मेरी चूत का टैटू-1

दोस्तो, मैं आपकी अपनी प्यारी प्यारी प्रीति शर्मा… आज आपके लिए अपना एक नया कारनामा लेकर आई हूँ।

अभी पिछले दिनों मुझे अपने ससुराल के पैतृक गाँव जाने का मौका मिला। हमारा खानदानी घर उत्तर प्रदेश में लखनऊ से करीब 50 किलोमीटर आगे जा कर है। दिल्ली से लखनऊ ट्रेन से और आगे हमने टेक्सी कर ली। मैं, मेरे पति, मेरी बेटी और मेरे सास ससुर, हम सब घंटे भर में लखनऊ से अपने गाँव वाले घर में पहुँच गए।
गाँव में हमारी पुश्तैनी ज़मीन है, मेरे ससुर के दोनों छोटे भाई वहाँ गाँव में रह कर खेतीबाड़ी करते हैं। बड़ा सारा घर है हमारा!

अपनी शादी के चार साल में मैं सिर्फ 2 बार यहाँ आई हूँ। एक बार शादी के तुरंत बाद, फिर एक बार कोई मर गया था तब। मगर दोनों बार मैं सिर्फ 1-2 दिन ही गाँव में रुकी, और घर के अंदर ही रही, कभी बाहर घूम कर नहीं देखा।
बाहर क्या… मैंने अपना सारा घर भी घूम कर नहीं देखा था।

इस बार हम 4-5 दिन के लिए गए थे, कोई फंक्शन भी नहीं था वहाँ, बस इसी लिए बड़े फ्री मूड में गए थे। घर पहुंचे तो सबने हमारा खूब आदर सत्कार किया। पहले तो मेरे ससुर सबसे बड़े और दूसरे मेरे पति, भाइयों में ये भी सबसे बड़े। तो जो भी बुजुर्ग आता हम उसके पाँव छू देते, जो भी छोटा आता वो हमारे पाँव छू देता।
पहली बार ऐसा हुआ के बहुत से लोगों ने मेरे भी पाँव छुए… तो मुझे ऐसा लगने लगा जैसे मैं कोई बहुत बूढ़ी औरत हूँ. इतने लोग आए, कोई मर्द, औरत, लड़का लड़की, और घर के नौकर चाकर भी। सबने बड़ी भौजी यानि मेरे पाँव छुए।

खैर उसके बाद सब अलग अलग हो गए, मैं और मेरी सास औरतों वाले आँगन में चली गई, पति और मेरे ससुर बाहर वाली बैठक में बैठ गए।
अंदर आए तो सब औरतें ही औरतें थी। हर उम्र की, कोई छोटी बच्ची, कोई कच्ची, कोई जवान, कोई अधेड़ तो कोई बुड्ढी… हर उम्र, हर साइज़ की औरत।
मुझे भी उन्होंने खाने पीने को दिया।

सास तो मेरी दूसरे कमरे में बुड्ढियों के साथ बैठ गई, मगर मुझे सब जवान औरतों और लड़कियों ने घेर लिया। उन्हें ऐसे लगता था, जैसे मैं दिल्ली से नहीं, कहीं विदेश से आई हूँ। हर कोई मेरे कपड़ों, गहनों को छू छू कर देख रहा था।
एक दो ने मेरे जिस्म को भी छू कर देखा कि हाथ कैसे हैं, मुँह कैसा है। पर मुझे सब बहुत अच्छा लगा, सबने बहुत प्यार दिया।

अगले दिन मैंने सारा घर घूम कर देखा, सारे कमरे, कौन सा कमरा किस का है। जानवरों का बाड़ा, खेत, खलिहान, सब देखा। मैंने अपने साथ एक लड़की से पूछा, रानी नाम था उसका- रानी, क्या आप लोग अभी भी सुबह सुबह खेतों में जाते हो?
वो बोली- नहीं भाभी, अब तो सबके घर में ही शौचालय बन गए हैं, अब खेतों में कोई नहीं जाता। आपने जाना है?
मैंने कहा- अरे यार, मैं तो यूं ही पूछ रही थी, वैसे ये भी एक निराला ही काम है, सुबह सुबह उठ कर खेतों में जाना।
वो बोली- ऐसा करते हैं, कल सुबह आप और मैं, दोनों खेतों में हगने जाएंगे।

