किराये के घर में मिली कुंवारी चूत-1

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कैसे हो दोस्तो? मेरा नाम पंकज कुमार है और मैं झारखण्ड का रहने वाला हूँ. मेरी उम्र 26 साल है. मेरे शरीर के बारे में बात करें तो मेरा रंग गेहुँआ है. हाइट भी औसत है और दिखने में भी साधारण ही हूँ. यह कहानी जो मैं आपको आज बताने जा रहा हूँ, आज से लगभग दो या तीन साल पहले की है. यह सेक्स कहानी बिल्कुल रीयल है.
आप लोगों से आग्रह करता हूँ की आप मेरी कहानी को ध्यान से पढ़ें क्योंकि यह कहानी मेरे जीवन की आपबीती है. इसमें मैंने किसी प्रकार से झूठ या कल्पित बातें नहीं लिखी हैं. मगर एक बात जरूर बता देना चाहता हूँ कि कहानी के पात्रों की गोपनीयता बनाए रखने के लिए मैंने इसमें व्यक्तियों और स्थानों के नाम बदल दिये हैं.

तो बात उन दिनों की है जब मैंने अपनी बी.टेक. की पढाई कम्पलीट की थी. मैंने अपनी पढ़ाई झारखण्ड के ही एक कॉलेज से पूरी की. आप लोग तो जानते ही हो कि आजकल हर कॉलेज एडमिशन से पहले सौ प्रतिशत प्लेसमेंट दिलाने की बात करते हैं मगर देते नहीं हैं. मेरे साथ भी वैसा ही हुआ. फलतः जॉब ढूंढने के लिए मुझे दिल्ली आना पड़ा.

शुरू में तो मैं 4-5 दिन अपने दूर के रिश्तेदार के घर रहा. बाद में मुझे एक घर के बारे में मालूम चला जिन्हें एक पेइंग गेस्ट चाहिए था. घर में एक कमरा खाली था जो कि दिल्ली के लक्ष्मी नगर इलाके में था. तो मैं वहाँ पता लगाने गया और मैंने घण्टी बजाई तो अन्दर से एक 35-36 साल की शादीशुदा महिला ने दरवाजा खोला.

वह महिला रंग में तो गोरी थी और दिखने में भी ठीक थी, वो मुझसे पूछने लगी- क्या बात है?
मैंने कहा- आपके पास पी.जी. के लिए कमरा खाली है?
वो बोली- है तो सही पर उससे पहले आप अपने बारे में पूरा ब्यौरा दें.
उन्होंने मुझसे पूरी जानकारी ली जैसे- क्या नाम है, कहां से हो, क्या करते हो, तुम्हें रूम के बारे में किसने बताया, तुम्हारा बजट कितना है वगैरह-वगैरह। मैंने सब बताया और बजट के बारे में भी बता दिया. मगर मैंने पहले कमरा देखने के लिए कह दिया.

वो मुझे कमरा दिखाने ले गयीं. घर तो अंदर से ठीक-ठाक था, दो फ्लोर का घर था जिसमें नीचे दो कमरे, एक हॉल एक किचन और एक बरामदा जैसा बना हुआ था और ऊपर एक हॉल और तीन कमरे थे. उन्होंने मुझे ऊपर ही एक कमरा दिखाया. उसमें एक सिंगल बेड लगा था. एक छोटा सा टेबल और उसके साथ एक स्टूल भी था और अंदर से ही एक अटैच्ड बाथरूम भी था. वो कमरा मुझे पसंद आया तो मैंने उसका किराया पूछा तो उन्होंने उसका किराया छह हजार बताया.
मैं बोला- दीदी, मैं इसका पांच हजार तक दे सकता हूँ. किसी तरह वो मान गयी और फिर पूछने लगी- खाना कहां खाओगे?
मैंने बोल दिया कि मैं होटल में खा लूंगा.
तो वह भी बोली- ठीक है.

