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होली के बाद की रंगोली-13
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अब तक आपने पढ़ा कि कैसे भाई बहनों के दो जोड़ों ने रक्षाबंधन के प्यार भरे त्यौहार को अपने जैसे वासना में भीगे हुए परिवारों के हिसाब से ना केवल पुनः परिभाषित किया बल्कि उसे एक उत्तेजक रूप और एक नया
नाम भी दिया- चुदाईबंधन! इसके साथ ही कहानी अपने आखिरी मोड़ पर है।
अब आगे…
चुदाईबंधन के इस अनोखे त्यौहार को मनाने के बाद चारों बहुत थक गए थे। रात भर की चुदाई के बाद सुबह से भी कम से कम दो बार सबने बहुत अच्छे से चुदाई कर ली थी। सबको ज़ोरों की भूख लगी थी इसलिए सबने ज्यादा बातें ना करते हुए पूरा ध्यान खाने पर लगाया और पेट भर खाने के बाद सबको नींद सताने लगी। रात भर की नींद भी बकाया थी और वैसे भी त्योहारों पर खाना ज्यादा खाने के बाद नींद आने लगती है।
खाने के बाद सब जा कर बेडरूम में सो गए लेकिन इस बार व्यवस्था थोड़ी अलग थी। सोनाली सचिन के साथ रूपा के कमरे में सोई और रूपा अपने भैया पंकज के साथ उनके बेडरूम में। यूँ तो सब नंगे ही थे लेकिन अभी चुदाई से ज्यादा नींद की ज़रुरत महसूस हो रही थी। लेकिन फिर भी दोनों भाई बहन एक दूसरे से नंगे लिपट कर ही नींद के आगोश में गए थे।
तीसरे पहर तक तो किसी ने करवट तक नहीं बदली। फिर धीरे धीरे होश आना शुरू हुआ तो कभी भाई ने बहन स्तनों को सहला दिया या कभी बहन ने भाई का लंड पकड़ लिया ऐसे उनींदे छोटी मोटी हरकतें करते करते पाँच, साढ़े पाँच तक नींद खुली और फिर शुरू हुआ चुम्बनों और आलिंगनों का सलोना सा खेल। ये मासूम सा खेल धीरे धीरे कब चुदाई में बदल गया पता ही नहीं चला।
हर चुदाई का अंत होता है इनका भी हुआ। दो अलग कमरों में दो बहनें एक बार फिर अपने भाइयों से चुद गईं थीं, लेकिन कल रात से इतनी चुदाई हो चुकी थी कि अब आगे और करने की कशिश बाकी नहीं रह गई थी।
लेकिन इतनी चुदाई के बीच बातें करने का मौका कम ही मिला था।
सोनाली- एक बात पूछूँ?
सचिन- हम्म…
सोनाली- अगर तुम्हारी पहले से ही कोई गर्लफ्रेंड होती, जैसे अभी रूपा है, तो फिर भी क्या तुम मुझे बाथरूम के छेद से देखते?
सचिन- पता नहीं! अब तो ये कहना मुश्किल है, लेकिन शुरुआत तो आपने ही की थी ना। आप ने वो छेद बनाया ही ना होता और मुझे देखना शुरू ना किया होता तो मुझे शायद ये बात दिमाग में ना आती।
सोनाली- हाँ, लेकिन फिर भी अगर उस वक़्त तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड होती तो क्या करते?
सचिन- शायद मैं वो छेद बंद कर देता। हो सकता है मम्मी पापा से शिकायत भी करता। लेकिन आप ये क्यों पूछ रही हो?
सोनाली- इसलिए कि उस रात जब मैंने खिड़की से तुमको मुठ मारते हुए देखा था तो मैं अन्दर तक हिल गई थी। मैं भाई बहन का रिश्ता भूल गई थी और मुझे बस तुम्हारा लंड नज़र आ रहा था। मुझे लगता है अगर मैंने तुम्हारा लंड उस दिन ना देखा होता तो ये सब कुछ नहीं होता।
सचिन- हम्म… मुझे तो वैसे भी इस सब की उम्मीद नहीं थी। मेरा काम तो बाथरूम के छेद से ही चल रहा था।
सोनाली- हाँ, इस से याद आया… तू क्या अब मम्मी को देखने लगा है, उस छेद से?