उसकी बात सुन कर मैं भी हंस दी और वो भी।

रात को 9 बजे तक सबने खाना पीना करके सोने चले गए, अब मुझे तो 11-12 बजे से पहले कभी नींद ही नहीं आई। मगर यहाँ तो जल्दी सोने का रिवाज है, रात को सब मर्द औरतें अलग ही सोते हैं तो मैं रानी के साथ ही सोई। कितनी देर हम दोनों इधर उधर की बातें करती रही।

अगली सुबह हम बहुत जल्दी जाग गई, शायद 4 बजे होंगे, अभी पूरा अंधेरा था।
रानी ने मुझे जगाया, और हम दोनों उठ कर अपनी अपनी शॉल उठा कर चल पड़ी। अंदर मौसम ठीक था, मगर बाहर हल्की ठंड थी, इस लिए, शॉल लेनी ठीक रही।

काफी दूर चल कर हमारे खेत आ गए, तो हम अपने खेतों में चली गई। गेहूं की फसल अभी बिल्कुल छोटी छोटी थी, इसलिए पर्दे की बड़ी दिक्कत थी क्योंकि हल्का हल्का उजाला सा हो चुका था, अगर कोई उधर से आ जाता, तो हमें देख सकता था, पर ये भी था कि इतना चलने के बाद प्रेशर इतना बन गया था कि और आगे चल कर जाना संभव नहीं था।

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मैं और रानी खेत के पास कुछ दरख्तों की आड़ में गईं। एक पेड़ के पीछे रानी बैठी तो उसके पास ही मैं।
पहले तो मैंने आस पास अच्छी तरह से देखा कोई आ तो नहीं रहा, जब सब तरफ से आश्वस्त हो गई, तो मैंने अपनी सलवार का नाड़ा खोला और सलवार उतार कर बैठ गई।
बस बैठने की देर थी, 1 मिनट में ही पेट साफ हो गया। क्या आनन्द आया… खुली,जगह, साफ हवा, हल्का सा उजाला और हम दो नंगी लड़कियां।

मैंने रानी से पूछा- यहाँ कोई डर तो नहीं अगर कोई आ जाए, तो?
वो बोली- अरे भाभी, यहाँ कोई नहीं आता। अपने खेत हैं सारे, सिर्फ अपने काम वाले नौकर ही आते हैं, और वो अभी नहीं आए।

वैसे तो मैं फ्री हो गई थी, मगर फिर भी बैठी रही, मैंने रानी की तरफ ध्यान दिया, मैं देख कर हैरान रह गई, उस लड़की की चूत पर एक भी बाल नहीं था।
मैंने उससे पूछा- रानी क्या लगाती है, वीट या रेज़र?
वो बोली- चाची, यहाँ तो रेज़र ही चलता है।

मैंने उसे आँख मार कर कहा- किसको दिखाती है?
वो शर्मा सी गई और हंस कर बोली- अपने साथ वाले गाँव का ही है, मोहन।
मैंने कहा- सिर्फ दिखाती भी है या कुछ और भी?
वो बोली- अरे लो चाची, जब अगला इसे देखने तक पहुँच गया, तो क्या खाली हाथ वापिस जाएगा। कुछ न कुछ तो करके ही जाएगा!