उसके बाद उन्होंने मुझे सारे रूल्स भी बता दिए कि रात के दस बजे के बाद गेट लॉक हो जायेगा. जिसने कमरा लिया है उसके सिवा कोई और नहीं आना चाहिए. मैंने हर बात में हाँ कर दी. मैंने दो हजार रूपये एडवांस भी दे दिये. मैंने उनसे कल आने के लिए कह दिया.

अगले दिन मैं अपना सारा सामान लेकर करीब 12 बजे पहुंचा और डोर बेल बजाई तो दरवाजा एक लड़की ने खोला जो थोड़ी सांवली थी. मगर उसका फेस बहुत खिला-खिला लग रहा था.
उसने पूछा- क्या बात है?
मैं उसको जवाब देने ही वाला था तभी अंदर से वह दीदी आ गई जिससे पहले दिन मेरी बात हुई थी. दीदी बोली- अरे शिखा, यही वो किरायेदार है. इसे अंदर आने दो.

शिखा ने मुझे अंदर आने दिया. मैंने दीदी से हाय-हैल्लो की और मैं अपने कमरे की तरफ जाने लगा. अंदर जाकर अपना सारा सामान रखा और चूंकि सितम्बर का महीना था तो गर्मी भी थी तो मै पंखा चला कर हवा में लेट गया. थकान के कारण मुझे नींद आ गई.
शाम को करीब छह बजे मेरी आँख खुली, मैंने थोड़ा हाँथ-मुँह धोया और बाहर चाय पीने के लिए निकला. जब मैं नीचे पहुंचा तो देखा कि शिखा हॉल में बैठ कर टीवी देख रही है. मैंने उसको देखा और उसने मुझे.

मैं दरवाजे की तरफ जा ही रहा था कि अन्दर किचन से दीदी आयीं और मेरे से बोली- कहां जा रहे हो?
मैंने कहा- बस बाहर थोड़ा चाय पीने जा रहा हूँ.
दीदी बोली- चाय तो मैं भी बना रही हूँ. तुम हमारे साथ ही चाय पी लो!

मैंने दीदी की बात मानकर बाहर जाने का विचार कैंसल कर दिया और वहीं बैठकर टीवी देखने लगा. टीवी का रिमोट तो शिखा के हाथो में था तो वो ही अपनी पसंद का कार्यक्रम देख रही थी. लगभग 5 मिनट के बाद दीदी चाय ले कर आयी और मुझे दी. फिर दीदी ने मुझसे बहुत बातें पूछीं और फिर बताने लगी कि शिखा ने भी बी.टेक. की हुई है और उसका भी इसी साल कम्पलीट हुआ है और वो भी जॉब ढूंढ रही है.
फिर मैंने दीदी से पूछा- दीदी आपका नाम क्या है?
तो उन्होंने अपना नाम कोमल बताया.

उसके बाद शिखा ने मुझसे पूछा कि मैंने बी.टेक. कहाँ से किया है और मेरी ट्रेड क्या थी? यही सब नॉर्मल बातें हुई और वहीं पर मुझे ये मालूम चला कि शिखा की ट्रेड कंप्यूटर साइंस थी और मेरा तो इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन था और इसी तरह थोड़ी बहुत बातें हुईं.

उसके बाद मैंने अपनी चाय खत्म की और अपने रूम में आ गया. फिर रात को मैं खाना खाने के लिए बाहर गया और वह रात ऐसे ही बीत गयी. अगले दिन मैंने बाहर जाकर पहले तो मैंने अपने फोन के लिए एक सिम ली फिर साइबर कैफे पर जाकर नौकरी के लिए अपना प्रोफाइल बनाया जो कि मेरे लिए सबसे ज्यादा जरूरी था.
मैंने वहीं पर एक मैस वाले से भी बात की. बात करने पर पता चला कि वह दो हजार रूपये में पूरा महीना खाना खिलाता है.

