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लिफ्ट का अहसान चूत देकर चुकाया-2
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लिफ्ट का अहसान चूत देकर चुकाया-4
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सोनी ने अपनी सहेली से बात करके फोन एक किनारे रख दिया और मेरी तरफ देखने लगी।
मैंने भी छेड़ते हुए कहा- बता ही देती कि हाँ… चूत की खुजली मिटा रही हूँ।
“आप भी न…” कह कर मेरे सीने के बाल जोर से खींच दिए।
मैंने एक बार फिर उसके ऊपर अपना पैर रखा और उसके होंठों को चूसने लगा, वो भी मेरा साथ दे रही थी। धीरे-धीरे सोनी पर मदहोशी छाने लगी। मेरे लंड को अपने हाथों में पकड़कर अपनी चूत पर चलाने लगी, मैं उसके होंठों को चूसने के साथ-साथ बोरो-प्लस अपनी उंगली में लेकर उसकी चूत के अन्दर लगाने लगा, मुझे मालूम था कि इस समय उसकी चूत गीली है लेकिन है कुंवारी, इसलिये क्रीम लगा कर उसकी दर्द को कम करना चाहता था, जबकि मुझे यह मालूम है कि कुंवारी चूत में लंड जायेगा, तो लड़की की हालत क्या होगी।
तभी सोनी ने पूछ ही लिया- ये आप क्या कर रहे हैं?
“तुम्हारी चूत के अन्दर क्रीम लगा रहा हूं ताकि मेरा लंड आसानी से चला जाये और तुम्हें कोई तकलीफ न हो।”
पर्याप्त मात्रा में क्रीम लगाने के बाद मैं उसकी टांगों के बीच आया और लंड को चूत के मुहाने में घिसने लगा, सोनी से बोला- देखो, पहली बार तुम लंड अन्दर ले रही हो, इसलिये तुम्हें थोड़ा दर्द होगा, अगर इस दर्द को तुमने काबू में कर लिया तो फिर खूब मजा आयेगा।
“ठीक है!” वो इतना ही बोली.
मैंने लंड को चूत में घिसते घिसते उसकी चूत में हल्का से अन्दर किया, मेरा सुपाड़े के बहुत थोड़ा ही हिस्सा अन्दर गया होगा कि सोनी के मुंह से उफ्फ निकला।
फिर बोली- सर आपका लंड तो बहुत गर्म है।
“हाँ… साथ ही तुम्हारी चूत भी काफी गर्म है।” कहते हुए मैंने हल्के से एक और झटका दिया, सुपारा जाकर उसकी चूत में फंस गया.
सोनी बोली- मर गई माँ!
मैंने तुरन्त ही उसके ऊपर गिर कर उसके पूरे शरीर को अपने कब्जे में लिया ताकि वो हिल डुल ना सके क्योंकि कभी-कभी हिलने डुलने के कारण भी लंड बाहर निकल सकता है।
मैंने सोनी को कस कर जकड़ लिया.
“सर, छोड़ दीजिए… मैं मर जाऊँगी!”
“नहीं, ऐसी बात नहीं है, बस थोड़ा और बर्दाश्त कर लो, फिर मजा आयेगा।”
मैं दो मिनट उसको जकड़े रहा, लेकिन क्या करता, उसकी चूत की तपिश मुझे और ताप दिये जा रही थी, बर्दाश्त करना मुश्किल हुआ जा रहा था, लेकिन सोनी के दर्द को समझना मेरे लिये जरूरी था।
मैं सोनी को अपनी एक बांह में कस कर जकड़े हुआ था और दूसरे हाथ से कभी उसकी चूची और तो कभी उसके चूतड़ के उभारों को कसकर मसल देता था, ताकि उसका दिमाग बट जाये और साथ ही साथ मैं उसके गालों को, गर्दन को चूमता रहता था.