फिर बड़ी खुश हो कर बोली- एक और चीज़ दिखाऊँ?
मैंने कहा- क्या?
वो उठी और उठ कर मेरी तरफ पीठ करके बैठ गई।

ठीक उसके चूतड़ों के ऊपर एक बड़ा सा टैटू बना हुआ था। पूरी कमर पर और उस टैटू की एक पूंछ सी उस लड़की के दोनों चूतड़ों के बीच में जाकर खत्म होती थी।
रानी ने मुझसे पूछा- कैसा लगा टैटू भाभी?
मुझे बड़ा अच्छा लगा कि एक गाँव की लड़की टैटू बनवाए फिरती है, और वो भी पीछे अपनी गांड पर, और मैं दिल्ली वाली मॉडर्न लेडी और मेरे हाथ पर भी टैटू नहीं।
मैंने उसे पूछा- कहाँ बनवाया?
वो बोली- एक बार मैं बैंक का पेपर देने लखनऊ गई थी, तभी मोहन भी मेरे साथ था, सुबह पेपर दिया, दोपहर के बाद एक जगह जा कर मैं ये बनवाया।
मैंने पूछा- किसी लड़की से बनवाया?
वो बोली- अरे यहाँ लड़की कहाँ, यहाँ तो सब लड़के ही बनाते हैं।
मैंने फिर पूछा- और तू उसके सामने नंगी लेट गई?
वो बोली- फिर क्या हुआ, मोहन मेरे साथ था, उसने खास खयाल रखा कि टैटू वाला मेरे साथ कोई गलत हरकत न करे। मोहन मुझे बहुत प्यार करता है, कहता है, कहीं नौकरी लग जाए, फिर हमारे घर रिश्ता ले कर आएगा।

पर सच कहती हूँ, उसका टैटू देख कर मेरी गांड जल गई, गाँव की लड़की अपनी गांड पर टैटू बनवा के घूम रही है, और मैं शहर वाली कुछ भी नहीं कर पा रही हूँ।
फिर मैंने पूछा- अब मेरा तो हो गया, साफ कैसे करें?
वो बोली- किसी पत्थर से कर लो, बाद में ट्यूबवेल पे जाकर पानी से धो लेंगे।

मैंने वैसे ही किया, एक पत्थर से उठाया और उस से अपनी गांड पोंछ कर उठी और सलवार का नाड़ा बांध लिया, रानी भी उठ खड़ी हुई, सामने ही हमारे खेतों का ट्यूबवेल था, हम वहाँ गई और हौद से पानी लेकर अपने अपने चूतड़ धो लिए।
मगर जब चूतड़ धोने के लिए रानी ने अपनी सलवार खोली तो मुझे दोबारा उसकी गांड पर बना टैटू दिख गया और मेरी झांट जल गई कि जो भी हो मुझे भी अपने टैटू बनवाना है, इसने गांड पे बनवाया है, तो मैं तो हर हाल में अपनी चूत पे टैटू बनवाऊँगी।

चलो जी… 4-5 दिन गाँव में रह कर हम वापिस आ गए।

दिल्ली वापस आते ही सबसे पहले जो बात मैंने अपने पति के कान में डाली वो यही थी कि मुझे टैटू बनवाना है।
वो बोले- तो बनवा लो, किसी दिन किसी टैटू स्टूडियो में चलते हैं और बनवा लेते हैं।
मैंने कहा- जी नहीं, किसी भी स्टूडियो में नहीं, कोई ऐसा स्टूडियो देखो जहां लड़की टैटू आर्टिस्ट हो, मैं किसी लड़की से ही टैटू बनवाऊँगी।
पति ने आँख मार कर पूछा- कहाँ टैटू बनवाने का इरादा है?
मैंने साफ कहा- यहाँ पे!
और अपनी चूत पे अपनी उंगली लगा के दिखाई।

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वो एकदम चौंके- अरे पागल हो क्या, यहाँ टैटू बनवाना है तुम्हें?
मैंने कहा- यहाँ, और सिर्फ यहीं बनवाना है। रानी है न अपनी, उसके देखो, उसने अपनी गांड पे टैटू बनवाया है।
पति बोले- कम ऑन यार, वो मेरी बहन लगती है।
मैंने कहा- बात वो नहीं है, पर बात यह है के वो गाँव की लड़की गांड पे टैटू लिए घूमती है, और मैं दिल्ली जैसे शहर में रह कर भी टैटू नहीं बनवा सकती।

खैर बड़ी मशक्कत और बहस के बाद पतिदेव मान गए। फिर उन्होंने एक टैटू स्टूडियो ढूंढ निकाला।