अगले दिन मेरी सिम चालू हो गयी. मैंने उसमें इंटरनेट रिचार्ज भी करवा लिया ताकि मुझे बार-बार मेल चेक करने के लिए साइबर कैफे पर न जाना पड़े.
शुरू के दिनों में तो मैं सारा दिन इंटरनेट पर नौकरी ढूंढता रहता था और जगह-जगह अप्लाई करता रहता था. सारा दिन इसी में निकल जाता था. मैं साथ में ही इंटरव्यू की तैयारी भी कर रहा था. मेरे पास पहले से ही लैपटॉप था इसलिए पढ़ाई के साथ साथ मैं मूवी वगैरह भी उसी में देख लिया करता था. मन बहलाने के लिए यह सब करना पड़ता है.
वैसे तो मैं शाम को अक्सर बाहर निकलता था क्योंकि लक्ष्मी नगर में स्टूडेंट बहुत रहते हैं और शाम को बहुत चहल-पहल भी रहती है तो घूमने में मन भी लगता था और इसी तरह मेरे दिन कट रहे थे. कभी कभार शिखा और कोमल दीदी से भी हाय-हैल्लो हो जाती थी. कोमल दीदी ही मुझसे ज्यादा बात करती थी और मुझे चाय के लिए भी पूछ लेती थी.

लगभग दस दिन के बाद मुझे नोएडा की एक कंपनी से इंटरव्यू के लिए कॉल आया और इंटरव्यू के लिए दिन और समय भी फिक्स हो गया. मेरे पास एक दिन का टाइम था. इंटरव्यू वाले दिन मैं तैयार होकर जाने लगा तो शिखा ने मुझे हल्की सी स्माइल दी.
मगर किस्मत से मेरा इंटरव्यू अच्छा नहीं गया और मैं उदास होकर वापस आ गया. मैं अपने कमरे में ऊपर की तरफ सीढ़ियों पर जा ही रहा था कि कोमल दीदी मुझसे इंटरव्यू के बारे में पूछने लगी.
मैंने बता दिया कि मेरा इंटरव्यू ठीक नहीं गया. मैं काफी उदास था क्योंकि रिजेक्ट हो गया था.

शाम को जब मैं बाहर दिल बहलाने के लिए जाने लगा तो दीदी ने मुझे चाय पीने के लिए टोक दिया.
मैं उनकी बात मानकर वहीं बैठ गया और कुछ देर के बाद शिखा भी बाहर आ गयी. तीनों में फिर से वही इंटरव्यू को लेकर बात होने लगी.

कुछ देर बाद कोमल दीदी ने कहा कि तुम दोनों ही एक ही फील्ड की जॉब की तलाश में हो तो बेहतर होगा कि तुम दोनों एक-दूसरे की मदद कर लिया करो. तुम दोनों को ही फायदा रहेगा.
शिखा ने कहा- हां, अब अगली बार जब तुम कहीं इंटरव्यू के लिए जाओ तो मुझे भी बता देना. मैं भी साथ में चलूंगी.
मैंने कहा- ठीक है. जैसे ही किसी अच्छी कंपनी से कॉल आएगा मैं शिखा को भी बता दूँगा. इससे दोनों की हेल्प हो जायेगी और दोनों का साथ भी हो जायेगा.

धीरे-धीरे शिखा अब मेरे रूम में भी आ जाती थी.

एक दिन की बात है कि बहुत तेज बारिश हो रही थी. रात का टाइम था और मुझे खाना खाने के लिए मैस वाले के पास जाना था. मेरे पास छाता नहीं था. मैंने शिखा से छाता मांग लिया मगर वापस आते समय मैं पूरा ही भीग गया. दीदी ने मुझे भीगी हालत में देख लिया. मैं अपने रूम में जाने लगा.

