अन्तर्वासना के सभी पाठकों को मेरा और मेरे मस्ताने लंड का तड़कता फड़कता नमस्कार.
मेरी पिछली कहानी
मेरी और अभिलाषा की प्रेम भरी चुदाई स्टोरी
आप सबने पढ़ी और खूब सराही. मुझे ढेरों ईमेल भी आये जिसमें कुछ मित्रों ने अपनी कहानी लिखने को मुझसे कहा और कुछ सहेलियों ने मुझसे सम्बन्ध बनाने की भी इच्छा जाहिर की.
खैर, वो सब बातें बाद में…
यहाँ मैं लिख रहा हूँ अपने नए दोस्त जस्सी की कहानी जो उसने ‘मेरी और अभिलाषा की प्रेम भरी चुदाई स्टोरी’ पढ़ने के बाद मुझे ईमेल करके बताई.
जस्सी की कहानी को शब्द देने में कुछ नमक मिर्च जरूर लगाया है पर आप सभी को यह कहानी इतना उत्तेजित जरूर करेगी कि सभी पढ़ने वाले स्वयं को संतुष्ट करने को बाध्य हो जायेंगे.
आगे की कहानी जस्सी से सुनते हैं:
दोस्तो, मैं जस्सी, चंडीगढ़ के पास रहता हूँ और 29 साल का हूँ. यह कहानी कोई 5 साल पुरानी है जब मैं 24 का था और मानसी, जो इस कहानी की दूसरी पात्र है वो 23 की!
हुआ कुछ यूँ कि मैं एक दिन बैठा था और मेरे फ़ोन की घंटी बजी, उठाया तो दूसरी तरफ से एक हसीन आवाज़ की मालकिन ने ख़ूबसूरत सा हेलो बोला.
था तो रॉंग नंबर पर वो आवाज़ इतनी सुन्दर थी कि मेरा फ़ोन काटने का मन ही नहीं हुआ और मैंने थोड़ी बात खींचनी चाही.
थोड़ी सी बातों के बाद उसने फ़ोन काट दिया पर मैंने भी उसको फॉरवर्ड मैसेज भेजना शुरू कर दिया. खुलने में थोड़ा टाइम लिया लड़की ने पर कुछ ही दिनों में हम दोनों की थोड़ी बातें शुरू हो गईं और मैंने उसका नाम रखा मानसी.
बातों बातों में हम दोनों एक दूसरे के बारे में बहुत कुछ जान गए थे और इतने अच्छे दोस्त हो गए थे कि हम तकरीबन रोज़ बातें किया करते. मैं उससे इधर उधर की बातें भी करता और एक दिन मैंने उससे उसके पीरियडज़ के बारे में पूछ लिया क्योंकि वो नर्सिंग कर रही थी.
पहले तो वो थोड़ा हिचकिचाई पर मेरे बार बार आग्रह करने पर उसने मुझे अपनी मासिक तारीख बताई और साथ में ये भी बताया कि उसको उन दिनों के दौरान थोड़ी तकलीफ होती है. मुझे क्या चाहिए था, मैंने उससे उन दिनों के दौरान उसका हाल-चाल पूछना शुरू किया और हम दोनों और करीब आते चले गए. इतने करीब कि अब हम दोनों फ़ोन सेक्स भी करने लगे थे. इंतज़ार था तो उस दिन का जब हम मिलें और टूट कर सेक्स करें.
पर उसके शहर में यह संभव नहीं था और बाहर आने जाने के समय उसके घर से कोई न कोई साथ होता था.
हम दोनों की बातों का सिलसिला करीब एक साल चला और फिर वो मौका आया जिसका हम दोनों को ही बेसब्री से इंतज़ार था.
उसने मोहाली में ही एक हॉस्पिटल ज्वाइन किया और मैंने सपने देखने शुरू कर दिए. मोहाली शिफ्ट होने के बाद हम दोनों ने मिलने का प्रोग्राम बनाया और मैंने पहली बार अपनी मानसी को देखा.