सचिन- उम्म्म… हाँ, तुम चली गईं तो समझ नहीं आया क्या करूँ इसलिए…
सोनाली- अब कल जाने के बाद भी करोगे?
सचिन- पता नहीं।
उधर दूसरे कमरे में पंकज और रूपा ने भी कई दिनों के बाद अकेले में चुदाई की थी। लेकिन उनका मन भी काफी हद तक भर गया था इसलिए वो भी अब चुदाई के बाद बतियाने लगे।
पंकज- सचिन और तुम पढ़ाई पूरी करके पक्का शादी करने वाले हो ना?
रूपा- अब तो और भी पक्का हो गया है?
पंकज- ‘अब तो…’ मतलब?
रूपा- एक तो मुझे पहले ही लगा था कि सचिन और मैं एक दूसरे के लिए ही बने हैं, लेकिन अब हम चारों के बीच जिस तरह का रिश्ता बना है उसको देखते हुए सचिन से बेहतर लड़का मिल ही नहीं सकता। किसी और के साथ रही तो अपना रिश्ता छिपा कर रखना पड़ेगा और फिर वो सब टेंशन लेकर जीने का क्या फायदा?
पंकज- हाँ वो तो है। मतलब तुम शादी के बाद भी मेरे साथ रिश्ता बना कर रखना चाहती हो?
रूपा- अब हमारा कोई ‘वन नाईट स्टैंड’ जैसा तो है नहीं कि एक बार चोदा और भूल गए। खून का रिश्ता है, और दिल का भी, तो आगे भी साथ तो रहेगा ही। और जो शेर एक बार आदमखोर हो जाए वो आगे जा के सुधर जाए ऐसा तो होता नहीं ना?
पंकज- अरे वाह, मेरी शेरनी! क्या बात कही है!
इस बात पर दोनों खिलखिला कर हँस पड़े।
उधर सोनाली सचिन के उसकी माँ के साथ रिश्ते को लेकर चिंतित थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या ये उसकी जलन थी अपनी माँ से या सच में उसे माँ बेटे के रिश्ते में वासना की बात गलत लग रही थी? यदि बेटे की अपनी माँ के लिए वासना गलत थी तो फिर गलत तो भाई बहन के बीच का सेक्स भी होना चाहिए। लेकिन फिर क्यों उसे ये सही और वो गलत लग रहा था?
सोनाली- अच्छा, एक बात बताओ; अगर तुमको मौका मिले तो क्या तुम मम्मी को चोदना चाहोगे?
पंकज- हाँ हाँ क्यों नहीं! आपकी शादी के बाद से तो मैं उनको ही देख कर मुठ मार रहा था ना, तो अगर मौका मिला तो ज़रूर चोदूँगा।
सोनाली- तुमको पता है, जब मुझे पहली बार शक हुआ था कि तुम मम्मी को नहाते हुए देख कर मुठ मारते हो तो मैंने रूपा और पंकज को बताया था। फिर हमने रोल प्ले भी किया था कि तुम कैसे मम्मी को चोद सकते हो।
सचिन- अरे, तो फिर बताओ ना?
सोनाली- लेकिन यार वो तो रोल प्ले था उसमें तो हम कुछ भी कर सकते हैं। सच में सब इतना आसान थोड़े ही होता है। लेकिन तुम्हारा मन है, तो मैं पंकज से बात करती हूँ। अभी तो शाम होने को आ गई है चलो उठते हैं अब।
दोनों बाहर आये, सोनाली फ्रेश होने चली गई, उसे अभी खाना भी बनाना था। सचिन ने देखा रूपा और पंकज बाहर सोफे पर बैठ कर टीवी पर म्यूजिक वीडियो देख रहे थे। सचिन भी रूपा के दूसरे साइड में जा कर बैठ गया।
थोड़ी देर यूँ ही बैठे रहने के बाद सचिन के दिमाग में अचानक कुछ आया- जीजा जी, एक बात कहूँ बुरा तो नहीं मानोगे?
