मेरा प्रथम समलैंगिक सेक्स- 2

मेरी दो सहेलियां आपस में समलिंगी सेक्स कर रही थी. एक सहेली डिल्डो से दूसरी की चूत चोद रही थी. मैं बाहर से ये सब देख रही थी और गर्म हो रही थी.

हैलो … मैं सारिका कंवल पुन: आपके सामने महिलाओं के मध्य होमोसेक्सुअल स्टोरी को लेकर हाजिर हूँ. पिछले भाग
मेरा प्रथम समलैंगिक सेक्स- 1
में अब तक आपने जाना कि कविता अपनी कमर में रबर का लिंग बांध कर प्रीति की चुदाई कर रही थी.

अब आगे होमोसेक्सुअल स्टोरी:

कविता लगातार एक ही लय में प्रीति की चूत में धक्के मारे जा रही थी और प्रीति भी उसी लय में कराहती हुई धक्कों का मजा ले रही थी.
उन दोनों को सम्भोग की स्थिति में देख कर मेरे भीतर की भी वासना हल्की हल्की जागनी शुरू हो गयी, पर मैंने खुद को रोक लिया.

कुछ देर के बाद तो माहौल और भी गर्म हो गया.
अब कविता ने और भी तेज रूप ले लिया था.

कविता प्रीति के बालों को एक हाथ से पकड़ खींचती हुई उसके विशाल मांसल चूतड़ों पर चांटे पर चांटे मारे जा रही थी.
इस समय कविता ने अपने धक्के को और अधिक जोर से मारने लगी और उसे गालियां देने लगी.

कविता- ले छिनाल, साली रंडी कहीं की, मर्दों का गर्म लंड से मजा लेती है, आज तुझे पता चलेगा कि औरत के जिस्म की गर्मी क्या होती है.

फिर और कुछ धक्के मार कर दोबारा बोली- साली आज तू मेरी कुतिया है, बोल मेरी कुतिया … मजा आ रहा तुझे चुदने में!

प्रीति कराहती सिसकती आवाज में बोली- अहहह … ह्म्म्म … बहुत मजा आ रहा है. आह मर्दों के लंड में इतना दम कहां आह और जोर से चोदो मुझे, मैं हमेशा तुम्हारी कुतिया बन कर रहूंगी. मेरा पानी निकाल दो, फाड़ दो मेरी चूत.

उस कमरे का माहौल अब बहुत गर्म हो चुका था.
ये सब देख कर मैं डर गयी कि कहीं इनकी आवाज बाहर न जा रही हो.
देखने के लिए मैं दरवाजे खिड़की देखने बाहर निकल आयी.

उधर प्रीति की कराहें सिसकारियां और चीखें निकलती रहीं.
साथ में कविता के हांफने और गालियों की भी आवाज आती रही.

मैंने बाहर देखा तो सब ठीक था.
मैं पीछे पलटी, तब तक प्रीति एक बार कराह कर शांत हो गयी थी.
तो मैं समझ गयी कि प्रीति झड़ गयी.

अब मेरे दिल को थोड़ा सुकून मिला कि चलो दोनों शांत तो हुईं.

मैंने सोचा कि अपने कमरे में वापस चलती हूँ. फिर न जाने क्या ख्याल आया कि मैं उन्हें देखने वापस कमरे तक चली गयी.

दरवाजे पर टंगा परदा सरका कर मैंने अन्दर का नजारा देखा, तो मैं और भी दंग रह गयी.

कविता टांगें फैला कर खड़ी थी और प्रीति के बालों को पकड़ कर उससे अपनी योनि चटवा रही थी.

बात इतनी सी ही नहीं थी, वो प्रीति को गालियां भी दे रही थी.
प्रीति किसी ग़ुलाम की तरह उसकी बात मान रही थी.

मैं हैरान थी कि प्रीति ये सब कर रही थी.
कविता के बारे में तो मैं जानती थी … इसलिए मुझे उसे लेकर कोई खास हैरानी नहीं थी.

मैंने सोचा कि इनके बीच क्यों दखल दूं!

पर तभी कविता ने मुझे देख लिया.
मेरी नजर उससे मिली तो मैं घबरा सी गयी.

पर उसने मुझे क्रूर नजरों से मुस्कुराते हुए ऐसे देखा मानो उसके मन में बरसों की कोई शत्रुता छिपी हो … और अब उसे प्रतिशोध लेने का अवसर मिल गया हो.

मैं नजरें छिपा कर वहां से निकल गई.
पर कमरे में मेरे कानों में पहले और अभी की कराह और मादक सिसकियां गूंज रही थीं, जो मुझे बेचैन किए जा रही थीं.

