मेरे तीन आशिक

फिज़िकल बॉडी लव स्टोरी में पढ़ें कि तन के सुख की खोज में एक युवा लड़की ने कई दोस्त बनाये, उनके साथ सेक्स किया. शारीरिक संतुष्टि मिली तो पर आंशिक रूप से!

नमस्कार प्यारे पाठको, मैं वृंदा फिर से हाज़िर हूं, एक नई पेशकश के साथ।
मैं आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करती हूं मेरी पिछली कहानियों
राजा का फरमान
और
आकर्षण
को इतना प्यार देने के लिए!

आप सभी के पत्र मिलते रहते हैं और अच्छा लगता है पढ़कर कि आप सभी मुझे अब भी उतना ही याद रखते हैं।

मेरे कुछ पाठकों में से एक दो के साथ काफ़ी अच्छी बातचीत रही और उनके साथ मिली और वक्त के साथ सम्बन्ध भी स्थापित हुए; पर कुछ ज्यादा चला नहीं।

ये फिज़िकल बॉडी लव स्टोरी है मेरे तीन आशिकों की।
इन तीनों आशिकों को ज़रा भी इल्म नहीं था एक दूसरे के बारे में!

हालांकि अब मैं किसी के भी संपर्क में नहीं हूं, बिना किसी का भी नाम लिखे ये कहानी ज्यों की त्यों प्रस्तुत कर रही हूं।

पहले आशिक से मेरी मुलाकात तब हुई, जब मैं अपनी कहानियों की चिट्ठियों में वेदांत को ढूंढती थी.

मेरा पहला आशिक दिल्ली से काफी दूर, उत्तर प्रदेश के शहर में 6 घंटे दूर रहता था.
वह शादीशुदा था और उनके बच्चे भी थे.

अब आप सोचते होंगे कि मैंने उनके साथ सम्बन्ध क्यों स्थापित किए होंगे? जबकि वो मुझसे उम्र में 18 साल बड़े थे।
मैं उस दौरान एक ऐसा मर्द अपने जीवन में चाहती थी जो मेरी गड़ी हुई भावनाओं से परे हटके मुझे शारीरिक सुख दे, जिसके साथ जीवन बिताने की कोई संभावना ना हो!

शुरुआत में हम दोस्त थे।

वे मुझे अपने लगातार बढ़ते परिवार की वजह बताते थे कि उनकी पत्नी को एक कन्या की इच्छा थी.
जबकि उनकी छोटी सी नौकरी में तीन बच्चे और चौथे की इच्छा होना एक पाप जैसा लगता था मुझे!

मैं दिन रात उन्हें समझाती कि यदि बच्चों को अच्छा रहन सहन, अच्छा जीवन ना दे सकें, तो बच्चे पैदा क्यों करने हैं।
एक और फर्क था उनमें और मुझमें, हम दोनों के जन्म अलग अलग धर्म को मानने वाले परिवार में हुआ था.

मैं उन्हें मजाक मजाक में कहा करती थी यदि उनकी और मेरी छिपी कहानी बाहर आ गई तो दिल्ली और उत्तर प्रदेश को दंगों से कौन बचाएगा।
हंसी में उड़ा कर हम दोनों होंठों से होंठ मिलाकर फिर से चुदाई में जुट जाते, भूल जाते अपने परिवारों को, अपनी बंदिशों को, अपने व्यवहार को!

मैं अपने मुंह से उनके लंड को तड़पाती और वो मेरे बड़े बड़े स्तनों को मसल मसल के लाल कर देते।

कई बार उन्होंने मेरी गांड मारने की इच्छा प्रकट की.
पर मैं उनसे प्यार नहीं करती थी।

हम दोनों दो प्रेमियों की तरह छिप छिपाकर मिलते जरूर थे, बुरका पहन मैं उनके साथ होटलों में जाकर चुदाई का कार्यक्रम भी करती थी, पर कभी इच्छा नहीं हुई की उनका बसा बसाया संसार उजाड़ूं और उनके बच्चों को उनसे अलग करूं।
इसीलिए धीरे धीरे मैंने उनसे दूरी बनाना शुरू कर दिया.

शुरू में वो हर दो महीने मुझे चोदने आया करते थे पर मेरी प्यास दो महीने में एक बार से कहां बुझने वाली थी.
ऐसे में मुझे कोई ऐसा चाहिए था जो मुझे हर हफ्ते चोदे, मेरी जवानी का रसपान करे, बिना रोकटोक, मेरे हाथ पैर बांध कर, मेरी चूत का भोसड़ा बनाए.

इस दौरान मैंने कई मर्दों का इस्तेमाल किया, लंड की जांच और चोदने की शक्ति तो सिर्फ चुदकर ही पता चलती है.
आप चाहे मुझे अब छिनाल कहें, या रण्डी, पर मेरे जिस्म की इच्छाएं, एक बार चुदने से खत्म होने वाली नहीं थी.