थोड़ी देर बाद मुझे लगा कि सोनी को कुछ रिलीफ मिला है तो मैंने लंड को बहुत ही थोड़ा पीछे किया और फिर एक तेज का झटका दिया, मेरा आधा लंड सरसरा कर चूत के अन्दर जा चुका था। सोनी की सील टूट चुकी थी क्योंकि मुझे मेरे लंड पर कुछ चिपचिपाहट सी लग रही थी.
उधर सोनी के मुंह से ‘आआह… हाह…आआ… उम्म्ह… अहह… हय… याह… आआ’ निकला और उसका मुंह खुला ही रह गया, एक तेज आवाज के साथ बोली- मादरचोद, निकाल अपना लंड, भड़वे कहीं के…
इन शब्दों का प्रयोग करने के साथ ही वो मुझे धकेलने की हर संभव कोशिश कर रही थी.
लेकिन जब मैं उसके ऊपर से नहीं हटा, तो अपने आपको मुझसे छुड़ाने के लिये मुझे जगह-जगह काटने लगी.
मेरी जिंदगी का यह पहला मौका था कि कोई लड़की मुझे दाँतों से काट रही थी। मुझे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था, फिर भी मैं उसके शरीर को चाट चाट कर उसके अन्दर उत्तेजना को फिर से जगाने की कोशिश कर रहा था। अभी भी सोनी दबी आवाज में लगातार छोड़ने के लिये बोल रही थी, मैं उसकी बातों को अनसुना करते हुए अपने चूतड़ को धीरे धीरे हिला डुला रहा था ताकि लंड उसकी चूत में जगह बनाने लगे, मैं हौले हौले से लंड को थोड़ा बाहर करता और थोड़ा अन्दर करता।
इस तरह करने से अब मेरा लंड उसकी चूत में जगह बना रहा था और साथ ही सोनी भी रिकवर कर रही थी और मेरा साथ देने के लिये वो अपने जिस्म को हिला-डुला रही थी। इधर लंड भी धीरे धीरे जगह बनाते हुए सोनी के चूत के आखिरी सिरे को भी बोर कर चुका था, काफी देर से सोनी को जकड़े रहने के कारण और धक्के लगाने के कारण मेरे घुटना और कमर दर्द करने लगा था। मैं उसके ऊपर लेट गया था, कुछ देर सुस्ताता रहा।
इधर सोनी अभी भी अपनी कमर हिला रही थी और मेरे गालों पर चुम्मों की बौछार कर दी थी।
धीरे धीरे सोनी की कमर तेज तेज हिलने लगी, इधर मैं भी सुस्ता चुका था तो एक बार फिर मैं मैदान में डट गया और जोर जोर से उस छोटी और कोमल चूत का भेदन करने लगा। इधर सोनी भी अपनी कमर उछाल उछाल कर ‘और तेज… और तेज करो!’ बोल कर मेरा साथ दे रही थी.
थोड़ी देर बाद सोनी का जिस्म अकड़ने लगा और वो फिर ढीली पड़ गयी, सोनी के अन्दर का लावा जो मेरे लंड पर गिर रहा था, उसका मुझे अहसास होने लगा था.
मैं भी अब ज्यादा देर तक चलने वाला नहीं था, मैंने भी अपनी स्पीड बढ़ाई और जब मुझे लगा कि मेरा लंड का माल निकलने वाला है तो मैंने लंड को चूत से बाहर निकाला और सोनी के ऊपर लेट गया, मेरा माल निकलने लगा था, जिसका अहसास जब सोनी को हुआ तो उसने अपने हाथ से मेरा लंड पकड़ लिया, मेरा पूरा माल उसके हाथ में लग चुका था। पूरा माल निकलने के बाद मैं सोनी के बगल में लेट गया और अपनी आँखें बन्द कर ली।
थोड़ी देर बाद मैंने सोनी से पूछा- कैसा लगा?