मानसी का बदन उसकी उम्र के हिसाब से ज्यादा उठान पर था. मानसी ख़ूबसूरत चेहरे के साथ एक हरे भरे शरीर की मालकिन थी जिसकी फिगर 38-32-36 थी और उसका वो संगेमरमर बदन पहली बार देख मेरे लंड की हालत यूँ थी कि अभी पानी उगल देगा. मैं हमेशा से एक डॉक्टर को चोदना चाहता था और मानसी के रूप में मेरी यह हसरत भी पूरी होने वाली थी.
हमारी पहली मुलाकात एक झप्पी के साथ शुरू हुई जिसके दौरान मुझे उसके भरे चुचों का अनुमान हुआ. मैंने समय न जाया करते हुए मानसी को अपने बाहुपोश में कुछ ऐसा जकड़ा कि हम एक दूसरे के बदन के ताप को महसूस कर सकते थे.
मन तो मेरा था उसके होठों को चूस लूँ पर मेरे कुछ भी कहने या करने से पहले ही मानसी ने मुझे आगाह कर दिया कि हम एक सार्वजनिक स्थान पर हैं और मैं कोई भी ऐसी वैसी हरकत ना करूँ.
पिछले एक साल का समय तो मैंने जैसे काट लिया था पर अब, जबकि मैंने मानसी के हुस्न का दीदार कर लिया था और उसकी गर्मी को महसूस कर चुका था, मेरे लिए रुकना असंभव सा प्रतीत हो रहा था.
मैं बस मानसी से साथ प्रेम की अठखेलियाँ खेलना चाहता है, उसको महसूस करना चाहता था, उसको भोगना चाहता था.
मैंने मानसी को मेरे साथ चलने का न्योता दिया तो वो मेरी मनोस्थिति समझते हुए मेरी टांग खींचती हुई बोली- ऐसी भी क्या जल्दी है जस्सी? मैं कहीं भागे थोड़े जा रही हूँ. थोड़ा रुको, मुझे बहुत भूख लगी है.
मैंने जल्दी से मैक डी से बर्गर पैक कराये और उसको चलने के लिए बोला पर वो किसी और ही मूड में थी, बोली- देखो जस्सी, बर्गर खाने का जो मज़ा यहाँ बैठ कर है, वो चलते चलते खाने में कहाँ. और फिर अगर मेरा मन कुछ और खाने का हुआ तो रास्ते में पता नहीं कुछ मिले या ना मिले. अभी चलते हैं ना थोड़ी देर में!
और इतना कह कर उसने अपनी उंगली को यूँ चूसा जैसे लंड चूस रही हो. मेरा लंड मेरे काबू से बाहर होता जा रहा था.
मैं समझ रहा था कि वो क्या कर रही है पर अपने जज्बात दिखाकर मैं बात को खराब नहीं करना चाहता था. मेरे पास सिवाए उसके हिसाब से चलने के कोई और चारा नहीं था पर मैं एक बार पक्का करना चाहता था कि मैं और वो एक ही स्तर पर हैं या नहीं. कहीं ऐसा ना हो कि मैं ख्याली पुलाव पकाता रहूं और वो सिर्फ फ़ोन पर ही सेक्स करके खुश हो रही हो.
मेरे दिमाग में पता नहीं क्या क्या चल रहा था कि इतने में मानसी ने मेरी टांग पर अपने पैर से गुदगुदी करनी शुरू कर दी. मैं उसको भोगने को तड़प रहा था जैसे पानी बिन मछली और वो इस आग में अपनी हरकतों से घी डाले जा रही थी.
अब तो मेरे लंड में दर्द होने लगा था और मैं बस किसी तरह मानसी में समां जाना चाहता था.
मानसी थोड़ी देर बाद मेरे बराबर वाली कुर्सी पर आ बैठी और उसने अपना हाथ मेरी जांघ पर रख दिया. वो शायद मेरे चेहरे से मेरी हालत का अंदाज़ा लगा सकती थी और इसलिए मुझे तड़पा रही थी.