पंकज- बोलो यार, अब तो हम इतने खुल गए हैं कि सब नंगे ही बैठे हैं अब क्या बुरा मानेंगे।
सचिन- वो तो है, मेरा मतलब था कि दिल पर मत लेना लेकिन मैंने अपनी बहन आपको सील पैक दी थी लेकिन आपकी बहन की सील तो आपने पहले ही तोड़ दी।
पंकज- अब यार बात तो तुम सही कह रहे हो। लेकिन अभी कौन सी तुम्हारी शादी हो गई है। चाहो तो कोई कुंवारी लड़की ढूँढ कर उस से शादी कर लेना।
रूपा- ऐसे कैसे? सोचना भी मत!
सचिन- अरे नहीं यार! तुम्हारे अलावा मैं किसी से शादी नहीं करने वाला। और किसी के सामने अपनी बहन थोड़े ही चोद पाउँगा।
पंकज- वैसे एक उपाय है; रूपा ने बताया कि एक बार तुमने इसके पिछवाड़े में एंट्री मार दी थी! तो तुम इसकी गांड का उदघटन कर लो; और बोनस में जिस दिन तुम रूपा से शादी करोगे उस दिन सुहागरात पर तुमको गिफ्ट में अपनी बहन की सील पैक गांड मिल जाएगी। क्या बोलते हो?
सचिन- रूपा तो मुझे पता है कि तैयार है, लेकिन दीदी? उनका पता नहीं।
पंकज- वो चिंता तुम ना करो, उसको तैयार करने की ज़िम्मेदारी मेरी।
रूपा- हो गया तुम लोगों का? अभी एक जोक सुनो…
एक भाई पहली बार अपनी बहन चोद रहा होता है तो बहन बोलती है- भैया, तुम्हारा लंड तो पापा से भी बड़ा है।
तो भाई बोलता है- हाँ! मम्मी भी यही बोल रहीं थीं।
सचिन- क्या बात है, ऐसे जोक भी होते हैं? मैंने पहली बार सुना ऐसा जोक।
पंकज- तुम जोक की बात कर रहे हो, मैं तो तुमको संस्कृत में ऐसा मन्त्र भी सुना सकता हूँ। ये सुनो…
मतृयोनि छिपेत् लिङ्गम् भगिन्यास्तनमर्दनम्।
गुरूर्मूर्धनीम् पदम्दत्वा पुनर्जन्म न विद्यते॥
रूपा, सचिन दोनों एक साथ- ये क्या था!
पंकज- ये एक तांत्रिक मन्त्र है, जिसमे मोक्ष पाने का उपाय बताया गया है।
सचिन- लेकिन इसका उस जोक से क्या सम्बन्ध है?
पंकज- वैसे तो सरे तांत्रिक मन्त्र गूढ़ होते हैं इनके शब्दों के अर्थ उलटे सीधे होते हैं लेकिन उनके भेद बहुत गहरे होते हैं और बिना इन शब्दों के पीछे छिपे अर्थ को जाने हुए इनका कोई मतलब नहीं होता; लेकिन फिर भी कई बेवकूफ़ लोग केवल शब्दों का ही अर्थ निकाल कर वही करने लग जाते हैं और तंत्र विद्या को बदनाम करते हैं।
रूपा- लेकिन इसका मतलब तो बता दो?
पंकज- इसकी गहराई में जाने का न तो अभी मूड है न समय लेकिन शब्दों का अर्थ बता देता हूँ। लेकिन ध्यान रहे, शब्दों का अर्थ वास्तव में अनर्थक ही है। अभी केवल टाइम-पास चल रहा है इसलिए एक दम ठरकी भाषा में अर्थ बता रहा हूँ…
माँ की चूत में लंड डाल कर बहन के मम्मे मसल कर
गुरु के सर पर पैर रखो तो फिर पुनर्जन्म नहीं होता!
सचिन- हे हे हे… ये तो आसान है मैं कोशिश करूँ क्या?