तो वो बोली- बहुत मजा आया! कहानी पढ़ने से ज्यादा तो करने में है।
फिर वो खुद ही बोली- सॉरी… मैंने आपको भला-बुरा कहा।
“कोई बात नहीं… तुम्हें तो दर्द हो रहा था, इसलिये तुमने ऐसा किया।”
कुछ देर बाद मैं उठा तो सोनी भी उठने की कोशिश करने लगी, मैंने उसे अपना हाथ दिया तो वो उठ कर बैठी, तभी उसकी नजर खून से सने चादर पर पड़ी तो बोली- यह क्या है?
मैंने कहा- तुम्हारा कुंवारापन खत्म होने की निशानी है।
फिर मैंने उसे गोदी में उठाया और हाथ धोकर रसोई में गया, हल्का सा पानी को कुनकुना किया और फिर रूई लेकर सोनी की चूत को अन्दर और बाहर से अच्छे से साफ किया और उसकी चूत के अन्दर हल्का सा मरहम लगाया.
उसकी चूत का इलाज करते हुए मैंने सोनी से फिर पूछा- कैसा लग रहा है?
वो बोली- न बाबा ना, अन्दर बहुत जल रहा है और मुझे दर्द भी बहुत हो रहा है।
मैंने कहा- मत डरो, पहली बार है, इसलिये तुम्हें जलन और दर्द महसूस हो रहा है। अब तुम्हें तुम्हारी चूत ही जन्नत का सैर करायेगी।
“नहीं अब मैं नहीं कराऊँगी, मैंने आपकी बात मान कर गलती की है, मुझे तो कहानी ही नहीं पढ़नी चाहिये थी।”
मैं समझ गया था कि अभी उसके मन में थोड़ा बहुत डर है, इसलिये ऐसा बोल रही है।
मैं मरहम लगाने के बाद बोला- सोनी अभी दस मिनट तक तुम पेशाब मत करना… और अब तुम कपड़े पहन लो और यह चादर समेट कर अपने साथ ले जाओ और सही जगह पर इसे फेंक देना।
जब सोनी चलने को हुई मैंने उसे एक बार फिर रोका और उसे कुछ रूपये देते हुए बोला- अपने लिये एक दो जोड़ी अच्छी सी पैन्टी और ब्रा खरीद लेना।
तभी सोनी बोली- लेकिन मुझे पेशाब लगी है?
“हम्म!” मैंने कहा- तो ठीक है, एक काम करो, 10 मिनट बैठ जाओ, मरहम थोड़ा सा अपना असर कर ले, फिर पेशाब कर लेना।
सोनी रूक गयी।
मैं उससे उसकी पढ़ाई के विषय में बात करने लगा।
करीब 10 मिनट बीत जाने के बाद वो उठी और बाथरूम में घुस गयी और नाड़े को खोला और सलवार को नीचे किया, अपनी एक उंगली उसने अपनी पैन्टी में फंसा कर एक साईड किया और पेशाब करने लगी.
फिर वो उठी और सलवार के नाड़े को बांधा और फिर अपनी एक टांग को हल्के से ऊपर उठाकर सलवार के ऊपर ही हाथ चलाने लगी, मुझे समझ में आ गया कि वो उन बूंदों को अपने पैन्टी से पौंछ रही थी जो उसकी चूत से अभी भी निकल रहा था।
फिर उसने अपना बैग उठाया और चली गयी।
मेरा भी काम खत्म हो गया था और अब मेरी बीवी और बच्चे के आने का टाईम हो चुका था तो मैंने लैपटॉप बन्द किया और लेट गया।
उस दिन के बाद सोनी मुझसे मिलने घर नहीं आयी तो मैंने सोचा कि पढ़ाई के वजह से न आयी हो!
