मेरे गांडू जीवन के कुछ यादगार पल- 2

हिंदी गांड सेक्स कहानी में पढ़ें कि मुझे गांड मरवाने में मजा आता था पर मेरे बड़े लंड को देख कर सब लौंडे मुझसे गांड मरवाना चाहते थे. ऐसी ही कुछ घटनाएँ.

फ्रेंड्स, मैं आपका आजाद गांडू एक बार फिर से यादों के झरोखों से अपनी गांड चुदाई की कहानी का अगला भाग लेकर हाजिर हूँ.
कहानी के पहले भाग
गांडू लड़के से चुद गयी शादीशुदा लड़की
में अब तक आपने पढ़ा था कि गांव के खेत में नंगे होकर हम कुछ लौंडे नहा रहे थे.
उसी बीच कुछ ऐसा समा बंधा कि एक लौंडा मेरा लंड चूसने लगा.

अब आगे हिंदी गांड सेक्स कहानी:

मैंने भी अपनी कमर को थोड़ा आगे पीछे किया, तो उसने लंड उगल दिया.
वो बोला- मेरे गले तक पहुंच गया. अब और नहीं चूस पाऊंगा.

तभी एक दूसरा लड़का कालू आगे आया.
वो चिकना भी था और उसकी हल्की हल्की दाढ़ी भी आई थी. वो बोला- मैं कोशिश करूं?

मैंने सोचा कि ये भी चूसेगा.
अब हम सब नंगे तो थे ही!

वह मेरी तरफ गांड करके खड़ा हो गया और पीछे देख कर मुस्कराने लगा.
मैंने उसकी पीठ पर हाथ रख कर थोड़ा आगे झुकने का इशारा किया, तो वह बोरिंग की दीवार पर झुक गया.

अब उसकी गांड चमकने लगी.
मैंने लंड सूंत कर थोड़ा टाईट किया और उसकी चिकनी गांड पर टिका दिया.

एक हाथ से लंड पकड़ कर उसकी गांड पर टिकाए था, दूसरा हाथ उसकी कमर पीठ पर रखे था.
मैंने धीरे धीरे सुपारा अन्दर किया.

लौंडा दर्द से मुँह तो बना रहा था, मगर लेने को मचल भी रहा था.
वो होंठ अन्दर करके दांत भींचे हुए था पर आवाज नहीं कर रहा था.

सारे लौंडे मुझे घेरे खड़े थे, लंड अन्दर जाते देख रहे थे.
मैं धीरे धीरे अन्दर कर रहा था.

अब लौंडे का मुँह खुल गया, फिर उसने आंखें बंद कर ली थीं.
तभी सब लौंडे एक साथ चिल्लाए- पूरा चला गया, चला गया.
उसने आंखें खोल दीं.

सब बोले- वाह, इतना बड़ा ले गया.
मेरा दोस्त राकेश भी बोला- लौंडा कमजोर लग रहा था, लग नहीं रहा था आपका इतना बड़ा ले जाएगा. बिना चीखे चिल्लाए मस्ती से ले गया.

मैं- अरे अकेले में करवाता तो हल्ला मचाता. आपके सबके जोश दिलाने से ले गया.

मैंने उसकी पीठ थपथपाई तो वह पीछे मुड़ कर मुस्करा दिया.

दूसरे लौंडे उसके चेहरे की तरफ पहुंच गए और बोले कि हंस रहा है साला … गांड में खलबली मच रही होगी, पर कह नहीं रहा … जोश में ले लिया.

एक लौंडा, जो उसका खास दोस्त था, उसके मुँह के पास जाकर पूछने लगा- क्यों बे कभी इतना बड़ा लिया है? ज्यादा तो नहीं लग रही?
कालू दांत निकाल कर बोला- तू लेकर देख ले न भोसड़ी के … पहले थोड़ी लगी थी, पर अब नहीं लग रही. अब मजा आ रहा है.

