होटल रूम चुदाई स्टोरी में पढ़ें कि मैं एक होटल के कमरे में अपनी बहन की जेठानी के साथ था. हम दोनों अपनी पहली चुदाई के लिए तैयार थे. कैसे चोदा मैंने उसे?
दोस्तो, मैं चन्दन सिंह आपका एक बार फिर से अपनी सेक्स कहानी में स्वागत करता हूँ.
कहानी के पहले भाग
मेरी बहन की जेठानी की अन्तर्वासना
में अब तक आपने पढ़ा था कि नंदा मेरे लंड से खेल कर मेरे साथ चिपक कर बेड पर आ गई थी.
अब आगे होटल रूम चुदाई स्टोरी:
मैं नीचे चूमते हुए से ऊपर तक आ गया. ऊपर आने के बाद नंदा को पीठ के बल लेटने को बोला.
फिर मैंने उस पर चुंबनों की झड़ी लगा दी. कभी कभी जिस चुंबन से नंदा आह करती थी, वहां दांतों से काट देता था.
इससे उसे मस्ती आ गयी थी.
वो मुझे खींचती हुई अपने सीने पर लाकर बोली- अभी बहुत हो गया.
मैं उसका इशारा समझ गया और अपने लंड को पकड़ कर उसकी चूत पर ऊपर से नीचे तक लंड का सुपारा घुमाने लगा.
नंदा लंड के स्पर्श से तड़प उठी.
उसने मेरे हाथ से लंड खींच कर अपनी चूत पर रखा और बोली- अब इसे अन्दर जाने दो.
उसके कहने की देर थी, मैंने दबाव बना दिया.
वैसे ही चूत पहले से गीली थी, मेरे एक दबाव से लंड चूत को चीरता हुआ गर्भाशय तक पहुंच गया.
नंदा के मुँह से चीख निकलने वाली थी कि मैंने अपना हाथ उसके मुँह पर पहले ही रख दिया था.
कुछ देर बाद हाथ हटाया, तब वो नशे में बोली- धीरे पेल साले, क्या मैं गधे के लंड जैसे को भी सहन कर सकती हूँ?
मैं चुपचाप पड़ा रहा. उसके सीने पर बूब्स को सहलाने लगा और फिर से चूमने लगा.
कुछ देर बाद नंदा अपनी चूत खुद ही ऊंची नीची करने लगी.
तब मैं बोला- क्या अब गधे के जैसा सहन हो रहा है?
वो हंस कर बोली- नहीं मगर झेल लूंगी.
प्रत्युत्तर देते हुए ही उसने मेरे मुँह को खींचा और होंठों पर चुंबन देने लगी.
चुंबन देते देते वो मेरी जीभ को आम की गुठली की तरह चूसने लगी.
साथ में अपनी गांड को ऊपर करने लगी.
उसके मुँह से हूँ हूँ की तेज आवाज आने लगी थी.
मैं समझ गया था कि अब नंदा की सहन शक्ति खत्म हो चुकी है.
हम दोनों होंठों से चुंबन लेते हुए चुदाई करने लगे.
जब जब मेरा लंड उसके गर्भाशय से टकराता, तब तब वो मुझसे चिपट जाती.
मेरे दोनों हाथ उसकी पीठ के पीछे थे, वो उन्हें बांहों के पास से जोर से पकड़ लेती और अपनी चूत की जड़ में लगे प्रहार के जवाब में मेरे होंठों को जोर से चूस कर जवाब देती.
इस तरह हमारी चुदाई चल रही थी. बीच बीच में उसकी चूत पानी छोड़ रही थी.
आखिर दुखी होकर उसने मुझे हटा दिया और उठ गई.
उसने सामने पड़े अपने पेटीकोट से अपनी चूत के अन्दर का लिसलिसापन साफ कर लिया.
पेटीकोट हाथ में लेकर वापस बेड पर आते ही उसने मुझे लिटा दिया. अपने दोनों पैरों को एक दूसरे पर रख कर लंड को अपने हाथ में ले लिया.
लंड अभी भी भीगा हुआ था; उसने पेटकोट से लंड को साफ किया और लंड को चूत पर सैट करके धीरे से अन्दर लेने लगी.
धीरे धीरे पूरा लंड गर्भाशय तक पहुंच गया.
एक बार मीठी आह भर कर उसने अपने दोनों हाथ से मेरे सीने पर अपने दूध रगड़े और मम्मों को हाथ में लेकर मुझसे रगड़ने लगी.
फिर दूध मेरे सीने पर टिका कर अपने दोनों हाथ मेरे सीने के दोनों ओर रख दिए.
फिर अपनी गांड को ऊपर करने से पहले उसने अपनी चूत को संकुचित कर लिया.