लेकिन जब चार दिन बाद मैं वापस काम पर निकला और उस जगह पर जाकर अपनी गाड़ी रोकी, तो मैंने उसको नहीं पाया, तो मेरा दिमाग घूमा।
पाँच दस मिनट मैंने इंतजार किया लेकिन वो दिखी नही। मैं वहां से चल दिया, मुझे लगा कि उस दिन शायद मैंने थोड़ा ज्यादती कर दी हो जिसके वजह से वो मुझसे नाराज हो गयी हो।
मैं इस तरह चार-पाँच दिन उसका इंतजार करता और फिर चल देता। अब मुझे पक्का विश्वास हो गया था कि मैंने थोड़ा ज्यादा उतावलापन दिखा दिया था, इस वजह से वो अब मुझसे दूर हो गयी थी।
अब मैं भी बिना उसका इंतजार किये हुए एक नजर डालता और फिर आगे बढ़ जाता।
पंद्रह दिन बीत चुके थे और मैं चीजों को थोड़ा-थोड़ा भूलने लगा था कि एक दिन उसका मेरे पास फोन आया।
मैंने ‘हैलो’ कहा तो बोली- मैं आपसे मिलना चाहती हूँ। क्या आप मेरे घर आ सकते हैं?
मैंने उससे कारण जानना चाहा तो फिर घर आने के लिये बोली।
मैंने ओके कहते हुए पूछा- किधर आना है?
तो उसने अपने घर का ऐड्रस दिया.
मैं करीब आधे घंटे के बाद उसके घर पहुंचा, देखा तो सोनी की वो सहेली भी वहीं थी, जो कभी कभी मुझे मिल जाती थी। उसने मुझे देखकर अपने हाथ जोड़े और अपने मुंह को टेढ़ा करते हुए अपने होंठ काटे।
मैं समझ नहीं पाया।
घर पर उन दोनों के अलावा सोनी की माँ ही मुझे मिली, उन्होंने भी मुझे देखकर नमस्ते किया।
मैंने सबका अभिवादन स्वीकार किया और सोनी की मम्मी के कहने पर मैं एक कुर्सी पर बैठ गया। अब हम सभी एक दूसरे का चेहरा ही देख रहे थे और मैं सोनी को बार बार इशारा कर रहा था कि आखिर बात क्या है? लेकिन सोनी बताने के बजाय मुझे देखकर मुस्कुरा रही थी और फिर अपनी मम्मी की तरफ देखकर रोनी सी सूरत बना लेती।
आखिरकार मेरा धैर्य जवाब दे दिया तो मैंने सोनी को टोकते हुए बोला- तुमने मुझे क्यों बुलाया है?
तब सोनी की माँ बोली- भईया एक समस्या रहिन्!
मैं बोला- हाँ-हाँ बतावें।
तो सोनी की माँ बोली- भईया पता नहीं आपके कैसन लगी पर आप भले मानुष हो और आपका हम सभै अच्छी तरहे से पहचानित है यही खातिर आपसे बोले का हिम्मत पड़त है।
मैंने भी कहा- हाँ हाँ बोले, कौनो दिक्कत नाही है।
तभी सोनी की तरफ देखते हुए उसकी माँ बोली- अरे सोनिवा तू ही बता दे ना!
बस इतना कहना था कि सोनी बोली- अंकल, बात ऐसी है कि कल लखनऊ से एक कम्पनी का इन्टरवयू कम ट्रेनिंग लेटर आया है। ट्रेनिंग में कम से कम चार दिन लगेंगे।
मैंने जब ट्रेनिंग शब्द सुना, तो मैं चौंका और उसकी तरफ देखा, तो सोनी अपनी माँ की नजरो से बचकर मुझे आँख मारी। उसकी सहेली जो अभी तक उसके पास ही खड़ी थी और जिसका नाम मैं अभी तक नहीं जानता था, उसने भी अपने होंठों को हल्का सा गोल किया।
मैं समझ चुका था कि सोनी के जिस्म की आग भड़की हुयी है और वो इस आग को बुझाने के लिये कोई ऐसा ठिकाना चाहती थी, जहां कोई अवरोध न हो। काफी सारी बातों को सोच कर उसने यह उपाय अपनाया था।
मैं उसकी बातों को समझते हुए बोला- तो मुझसे क्या चाहती हो?
तभी उसकी मां बोल उठी- आप सोनी के साथ लखनऊ चलेन जाते।
“क्या घर में कोई नहीं है इसके साथ जाने के लिये?”