पंकज- अरे न बाबा! कहा न, शब्दार्थ पर जाओगे तो अनर्थ हो जाएगा।
ऐसे ही हँसते हँसाते मस्ती करते हुए समय कट गया और रात का खाना खा कर सब बेडरूम में इकट्ठे हुए।
कल सचिन जाने वाला था तो आज रात फिर सबने एक ही कमरे में सोने का फैसला किया। सोने का तो नाम था सोना आज भी किसी को था नहीं लेकिन आज उतनी अधीरता भी नहीं थी। सब अधलेटे से या बैठे से बिस्तर पर पड़े थे। पंकज तकियों से टिक कर लगभग बैठा हुआ सा था और रूपा उसकी गोद में पीठ टिका कर लेटी पड़ी थी।
पंकज का एक हाथ रूपा की कमर पर थे और दूसरे से वो उसके स्तनों के सात खेल रहा था। सोनाली और सचिन वहीं लेटे हुए एक दूसरे से चिपके पड़े थे। सोनाली ने पंकज की ओर करवट ली हुई थी और सचिन ठीक उसके पीछे लेटा था। सोनाली का सर सचिन की बाँह पर थे और उस ही हाथ से सचिन ने सोनाली का एक स्तन पकड़ा हुआ था। उसका भी दूसरा हाथ सोनाली की कमर और उसके नितम्बों को सहला रहा था।
सोनाली- आपको पता है, मेरा शक सही था। मेरा ये भेनचोद भाई, मादरचोद भी बनना चाहता है। आपको क्या लगता है? क्या करना चाहिए?
पंकज- हम्म… मतलब बाथरूम के उसी छेद से अब तुम अपनी माँ को नंगी देख कर मुठ मारते हो? वो भी क्या सोनाली की तरह तुमको शो दिखातीं हैं?
सचिन- नहीं ऐसा तो कुछ नहीं है।
पंकज- इसके अलावा कभी उनकी हरकतों से ऐसा लगता है कि वो तुमको कोई हिंट दे रहीं हों सेक्स सम्बंधित?
सचिन- हाँ, कई बार उनका पल्लू सरक जाता है और उसमें से उनके स्तनों की घाँटियाँ पूरी दिखती रहतीं हैं लेकिन वो छिपाने की कोई कोशिश नहीं करतीं; या फिर खाना परोसते वक़्त आधे से ज्यादा मम्मे देखा देतीं हैं।
पंकज- नहीं नहीं नहीं… यही गलती अक्सर लोग करते हैं। वो तुमको घर का सदस्य समझ कर ध्यान नहीं देतीं और उनको लगता ही नहीं कि तुम गलत नज़र से देखोगे इसलिए बिना तकल्लुफ के ये सब हो जाता है। जब तक कोई सीधा सीधा इशारा न मिले तब तक ऐसी कोई ग़लतफ़हमी न पालना।
सचिन- चलो माना उनकी तरफ से कोई इरादा नहीं है अभी तक, फिर भी आप तो इतने ज्ञानी हो, कोई जुगाड़ बताओ न पटाने का।
पंकज- अगर सच में ज्ञानी मानते हो तो मेरी बात मानो और भूल जाओ। जहाँ तक हो सके खून के रिश्तों में कामवासना न आये तो अच्छा है। माँ को ममता की नज़र से ही देखो। वो तो अगर दोनों तरफ आग बराबर लगी हो तो अलग बात है और उसमें भी सेक्स तक ही ठीक है, बच्चे पैदा करने की गलती किसी कीमत पर नहीं होना चहिये। वो वैज्ञानिक तौर पर बहुत गलत है।
सोनाली- लेकिन अब ये बेचारा वहां अकेले कैसे काम चलाएगा?
पंकज- हम किसलिए हैं? रोज़ वीडियो सेक्स चैट पर इसको लाइव शो दिखाएंगे न। नंगी माँ को देख के मुठ मारने से तो बेहतर है न कि बहन और मंगेतर का ग्रुप सेक्स देख के मुठ मारे।
रूपा- अरे लेकिन अभी तो हम खुद यहाँ बैठे हैं, वीडियो सेक्स चैट जब करेंगे तब करेंगे अभी तो ये भी हमारे साथ ग्रुप सेक्स कर सकता है ना.
सोनाली- क्यों ना आज भी उस दिन जैसे रोल-प्ले करें? आज तो सच में सचिन यहाँ है, और इस बार मम्मी का रोल रूपा ही करेगी।
पंकज- हे हे हे… रूपा कुछ छोटी नहीं है मम्मी के रोल के लिए? और फिर मैं क्या करूँगा?