मुझे भी ऐसा अहसास हुआ, जैसे मेरे लंड को कोई दबा रहा है.
नंदा धीरे धीरे ऊपर होती जा रही थी.
जब सुपारा चूत के बाहर आने वाला होता था, तब रुक कर वापिस चूत को संकुचित रख कर लंड को चूत में लेने लगती थी.
इस तरह का अद्भुत आनन्द मुझे पहली बार मिल रहा था.
दस पन्द्रह मिनट की चुदाई में उसकी चूत ने तीन बार पानी छोड़ दिया था.
वैसे उसकी चूत की मस्त चुदाई के दौरान मेरे लंड को कस कर पकड़ने के कारण कुछ क्षणों में भी स्खलित होने वाला था.
नंदा को अपनी चूत का पानी से मजा नहीं आ रहा था.
उसने एक बार फिर से पेटीकोट उठाया और अपनी चूत के अन्दर कपड़ा डाल कर अच्छी तरह से साफ किया.
बाद में मेरे लंड को भी साफ किया और पेटीकोट को साइड में रख कर वापिस अपनी पुरानी पोजिशन बना कर लंड को चूत से सटा कर धड़ाम से बैठ गयी.
अब उसकी चूत मेरे लंड लेने की अभ्यस्त हो गयी थी.
इस पर मुझे एक विचार आया.
मैंने नंदा से पूछा- क्या हुआ, तुम्हें तो मेरा गधे जैसा लगता था. अब क्या हाथी का लोगी?
इस पर वो शर्मा गयी और बोली- सच में यार, पहली बार देखा और लिया. शादी के बाद आज ही मजा आया. सच में मुझे नहीं मालूम था कि बड़े लंड का कमाल क्या होता है. तुम में सबसे खास बात जो है, वो किसी में नहीं. तुमने पांच छह बार मेरी चूत को गीली कर दिया. ऐसा करने वाले मेरे जीवन के तुम पहले मर्द हो वरना एक बार चूत से पानी नहीं छूटा.
मैंने कहा- हां, मैंने तुम्हारी चूत का कमाल देखा है. जिस तरह से तुम्हारी चूत लंड को निचोड़ती है, उससे तो लंड की माँ चुद जाती है.
वो हंस पड़ी.
फिर नंदा अपने पैरों को धीरे से मोड़कर पीछे ले गयी.
इस वक्त वो मेरे ऊपर सीधी लेटी हुई थी.
नंदा ने अपने दोनों घुटने के बल चूत को हिलाने लगी और दोनों हाथ मेरे कंधों और पीठ के पीछे ले गई.
उस अवस्था में वो अपने मुँह से होंठों का चुम्बन लेते लेते चुदाई करने लगी.
उसकी संकुचित चूत मुझे एक बार फिर से स्खलन की ओर ले जा रही थी.
तब मैं मन को दूसरे विचार में लगा कर नंदा की चूत का पानी छूटने का इंतजार करने लगा.
करीब दस मिनट में उसकी चूत पिनपिनाने लगी. मैं भी उसका बराबर से साथ देने लगा.
नंदा की गांड जब ऊपर से नीचे आती, तब मैं मोर्चा सम्भाल कर नीचे से ऊपर लंड को कर देता. हम दोनों की रगड़ाई में मुँह से आहें निकलने लगीं.
नंदा भी समझ चुकी थी कि मैं भी स्खलित होने वाला हूँ.
हमारी जोरदार चुदाई का अंत उस वक्त आ गया, जब हम दोनों एक साथ स्खलित हुए.
दोनों ने एक दूसरे को कस कर पकड़ लिया.
हम दोनों के मुँह से गर्म आहें निकल रही थीं.
स्खलन का तूफान गुजरने के बाद भी नंदा अमूमन औरतों की तरह नहीं उठी, उल्टा वो अपनी बांह मेरे सीने पर रख कर दूसरे हाथ से बालों में घुमाती हुई बोली- मेरा एक काम करोगे?
मैंने पूछा- बोलो.
वो बोली- अभी नहीं बाद में बताऊंगी.
मैंने ओके कह दिया.
वो आगे कहने लगी- मुझे तुमसे इतनी मस्ती मिलेगी, इसकी एक परसेंट उम्मीद नहीं थी. खैर जो भी हुआ, पर एक बात सत्य है कि समय से पहले और भाग्य से अधिक कभी नहीं मिलता. वो बार आज चरितार्थ हो गयी.
तब मैंने पूछा- यूं पहेलियां क्यों बुझा रही हो. आखिर कहना क्या चाहती हो?
तब वो बोली- तुम्हारे साथ बाकी की जिन्दगी को गुजारना चाहती हूँ.