मैं समझ गया था कि आग दोनों तरफ लगी है और अब ये दीवार गिराए बिना आगे नहीं बढ़ा जा सकता. मैंने मानसी को बोला- ऊपर ऊपर से मज़े लेने में कुछ नहीं रखा मेरी जान, साथ चलो तो तुम्हें कुछ वास्तविक मज़े दिलाता हूँ.
मानसी- जो मज़ा तुम्हारी हालत पतली करने में आ रहा है, वो और किसी चीज़ में नहीं आ सकता जस्सी!
मैं- तुमने अभी तक लंड का मज़ा नहीं भोगा इसलिए ऐसे कह रही हो. एक बार तुम्हारी चुत में मेरा लंड चला गया तो तुम इसकी ऐसी दीवानी हो जाओगी कि हर समय बस इसको ही माँगा करोगी मेरी जान!
मानसी- छी छी छी… ये क्या गंदे तरीके से बात कर रहे हो? और किसने कहा कि मैं वो सब करना चाहती हूँ? थोड़ी तेहज़ीब से बात करो, एक लड़की से बात कर रहे हो तुम मिस्टर जस्सी!
उसका इतना कहना था और मेरे खड़े लंड पे जैसे धोखा हो गया. क्या क्या सपने देख चुका था मैं इतनी देर में… पिछले एक साल से इस खिचड़ी को पकाने में लगा था और अब हाथ भी आई तो इसके नखरे पूरे नहीं हो रहे.
मैंने सोच लिया था कि ये एक बार नीचे आ जाए बस, फिर इसकी सारी अकड़ इसकी चुत के रास्ते ही निकालनी है.
मैं- देख मानसी, मैं तेरे साथ थोड़ा समय बिताना चाहता हूँ. ऐसा कुछ नहीं करूँगा जो तू नहीं चाहती पर ये सब करने के लिए भी तो हम दोनों का कहीं एकांत में होना जरूरी है. यहाँ तेरे या मेरे किसी जानने वाले ने देख लिया तो हो गई तेरी नौकरी और मेरा भी पता नहीं क्या होगा.
नौकरी पे बनती आई तो उसको मेरी कुछ बात समझ आई- देख जस्सी, तेरी सब बातें ठीक हैं पर मैं सेक्स नहीं करना चाहती और कमरे में पता नहीं तू क्या करेगा और क्या नहीं? फ़ोन पे सेक्स करना अलग बात है और असल में ऐसा करने का मतलब है कि मैं अपने घर वालों को धोखा दूंगी और मैं कुछ भी गलत नहीं करना चाहती. अगर तू मुझसे वादा करे कि कुछ भी गलत नहीं करेगा तो मैं तेरे साथ इधर उधर चलने की सोचूंगी.
मुझे तो जैसे बस इसी पल का इंतज़ार था, मैंने उसको अपने शिकंजे में लेने के लिए कहा- मानसी, आज तक मैंने ऐसा कुछ किया है जो तेरी मर्ज़ी के खिलाफ हो? मैंने तुझसे कभी मिलने की ज़िद नहीं की, कोई गलत बात नहीं की, हमेशा एक अच्छे दोस्त की तरह रहा तेरे साथ और आज तू मुझ पे इतना भी विश्वास नहीं करती? नहीं जाना तेरे साथ कहीं. रह तू अकेली यहाँ मोहाली में!
मानसी- नहीं रे जस्सी, मेरा वो मतलब नहीं था. मैं तो बस वैसे ही…
उसके इतना कहते कहते मैंने बीच में टोकते हुए कहा- क्या वैसे ही? कह ना कि तुझे मुझ पर यकीन नहीं है.
मानसी- अच्छा ठीक है. बता कहाँ चलना है और कब?
मैं- रहने दे, तूने पूरा मूड ख़राब कर दिया. अब कहीं नहीं जाना तेरे साथ.
मानसी मेरा हाथ पकड़ते हुए- मान भी जा मेरी जान, बता कहाँ चलना है?
