नंगी आरज़ू-1

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आप भूले न हों तो मैंने आपको अपने बारे में कई बातें बताई हैं। मूलतः भोपाल का रहने वाला हूँ लेकिन लखनऊ में रहता हूँ। रिश्तेदारों में एक खाला कानपुर में रहती हैं और इस मंच पर रहते, जो अपनी सबसे पहली कहानी
पराये मर्द के लण्ड का नशा
साझा की थी, उसकी नायिका मिसेज सिद्दीकी से मेरा संपर्क कानपुर रहने के दौरान ही हुआ था।

खाला के तीन बच्चे थे, जिनमें एक लड़का था जिसके साथ मैंने अपने टाईम में काफी मस्ती की है और दो लड़कियाँ, जिनमें एक शबनम की अभी चार साल पहले शादी हो गयी थी और वह अपने पति के पास रहने सऊदी चली गयी। दूसरी घर पे ही रहती थी, जिसका नाम आरजू था।

लड़का मेरा हमउम्र था जिसकी शादी भी यूँ तो साथ में ही की गयी थी, लेकिन ठीक ठाक कुछ कमाता धमाता नहीं था तो आये दिन झगड़ा बना रहता था और उसकी बीवी मायके पड़ी रहती थी।

घर के हालात कुछ ठीक नहीं थे, जिस वजह से आरजू की शादी भी नहीं हो पा रही थी, जबकि वह भी अट्ठाईस की हो चुकी थी।

जिस दौरान सब ठीकठाक था और मैं उनके घर जा जा कर रुक जाता था, उस दौरान आरजू छोटी ही थी, इसलिये उससे मेरी कोई खास बोलचाल नहीं ही थी। हां, इधर लखनऊ रहने के दौरान हम सभी चूँकि व्हाट्सएप पर एक घरेलू ग्रुप से जुड़े थे तो बातचीत होती रहती थी, जिससे सभी बातें पता चलती रहती थीं।

तीन साल से मैं लखनऊ में था और इस बीच तीन बार ही कानपुर खाला के यहाँ गया था। अब दुआ सलाम, खैरियत पूछने तक या इधर-उधर की जनरल बातें तो उससे हो जाती थीं लेकिन कोई खास कंटीन्युटी उससे फिर भी नहीं थी।

उसका खास जिक्र इसलिये भी, क्योंकि मैंने जिंदगी में जिन लोगों पर सेक्स के अभाव का असर पड़ते देखा है.. वह भी उनमें से एक थी।

वह करीब साढ़े पांच फुट की लंबाई, साफ रंगत और आकर्षक चेहरा रखने वाली लड़की थी जो करीब पांच छः साल पहले तक अच्छी सेहत रखती थी। कभी कजिन्स पर मैंने कोई गलत नजर तो नहीं डाली, बस जनरल वे में बता रहा हूँ कि उसकी फिगर कोई उत्तेजक तो नहीं लेकिन फिर भी ठीक ठाक थी।

लेकिन वर्तमान में वह लगभग ढांचा सी दुबली पतली हो गयी थी। सीना नाम का रह गया था, कूल्हे भी सपाट हो गये थे। हाथ पैर की हड्डियां दिखतीं और नसें चमकती थीं; देखकर किसी बीमारी का शिकार लगती थी.
मगर खाला ने बताया था कि उसकी सभी जांचें हो चुकी थीं और सभी ठीक ठाक ही रही थीं। उसे किसी तरह की कोई बीमारी नहीं थी.. फिर क्या वजह थी उसके एकदम ढल जाने की? मुझे यौन कुंठा, घुटन, कुढ़न के सिवा और कोई वजह नहीं समझ में आती थी।

बहरहाल, वह काबिले जिक्र इसलिये भी है कि यह कहानी उसी को लेकर है।

एक दिन खाला का फोन आया था कि आरजू को मेरी मदद की जरूरत थी। दरअसल वह कानपुर में जिस जगह नौकरी करना चाह रही थी, उसका हेड-ऑफिस लखनऊ में था और इंटरव्यू यहीं होना था।
आरजू के मुताबिक शाम हो जानी थी और वह यूँ शाम या रात को सफर करने के पक्ष में नहीं थी।