करीब आधे घंटे तक मैं बर्दाश्त करती रही.
और जब व्याकुलता कुछ अधिक ही बढ़ने लगी तो मेरा हाथ स्वयं मेरी योनि पर चला गया. मेरी उंगलियां योनि के फलकों को सहलाने लगीं.

मेरी अभी मस्ती चढ़ी ही थी कि बगल के कमरे से आवाजें आनी बन्द हो गईं. मैं समझ गयी कि अब दोनों को ठंडक मिल गयी होगी, इसी वजह से दोनों शांत हो गईं.

उनके शांत होते ही मेरा भी जोश बर्फ की तरह पिघल गया.
मैं चुपचाप हो गयी और यूं ही काफ़ी देर तक लेटी रही.

अब करीब 5 बज गए थे और माहौल एकदम शांत दिख रहा था.
मैंने सोचा कि अब चाय वगैरह पी लूं, इसलिए उठ गई.

बाहर निकल कर देखा तो कोई नहीं था.

मैं कविता के कमरे में गयी तो देखी वो अकेली अभी भी नंगी लेटी हुई थी मगर जगी हुई थी.

मैंने उससे पूछा- चाय पियोगी?
उसने उत्तर दिया- हां पिला दो, थकान कम हो जाएगी.

उसका जवाब मिलते ही मैं रसोई में आई और चाय बनाने लगी.
कुछ देर बाद कविता भी गाउन पहन कर आ गयी.

मैंने उसे कप में चाय दी और खुद भी लेकर बाहर आ गयी.

कविता भी पीछे पीछे आकर मेरे पास कुर्सी पर बैठ गयी और फिर मुझसे बातें करने लगी.

उसने वो बताना शुरू किया, जो मुझे पहले से ही पता था.

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प्रीति आज संतुष्ट और खुश थी, ये जानकर मुझे भी ख़ुशी हुई कि अभी प्रीति बूढ़ी नहीं हुई.

उसकी बची खुची जवानी यूं ही जा रही थी.
पर उसके बदन को किसी मर्द का सुख मिलता … तो शायद वो और भी खुश होती.

पर कविता ने जैसे बताया कि उसे इस तरह का समलैंगिक संभोग यानि लेस्बियन सेक्स भी काफी आनंददायक लगा.

मैं चाहती तो प्रीति के लिए सब प्रबंध कर देती. मगर उसने कभी वैसा संकेत नहीं दिया था.
मुझे डर लगता था और उसके पति के साथ मेरा अवैध संबंध भी था.

कविता ने प्रीति को लेकर बहुत सी और बातें भी बताईं.
तब मुझे पता चला कि प्रीति समलैंगिक संबंधों में भी रूचि रखती थी.

अब कविता ने घुमा फिरा कर मुझे अपनी बातों में फंसाने की कोशिश शुरू कर दी.
पर मुझे इस तरह के संभोग में कोई रूचि नहीं थी. मुझे मर्द ही पसंद हैं.

तो मैं उसकी बात काट कर खाना बनाने की तैयारी में जुट गई.

मैं बार बार उससे बचने का प्रयास कर रही थी, पर वो मेरा पीछा छोड़ने का नाम नहीं ले रही थी.

बहुत मुश्किल से जैसे तैसे मैंने खाना बनाया और खाकर सोने की तैयारी करने लगी.

फिर किसी तरह बहाना बना कर मैं अपने कमरे में जाकर सोने की तैयारी करने लगी. मैंने कपड़े बदल लिए, जैसा कि मैं हमेशा करती हूँ. मैंने आज वो नाईटी पहनी, जो मुझे तोहफे में मिली थी. चूंकि मेरे पति घर पर नहीं थे, सो मैंने सोची कि इसमें आराम से सोऊंगी.

मैंने ब्रा और पैन्टी निकाल दी कि थोड़ा खुलापन लगे.
नाईटी बहुत अच्छी थी क्योंकि ये पतली डोरी वाली थी और काफी हल्की थी.

अभी करीब 10 मिनट ही हुए होंगे कि कविता ने मेरा दरवाजा पीटना शुरू कर दिया.
मैंने दरवाजा खोल दिया.

कविता सामने खड़ी थी.
मुझे इस नाइटी में देख एक बार तो वो मुझे देखती रह गयी.

कविता ने भी बहुत कामुक किस्म की नाईटी पहन रखी थी जो केवल घुटनों तक की थी.

बाद में मुझे मालूम हुआ कि इस बेबीडॉल कहते हैं.
कविता की ये बेबी डॉल झीनी इतनी अधिक थी कि उसके स्तनों के चूचुक साफ़ दिख रहे थे.
साथ ही उसकी पैंटी भी दिख रही थी.

फिर वो मेरे साथ सोने कि जिद करने लगी, मुझे थक हार उसे अपने साथ सोने देना पड़ा.