मैं- कहीं नहीं जाना अब तेरे साथ ओये. तू अकेली मोहाली आई थी और अब अकेली ही रहेगी. मुझे तेरे से मिलना भी नहीं है दोबारा.
मानसी- अब क्या मिन्नतें करवाएगा. चल, मेरा बर्गर भी ख़त्म हो गया और अब तू भी अपना सियापा ख़त्म कर. मोहाली घूमने चलते हैं. वो तो घुमायेगा या उसमें भी तुझे दिक्कत है कोई?
मैंने देखा कि अब बात बन रही है पर मुझे तो सिर्फ मछली की आँख यानि मानसी की चुत दिख रही थी. तो मैंने भी बात को आगे बढ़ाते कह दिया- घुमा तो दूंगा पर तू मेरे से दूर रहेगी. ना मेरा हाथ पकड़ेगी और ना मेरे करीब आएगी. वैसे भी, मैं तो विश्वास करने लायक ही नहीं हूँ. क्या पता, तेरे साथ कुछ ऐसा वैसा कर दूँ तो??
मानसी- अब बस भी कर!
इसके बाद उसने मेरा हाथ पकड़ के चलना चाहा पर मैंने उसका हाथ झटक दिया और हम दोनों मेरी बाइक पे मोहाली घूमने निकल गए. वो बीच बीच में मेरे कंधे पे, पेट पे, जांघ पे हाथ रखती रही और मैं उसके हाथ को हटाता रहा.
अब मछली धीरे धीरे जाल में फंसने लगी थी.
हम एक पार्क में पहुंचे तो मानसी ने जबरदस्ती मेरा हाथ पकड़ लिया. एक कोने में पहुंच कर उसने मुझे झप्पी देनी चाही तो मैंने सीधे उसके होठों पे वार किया और ये हमारी पहली पप्पी थी जिसका भरपूर आनन्द हम दोनों ही ले रहे थे.
मानसी इसका विरोध ना करते हुए मेरे मुँह में अपनी जीभ को खूब घुमा रही थी और मैं भी अपने हाथों से उसके बदन को टटोल रहा था. मैंने अपने हाथ मानसी के चूचों पे रख उनको मसलना चाहा पर उसने मुझे पीछे धकेलते हुए अपना विरोध जाहिर किया.
हम दोनों कुछ देर बिना बात किये वहीँ बैठे रहे और फिर मैंने चुप्पी तोड़ते हुए मानसी से माफ़ी मांगी.
अँधेरा भी होने लगा था तो मैंने उसको उसके पीजी पर छोड़ा और अपने घर वापस आ गया.
मैंने रात को मानसी को फ़ोन लगाया और हम दोनों बहुत देर तक एक दूसरे की साँसों की आवाज़ सुनते रहे पर हमारे पास ख़ामोशी के अलावा बात करने को कुछ नहीं था. मैं उसकी साँसों की गर्मी को फोन पर भी महसूस कर सकता था और शायद वो भी मेरा हाल समझ रही थी.
जब मुझसे नहीं रहा गया तो मैंने उसकी साँसों की आवाज़ सुनते सुनते मुट्ठ मारी और ये भी सोचता रहा कि मानसी की चुत की चढ़ाई कैसे की जाए.
मैंने फिर चुप्पी तोड़ी और पूछा- क्या तुम अब तक मुझसे शाम के लिए नाराज़ हो?
मानसी- नहीं जस्सी, पर हमें ऐसा नहीं करना चाहिए. मेरी ज़िन्दगी भी ख़राब हो सकती है.
मैं- मैं तुझे बहुत चाहता हूँ मानसी और तेरे बिना नहीं रह सकता. मैं तुझ पे आंच भी नहीं आने दूंगा. तू बस मेरा साथ दे.
मानसी- जितना दे सकती हूँ, दे तो रही हूँ. और क्या करूँ इससे ज्यादा?
मैं- एक पप्पी दे ना.
मानसी ने बिना किसी विरोध के मुझे फ़ोन पे एक पप्पी दी. मैंने सिलसिला आगे बढ़ाते हुए पूछा- क्या पहना है तूने?