रूम में जाकर मैंने कपड़े बदले और थोड़ी पढ़ाई की और कुछ देर के बाद मैं सो गया. अगले दिन मैं जब दोपहर का खाना खाने के लिए जा रहा था तो दीदी ने कहा- खाना खाने जा रहे हो?
मैंने कहा- जी दीदी.
दीदी- कितना देते हो खाने के लिए?
मैं- दो हजार रूपये महीना.
दीदी- कितने टाइम खिलाते हैं?
मैं- 2 बार.
दीदी ने कहा- अगर तुम मुझे ही दो हजार रूपये दे दो तो मैं ही तुम्हारे लिये खाना बना दिया करूंगी. घर का खाना भी हो जायेगा. तुम्हें बाहर भी नहीं जाना पड़ेगा. साथ में मैं नाश्ता भी दे दिया करूंगी.
मैंने कहा- ठीक है दीदी.

मुझे काफी खुशी हुई कि चलो अब बाहर खाने की टेंशन नहीं रहेगी. खाना भी घर का हो जायेगा और नाश्ता भी मिल जाएगा सुबह में.
धीरे-धीरे मैं दीदी के साथ काफी घुल-मिल गया था. मैं और शिखा अब साथ-साथ इंटरव्यू देने जाते थे. जब मुझे फोन आता तो मैं शिखा को साथ ले लेता था और जब उसे फोन आता तो वह मुझे साथ ले जाती थी. शिखा मेरे रूम में आकर पढ़ाई के बारे में डिस्कस भी किया करती थी.
अब मैं शिखा के साथ भी काफी घुल-मिल गया था. हम दोनों आपस में काफी बातें शेयर करने लगे थे. हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गए थे. ऐसे ही करते-करते दो महीने निकल गये.

एक दिन मैं रात को पढ़ाई कर रहा था. मुझे प्यास लगी और मैं पानी लेने के लिए नीचे आ गया क्योंकि नीचे आर.ओ. लगा हुआ था. मुझे दीदी की आवाज सुनाई दी. वह अपने कमरे में किसी से बात कर रही थी. ऐसा लग रहा था कि वह रो रही है और किसी को अपनी बातों से मना रही है.
मैंने ज्यादा कुछ ध्यान नहीं दिया और फिर मैं अपने कमरे में चला गया.

अगले दिन मैं शिखा के साथ पढ़ाई कर रहा था. दो दिन के बाद हम दोनों को इंटरव्यू के लिए जाना था. रात को दीदी की बातों के बारे में मैंने शिखा से बात की तो पता चला कि भैया जयपुर की किसी फैक्ट्री में काम करते हैं. महीने में एक या दो बार ही घर आते हैं. इस बार भैया से दीदी की लड़ाई हो गई थी. भैया पांच महीने से घर नहीं आए थे. शिखा ने बताया कि इसलिए भाभी उनको मना रही होंगी.

उसी दिन मुझे शिखा और दीदी के रिश्ते के बारे में पता चला. इससे पहले मैं समझता था कि कोमल और शिखा दोनों सगी बहन हैं. मैंने कभी यह बात जानने की कोशिश ही नहीं की थी. कोमल दीदी की शादी को छह साल हो गये थे. अभी तक उनका कोई बच्चा पैदा नहीं हुआ था.

दो दिन के बाद मैं और शिखा दोनों ही इंटरव्यू के लिए गए. हम दोनों को गुड़गाँव जाना था. इंटरव्यू के पहले राउंड में शिखा बाहर हो गई और दूसरे राउंड में मैं भी बाहर हो गया. हम दोनों जब कंपनी से बाहर निकले तो शिखा कहने लगी कि उसके सिर में दर्द हो रहा है और उसका सिर बहुत भारी सा लग रहा है.

वह अचानक से चक्कर खा कर एक जगह बैठ गयी. मैंने शिखा को संभाला और उसको पानी पिलाया. फिर मैंने उसके बैग को संभाला और जब वह थोड़ी नॉर्मल हो गई तो हम दोनों घर वापस आ गये. घर आते ही शिखा सो गयी और मैं भी अपने कमरे में चला गया.