परन्तु मैंने उससे कह दिया कि जो तुम प्रीति के साथ कर चुकी हो, वो मेरे साथ करने का सोचना भी नहीं.
वो मेरी बात पर हां कहती हुई मेरे साथ लेटने के लिए आ गयी और बिस्तर पर एक किनारे सो गयी.

मैं आज पहली बार इतनी असुरक्षित महसूस कर रही थी. ऐसा भय तो पहले मुझे किसी पर-पुरुष के साथ भी नहीं हुआ था.
शायद मुझे केवल पुरुषों के साथ संभोग की आदत थी इसलिए ऐसा हो रहा था.

हम सोते हुए बातें तो करने लगे.
पर कविता इसी बात जानने के लिए अड़ गयी कि आखिर मैं समलैंगिक सम्भोग में क्यों नहीं अपनी रूचि रखती हूँ.

काफ़ी देर तक हमारी बहस होती रही.
फिर मुझे गुस्सा आने लगा तो मैंने उससे कड़े शब्दों में कह दिया- अब तुम सो जाओ और मुझे भी सोने दो.

मेरा इतना कहना था कि कविता के व्यवहार में एक अजीब तरह का परिवर्तन आ गया.
वो एकदम से गुस्से से भर गयी.

कविता गुस्से में कहती हुई उठी और मेरे ऊपर चढ़ गयी.
उसने मेरे हाथों को पकड़ा और मुझे गाली देती हुई बोली- साली कुतिया, दुनिया भर के मर्दों और औरतों से चुदवा कर सती सावित्री बन रही है.

उसकी बातें मेरे कानों में पड़ीं, तो मैं सन्न रह गयी और डर से शान्त हो गयी.

आगे उसके मुँह से निकला- साली रंडी आज तुझे बताती हूँ कि औरत की गर्मी क्या होती है. आज तक तूने अपनी गर्मी मर्दों को दिखायी है. आज देखती हूँ कि तेरी गर्मी, मेरी गर्मी को शान्त करती है या मेरी गर्मी तेरी गर्मी को.

इतना कह उसने अपने होंठ मेरे होंठों से चिपका दिए और मुझे चूमने लगी.
वो मेरे होंठों को अपने होंठों से चूसने का प्रयास करने लगी और मैं पूरी ताकत से अपने दोनों होंठों को चिपकाए हुए उससे संघर्ष करने लगी.

मुझे एक पल भी ऐसा नहीं लग रहा था कि कोई औरत मेरे ऊपर चढ़ी है और जबरदस्ती कर रही है बल्कि ऐसा लग रहा था कोई मर्द औरत के वेश में मेरे ऊपर चढ़ा हुआ है.
उस वक्त कविता की ताकत किसी मर्द से कम नहीं थी.

मैंने सुना तो था कि मर्द औरतों से जबरन सम्भोग तो करते हैं, पर मैंने मेरे साथ ऐसी स्थिति कभी आने नहीं दी थी. बल्कि उल्टा मैंने खुद से मर्दों का साथ दिया था.

ऐसी कभी कल्प्ना मैंने अब तक कभी नहीं की थी कि एक औरत मेरे साथ जबरन मैथुन करने पर उतर आएगी.
मेरा विरोध निरन्तर होता रहा.

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अन्त में कविता ने मेरे होंठों को दांतों से काटना शुरू कर दिया.
हार कर मुझे अपने होंठ ढीले करने पड़े और मैंने उसके सामने आत्मसमर्पण कर दिया.

अब वो मेरे होंठों को चूसने लगी.
मुझे मजा तो आ रहा था, पर बहुत ही अजीब लग रहा था.
मुझे एक अलग अनुभव भी हो रहा था.

चूमने के इस काल में उसकी सांसों की गर्म हवा मुझे बहुत ही मादक आभास करा रही थी. एक अलग खुशबू मेरी नाक और मुँह से होते हुआ मेरे फेफड़ों में जा रही थी.

सच कहूँ तो मुझे अब बहुत अच्छा लगने लगा था. हालांकि मेरे मन में दुविधा की एक कड़ी सी अभी भी बनी थी कि ये एक समलैंगिक रिश्ता था.

काफ़ी देर तक वो मेरे जिस्म को अपने वश में करने के लिए मुझसे संघर्ष करती रही और मैं अपने मन से उससे विरोध कर रही थी मगर मेरा तन उसके वश में था.

मेरे शरीर को ऐसा लग रहा था मानो ये रिश्ता उसे स्वीकार था, वहीं मेरा मन इसे स्वीकार नहीं कर रहा था.

अभी भी मेरा मुँह बन्द था, पर होंठ ढीले थे … जिसे कविता बड़े चाव से चूस रही थी और बार बार अपनी जीभ मेरे मुँह के अन्दर डालने का प्रयास कर रही थी.
मेरे दांतों के भिंचे हुए होने की वजह से वो ऐसा नहीं कर पा रही थी.