मानसी- नाईट सूट.
मैं- और उसके नीचे?
मानसी- कुछ नहीं.
मैं- मैंने भी कुछ नहीं पहना. एक बार मेरा लंड हाथ में ले ना.
मानसी- ओह जस्सी, तुम ये सब करवाकर मुझे पिघला देते हो. मैं बहने लगती हूँ जस्सी.
मैं- कहाँ बह रही है तू मेरी जान. मुझे भी तो बता.
मानसी- तू सब जानता है कमीने. अपनी आग शांत करने को मुझसे पता नहीं क्या क्या बुलवाता है तू.
मैं- जब तुझे सब पता है तो एक बार बोल दे ना. मेरा लंड एकदम टन है. अगर तू बह रही है, तो ये सट से अंदर घुस जाएगा.
मानसी- ओह जस्सी, तेरे होठों की आग अभी तक जला रही है मुझे जस्सी. मेरी चुत शाम से ऐसे बह रही है कि क्या बताऊँ तुझे. अभी तक इसका रिसना बंद नहीं हुआ. तूने पता नहीं कैसी आग लगाई है ये.
मैं- ऐसा क्या कर दिया मैंने जो तू शाम से जल रही है? जरा मुझे भी तो पता चले?
मानसी- तूने जब से मेरे होठों को चूसा है, मैं तब से जल रही हूँ. मैंने पहले कभी ऐसा महसूस नहीं किया जस्सी. तूने पता नहीं क्या कर दिया मेरे साथ कि मैं दो बार अंदर उंगली डाल चुकी हूँ.
मैं- अंदर? कहाँ अंदर?
मानसी- अब मान भी जा यार. नहीं रहा जा रहा. तू बस अब चढ़ाई कर जल्दी से और मुझे शांत कर.
मैं- कहाँ की चढ़ाई करूँ. कुछ तो बता. मुझे भी थोड़ा जलने दे इस आग में.
मानसी- कमीना था और हमेशा कमीना ही रहेगा तू जस्सी. मेरी चुत शाम से रिस रही है. वापस आने के बाद से दो बार चुत में उंगली कर चुकी हूँ और अभी तक ये शांत नहीं हुई. तू जल्दी कर और अपना लंड मेरी इस निगोड़ी चुत में डाल कर इसको शांत कर दे एक बार वरना मैं पागल हो जाऊँगी यार!
पर मेरा लक्ष्य अभी बहुत दूर था. हाँ, मुझे कामयाबी मिल रही थी पर पूरी कामयाबी अभी बहुत दूर थी शायद… मुझे अभी थोड़ी महनत और करनी थी मानसी को काबू करने के लिए.
बस, मैंने आगे का दाव खेला और उसको बोला- देख मानसी, मैं ऐसा कुछ नहीं कर सकता. तूने ही तो कहा कि तुझे मुझ पर बिल्कुल यकीन नहीं और इस सबसे तेरी ज़िन्दगी ख़राब हो सकती है. मैंने आज तक जो किया, तेरी मर्ज़ी से किया और उसके बाद भी मुझे ये सब सुनने को मिला. मैं बहुत टूट गया हूँ तेरी इन बातों से और आगे नहीं टूटना चाहता. जो हुआ, उसके लिए मुझे माफ़ कर देना. मैं आगे से तेरे से मिलने भी नहीं आऊँ शायद.
मानसी- तू ये कैसी बातें कर रहा है कुत्ते. मुझे जलता छोड़ कर तू ऐसे नहीं जा सकता. और क्या तोड़ दिया मैंने जो तू इतनी बातें बना रहा है. आज तक कितनी बार मेरी चुत झड़वाई है तूने, तब तुझे ये सब याद नहीं आया. मैं सब समझ रही हूँ. आज मुझे देख कर तेरा मन बदल गया है और इसलिए तू ये नाटक चोद रहा है हरामी.
मैं- मैं तुझे बहुत प्यार करता हूँ मानसी पर मैं तेरे ताने नहीं सुन सकता. जैसा है तुझे बता दिया. अब मैं तेरे से मिलने नहीं आऊंगा कभी.
