लागी लंड की लगन, मैं चुदी सभी के संग-8

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मेरे पति रितेश को देहरादून जाना था, मैं उसके जाने के तैयारी करने लगी।
तभी वह मेरे पास आकर बोला- सॉरी यार… मुझे तुम्हें अकेले छोड़कर जाना पड़ रहा है।
‘कोई बात नहीं यार… अगर मुझे खुजली होगी तो केले से काम चला लूंगी।’

रितेश मेरे पुट्ठे पर हाथ मारता हुआ बोला- यार, तीन चार जवान केले मेरे घर पर ही हैं। मैं सबकी नजर को अच्छी तरह से देखता हूँ, जिसको भी मौका मिलेगा वो तुम्हारी चूत में गोते तुरन्त ही लगा लेगा। खास कर मेरा जीजा अमित!

रितेश की बात सुनकर मुझे झटका लगा, क्योंकि इन चार-पाँच दिनों में मुझे अमित की बिल्कुल भी याद नहीं रही, पर जैसे ही रितेश ने अमित की बात छेड़ी, मेरे चहेरे पर मुस्कान आ गई और मैंने रितेश को कहा- अमित के केले को ही अपनी चूत में लूँगी क्योंकि मुझे उसे अपनी चूत का मूत पिलाना है।

जैसा कि मेरे और रितेश के बीच कोई परदा नहीं था तो हम दोनों ने तय किया कि एक दूसरे को रोज मोबाईल पर दिन भर की बातें बतायेंगे।

खैर रितेश देहरादून के लिये निकल गया, लेकिन मेरे दिमाग में अमित को रिझाने का तरीका नजर नहीं आ रहा था।

इसी उधेड़ बुन में बैठे हुए रात का निवाला अपने मुँह में डाल रही थी कि अमित ने एक बार फिर फ़िकरा कस दिया, बोलने लगा- अगर रितेश के बिना मन नहीं लग रहा है तो उसे वापिस बुला लेते हैं।
कहकर हँसने लगा।

तभी ससुर जी ने मुझसे बड़े प्यार से कहा- बेटी, अब तुम इस घर की हो और तुम्हें किसी भी प्रकार की पर्दे की जरूरत नहीं है। मुझे और तुम्हारी सास को छोड़कर इस घर में तुमसे बड़ा कोई नहीं है जिससे तुम्हें परदा करना पड़े, इसलिये मैं और तुम्हारी सास का मत यह है कि तुम भी नमिता की तरह गाउन पहन कर घर में रह सकती हो।

मैंने संकोचवश कह दिया- नहीं बाबूजीम ऐसे मैं कमर्फटेबल हूँ।
इस पर मेरी सास बोल उठी- नहीं बेटा, तुम नमिता की तरह गाउन पहन सकती हो।

‘ठीक है माँ जी, जब रितेश आ जायेंगे तो मैं उनसे गाऊन मंगवा लूँगी और फिर पहन लिया करूँगी।’

‘तभी बड़ी तेजी से नमिता दौड़ते हुए ऊपर गई और एक गाउन लेकर आ गई और बोली- भाभी, मेरी और तुम्हारी कद काठी एक जैसी है, तुम इसे पहनकर आ जाओ, तब तक मैं मां और बाबूजी को खाना खिला देती हूँ और फिर हम लोग साथ में खाना खायेंगे।

मैं गाउन लेकर ऊपर आ गई, लेकिन यह क्या… मेरे पास तो पैन्टी ब्रा भी नहीं थी क्योंकि रितेश की जिद के कारण मैंने काफी दिनों पहले से ही पैन्टी ब्रा पहना छोड़ दी थी।

तभी मेरे दिमाग में एक खुराफ़ात आ गई और मैं बिना पैन्टी ब्रा के ही गाउन पहन कर आ गई।

कमरे में इस समय मैं, नमिता और अमित ही थे।
बाकी के दोनों देवर भी खाना खाकर जा चुके थे और अब मेरे पास वो हथियार था जिससे अमित को मेरे काबू में आना ही था।

मैं नमिता की नजर बचा कर बीच बीच में अपने को झुका लेती और अमित को अपने चूचियों के दर्शन करा देती।
अमित के चेहरे से निकलते हुए पसीने का मतलब समझ कर मुझे खूब मजा आता।

मैं फिर से झुककर बैठ गई और जैसे ही रितेश की नजर मेरे जिस्म के अन्दर पड़ी तो वो अचानक बहुत तेज खांसने लगा और नमिता अमित के लिये पानी लेने बड़े ही तेजी से रसोई की तरफ भागी।
और मुझे एक पल का मौका मिल गया और मैंने अमित से कहा- और अमित जी, कौन सा दूध पीयोगे, मेरा या जो आ रही है उसका?
मैं कह कर शांत हो कर सीधी बैठ गई और खाना खाने लगी।
अमित के पास अब इतना मौका नहीं था कि वो मेरी बात का उत्तर दे सके।