थोड़ी देर में उसने मेरे दोनों हाथों को छोड़ दिया और झट से मेरे सिर के बालों को पकड़ चूमने लगी.

मुझे उससे अलग होने का मौका मिला तो मैंने उसे झटके से अपने ऊपर से गिरा दिया और उठ कर भागने लगी.

अभी मैं बिस्तर से उठ कर भागने को ही थी कि उसने मेरी नाइटी पकड़ ली.
इस जोर जबरदस्ती में मेरे एक कन्धे की डोरी टूट गयी. मैं गिरते-गिरते बची.

पर तब तक कविता ने और जोर से खींचा. तो दूसरी तरफ़ की भी डोरी टूट गयी और मैं नाइटी सम्भालने के चक्कर में सच में जमीन पर गिर पड़ी.

ये मौका देख कर कविता ने जबरदस्ती मेरी नाइटी खींच कर मेरी टांगों से निकाल मुझे पूरी तरह से निर्वस्त्र कर दिया.
उसने मेरी नाइटी उठाई और दरवाजा खोल कर कमरे की सारी बत्तियां जला दीं.

कविता ने मेरी नाइटी दूसरे कमरे में फेंक दी और मेरे पास आ गयी.

इधर जमीन पर बैठी मैं अपने हाथों से अपने स्तनों और योनि को छिपाने का असफल प्रयास करने लगी.

पर इन दो हाथों से मेरे बड़े-बड़े स्तन और चूतड़ कहां छिपने वाले थे.

मेरे सामने कविता आयी और मैंने अपनी नजरें ऊपर उठायी.
तो कविता मुस्कुराते हुए मेरी तरफ़ देखती हुई अपनी नाईटी उतार कर मेरे आगे बैठ गयी.

मैंने उससे पूछा- तुम क्या चाहती हो और मेरे साथ ऐसा क्यों कर रही हो?
उसने उत्तर दिया- तुम तो अपना बदन ऐसे छुपा रही हो, जैसे मैंने कभी तुम्हें नंगी या चुदते हुए नहीं देखा. क्या करूं सारिका … तुम्हारा ये सख्त बदन मुझे बहुत आकर्षित करता है.

मैंने कहा- तुम जानती हो कि मैं लेस्बियन नहीं हूँ.

कविता ने कहा- सबसे पहले तो मैं तुम्हरा धन्यवाद दूंगी कि तुमने मुझे प्रीति से मिलवाया. अब बताती हूँ क्यों मुझे औरतों का बदन बहुत मदहोश करता है … खासकर तुम्हारे जैसी औरतों से मुझे बड़ा नशा मिलता है, जिनके बदन भरे-भरे हों.

वो आगे बोली- मैं तुम्हें शुरू से पाना चाहती थी. मगर उस दिन हर कोई तुम्हें चोदना चहता था … सो मैंने इतने दिन इन्तजार किया. फिर प्रीति मिली, उससे मुझे ख़ुशी तो मिली … पर तुम्हारे साथ अगर मजे नहीं किए … तो मेरा यहां आना सफ़ल नहीं होगा.

मैंने उत्तर दिया- तुम अपनी इच्छा प्रीति के साथ पूरी कर चुकी हो, फिर मुझे क्यों मजबूर कर रही हो? तुम जानती हो मैं इस तरह का सम्भोग नहीं पसन्द करती.

कविता ने कहा- काश कि ये वासना की भूख एक बार में मिट जाती … तो शायद तुम भी इतने सारे मर्दों से इतनी दूर दूर जाकर नहीं चुदतीं और न ही किसी औरत को अपने साथ खेलने देतीं. सच कहूँ … तो मैं तुम्हारे साथ नहीं करना चाहती थी, पर क्या करूं. तुम्हारा ये मदमस्त बदन मुझे तुम्हारी ओर खींचता चला आया.

कविता बोलती रही- मुझे याद आ गया वो दिन, जब मैंने तुम्हारी बुर पहली बार चखी थी, पर तब मेरी प्यास नहीं बुझ सकी थी. बस आज मुझे उसमें से वो रस पीना है.

मैंने उससे कहा- मुझे इस तरह का सम्भोग पसन्द नहीं, मुझे केवल मर्दों में रूचि है. रही बात औरतों की, मैंने उन्हें इसलिए अपने साथ खेलने दिया … क्योंकि उस समय वैसा माहौल था. पर मुझे औरतों के साथ सेक्स की कोई इच्छा नहीं थी.

मेरी और कविता के बीच की कशमकश जारी थी. आगे हम दोनों के बीच क्या हुआ, इसका मजा मैं आपको अगली होमोसेक्सुअल स्टोरी में लिखूंगी.
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