कालू लौंडा देखने में वाकयी कमजोर था, या यूं कहें कि स्लिम व छरहरा था.
देखने में कमजोर भले लग रहा था, पर इतना था नहीं. सांवला था, पर चूतड़ मस्त थे.

मुझे तो इस समय वह सबसे खूबसूरत माल लग रहा था. मेरा लंड उसकी गांड में घुसा हुआ था.

अब उसकी गांड में हरकत हो रही थी. बड़ी देर से लंड पिला हुआ था.

मेरा दोस्त राकेश बोला- अब तो इसे मजा आने लगा. गांड झटकों को मचल रही है.
मैं- अरे यार, पहले तो तुमसे कहा था, तुम नखरे कर रहे थे. अब भी बोलो, तो इसकी में से निकाल कर तेरी में डाल दूँ?

राकेश फिक्क से हंस दिया.
वह नंगा तो खड़ा ही था.

मैंने उसके चूतड़ के बीच से उसकी गांड में थूक लगा कर उंगली घुसेड़ दी.
वह शांत खड़ा रहा.

मैं बोला- राजी … बोलो!
वह मुस्कुरा दिया.

मैं कालू की गांड में लंड डाले हुए था … वो बाहर निकाल लिया.
मैंने उसके चूतड़ थपथपाए, चूतड़ों पर जोरदार चुम्बन अंकित किए, उसके होंठ चूमे और अलग कर दिया.

अब मैंने अपने दोस्त को आगे किया और घुमा दिया.
वह अब भी नखरे कर रहा था, पर मेरी तरफ चूतड़ किए हुए था.

तब तक कालू ने जहां कपड़े अपने रखे थे, वहां जाकर वो अपनी पैंट की जेब से तेल की शीशी निकाल लाया और मुझे देकर बोला- भाई साहब आपने मेरी तो थूक लगा कर रगड़ दी, पर इनकी पहले से ही गांड फट रही है. इसलिए मैं तेल ले आया हूँ, आप चुपड़ लो.

मैंने लंड पर तेल पोता, फिर दो उंगलियां तेल में डुबोकर दोस्त की गांड में डाल दीं.

थोड़ी देर तक उंगलियां गांड में घुमाता रहा, फिर मैंने कहा- हां, अब तैयार?
बस ये कह कर मैंने राकेश की गांड पर लंड टिका दिया.
हल्का सा धक्का देते ही सुपारा अन्दर हो गया था.

इतने से ही मेरा दोस्त राकेश कराहने लगा- आ … आ … लग रई.
सब लौंडे देख रहे थे, उसने आंखें बन्द कर लीं और ‘उई … उई …’ करने लगा.
वह गांड सिकोड़ रहा था.

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मैंने कहा- ऐसे तो और ज्यादा लगेगी, ढीली कर.
वो कर ही नहीं रहा था. पर मैंने जोर लगा कर लंड पेल ही दिया.

सारे साथी देख रहे थे कि मेरा लंड सरसराता हुआ राकेश की गांड में अन्दर घुसता जा रहा था.
मुझे जोर लगाना पड़ा, पर जब पूरा चला गया तो साथियों ने उससे कहा- अब तो चुप कर, पूरा चला गया, तू नखरे बहुत कर रहा है.

सब साथी मजा ले रहे थे.
वह कहने लगा- आंह बहुत लग रही है … निकाल लो बस करो, क्या अब फाड़ ही डालोगे?

मैंने उसे वहीं खेत में जमीन पर लिटा दिया और उसके ऊपर चढ़ बैठा.
आस पास खड़े लौंडे भी मदारी का खेल देखने के अंदाज में बैठ गए.

अब मैंने उस पर औंधे होकर पूरा मिसमिसा कर पेल डाला.
वो टांगें फड़फड़ाने लगा, गांड टेढ़ी करने लगा.