मैं उनका आशय समझ गया था और उन्हें भरोसा दिलाया था कि वह फिक्र न करें, मैं इंतजाम कर दूंगा। रात भर रुक के सुबह मैं खुद ही चारबाग ट्रेन पे बिठा आऊँगा।

इसके बाद मैंने अपने मकान मालिक को यह बात बता कर उसके रुकने के लिये उनसे इजाजत मांगी। यह भी पेशकश की, कि अगर उन्हें कोई एतराज हो तो वह नीचे सुला सकते हैं।

यह मेरी एक आदत है कि जहां रहता हूँ वहां इतनी इज्जत तो बना कर रखता हूँ कि सामने वाला भरोसा कर सके, फिर आगंतुक लड़की कोई गैर या दोस्त नहीं, बल्कि खालाजाद बहन ही थी तो उन्हें क्या एतराज होता। उन्होंने इजाजत दे दी।

वह ग्यारह बजे आ गयी थी। मैंने उसे स्टेशन से ले लिया और उसकी बताई जगह पर छोड़ दिया और खुद अपने ऑफिस निकल आया।

शाम को पांच बजे वह फारिग हो गयी लेकिन मैं छः बजे छूटा तो उस तक करीब साढ़े छः बजे पंहुच पाया।

आगे का वक्त वैसा ही गुजरा जैसा गुजरता है। पहले सीधे घर ले गया, जहां वह नहा धोकर फ्रेश हुई। फिर उसे अमीनाबाद ले आया जहां थोड़ी शॉपिंग करने के बाद वहीं टुंडे के यहाँ खाना खिलाया, प्रकाश के यहाँ कुल्फी खिलाई और थोड़ा वापसी में गोमती किनारे टहल कर साढ़े दस बजे घर आ गये।

इस बीच इधर-उधर की बातें ही होती रही थीं। बावजूद इसके कि उसकी बहुत कम बोलने की आदत थी। या शायद हम दोनों की उम्र के फर्क की वजह से वह असहज हो रही हो।

खैर.. करीब ग्यारह बजे सोने के लिये लेटने की नौबत आई। ऊपर मेरे कमरे में एक तख्त ही था जो मकान मालिक की मेहरबानी से लेटने के काम आता था, बाकी मैं तो सफरी जीवन की वजह से कोई खास सामान ही नहीं बनाता था।

उसे मैंने तख्त पे लिटा दिया और खुद नीचे चटाई बिछा कर लेट गया।

“सुन!” मैंने उसकी तरफ करवट ले कर कुहनी के बल चेहरा उठाते हुए कहा।
“हां भाई?” वह तख्त के किनारे पर आकर मेरी तरफ करवट ले कर मुझे देखने लगी।
“पांच छः साल पहले तक तो तुम्हारी सेहत अच्छी भली थी और दिखने में काफी अच्छी लगती थी। अब क्या हो गया तुम्हें?”
“पता नहीं।” उसने अनमने भाव से जवाब दिया।

“कोई ऐसी बीमारी है जो खाला ने मुझे बतानी ठीक न समझी हो?” मैंने थोड़ी आत्मीयता पैदा करते हुए कहा।
“जैसे?” वह थोड़ा चौंक कर गौर से मुझे देखने लगी।
“जैसे ल्यूकोरिया ही ले लो।” मैंने राजदाराना अंदाज में कहा।

वह एकदम से सकपका गयी। मुझसे मिली निगाहें एकदम से झुक गयीं और सीधी हो कर छत देखने लगी।
“नहीं।” थोड़ी देर बाद उसने सधे हुए अंदाज में जवाब दिया।
“कोई ब्वायफ्रेंड है तुम्हारा?”
“नहीं।” उसने फिर अटकते हुए थोड़े वक्फे के बाद जवाब दिया।
“हम्म.. अच्छा सेक्स करती हो?”