चूंकि दिसम्बर का महीना शुरू हो गया था और ठंड भी बढ़ने लगी थी. शाम के करीब 7 बजे का वक्त था जब मैं अपने कमरे में अंदर था और दरवाजा बस ढाल दिया था मैंने. अंदर से लॉक नहीं किया गया था.
किसी ने मेरे कमरे के दरवाजे पर आकर नॉक किया तो अंदर से ही पूछा तो पता चला बाहर शिखा खड़ी थी. शिखा ने कहा कि वह मेरे लिये चाय लेकर आई है. उसके बाद वह अंदर आ गयी और मेरे सामने चाय का कप रख दिया.

मैंने कहा- अरे तुम क्यों आ गई? मुझे बुला लिया होता.
शिखा ने कहा- मेरी तबियत अब ठीक है.
मैंने पूछा- दीदी कहाँ पर हैं?
शिखा ने कहा- दीदी बाजार गई हैं. मैंने सोचा कि चाय बना लेती हूँ. मेरा भी पीने का मन था और फिर तुम्हारे बारे में सोचा तो एक कप तुम्हारे लिए भी लेकर आ गई.
मैंने शिखा को थैंक्स बोला और उसे बैठने के लिए कहा. वह मेरे बेड पर बैठ गई.

शिखा बोली- आज मेरी मदद करने के लिए थैंक्स. तुमने मुझे संभाला और मुझे घर तक लेकर आए.
मैंने कहा- इसमें थैंक्स की क्या बात है, मेरी जगह कोई और होता तो वह भी यही करता.
वह बोली- और बताओ, क्या कर रहे हो?
मैंने कहा- कुछ नहीं, बस ऐसे ही बैठा हुआ था.

शिखा बोली- तुम कहीं बाहर घूमने नहीं जाते क्या? तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है क्या?
मैंने कहा- नहीं, अभी तक तो नहीं है. कॉलेज लाइफ में कभी कोई ऐसी लड़की मिली ही नहीं. या फिर यूं कहो कि मेरे दिल को कोई भायी ही नहीं. तुम बताओ, तुम्हारा कोई बॉयफ्रेंड है क्या?
वह बोली- अब तो नहीं है.
मैंने पूछा- अब नहीं है मतलब? तो पहले था क्या!
उसने कहा- हाँ, कॉलेज में तो था.
मैं- तो फिर अब कहाँ गया वो?
शिखा- उसकी जॉब लगने के बाद वह मुंबई चला गया. मैंने तो उसको मना भी किया कि यहीं कोई जॉब ढूंढ लो मगर वह नहीं माना. उसके बाद से हमारी बात-चीत बंद है.

मैंने मन ही मन सोचा कि अजीब लड़की है ये. अगर उसकी जॉब लग गई तो यह क्यों रोक रही थी उसको? खैर, मुझे क्या लेना था इन सब बातों से. मैंने बात को आगे बढ़ाया और उसके बाद हम दोनों में काफी सारी बातें हुईं. उस दिन मैंने पहली बार महसूस किया शिखा मेरे साथ आज कुछ ज्यादा ही चिपक कर बैठी थी. इसी बीच हमारी चाय भी खत्म हो गई.

मैं खाली कप रखने के लिए उठने ही वाला था कि शिखा ने मेरे हाथ से कप लेते हुए कहा कि वह खुदी ही रख देगी. उसके बाद वह अपने पुराने बॉयफ्रेंड के बारे में कुछ और बातें बताने लगी और बातें करते-करते उदास हो गई. मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा और उसको थोड़ा सा दिलासा देने की कोशिश की.
शिखा और मेरे बीच अब थोड़ा-बहुत टच वगैरह हो जाना आम बात हो चुकी थी. मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा ही हुआ था कि वह मेरे हाथ को पकड़ कर रोने लगी.
मैं थोड़ा घबराया और सोचने लगा कि अब इसको क्या हुआ? इसको चुप कैसे कराऊँ?