मैंने कहा- इन तरकीबों से कुछ नहीं होगा, लंड से जब तक पानी नहीं छूटेगा … तब तक बाहर नहीं निकलेगा.

थोड़ी देर में धमकाने से शांत हुआ और गांड ढीली किए लेटा था.
अब मैं शुरू हो गया.

अन्दर बाहर अन्दर बाहर
धच्च फच्च धच्च फच्च.

वह शांत था, गांड ढीली थी.
थोड़ी देर में गांड चलाने लगा.

मैंने साथियों को, जो चारों ओर से घेरे थे और उत्सुकता से गांड मराने का खेल देख रहे थे, कहा- देखो इसके चूतड़ कस्ते ढीले हो रहे हैं. इसी तरह गांड मराने में जब मजा आने लगता है, तो गांड हरकत करने लगती है. इसे हम लोग गांड चलाना कहते हैं.

उसी बीच मैंने राकेश से कहा- जरा जोर से करो, तो लड़कों की समझ में आए.
उसने दो तीन बार करके दिखाया.

अब मैंने उससे परमीशन ली कि मैं भी दो चार जोर के झटके लगा लूं.
मेर लंड ज्यादा जोश में आ गया था.

वह मुस्करा दिया.
मैंने झटके चालू कर दिए.

वह साथ दे रहा था और गांड का जोर लगा रहा था.
सब लड़के उत्सुकता व आश्चर्य से मुँह बाए बिना पलकें झपकाए खेल देख रहे थे.
कभी मुझे लंड पेलते देखते, कभी उसे गांड का बार बार चूतड़ उचकाते ढीले करते देखते.

फिर मैं राकेश से चिपक कर रह गया. मेरा पानी छूट गया, हम दोनों अलग हो गए.

अब मैंने उसका जोरदार चुम्बन लिया.

कालू नाम का लड़का, जिसने पहले गांड मराई थी, वो बोला- भाई साहब. इसकी मैं तो आधा घंटे तक हथियार पेले रहे, तरह तरह से मारी, मेरी से तो जल्दी निकाल लिया था. क्या मजा नहीं आया?

मैंने फिर से घुटनों के बल बैठ कर उसके चूतड़ चूमे और कहा- नहीं यार, तेरे से भी मजा आया, तू बिना नखरे के पूरा ले गया. इसने तो बहुत परेशान किया.

मैंने उसके गालों का चुम्बन लिया, तो वह शांत हुआ और मुस्कराया.
हम सब एक बार फिर नहाए, कपड़े पहने और हम दोनों शादी घर की ओर चल दिए.

अब शादी का दिन करीब आ गया; मेहमानों की भीड़ बढ़ गई.

मेरे होस्ट डा. किशोर चिन्तित थे कि मेहमानों को किधर रुकाएं.
तभी उनके कुटुम्ब के चाचा सुन्दर जो उनके पड़ोसी भी थे, ने मुझे देख कर कहा- ये डाक्साब मेरे यहां सो जाएंगे, किशोर तुम परेशान न हो.

डा. किशोर की बड़ी बहन की ननद के साथ उनका देवर भी आया था.
उसका नाम रूप किशोर था. सब उसे रूप कहते थे. वो मेरा ही समवयस्क था. वह भी स्टूडेन्ट था.

वो पहले से ही उनके यहां सो रहा था. वो मुझसे बोला- मैं भी वहीं सो रहा हूं. शाम को मेरे साथ चलना.

हम रात को सुन्दर चाचा के घर में पहुंच गए.
सुन्दर चाचा वैसे तो डा.किशोर के चाचा थे पर उम्र में ज्यादा नहीं थे. यही कोई तीस बत्तीस के रहे होंगे.

उनके परिवार के सारे लोग शादी में थे. हम तीन लोग ही रात को घर में थे उनके ड्राइंग रूम में ही फर्श पर गद्दे बिछा कर लेटे थे.