“क्या!” वह एकदम भड़क कर उठ बैठी और तेज निगाहों से मुझे घूरने लगी- यह कैसा बेहूदा सवाल है?
“इसमें बेहूदा क्या है.. जनरल चीज है, लोग करते ही हैं, अगर तुम करती होगी तो कौन सी कयामत टूट पड़ेगी।”

“क्या आप यह चाहते हो कि मैं अभी इसी वक्त यहां से चली जाऊँ।” उसकी आँखों से गुस्सा झलकने लगा।
“तुम्हारी मर्जी है.. मैं तो कभी नहीं चाहूँगा ऐसा। वैसा मेरा इरादा न तुम्हें तकलीफ पंहुचाने का है और न ही कोई तुम्हारी इंसल्ट करने का। मुझे साइकोलॉजी में गहरी दिलचस्पी भी है और पकड़ भी.. समझना चाहता हूँ तुम्हारे केस को। शायद कोई सही सलाह दे सकूँ तुम्हें।”

वह थोड़ी देर वैसे ही बैठी अजीब अंदाज में मुझे देखती रही, फिर चुपचाप जैसे लेटी थी, वैसे ही लेट गयी।
“नहीं।” ऐसा लगा जैसे बड़ी मुश्किल से उसके गले से यह जवाब निकला हो।
“बस यही तुम्हारी बिमारी है।”
“मतलब?” वह फिर चौंक कर करवट लेती हुई मुझे देखने लगी।

“मतलब यह कि चौदह पंद्रह की उम्र से ही लड़की जवान हो जाती है और सोलह सतरह तक उसका शरीर मर्दाना संसर्ग मांगने ही लगता है। यह नैसर्गिक है.. इसमें गलत कुछ भी नहीं। पर होता यह है कि समाज के बनाये नियम और अपनी इज्जत वगैरह के चक्कर में सभी अपनी प्राकृतिक इच्छाओं को दबाने में लग जाते हैं, जो कि गलत है।

मेरी समझ में अपनी स्वाभाविक यौन इच्छाओं को उस सूरत में भले दबा ले लड़की, जब उसे बीस बाईस तक शादी हो जाने की उम्मीद हो लेकिन अगर इसमें कोई दुविधा है या यह कनफर्म है कि शादी जल्दी हो पाने के कोई चांस नहीं तो फिर इस संसर्ग से गुरेज न करके बल्कि कैसे भी कोई जुगाड़ बने, बना लेना चाहिये।

क्योंकि ऐसा न करने पर इंसान यौनकुंठा का शिकार हो जाता है। चाहे दिल दिमाग सामाजिक नियमों के चलते इस डिमांड को लाख नकारता रहे पर शरीर तो अपनी प्रतिक्रिया देता ही है।

तुम जिस उम्र में हो, गारंटी से कह सकता हूँ कि तुम्हारे साथ की लड़कियों की शादी हो चुकी होगी और अगर किसी की नहीं भी हुई होगी तो वह अपना जुगाड़ बनाये होगी और वह सभी पुरुष संसर्ग के मजे ले रही होंगी और यही चीज तुममें कुढ़न पैदा करती होगी।

शाम को जब तुम बाथरूम गयी थी तो तुम्हारा फोन देखा था मैंने.. यूसी ब्राउजर की हिस्ट्री में न सिर्फ अंतर्वासना मौजूद है बल्कि दूसरी पोर्न विडियो साईट भी मौजूद है जो बताती है कि असल में तुम्हारी यौन इच्छायें मरी नहीं हैं, बस उन्हीं सामाजिक नियमों के चलते तुम उन्हें जबरन मार रही हो और यही चीज तुम्हारे शरीर को गला रही है।”

अब वह गहरी दिलचस्पी से मुझे देखने लगी- मैंने कभी सोचा भी नहीं कि मैं आपसे इस सब्जेक्ट पर कभी बात करूँ!
“लेकिन कर सकती हो, हमारी उम्र के फर्क और रिश्ते को भूल जाओ और भरोसा रखो, एक एक्सपर्ट दोस्त की तरह तुम्हारे काम आ सकता हूँ।”

जाने क्यों.. उसकी आंखें चमकने लगीं। थोड़ी देर तक सीधी हो कर छत निहारती रही.. फिर वापस तिरछी होकर मुझे देखने लगी।

“मैं घर पे रहती हूँ.. घर से निकलने का मौका रेयर ही मिलता है। ऐसे में किसी से कोई कंटीन्युटी बनाऊं भी तो मिल पाना ही मुश्किल होगा, सेक्स तो दूर की बात है।”
“फिर भी.. पोर्न देखती हो, पढ़ती हो और सोशल साइट्स पर भी हो तो ब्वायफ्रेंड तो होना ही चाहिये कि कभी न कभी जुगाड़ बन ही जायेगा।”