मैं बोला- मेरा भी घर है … भरा पूरा परिवार है.
तब वो बोली- मैं तुम्हें हर बात से खुश रखूंगी. बस जैसा मैं कहती हूँ, तुम वैसा करते जाना … बाकी मैं सम्भाल लूंगी.
मैंने कुछ नहीं कहा.
एक बार बातों को विश्राम देकर दोनों ने कपड़े पहने और कमरे से बाहर निकल कर दरवाजा को लॉक कर दिया.
नंदा ने इस समय जींस और स्कर्ट पहना हुआ था, उसने अपनी एक बांह मेरे बांह में डाली हुई थी.
लिफ्ट द्वारा हम दोनों नीचे आए.
नीचे आने के बाद वो बोली- अगर डिनर कुछ देर बाद लें तो कैसा रहेगा. एक बार बार में बैठ कर कुछ पी लेते हैं.
मैंने हामी भर दी.
हम दोनों बार में एकान्त में बैठ गए.
उसने वाइन का ऑर्डर कर दिया.
वो मेरे से चिपक कर बैठ गयी.
कुछ देर में वेटर वाइन और सामान टेबल पर सजा कर चला गया.
नंदा ने वाइन का पैग उठाया और चियर्स करके एक घूंट भर कर बोली- काश तुम मेरी जिन्दगी में पहले आ जाते. खैर जो भी होता है, सही समय पर होता है. चन्दन मैं तुम्हें पाकर अब खोना नहीं चाहती. मेरी जवानी ऐसे ही बीत गयी. अब तुम मेरे जीवन में आए हो, तो एक बार फिर से जवानी की अंगड़ाई फूटने लगी है.
मैंने पैग खाली किया और दूसरा पैग बनाने लगा.
वो बोली- अब नया पैग मत बनाओ, आज से हम एक ही बर्तन का उपयोग करेंगे.
इतना कह कर अपना पैग खाली करके अपने गिलास को साइड में रख दिया. उसने मेरे वाले गिलास में पैग बनाया और मेरे मुँह से लगा दिया.
मैंने एक घूंट ले लिया, फिर नंदा ने उसी से एक घूंट लेकर गिलास को टेबल पर रख दिया.
अब उसने मेरे परिवार के बारे में पूछा. अंत में कितनी औरतें मेरी जिन्दगी में आईं, ये पूछा.
मैंने सोच कर बताया कि मैं कभी भी एक स्त्री से संतुष्ट नहीं होता हूँ. पता नहीं कितनी औरतें मेरे साथ सो चुकी हैं. अब तो संख्या भी याद नहीं है.
अंत में उसने मुझसे पूछा- तुम्हें किस तरह की औरतें पसन्द हैं.
जब मैंने उसे बताया- कच्ची कली पसंद है.
ये सुनकर नंदा एकदम खामोश हो गयी.
इस चुप्पी के बीच कभी वो पैग का घूंट पीती, कभी मेरी पैंट के ऊपर हाथ फिरा कर मेरे सोये हुए लंड को वापिस तैयार करने लगती.
बार से फ्री होकर हम दोनों डिनर करने लगे और कमरे में पहुंच गए.
उधर कपड़े बदल कर हम दोनों ने सिर्फ हाफ कोट पहना हुआ था.
कोट पहनते समय शरीर पर कोई भी कपड़ा नहीं रखा मतकब कोट के अन्दर हम दोनों नंगे थे.
बेड पर लेटते हुए नंदा को चुदाई की इच्छा हुई.
वो बाथरूम में जाकर एक भीगे कपड़े को ले आई.
उससे लंड को साफ करके वो लंड को मुँह में लेकर चूसने लगी.
उसका लंड चूसने का तरीका बहुत बढ़िया लगा.
कभी वो अंडकोष को चुम्बन देती, कभी सुपारे पर जीभ घुमाती.
धीरे धीरे चुम्बन देते देते ऊपर से नीचे गांड के करीब आ गयी.
उसने एक बार मेरी गांड के छेद पर चुम्बन दिया तो बड़ा मजा आया.
मेरे मुँह से सिसकी भी निकल गयी.
उसने मेरी कमजोरी भांप ली और अपना पूरा ध्यान मेरी गांड पर लगा दिया.
अब वो मेरी गांड को अपनी जीभ से बेतहाशा चूमने लगी. कभी कभी तो अपनी जीभ की नोक को गांड के छेद में घुमाने लगी.
सच में मैं जन्नत की सैर करने लगा था. मेरे मुँह से सिसकारियों के अलावा कुछ नहीं निकल रहा था.
जब मुझसे ज्यादा सहन नहीं होता, तो मैं गांड को सिकोड़ कर पीछे कर लेता.