रात को जब मैं सो रहा था, तो कुछ आवाजें सुन कर नींद खुल गई.

‘अरे कल ही तो मारी थी, आज दर्द कर रही है.’
‘अरे, थोड़ा सा, बस डालूंगा … रगड़ूंगा नहीं.’

‘नहीं नहीं, आज नहीं.’
‘अबे खोल.’
और चूमा लेने की पुच्च पुच्च की आवाजें आईं.

फिर थोड़ी देर बाद.

‘अरे … अर … आ … आ … लग रई … ओ … पूरा पेल दिया बस … बस …’
मेरी नींद खुल गई.

आंख खोल कर देखा तो अंधेरे में थोड़ा थोड़ा दिखाई दिया.
चाचा रूप पर चढ़े थे, उसकी गांड में लंड पेले थे और धक्कम धक्क धक्का पेल मचाए थे.

लगभग चार साढ़े चार का सुबह का टाईम होगा.
मैं फ्रेश होने उठा और बाहर टायलेट में चला गया.

कुछ देर बाद आकर लेट गया और दुबारा सोने की कोशिश करने लगा था मगर नींद नहीं आ रही थी.

तभी चाचा उठे, वे भी टायलेट गए.
उनके बाद रूप उठा और वो भी फ्रेश होने चला गया.

तब तक चाचा लौट आए.
मैं ड्राईंग में अकेला लेटा था. कमरे में अंधेरा था. मैं नींद लेने के लिए औंधा पड़ा था और टांगें फैलाए लेटा था.

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चाचा मेरे बगल में लेट गए.
फिर उठे और धीरे से मेरा अंडरवियर नीचे खिसका कर ऊपर घुटने मोड़ कर बैठ गए.

लंड पर थूक मला मेरी गांड पर टिका कर बोले- जब तक डाक्टर लौट कर आता है, उसके पहले जल्दी से निपट लेते हैं. हल्ला मत मचइयो, मेरा अच्छा भइया.
ये कह कर उन्होंने झटका दे दिया.

लंड का सुपारा अन्दर चला गया था.
उनका हथियार मस्त था, बहुत दिनों के बाद गांड को लंड नसीब हुआ था.

गांड में दर्द तो हुआ, पर मैं चुपचाप गांड ढीली किए लेटा रहा.

वे बहुत प्रसन्न हुए- हां, ऐसी ही ढीली किए रहो, रात को टाईट किए थे, तो मुझे भी ज्यादा जोर लगाना पड़ा, तुम्हें भी दर्द हुआ. अब ठीक है. बस थोड़ी देर की तो बात है.
उन्होंने दूसरा झटका दे दिया. अब आधा लंड अन्दर था.

वे थोड़ा मेरी जांघों पर बैठ गए, काम शुरू करने से पहले रेस्ट ले रहे थे.

थोड़ा रूक गए थे.
शायद रात के थके थे.

मेरे चूतड़ मसकने लगे- यार, तेरे बहुत मस्त हैं. ऐसे तो गांव के किसी लौंडे के नहीं.
अभी चाचा ये कह ही रहे थे कि उसी समय रूप दरवाजे पर आ खड़ा हुआ.

चाचा उसे आया देख कर चौंक गए और बोले- कौन?
रूप- मैं रूप, ऐसे क्यों कह रहे हैं?

चाचा- तो फिर ये कौन है … क्या डाक्साब?
उनका लंड मेरी गांड में पड़ा था, वो ढीला पड़ गया.

मैंने कहा- अब डला है तो निकालें नहीं, पूरा निपट लें.

उन्होंने पूरा पेल दिया- आप कह रहे हैं, तो ठीक है.
अब वे दनादन धक्के दे रहे थे.

रूप वहीं खड़ा खड़ा देख रहा था.

पहले तो लंड ढीला रहा, पर दो चार झटके देने से दुबारा टाईट हो गया.
अब वे जोरदार झटके देने लगे, पर उतना जोश नहीं रहा था.