ऐसे में मुझे कोई ऐसा चाहिए था जो मेरा और मेरी चूत की इच्छाओं का पूरा खयाल रखे, एक बार झड़ने के बाद एक दो घंटे में दोबारा तैयार हो सके।
जो मेरी चूत को रानी बना के रखे, उसकी अपने लंड के पानी से पूजा करे, टांगें फैला के मेरी चूत चूसे।

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मैंने कई मर्द इस्तेमाल किए, पर चूत चूसने वाला कोई नहीं मिला.

फिर एक मिला, जिसने मुझे अपने किराए के छोटे से कमरे पर बुलाया और मैं चुदक्कड़ रण्डी की तरह चली गई.

उस दिन को मैं कभी नहीं भूल सकती.
मैंने कमरे में घुसते ही उसने मेरे पीछे से दरवाजा बंद कर दिया, वो सिर्फ तौलिए में था, नंगा, मादक और उत्तेजित!
मेरे आने भर के ख्याल से उसका खड़ा था!

उसने घुसते ही मुझे अपनी बांहों में लिया और बिना कोई वक्त खराब किए मुझे चूमने लगा, मेरे कपड़े उतार फेंके, और मुझे नंगी कर मेरी गीली चूत में उंगली करने लगा।

वो खुश था कि मेरी चूत उसके लिए गीली है.
वह नहीं जानता था कि चुदने का सोचते ही मैं गर्म हो जाती हूं।

उसने एक के बाद एक लगातार मेरी कई बार चुदाई की, सुबह 10 बजे से रात के 8 बजे तक!
मैं उसकी रण्डी, कुतिया, सब बन चुकी थी।

उस दिन मैं दो बार झड़ी, और वो पता नहीं कितनी बार।
मुझे मेरा दूसरा आशिक मिल गया था।

पर एक कमी अब भी थी … चूत चुसाई की!
जितने वक्त भी मैं उसके साथ रही, उसने कभी मेरी चूत नहीं चूसी।
पर चुदाई जमकर हुई।

मैं हर हफ्ते एक बाद उसके कमरे पर जाती और एक दिन की उसकी रण्डी बन जाती।

अब मेरी इच्छाएं बढ़ने लगी, अब एक लंड से काम नहीं चलता था, मुझे, थ्रीसम करने की इच्छा थी।

जब मैंने उसे ये बात जाहिर की तो वो मुझे बांटना नहीं चाहता था. वो नहीं जानता था कि मैं पहले से अपने दो महीने वाले आशिक के साथ बंटी हुई थी।

खैर …

एक बार उसने मेरी चूत में पूरा हाथ घुसा दिया, उसे मेरी चीखें अच्छी लगती थी.
जब मैं मज़े में आहें भरती और चिल्लाती, तो उसे अपने मर्द होने पर गर्व होता था।

पर मेरी कमी वो पूरी नहीं कर पा रहा था.
ऐसे में मुझे कोई ऐसा मर्द चाहिए था जो ना सिर्फ मेरी जमकर चुदाई करे, पर मेरी योनि को चरमसुख के कई अनुभव कराए!

जिस तरह में लौड़ों को चूसने में माहिर हूँ, मैं चाहती थी कोई मेरी चूत भी उसी बारीकी से चूसे।

मैंने फिर अपने पाठकों की चिट्ठियों का रुख किया जिनमें कई मर्द मेरे साथ सोने की अपनी प्रबल इच्छा व्यक्त करते थे।

मेरे दो आशिकों के साथ अच्छी कट रही थी पर बात नहीं बन रही थी, खुश मैं अब भी नहीं थी.

फिर एक दिन मेरे दूसरे आशिक ने मुझसे पैसे मांगे.
मैंने देने से मना कर दिया.
इसके बाद हमारे सम्बन्ध ज्यादा दिन नहीं चल सके और हमने एक दूसरे से किनारा करना शुरू कर दिया।

धीरे धीरे दोनों आशिकों से संपर्क टूट गया।

अब मैं फिर से अकेली थी एक ऐसे मर्द की तलाश में जो करीब रहता हो, चोदने में माहिर हो, बार बार खड़ा कर सकता हो और चूसता हो।

ये सभी चीजें एक ही में मिल पाना बहुत मुश्किल था तो मैंने एक ऐप में अपनी प्रोफाइल बनाई, जिसमें मुझे अपना तीसरा आशिक मिला।

मेरा तीसरा आशिक थोड़ा अलग था, शादीशुदा और एक अच्छी कम्पनी में एक अच्छे पद पर कार्यरत था।

हम जब पहली बार मिले तो काफी पी और खुलकर एक दूसरे के सामने अपनी फिज़िकल बॉडी लव की इच्छाओं को रखा.