सोनाली- पिछली बार मुझे मम्मी बनाया था… मैं क्या बुड्ढी लगती हूँ? तुम एक काम करो तुम पापा बन जाओ। इस से हमारे लिए भी कुछ नया हो जाएगा। तुम सब से आखिर में एंट्री मारना।
सचिन- कोई मुझे भी समझाएगा कि ये सब क्या प्लानिंग चल रही है?
सोनाली और रूपा ने मिल कर सचिन को बताया कि कैसे उसके आने से पहले वो लोग रोल-प्ले करते थे और शुरुआत उसके और उसकी मम्मी की चुदाई के रोल-प्ले से ही हुई थी। पंकज ने उसे रोल-प्ले के फायदे भी समझाए।
पंकज- देखो, जिसके साथ तुम सच में चुदाई नहीं कर सकते उसको कल्पना में मान कर अपनी गर्लफ्रेंड या पत्नी को चोद लो। इससे कोई गलत काम भी नहीं होगा और तुम्हारा मन भी मान जाएगा। अगर सब लोग ऐसा ही करने लग जाएं तो कम से कम आधे जबरदस्ती वाले केस तो कम हो ही जाएंगे।
सबने पंकज की इस बात पर हामी भरी और फिर उसके बाद रोल-प्ले शुरू किया गया। सब कुछ वैसा ही हुआ जैसा पहले हुआ था, लेकिन इस बार जैसे ही शारदा की चुदाई शुरू हुई, प्रमोद (पंकज) की एंट्री हो गई।
प्रमोद, सोनाली और सचिन के पापा हैं जिनका रोल पंकज प्ले कर रहा था।
प्रमोद (पंकज)- अगर मैं ये सब सपने में भी देख रहा होता तो अब तक मेरी नींद टूट गई होती।
प्रमोद गुस्से में चिल्लाते हुए- कोई मुझे बताएगा ये हो क्या रहा है?
अचानक से सब रुक गया। सोनाली ने धीरे से सचिन को चुदाई चालू रखने को कहा और अपने पापा के पास जा कर नंगी ही उनके बाजू में चिपक कर खड़ी हो गई। शारदा (रूपा) के चेहरे पर डर और शर्मिंदगी के मिले जुले भाव थे लेकिन वो मजबूर भी थी क्योंकि उसकी चूत उसे उठ कर जाने की इजाज़त नहीं दे रही थी।
ऐसे में सोनाली ने अपने पापा को मनाने की कोशिश की- पापा, आप ये ना देखो कि ये कौन हैं। आप बस ये देखो कि ये क्या कर रहे हैं और उस से उनको कितनी ख़ुशी मिल रही है। ये देखो, मज़ा तो आपको भी आ रहा है।
सोनाली ने प्रमोद के तने हुए लंड पर पजामे के ऊपर से हाथ फेरते हुए कहा और साथ ही पजामे का नाड़ा खींच दिया। प्रमोद चुपचाप खड़ा था, लेकिन उसके अन्दर एक युद्ध चल रहा था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो इस सब का विरोध करे या खुद भी इस सब में शामिल हो जाए।
ये बात सोनाली ने अपने पापा के चेहरे पर पढ़ ली और उनकी चड्डी नीचे खिसका कर लंड पकड़ लिया।
सोनाली- ज्यादा सोचो मत पापा, आप बस एन्जॉय करो।
इतना कहकर सोनाली ने प्रमोद का लंड अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी। प्रमोद ने भी हार मान ली और इस पारिवारिक चुदाई का हिस्सा बनने में ही भलाई समझी। थोड़ी ही देर में एक ही बिस्तर पर माँ-बेटा और बाप-बेटी की चुदाई एक साथ होने लगी। कहने को ये रोल-प्ले था, लेकिन जब मानने से पत्थर भी भगवान बन सकता है, तो क्या नहीं हो सकता।
एक बार सब के झड़ जाने के बाद सबने दूसरा चक्कर लगाने की बजाए सोना ही बेहतर समझा क्योंकि सचिन का अगले दिन सुबह की ही गाडी से रिजर्वेशन था। चाहते तो नहीं थे, लेकिन आखिर सब सो ही गए।