बीच बीच में चाचा बार बार माफी मांग रहे थे- डाक्साब गलती हो गई.
मैं भी जोश में गांड चलाने लगा, इससे उनके लंड को मजा आ गया.

एक दो बार कहा भी- वाह डाक्साब. ऐसे कोई नहीं करवाता.
अब उनका पानी छूट गया, तो वे अलग हो गए.

हम सबने ब्रश किया, नहाए, तैयार हुए.
फिर जब चलने लगे, तो चाचा बोले- ठहरो.

वे किचन में गए और बढ़िया हलवा बना कर लाए, साथ में लस्सी भी लाए.
हम तीनों ने नाश्ता किया.

रूप- चाचा मेरी तो दो तीन बार रगड़ी, पर हलवा कभी नहीं खिलाया. वहीं जाकर रिफांइड की पूड़ियां चबानी पड़ीं. आज हलवा लस्सी!
चाचा मुस्कराए.

चाचा मुझसे बार बार माफी मांगते रहे- मेरे से गलती हो गई, मैं समझा रूप है. इससे तो दोस्ती हो गई थी, इस धोखे में आपसे हरकत हो गई. किसी से कहना नहीं.

रूप- आप माफी तो मांग रहे हैं, पर डाक्साब की रगड़ाई में तो कोई कसर नहीं छोड़ी … पूरा पेल कर ही माने.
चाचा- अब जोश में उस समय ध्यान नहीं रहता है न.

फिर मेरी ओर इशारा करके बोले- आपने परमीशन दे दी थी कि अब डाल दिया है तो काम कर लें. हां, आप अपनी ढीली किए रहे, बीच में बिल्कुल परेशान नहीं किया. और लौंडे तो ऐसा हल्ला मचाते हैं कि बस. वैसे साले रोज चुदवाते हैं. बाद में तो आपने जो कलाकारी दिखाई, वाह यह आर्ट तो यहां किसी के पास नहीं. मैं तो आज तर गया.

वे आंखें बन्द करके उस आनन्द में डूब गए.
मुझे पहली बार इस काम में इतना मजा आया.
चाचा सोचने में लगे थे.

रूप- चाचा, तुम्हारा इतना बड़ा हथियार बिना चूं चपड़ किए मस्ती से झेलना सबके बस की बात नहीं. जब रगड़ाई होती है तो आ आ ई ई निकल ही जाता है. डाक्साब बड़े हिम्मत वाले हैं. उस पर गांड की कलाकरी दिखाना, मेरे बस की बात नहीं, इनसे सीखना पड़ेगा.

रूप मुझे अपना प्रतियोगी मान कर खास निगाहों से देख रहा था.

शादी से लौट कर मैं कालेज में था कि एक दिन डा.किशोर बोले- अरे जिज्जी की ननद आई है, उसे उल्टियां हो रहीं हैं.
ये वही थी, जिसे मैंने रगड़ दिया था. जीजा से तो ग्याबन हुई नहीं थी मगर शायद मेरे लौड़े ने काम लगा दिया था.

हम सब गए.

उसे अस्पताल में भर्ती कराया, जांच में पाया कि उसे गर्भ ठहर गया है, इसी से उल्टियां हो रही हैं.
लेडी डाक्टर ने कहा- मां की जान खतरे में है. गर्भ गिरा दें?

डा. किशोर ने कहा कि कोई और इलाज करें.
तब मेरे कहने से हम सब प्रोफेसर कन्सल्टेंट के पास गए.
मैंने ही उनसे रिक्वेस्ट की.

दो तीन दिन में उल्टियां रूकीं. सब लोग परेशानी में भी प्रसन्न थे.

मैं भी उससे मिला.
वह कह तो नहीं पा रही थी, पर मुझको धन्यवाद दे रही थी.
मैं भी उसकी ख़ुशी समझ रहा था.

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