोटे तकिये रखे तो उसकी चूत आसमान में टंग गई, उसकी दोनों टांगें हवा में तैर रही थीं. मैंने अपने लण्ड का सुपारा उसकी चूत पर टिकाते हुए कहा- अब मेरा लण्ड डिस्चार्ज होकर ही बाहर निकलेगा.
इतना कहकर मैंने रेखा को चोदना शुरू कर दिया. मेरी रफ्तार धीरे धीरे बढ़ती जा रही थी और जैसे जैसे रफ्तार बढ़ रही थी वैसे वैसे लण्ड मोटा व टाइट होता जा रहा था.
“बस करो चा…चा जी!”
“बस करो चाचा जी!”
“तुम्हारे बस करो, बस करो! से यह नहीं रुकेगा, यह तभी रुकेगा जब डिस्चार्ज होगा.”
“तो जल्दी डिस्चार्ज करो चाचा जी … ऊई मर गई चाचा जी … आह आह … ऊई मां, ऊई मां!”
रेखा जितना बोल रही थी उससे मेरी रफ्तार भी बढ़ती जा रही थी और मेरे लण्ड का मतवालापन भी.
धक्कम धक्का … पेलम पेल … चलती जाये लण्ड की रेल.
आखिर मेरे लण्ड की मंजिल आ ही गई, मेरे लण्ड ने पिचकारी मारी और मैं निढाल होकर रेखा पर लुढ़ककर उसकी चूचियां चूसने लगा.
थोड़ी देर बाद वो उठी, कपड़े पहने और अपने घर जाने को हुई तो मैंने घड़ी की ओर देखा और कहा- अभी शैली को कॉलेज से आने में बहुत समय है. चाय बना लो, कुछ खा लें तो एक राउण्ड और हो जाये.
रेखा मेरे लण्ड के पास आई, उसे छूकर दोनों हाथ से प्रणाम किया और बोली- मेरी तौबा, अब आज नहीं … फिर किसी दिन!
मैंने कहा- जैसी तुम्हारी मर्जी. बस एक काम कर देना, शैली आ जाये तो उसके हाथ एक कप चाय भेज देना.
“शैली के दादू, आपका भी जवाब नहीं!” कहकर रेखा चली गई.
कोई डेढ़ घंटे बाद मेरी पोती शैली चाय और बिस्किट एक ट्रे में लेकर मेरे पास आयी, बोली- दादू, मम्मी ने आपके लियी चाय भिजवायी है.
मैंने शैली को कहा- बेटा, चाय तो बहाना थी तुम्हें बुलाने का, मुझे तुम्हारी बहुत याद आ रही थी. तुम्हें प्यार करने का बहुत मन कर रहा है. आ जाओ मेरे पास! चाय उधर रख दो.
शैली ने मेरी बात मानते हुए चाय एक तरफ रख दी और मेरे पाद आकर मेरे होंठों पे अपने होंठ रख दिए और मुझे चूमने लगी. तभी उसका एक हाथ मेरे लंड पर आ गया.
मैं पहले से ही बहुत गर्म हो रहा था तो मैंने तुरत फुरत सैली को पूरी नंगी किया और बिस्तर पर लिटा लिया. आज शैली को पूरी नंगी करने में मुझे कोई भय नहीं था क्योंकि आज तो उसकी मम्मी ने ही उसे मेरे पास चूत चुदाई के लिए भेजा था.
मैंने खूब मजा लेकर पूरे जोर से शैली को चोदा. उसके जिस्म के पूरे कस बल निकाल दिए.
शैली पूरी तरह थक चुकी थी जब वो चुदाई करवा के मेरे कमरे से निकली तो!
उसकी मम्मी रेखा ने भी जब उसे देखा होगा तो वो समझ गयी होगी आज उसकी बेटी की जम कर चुदाई हुई है.
कहानी जारी रहेगी.
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