“तीन हैं.. लेकिन मेरे लिये कभी घर से निकलना मुमकिन भी होता है तो वो ही बेकार साबित होते हैं। इधर-उधर पार्क झील घुमाते फिराते हैं या फिल्म दिखा देते हैं और इस बहाने थोड़ा इधर-उधर हाथ लगा कर और सुलगा देते हैं। न उनके पास कहीं ले जाने का जुगाड़ होता है और न कहीं होटल वगैरह ही ले जाने में दिलचस्पी रखते हैं। अब मैं क्या खुद से कहूँ कि मुझे क्या चाहिये।”

“एक दो बार में चेक करके, कि काम के नहीं है.. टाटा कर लेना चाहिये था। नया चेक करती, कोई तो काम का निकलता।”
“पहले एक ही बनाया था, बाद में चेक करने-करने में तीन हो गये। बस टाटा किसी को नहीं किया कि नेट पे इन्हीं के सहारे थोड़ा टाईमपास हो जाता है।”
“तो मतलब अट्ठाईस तक कुंवारी ही हो।”

इस बार जवाब देने के बजाय वह हंस पड़ी। निगाहें झुक गयीं और कहते हुए शब्द थोड़े लहरा गये- नहीं.. तीन बार हो चुका है।
“वह कैसे?” मुझे जानने में दिलचस्पी हो गयी- जब तीनों ही नाकाम रहे तो कैसे हो गया?
“ग्रेजुएशन के एक साल बाद मैंने एक कॉल सेंटर में नौकरी कर ली थी, वहीं काम करने वाले लड़के थे। साल भर में एक लड़के से कंटीन्यूटी बन पाई थी तो पहली बार उसी के साथ हुआ था। फिर उस लड़के को दिल्ली में ज्यादा अच्छी नौकरी मिल गयी तो वह चला गया।

फिर धीरे-धीरे एक दूसरे लड़के से कंटीन्यूटी बनी जो पहले साल से ही लाईन मार रहा था। उसके साथ डेढ़ साल रिश्ता रहा लेकिन सेक्स का जुगाड़ सिर्फ एक बार ही बन पाया।”
“फिर?”
“वह वहां काम करने वाले लड़कों में सबसे हैंडसम था और लड़कियों में मैं ही दिखने में सबसे ठीकठाक थी, लेकिन तब तक.. जब तक एक दूसरी लड़की वहां न आ गयी जो मुझसे ज्यादा अच्छी भी थी और फ्रैंक भी थी। धीरे-धीरे उसका जुगाड़ उससे फिट हो गया तो मुझसे ब्रेकअप हो गया। फिर छः महीने सिंगल रही।

इसके बाद एक और लड़का नया आया, जिसने खाली देख के प्रपोज किया तो मेरे सामने भी क्या ऑप्शन था। मैंने एक्सेप्ट कर लिया.. उसके साथ भी एक ही बार नौबत आ पाई लेटने की। फिर यह रिश्ता ज्यादा लंबा चला भी नहीं। सात महीने बाद कॉल सेंटर ही बंद हो गया और वह लड़का नयी नौकरी के चक्कर में लखनऊ शिफ्ट हो गया और मैं घर पे बैठ गयी।”

“फिर कहीं और भी तो कर सकती थी।”
“की थी.. लेकिन कहीं नौकरी पसंद नहीं आई तो कहीं नौकरी देने वालों को मैं नहीं पसंद आई। अब यहां देखो क्या होता है।”

“यहां न बन पाये तो कह देना कि लखनऊ में करोगी। यहां मैं नौकरी की भी सेटिंग करा दूंगा, रहने की भी और लड़के की भी। रोज ही करना तब.. घर में कोई विरोध करे तो कह देना कि या तो शादी ही करा दो या फिर नौकरी करने दो, क्योंकि घर पर खाली नहीं बैठ सकती। बाकी उन्हें मैं कनविंस कर लूंगा।”
“हम्म.. यही करूँगी। मैं भी अब और नहीं झेल पाऊंगी।”

क्रमशः
कहानी के बारे में अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करायें। मेरी मेल आईडी हैं
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