मैं उसको चुप करवाने की कोशिश करने लगा और मेरे दोनों हाथ उसके चेहरे पर चले गए. मैंने दोनों हाथों से उसके चेहरे को पकड़ रखा था. मैं उसको समझा ही रहा था. हम दोनों के चेहरे अब आमने-सामने थे और हम दोनों एक-दूसरे को देख रहे थे. उसने मुझे गौर से देखा और उसके बाद आंखें बंद करके अपने चेहरे को आगे कर दिया जैसे वो मुझे किस करने के लिए कह रही हो.

एक बार तो मेरा भी मन किया कि उसके होंठों पर अपने होंठ रख दूं मगर मैंने खुद पर काबू बनाए रखा और सोचा कि कहीं मैं कुछ गलत सोच कर कुछ गलत न कर बैठूं. उसके बाद अचानक से दरवाजे की घंटी बजी और हम दोनों ख्यालों से बाहर निकले और वह उठकर दरवाजा खोलने के लिए उठी. उसकी दीदी शायद बाजार से वापस आ गई थी.

शिखा के जाने के बाद मेरे मन में वही सीन चल रहा था. आखिर शिखा ने ऐसे बिहेव क्यों किया आज?

रात को जब दस बजे का टाइम हो गया तो दीदी की आवाज आई कि खाना रेडी हो गया है. मैं खाना खाने के लिए नीचे गया. खाना खाते समय मैं शिखा को देख रहा था और वह भी नजरें बचा कर मुझे देख रही थी.
कभी बीच में हमारी नजरें मिल जातीं तो हल्की सी स्माइल दे देते दोनों. आज हम लोग बहुत कम बातें कर रहे थे.

दीदी जल्दी ही अपना खाना खत्म करके चली गयी. शिखा अभी भी बैठी हुई थी. जब वह खाना खत्म करके जाने लगी तो जाते हुए भी मेरी तरफ ही देख रही थी. जाते हुए वह मुस्कराई और बोली- तुम बेवकूफ हो बिल्कुल!
वह हँसते हुए चली गई. मैं अपने कमरे में गया और रात भर सो नहीं पाया. मैं यही सोचता रहा कि वह ऐसा क्यों बोल कर गई?

इसी तरह चार-पांच दिन बीत गए. हम दोनों में बस नॉर्मल बात होती थी. पढ़ाई और इंटरव्यू को लेकर ही ज्यादा बातें होती थीं. मगर अब हम पहले से ज्यादा खुल गए थे.

एक दिन की बात है जब दीदी घर पर नहीं थी. हम दोनों साथ में पढ़ाई कर रहे थे. मेरे मन में वही बात आयी और मैंने शिखा से पूछ लिया कि उसने उस दिन मुझे बेवकूफ क्यों कहा?
वह बोली- बेवकूफ क्यों न बोलूं?
मैंने कहा- मगर किस बात पर बोला यह तो बताओ.

शिखा एकदम से मेरे पास आकर मुझसे सट गई और मुझे उसने बिना कुछ सोचे समझे ही किस करना शुरू कर दिया.
इससे पहले कि मैं कुछ सोच पाता और उसकी हरकत पर कुछ रिएक्ट कर पाता वह मेरे होंठों को चूसने लगी थी और कुछ पल तक होंठों को चूस कर वह फिर से मुझ से अलग हो गई.
ऐसा करने के बाद वह दूर हटी और बोली- यही मौका उस दिन भी मैं तुम्हें दे रही थी और तुम बेवकूफों की तरह मेरी शक्ल देख रहे थे.

अब मैं सच में शिखा की तरफ बेवकूफों की तरह देखता रह गया. उसने मुझे कुछ सोचने का मौका तक नहीं दिया और मुझे किस करके वापस हट गयी.
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