अगली सुबह सोनाली सबसे जल्दी उठ गई और सचिन के रस्ते के लिए कुछ खाना भी दिया फिर जल्दी से तैयार हो कर बैठ गई ताकि बचे हुए समय में ज़्यादा से ज़्यादा वो अपने भाई के साथ बिता सके।
बाकी सब भी उठ कर जल्दी से तैयार हो गए और नाश्ता करके सचिन का सामान ले कर नीचे आ गए और सामान कार में रख भी दिया। सोनाली ने रूपा को आगे वाली सीट पर बैठने को कहा और खुद पीछे सचिन के साथ बैठ गई। स्टेशन पहुँचने में कम से कम आधा घंटा लगने वाला था। सोनाली ने होजरी के सॉफ्ट कपड़े की मिनी ड्रेस पहनी थी, जो घुटनों से थोड़ा ऊपर तक ही थी। उसे एक लम्बा टाइट टी-शर्ट भी कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा। उसने अन्दर ब्रा, पैंटी कुछ भी नहीं पहना था।
सोनाली- सच कहूँ तो मेरा एक आखिरी बार सचिन से चुदवाने का मन था; अब पता नहीं कब मिलना होगा। सुबह सब लोग बिजी थे और टाइम कम था इसलिए घर में तो मुश्किल था। तभी मैंने सोचा कि कार में इतना टाइम फालतू बरबाद होगा तो क्यों ना कार में जाते जाते ही चुदवा लूं।
रूपा- आपकी प्लानिंग की तो मैं फेन हूँ भाभी, ड्रेस भी एक दम चुन कर पहनी है इस काम के लिए।
सोनाली- अभी तो देखती जा, मैंने और क्या क्या प्लानिंग की है।
इतना कहते हुए सोनाली ने सचिन के पेंट की ज़िप खोल कर अपने भाई का लंड निकाल लिया और बाजू में बैठे बैठे झुक कर चूसने लगी। थोड़ी ही देर में सचिन का लंड खड़ा हो गया। सोनाली ने सचिन को सीट के बिलकुल बीच में बैठने को कहा और खुद उसकी गोद में बैठ पर अपने भाई के लंड को अपनी चूत में डाल लिया। सोनाली खुद पंकज और रूपा की सीट के पिछले हिस्से पर अपने कंधे टिका कर उनका सहारा लेते हुए पीछे अपनी कमर उछाल उछाल कर अपने भाई के लंड पर घुड़सवारी करने लगी।
सचिन भी मौका देख कर सोनाली के स्तनों को ड्रेस के ऊपर से ही सहला देता था। जब कभी खाली रास्ता आता तो ड्रेस के अन्दर भी हाथ डाल कर उसके उरोजों को मसल देता।
पंकज और रूपा भी दोनों को प्रोत्साहित करते जा रहे थे।
रूपा- चोद ले भेनचोद! अच्छे से चोद ले अपनी बहन को… फिर पता नहीं कब चोदने को मिले।
रूपा की इस बात से सचिन को जोश आ गया और वो नीचे से भी जोर जोर से धक्के मारने लगा। काफी देर तक ऐसे ही, खुली सड़क पर चलती कार में दिन दिहाड़े, भाई बहन की चुदाई चलती रही; फिर आखिर सचिन अपनी बहन की चूत में झड़ गया।
स्टेशन अब पास ही था, तो सोनाली वैसे ही अपने भाई का लंड चूत में लिए बैठे रही। स्टेशन पहुँचने तक सचिन का लंड भी इतना ढीला नहीं हुआ था। उसका वीर्य अब भी सोनाली की चूत में ही था।
कार के पार्क होने के बाद सबसे पहले सोनाली ने अपना पर्स खोला और उसमें से एक टेम्पॅान निकला और लंड से उठ कर तुरंत टेम्पॅान अपनी चूत में डाल लिया ताकि वीर्य बाहर ना निकल पाए।
रूपा- क्या बात है भाभी! सही कहा था आपने पूरी तयारी के साथ आई हो। चूत का रस बाहर ना निकले, इसलिए ढक्कन लगा लिया।
सोनाली- हाँ… और ढक्कन की डोरी नीचे ना लटके इसलिए ये सी-स्ट्रिंग (जी-स्ट्रिंग का आधुनिक रूप) भी लाई हूँ। कार में बैठे बैठे पेंटी पहनने में दिक्कत होती है इसलिए… सी-स्ट्रिंग रॉक्स!