पिछले दो सम्बन्धों में टूट के चुदने के बाद, अब एक लंड की इच्छा खत्म हो गई थी, इसीलिए मैंने उन्हें साफ साफ कहा कि मेरी उनसे चुदने की कोई इच्छा नहीं है.
उन्होंने भी कहा कि वो भी एक शारीरिक सम्बन्ध बनाकर मन पर अपनी पत्नी के साथ धोखा करने का बोझ नहीं रखना चाहते।

अब आप सोच रहें होंगे कि मेरी लंड की भूख खत्म कैसे हो गई।
दूसरे आशिक से रिश्ता खत्म होना और तीसरे आशिक से मुलाकात में करीब 3 साल लग गए।

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इस दौरान मैं कई मर्दों के साथ हमबिस्तर हुई, सिर्फ ये देखने को कि कौन मेरे लायक है और मेरी ज़रूरत पूरी कर सकता है।

वक्त के साथ या यूं कहो कि दफ्तर के कार्य के तनाव में मेरी भूख दबती जा रही थी।
ये सब स्त्री के जिस्म में बनने वाले हार्मोंस का खेल था।

उन्हीं दिनों मुझे पता चला कि मुझे पी सी ओ एस है, जिसके कारण मेरे हार्मोन कभी बेइंतिहा ज्यादा या कभी बहुत कम हो जाते थे, जिससे मेरी कामशक्ति पर सीधा प्रभाव पड़ता था।

तो अगली मुलाकात हमारी बेंगलुरु में हुई, जहां मैं अपने टूटे दिल के साथ गई थी, वो टूटे दिल की कहानी फिर कभी!

मैंने उन्हें अपने होटल का एड्रेस दिया और वो दो घंटे बाद रात के 11 बजे मेरे कमरे पर आ पहुंचे।

एक बार फिर मैंने उन्हें याद दिलाया कि वो किसी भी तरह अपने लंड को मेरी चूत से दूर रखें!
उन्हें सिर्फ कड्डल (लिपटा लिपटी) करना था और मुझे भी … एक मर्द के छूने की बात ही अलग होती है।

हम दोनों बिस्तर पर कडल करने लगे, धीरे धीरे उनका हाथ खिसक कर मेरे कपड़ों में घुसता हुआ मेरे नितंबों को टटोलने लगा।

कई महीने बाद मैं एक मर्द के ख़ुद को छूने के मज़े ले रही थी।

मन में एक बार इच्छा तो हुई चुदने की … फिर मैंने उसे दबा दिया।
मेरे मेरी इच्छा को दबाना और उनका मेरे चूचे दबाना, मानो एक ही समय पर हुआ।

धीरे धीरे हम दोनों नंगे हो गए, कमरे की बत्ती जल रही थी, हम दोनों को ही खाते पीते घर का कहा जा सकता है।

उन्होंने कहा कि उन्हें भरी पूरी, मोटे चूतड़ और चूची वाली लड़कियां पसंद हैं।
मैंने फिर उन्हें याद दिलाया- चुदाई के बारे में मत सोचना!

और गजब की बात यह है कि मैंने उनका लंड सहलाने की बहुत कोशिश की, पर उनका खड़ा नहीं हुआ, गजब का कंट्रोल था उनमें।
मेरी इच्छा के विरुद्ध उन्होंने कुछ नहीं किया।

उन्होंने पूछा कि क्या मेरी चूत कभी किसी ने चूसी है.
मैंने ना में जवाब दिया.

तब उनकी दो उंगलियां मेरी चूत में और अंगूठा मेरी गांड के मुहाने पर था।
उन्होंने मेरी टांगें चौड़ी की और घुसा दिया अपना चेहरा मेरी जांघों के बीच … और मेरी कसक छूट गई।

हां … इसी का तो इंतजार कर रही थी मैं!
जाने कितने अरसे से … सालों से … इस कामुक जिस्म को यही तो चाहिए था।

करीब तीन चार मिनट ही गुजरे होंगे कि मैंने पानी छोड़ दिया, ऐसा लगा जैसे जमीं पर स्वर्ग के दर्शन हो गए.

जब उन्होंने मेरी जांघों के बीच से अपना मुंह उठाया तो नाक से लेकर ठुड्ढी तक मेरे योनि रस से नहा चुके थे.
वो गौरवान्वित महसूस कर रहे थे कि उन्होंने मुझे इतनी जल्दी झाड़ दिया.

मैंने उन्हें चूसने की इच्छा प्रकट की.
उन्होंने कहा कि हमारी मुलाकातें सिर्फ और सिर्फ, मेरे मनोरंजन के लिए होंगी। वो अपना सारा समय सिर्फ मुझे चरम सुख दिलाने के लिए बिताएंगे.

ऐसे में उनकी इच्छा नहीं थी कि मैं उनका लंड खड़ा करूं!
वो चुम्बन में सुख ढूंढते थे।

ऐसा मर्द मुझे पहली बार मिला जो स्त्री के सुख आनन्द को खुद के सुख से ऊपर रखता था।

पर एक परेशानी थी, वो और मैं एक शहर में नहीं रहते थे, काम के कारण वो काफी ट्रैवल करते थे, ऐसे में दिल्ली आना जाना दो तीन महीने में एक बार ही होता था।

अब बाकी था थ्रीसम, सच कहूं, तो वो इच्छा आज भी अधूरी है, तीन चार बार कोशिश की अलग अलग मर्दों के साथ, एक जोड़े के साथ, पर कुछ बात नहीं बनी। खैर, वो कहानियां फिर कभी।

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