खाना खाने के बाद हम तीनों ऊपर आ गये।
अमित ने सीढ़ियों के दरवाजे को अन्दर से बन्द कर दिया।
उसके बाद मैं नमिता को गुड नाईट विश करके अपने कमरे में आ गई और अमित नमिता अपने कमरे में घुस गये।

रितेश के बिना यह रात मेरी लिये बिल्कुल बेकार थी इसलिये मुझे नींद नहीं आ रही थी।
तो मैं खिड़की के पास जाकर खड़ी हो गई तो देखा कि अमित केवल अंडरवियर में छत पर सिगरेट पी रहा था।

अमित को देखते ही मैंने अपने कमरे में हल्की सी रोशनी कर दी और गाउन के बंधन को खोलकर खिड़की की तरफ मुँह करके लेट गई और खिड़की की तरफ देखने लगी।

कुछ ही देर में मुझे एक साया मेरी खिड़की की तरफ आता हुआ दिखाई दिया।
मैंने झटपट अपनी आँखों को इस तरह से बन्द कर लिया कि मैं हल्का हल्का बाहर की तरफ देख सकूँ।

तभी मेरी नजर खिड़की पर गई जहां पर अमित मुझे देखने की कोशिश कर रहा था।
लेकिन उसे शायद यह लगा कि मैं सो गई हूँ और वो मुड़ कर जाने वाला ही था कि मैं तुरन्त ही सीधी हो गई और एक तेज अंगड़ाई लेते हुए अपने स्तन को खुजलाने लगी।

मेरी इस हरकत से अमित एक बार फिर मेरी खिड़की की तरफ मुड़ा और मुझे देखने की कोशिश करने लगा और मैंने अंगड़ाई लेते हुए गाउन को पूरा खोल दिया एक तरह से पूर्ण रूप से नंगी हो गई थी और स्तन के साथ-साथ में उसकी उत्तेजना को बढ़ाने के लिये अपने जांघ के आस-पास और चूत को भी खुजला रही थी।

मैं थोड़ी देर तक उसी नंगी अवस्था में पड़ी रही और अमित मुझे घूर घूर कर देखे जा रहा था।

अब मुझे और तरसाना था तो मैंने तय किया कि केवल मेरी चूत के दर्शन मेरे जीजाजी को नहीं होना चाहियें, मैं पलट गई और अपने चूतड़ों का भी भरपूर दर्शन अपने जीजाजी को कराने लगी।

कुछ देर बाद मुझे लगा कि कमरे के साये का आकार छोटा और दूर जाता हुआ प्रतीत हो रहा था।
मैं पलटी तो देखा कि अमित अपने कमरे के अन्दर जा चुका था।

अब मेरी बारी थी, मैंने तुरन्त अपना गाऊन पहना और दबे पांव अमित के कमरे की तरफ बढ़ी।
अमित के कमरे से मध्यम रोशनी बाहर आ रही थी।
मैं अन्दर देखने की कोशिश करने लगी, लेकिन मैं ठीक से देख नहीं पा रही थी।
लेकिन बहुत कोशिश करने के बाद मुझे खिड़की के पास एक ऐसी जगह दिखाई पड़ी जहां से मैं बड़े आराम से नमिता के कमरे के अन्दर के हिस्से को देख सकती थी।

अमित मुझे देखने के बाद काफी उत्तेजित हो चुका था इसलिये उसने अपने सब कपड़े उतार लिये थे जबकि नमिता चादर लपेटे हुए थी और अमित उसकी चादर को खींच रहा था।

नमिता थोड़े गुस्से में थी, वो अमित को लगातार झिड़के जा रही थी, जिसका असर अमित पर कुछ नहीं हो रहा था, वो बस एक ही रट लगाये जा रहा था कि मुझे तुमसे प्यार करना है।

काफी बहाने बनाने के बाद जब नमिता की नहीं चली तो वो बोली- मैं चड्डी उतार देती हूँ, तुम अपना अंदर डाल लो।
‘नहीं… तुम अपने पूरे कपड़े उतारो।’

नमिता चिल्लाते हुए बोली- मैं तेज तेज शोर मचाऊँगी, कम से कम भाभी तो आ ही जायेगी।

अमित अब शांत पड़ गया था, उसने नमिता की पैन्टी उतारी और अपना लंड उसकी चूत में डाल दिया और कुछ ही धक्के लगाने के बाद अमित ढीला पड़ गया और फिर नंगा ही नमिता के बगल में लेट गया।

नमिता भी करवट बदल कर सो गई।

पता नहीं अमित जल्दी क्यों खलास हो गया लेकिन जिस वजह से मैं अमित के कमरे की खिड़की से झांक रही थी, वो बात पूरी नहीं हुई।
मतलब मेरी चूत ने पानी नहीं छोड़ा था।
मैं आकर अपने कमरे में सो गई।

कहानी जारी रहेगी।
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