सोनाली ने सी-स्ट्रिंग को अपनी चूत पर फिट किया और ड्रेस को नीचे खिसका कर बाहर आ गई।
सब सामान ले कर ट्रेन की तरफ चल पड़े। पंकज प्लेटफार्म टिकेट ले आया और सचिन का सामन भी ट्रेन में रखवा दिया। सचिन भले ही बहनचोद हो गया था, लेकिन वो संस्कार जो बचपन से उसे मिले थे, वो तो अपने आप ही काम करने लगते हैं। सचिन अपने जीजा जी के पैर छूने लगा तो पंकज ने उसे पकड़ कर गले से लगा लिया।
पंकज- अब तो हम यार हो गए हैं यार, आज के बाद दुनिया के लिए मैं तेरा जीजा रहूँगा लेकिन तू मुझे अपना दोस्त ही समझना। ठीक है?
उसके बाद सचिन सोनाली के पैर छूने के लिए झुकता उसके पहले ही सोनाली ने उसे अपने पास खींच लिया। सोनाली का एक हाथ सचिन को कमर से पकड़ कर उसे सोनाली के बदन से चिपका रहा था और दूसरे से उसने सचिन के सर को पीछे से अपनी ओर दबाते हुए उसके होंठों से होंठ जोड़ दिए।
दोनों की आँखें बंद हो गईं।
हमारे देश में ऐसे नज़ारे रेलवे स्टेशन पर कम ही देखने को मिलते हैं लेकिन फिर भी, जो भी उन्हें देख रहा था, उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि वो भाई बहन हैं। शायद लोगों ने यही सोचा हो कि कोई अपनी बीवी को मायके छोड़ कर वापस जा रहा है।
दोनों इस लम्हे को अपनी यादों में कुछ ऐसे संजो लेना चाहते थे कि जब भी एक दूजे की याद आये तो साथ में इस चुम्बन का मुलायम अहसास अपने आप ही होंठों पर तैर जाए। पंकज और रूपा भी इस रोमांटिक दृश्य को अपलक देख रहे थे। अगर ये कोई बॉलीवुड की फिल्म होती, तो ज़रूर बैकग्राउंड में फिल्म का टाइटल म्यूजिक चल रहा होता और कैमरा इन दोनों के के चारों ओर घूम रहा होता।
आखिर ट्रेन ने लम्बा हॉर्न मारा और दोनों को अलग होना पड़ा, सचिन ने जल्दी से रूपा को भी गले लगाया और एक छोटी सी चुम्मी उसके होंठों पर भी जड़ कर वो अपनी कोच के दरवाज़े पर चढ़ गया।
ट्रेन धीरे धीरे चलने लगी और ये सचिन हाथ हिलाते हुए सब से विदा लेने लगा। सोनाली, रूपा और पंकज भी हाथ हिला कर उसे विदा करते रहे जब तक वो आँखों से ओझल नहीं हो गया। सचिन चला गया था लेकिन रूपा और सोनाली की आँखों में एक नमी छोड़ गया था।
दोस्तो, जैसा मैंने आपको कहा था, यह शृंखला अब यहीं समाप्त होती है। कई लोगों में मुझे सलाह दी थी कि मैंने इसे और आगे बढ़ाऊँ और सचिन की माँ को भी इसमें शामिल करूँ लेकिन एक तो व्यक्तिगत रूप से भी मैं पारिवारिक रिश्तों के पक्ष में नहीं हूँ। दूसरा अभी मेरे पास समय का बहुत अभाव है। अगर आप सबकी फरमाईश रही और मुझे भविष्य में कभी समय मिला तो कोशिश करूँगा कि कुछ नया सोच कर इसे आगे बढ़ाऊँ।
अभी तक आप सबके बहुत मेल मिले, इसलिए अभी तक तो सबको तुरंत जवाब दे दिया करता था। आगे शायद इतने मेल नहीं आएँगे तो मैं शायद चेक करने में लेट हो जाऊं। आशा है आप बुरा नहीं मानेंगे।
आपको ये भाई बहन की होली और रक्षाबंधन की कहानी कैसी लगी ये मुझे ज़रूर बताएं। आप मुझे एक दोस्त की तरह भी ईमेल कर सकते हैं।
आपका क्षत्रपति
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