“नहीं है अंकल… नहीं तो मां आपसे क्यों कहती।”
“अच्छा कब चलना है?”
“कल 12 बजे तक पहुंचना है। कल सुबह गंगा गोमती है।”
“गंगा गोमती? अगर ऐतराज न हो तो मेरे पास कार है, उसी से चलते हैं।”
सब एक साथ चुप हो गये, मुझे लगा कि सब सहमत है तो मैंने बोल दिया- ठीक है, कल तुम दोनों उसी स्टॉपेज में मिलना, तो वही से लखनऊ निकल चलेंगे।
तभी सोनी बोली- नहीं, रेशमा नहीं जा रही है, मैं ही अकेली हूँ।
मैंने सोनी की बात काटते हुए बेशर्मी से बोला- अगर रेशमा भी चलती तो एक से भले दो हो जाते।
“मैं चलती तो… लेकिन मैंने घर में पूछा नहीं! और इतनी जल्दी मेरे घर वाले तैयार नहीं होंगे, फिर कभी मैं प्लान बनाऊँगी।”
कुछ देर के बाद मैं वहां से चलने को हुआ तो रेशमा ने सोनी के पिछवाड़े चपत लगाते हुए कहा- ले मेरी जान, जाकर खूब मजा ले लो।
फिर मेरे हाथ को पकड़ते हुए बोली- थोड़ा प्यार से!
“लेकिन तुम्हें कैसे पता लगा?”
“मैं उड़ती चिड़िया के पर गिन लेती हूँ।”
“कैसे?”
बस उस दिन जब कॉलेज नहीं आयी तो मुझे शक हुआ, मैं इसके घर पहुंच गयी, ये लेटी हुयी थी, मुझे देखकर चौंकी, मैंने जानने की कोशिश की, तो यह बता नहीं रही थी। उस समय चाची भी घर पर नहीं थी। मैंने जबरदस्ती इसकी पैन्टी उतार दी, इसकी चूत सूजी हुयी थी, तभी मुझे सारा माजरा समझ में आ गया, फिर मेरे पूछने पर सारी कहानी बता दी।
“फिर सोनी तुम मुझसे इतने दिन से मिली, नहीं मैं यही सारा इंतजाम कर देता, उतनी दूर जाने की क्या जरूरत थी?”
रेशमा ने ही जवाब दिया- ये थोड़ी डरती है कि किसी ने देख लिया तो फिर मुसीबत हो जायेगी, तब मैंने इसके लिये लखनऊ का प्रोग्राम बनाया.
“मुझे तो बता देती।”
“मैं जानती थी कि आप मना नहीं करोगे तो मैंने आपको सरप्राईज करने के लिये ही यह नाटक किया।”
मैंने रेशमा की नाक पकड़ते हुए कहा- तुम लगता है खूब खेली खाई हो?
“नहीं, अपना हाथ जगन्ननाथ! अपने हाथ से काम चला लेती हूं कहानी पढ़ के!”
“तुम भी चलो तो तुम्हें भी लंड का मजा दे दें?”
सोनी से मैंने कहा- तुम भी बोलो चलने के लिये!
सोनी बोली- हाँ हाँ रेशमा चलो, मजा आयेगा।
फिर रेशमा कुछ सोचते हुए बोली- घर वाले तो मानेंगे नहीं, अगर चाची बोले तो हो सकता है, भेज दें।
मैंने सोनी से कहा- सोनी, तुम अपनी मम्मी से बोलो।
“ठीक है!” इतना कहकर वो दोनों चलने लगी।
मैंने कहा- मैं तुम दोनों का इंतजार करूंगा।
कहानी जारी रहेगी.
दोस्तो, मेरी सेक्स स्टोरी इन हिंदी कैसी लग रही है? कृपा करके मेल के माध्यम से मुझे अपने विचार बतायें।
धन्यवाद
आपका अपना शरद सक्सेना
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