एक दिन हम दोनों वहाँ गए। वहाँ पे एक लड़की थी, उस से बात की, एप्पोइंटमेंट फिक्स हो गई। टैटू का डिजाइन भी पसंद कर लिया गया।
तय दिन और वक़्त पर हम दोनों वहाँ पहुंचे।

घर से खैर मैं अपनी पूरी साफ सफाई करके गई थी, मेरे पति सामने कुर्सी पर बैठ गए, मुझे उसने बड़े से काउच पे लेटा दिया। उसने अपने सारे औज़ार और मशीन वगैरह सब रेडी किए।
फिर मुझे से बोली- चलिये मैडम, पेंट उतारिए।

तब मुझे थोड़ा सा डर सा लगा। उसके बाद मैंने उठ कर अपनी पेंट और पेंटी दोनों उतार दी। बड़ी अजीब सी फीलिंग आ रही थी। किसी बिल्कुल अंजान के सामने नंगी होने की।
मगर होना तो था, पेंट उतार कर मैं फिर से लेट गई।

वो लड़की बिल्कुल मेरे ऊपर चढ़ कर ही बैठ गई, पहले उसने कोई एंटीसेप्टिक लोशन सा लगाया, फिर अच्छी तरह से एक तेल से मालिश सी की, फिर उसने जो डिजाइन हमने पसंद किया, था उसका कागज़ पर बना स्टेंसिल मेरी कमर पर रख कर चिपकाया, और जब कागज़ उठाया, तो मेरी चूत के ऊपर एक निशान छाप गया। देखने में तो ये भी बड़ा अच्छा लग रहा था, मगर असली काम तो अभी होना था।

फिर उसने उस डिजाइन के एक कोने पर स्याही लगाई और फिर मशीन से जब गोदा तो एक बार तो मैं उछल पड़ी।
वो लड़की बोली- काम डाउन मैडम, आराम से… अगर ऐसे उछलोगी, तो काम खराब हो जाएगा।

मैं आराम से लेटी तो उसने फिर से चालू किया, और धीरे धीरे वो डिजाइन बनाने लगी। बेशक मुझे दर्द हो रहा था, मगर असली बात मेरे मन की संतुष्टि थी कि मेरे बदन पर भी टैटू होगा.. मगर आधा डिजाइन बनाने के बाद वो लड़की रुक गई, बोली- मैडम, आपकी स्किन काफी सेन्सटिव है, आपको स्वेल्लिंग हो रही है।

मैंने देखा, मेरे पति ने भी उठ कर मेरी जांघों के बीच में देखा। जहां उसने डिजाइन बनाया था, वहाँ से मेरी चूत थोड़ी सूज सी गई थी।
मैंने पूछा- तो अब क्या होगा? टैटू पूरा कैसे होगा?
वो बोली- आपका एक सेशन में काम नहीं होगा, टैटू पूरा करवाने के लिए आपको 2-3 सिटिंग्स देनी पड़ेंगी।
उसके बाद हमें ज़रूरी बातें समझा कर उसने वापिस भेज दिया।

दो दिन बाद जब मेरी चूत ठीक हो गई तो मैं फिर उसी स्टूडियो में गई। मगर आज मेरे पति साथ नहीं जा सके, क्योंकि उन को कोई ज़रूरी काम था, पर वो मुझे जाते हुये उसी टैटू स्टूडियो के बाहर छोड़ गए।

मैं अंदर गई और अंदर जा कर उस लड़की के बारे में पूछा जिसने मेरी चूत पर अधूरा टैटू बनाया था. तो पता लगा कि किसी वजह से वो लड़की आज नहीं आई है। अगले दिन आ जायेगी.
अब मैं तो बड़ी असमंजस में पड़ गई कि क्या करूं, क्या ना करूं!

तो रिसेप्शन पर बैठी लड़की बोली- आप चाहें तो हमारे किसी दूसरे आर्टिस्ट से भी अपनी जॉब पूरी करवा सकती हैं।
मैंने कुछ सोच कर कहा- और कौन है?

कहानी जारी रहेगी.
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कहानी का अगला भाग : मेरी चूत का टैटू-2

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