शायद मानसी को मेरी बात पर यकीन हुआ और वो थोड़ी नार्मल हुई. जब उसको लगने लगा कि मैं वाकयी उससे दोबारा नहीं मिलूंगा तो वो मुझसे मिलने के लिए गिड़गिड़ाने लगी, बोली- यार तू एक बार मिल तो सही मेरे से. मैं तुझे सब समझाती हूँ. ऐसा नहीं है जैसा तू सोच रहा है. तू कल ही मिल मेरे से!
मैं- नहीं यार, मैं नहीं मिलूंगा अब तेरे से. किसी ने देख लिया हम दोनों को साथ तो और दिक्कत. मोहाली बहुत छोटा है और हर आदमी एक दूसरे को जानता ही है. घर पर तेरे को ला नहीं सकता और… रहने दे यार. वैसे भी, मेरे से मिलकर कुछ नहीं होना. मैं हूँ ही कमीना.
मानसी अब मेरे से मिलने को बहुत बेचैन हो गई और बोली- तो कहीं और मिल लेंगे पर तू मेरे से मिलने आ पहले, किसी पार्क में मिल लेंगे या कहीं मॉल में. बहुत जगह हैं यहाँ ऐसी जहाँ हम दोनों थोड़ी देर बैठ सकें.
मैं- नहीं यार, मैं अपने जज्बातों को छुपा नहीं पाऊँगा और मेरे आंसू बह जाएंगे. मैं दुनिया को अपने आंसू नहीं दिखाना चाहता. तू नहीं समझेगी, रहने दे.
मानसी- देख, अगर तू अब नहीं माना तो मेरा मरा मुँह देखेगा. तू जहाँ कहेगा मिलने को, मैं वहाँ आ जाऊँगी. तू एक बार मिल ले बस!
अब मेरी चाहत पूरी होने वाली थी. मैंने बात को सँभालने के लिए बाज़ी पलटी और बोला- ठीक है, बस आखरी बार. देखता हूँ कहाँ मिल सकते हैं, पर भीड़ भाड़ वाली जगह नहीं मिलेंगे. किसी दोस्त का कमरा खाली हुआ तो बताता हूँ तुझे. सिर्फ 10 मिनट को ही मिलेंगे और तू मेरे से दूर ही रहेगी.
मानसी- दोस्त के कमरे पे? कहीं और नहीं मिल सकते क्या? दोस्त क्या सोचेगा तेरा, पता नहीं कैसी लड़की है!
मैं- दोस्त ने क्या सोचना है? और अगर दोस्त के नहीं तो किसी होटल में ही मिलना पड़ेगा. वो मैं चाहता नहीं क्योंकि तेरा कोई भरोसा नहीं कि कब, किस बात के लिए तू क्या कह दे.
मानसी- ऐसा भी कुछ नहीं है जस्सी, तू तो ऐसे बात कर रहा है जैसे मैंने तुझे कितने ताने मारे हों. चल तू बता किस होटल में मिलना है और कब. नहीं कहूँगी इस बारे में कुछ!
मेरी तो जैसे मन मांगी मुराद पूरी होने जा रही थी. मैंने इधर उधर की बातें करके फ़ोन काटा, एक बार और मुट्ठ मारी और सो गया. अगले दिन सुबह ही चंडीगढ़ में एक होटल फाइनल किया, उसका कमरा ऑनलाइन बुक किया और मानसी को फ़ोन करके मंगलवार का प्रोग्राम फाइनल किया क्योंकि उसकी ड्यूटी कुछ ऐसी थी कि छुट्टी मंगलवार को ही मिल रही थी.
इस दौरान मेरा और उसका रोज़ फ़ोन पर सेक्स हुआ और फिर वो दिन आया जिसका मुझे बेसब्री से इंतज़ार था.
नर्स के साथ फोन सेक्स चाट और चुदाई की कहानी जारी रहेगी.
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एक नर्स से फोन सेक्स के बाद चुदाई-2
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