इस तरह जबरदस्ती होने लगी.
फिर मैंने नंदा को उठाया और पलंग पर सीधा लिटा कर अपने लंड को उसकी चूत में पेल दिया.
मेरा लंड बिना किसी तकलीफ के नंदा की चूत में आ जा रहा था.
नंदा अपनी गांड ऊपर से नीचे करती, तब मैं लंड को बाहर निकाल कर झटके से वापिस अन्दर डाल देता.
इस तरह से बिना रुके पेलमपेल हो रही थी.
आधा घंटा में हम दोनों स्खलन की कगार पर पहुंच गए.
नंदा ने अपने दोनों हाथ मेरी कमर के ऊपर कंधे पर कर दिए और दोनों पैरों को मेरे पैरों से लिपटा दिया.
अब हम दोनों स्खलन के लिए तैयार थे, दोनों ही पूरी ताकत से पिलाई करने लगे.
एकदम से दोनों के फव्वारे छूटने के साथ मुँह से आह उह की आवाज आई और इसी के साथ दोनों ने एक दूसरे को जकड़ लिया था.
जब झड़ने का तूफान गुजर गया, तब दोनों अलग हुए.
फिर बाथरूम में जाकर लंड और चूत को साफ करके वापिस आकर एयरकंडिशनर को पूरा ठंडा करके चादर खींच कर लिपट कर सोने की कोशिश करने लगे.
मैंने नंदा से पूछा- तुम भी चुदाई में बड़ी अच्छी मास्टर हो.
वो बोली- नहीं यार मेरा तो मीनोपॉज आ गया था … साला वो मेरा बॉस, उसने मुझे किसी डॉक्टर से मेरा इलाज करवाया. उसके बाद मुझे वापिस सेक्स की इच्छा होने लगी, पर बॉस के जाने के बाद महिला बॉस आने से सब कुछ गड़बड़ हो गया. घर पर कोरोना के कारण लड़कियां कम्पनी का काम घर पर करती थीं और मैं कहीं मुँह मार नहीं सकती थी. जब तुमको बेंगलोर फ्लाइट का टिकट भेजा, उसी समय मन में पक्का सोच रखा था कि तुम कैसे भी होओगे, तब भी मैं तुमसे चुद लूंगी. मैं सोचती थी कि मैं तुम्हें चोद कर रख दूंगी. मगर मेरा दांव उल्टा पड़ गया. तुम तो कामदेव के अवतार हो. अब तो मैं तुम्हारी गुलाम हो गयी हूँ. अब से पहले ऐसी चुदाई किसी ने नहीं की. अब चाहे कुछ भी हो, तुम्हारे संग ही जीना मरना है.
जब मैंने उसे वापिस बताया कि मैं परिवार वाला हूँ.
तब वो बोली- उसकी चिन्ता मेरे ऊपर छोड़ दो.
मैंने वापिस बताया कि मैं कभी किसी एक का होकर नहीं रहा, वैसे भी मुझे नई नई लड़कियां पंसद हैं.
वो बोली- कुछ तो मेरा भरोसा करो, तुम्हारी हर इच्छा को मैं पूरी करूंगी. एक समय ऐसा आएगा कि तुम खुद मुझे छोड़ कर कहीं नहीं जाओगे.
मैं बोला- ऐसा आज तक नहीं हुआ और न आगे होगा.
नंदा बोली- लगा लो शर्त.
मैंने अपना हाथ आगे किया, उसने भी हाथ मिला कर कहा- अगर तुमने मेरे घर को छोड़ दिया, तब तुम जैसे कहोगे, मैं वैसा करूंगी. अगर तुम मेरे यहां हरदम साथ रहने लगो, तब क्या दोगे?
मैं बोला- इसका एक समय फिक्स कर दो.
उसने कहा- दो महीने में मैं तुम्हें अपने घर ले जाऊंगी. मैं तुम्हें एक साल का समय देती हूं, अगर तुम मुझे छोड़ कर चले गए, तो मैं हार मान लूंगी. एक साल तक तुम मेरे साथ रहे, तो तुम हार मान लेना.
इतना कह कर उसने सर के नीचे हाथ डाल दिया. मैंने भी अपने एक पैर को उसकी दूसरी टांग पर रख दिया और उसे अपने दूसरे हाथ से अपनी बांहों में लेकर सो गया.
दोस्तो, होटल रूम चुदाई स्टोरी के इस भाग में आपको मजा आया होगा. ऐसी मेरी आशा है.
आप मुझे मेल करना न भूलें.
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होटल रूम चुदाई स्टोरी का अगला भाग: बहन की चुदक्कड़ जेठानी को खूब पेला- 3