गर्लफ्रेंड के साथ मेरा पहला सेक्स-1

दोस्तो, मेरा नाम सपन है। मैं दिल्ली में रहता हूँ और एक प्रा.लि. कम्पनी में काम करता हूं। अन्तर्वासना में यह मेरी पहली सेक्सी कहानी है। यह कहानी मेरी पहली गर्लफ्रैण्ड की है।

मेरी गर्लफ्रैण्ड का नाम नीतू है। वह एक बैंक के लिये कॉलिंग का जॉब करती थी। इसी सिलसिले में उसने मुझे भी कॉल किया था। पर उस कॉल के दौरान उसकी आवाज सुनकर मुझे ऐसा लगा जैसे वह काफी बीमार हो। बातचीत में मैंने उससे यह बात बोल भी दी और फिर सहानुभूति दिखाते हुए उससे उसका पर्सनल सेल नम्बर मांग लिया। वह पहले तो कुछ झिझकी पर फिर पता नहीं क्या सोचकर उसने मुझे अपना नम्बर दे दिया।

उस काल के दो दिन बाद मैंने उसे फोन लगाया पर वह उस समय बहुत व्यस्त थी इस कारण हमारी बात नहीं हो सकी। उसके बाद कई महीनों तक हमारी कोई बात नहीं हुई।

कई महीने बाद जब एक दिन ऐसे ही मैंने उसे कॉल लगाई तो पता चला कि उसकी जॉब छूट गयी। मुझे वाकई बड़ा अफसोस हुआ। मैंने उस समय उससे वही कहा जो मुझे कहना चाहिये था। मैंने उसे दिलासा दी कि चिन्ता न करे जल्दी ही उसकी दूसरी और पहले वाली जॉब से अच्छी जॉब लग जायेगी।

इत्तिफाक से, हमारी इस बातचीत के दो दिन बाद ही उसका फोन मेरे पास आ गया। मेरे मोबाइल की स्क्रीन पर जब उसका नाम चमका तो वाकयी मुझे बहुत अच्छा लगा। मेरे कॉल रिसीव करते ही उसने चहकते हुए बताया- सपन सच में तुम्हारी उस दिन की दुआ काम कर गयी। तुम वाकयी मेरे लिये लकी हो।
“बात तो बताओ नीतू … क्या जॉब लग गयी तुम्हारी?” मैंने अंदाजा लगाते हुए पूछा।
“हां यार…” वह इतनी खुश थी कि औपचारिकता छोड़कर सीधे यार पर आ गयी- परसों तुमने मुझसे कहा था और देखो कल ही मेरी जॉब लग गयी।
“यह तो सच में बड़ी खुशी की बात है।”

इसके बाद हमारे बीच अक्सर ही बातें होने लगीं और जल्दी ही यह अक्सर रोज में बदल गया। हम एक दूसरे से बातें करते तो समय का ख्याल ही भूल जाते थे।
पर अब भी हमारे सम्बंध सिर्फ फोन पर बात करने तक ही सीमित थे, हम अभी तक आपस में मिले नहीं थे। उसने भी ऐसा कोई इसरार नहीं किया था और मैंने भी नहीं किया था। मुझे लगता था कि मेरी ओर से मिलने की बात करना हल्कापन लगेगा।

अब तक हमारे मन में एक-दूसरे के लिये प्यार का भाव जन्म ले चुका था। हम एक दूसरे से अब अपनी सारी बातें शेयर करने लगे थे। हमने एक-दूसरे के प्रति अपने प्यार को कबूल कर लिया पर अभी भी हमारी बातें बिल्कुल ही निश्छल किस्म की थीं। सेक्स जैसी किसी चीज का जिक्र अभी एक बार भी हमारी बातों में नहीं आया था।

मुझे अब तक याद है वह 21 अगस्त की दोपहर थी। लंच टाइम में उसका फोन आया। शुरुआती औपचारिक दिनों की बात अलग थी, पर जब से हम लोग एक-दूसरे के करीब आये थे … आपस में खुलकर बात करने लगे थे तब से हम एक-दूसरे को फुर्सत में रात में ही फोन करते थे। मुझे लगा कि जरूर कोई खास बात है।

जैसे ही मैंने काल रिसीव की उसने चहकते हुए कहा- बताओ सपन आज क्या है?
“क्या है आज?” मैंने चौंकते हुये कहा।
मुझे समझ ही नहीं आया था कि वह क्या पूछना चाह रही थी।
फिर मैंने हंसते हुए मजाक में कहा- 21 अगस्त है आज!
“यही तो … 21 अगस्त है आज।”

“पर 21 अगस्त में ऐसा खास क्या है जो तुम इतना एक्साइटेड लग रही हो … कहीं … कहीं तुम्हारा बर्थडे तो नहीं है?”
“यार सपन! सच में आज मेरा बर्थडे है।” उसने फिर चहकते हुए कहा।
“हैप्पी बर्थडे नीतू!” फौरन मैंने उसे विश किया।
“थैंक्यू यार … पर ऐसे काम नहीं चलेगा!”
“तो बोलो कैसे चलेगा?”
“बर्थडे पर गिफ्ट नहीं दोगे मुझे।”
“गिफ्ट लेने के लिए पहले ट्रीट देनी पड़ती है। तुम ट्रीट दो, गिफ्ट तुम्हारा पक्का।” मैंने भी मजा लेते हुए कहा।

अब मैं भी बात को आगे बढ़ाना चाहता था, उससे मिलना चाहता था और इसके लिये इससे अच्छा अवसर हो ही नहीं सकता था।
“तो फिर शाम को, ठीक सात बजे, लक्ष्मी नगर में होण्डा शोरूम के सामने बस स्टॉप पर मिलो।”
“डन!” मैंने जवाब दिया।
“पर टाइम याद रखना … मैं सड़क पर खड़े होकर इंतजार नहीं कर सकती।”
“पक्का!” मैंने कन्फर्म किया।
फिर मैं आगे बोला- पर मैं पहचानूंगा कैसे तुम्हें?
मैंने अपनी चिन्ता व्यक्त की।
“जब एक-दूसरे से सच्चा प्यार होता है तो दिल खुद पहचान लेता है।” उसने रोमांटिक आवाज में उत्तर दिया।
उसके उत्तर से मेरा दिल खुश हो गया।

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मैं उससे मिलने के लिये इतना उत्सुक हो रहा था कि साढ़े छः बजे ही होंडा शोरूम में पहुंच गया। मैंने तय किया था कि पच्चीस मिनट वहां यूं ही बाइक्स देखते हुए गुजारूंगा और ठीक छः पचपन पर शोरूम से बाहर निकलूंगा। दो-तीन मिनट जो भी सड़क पार करने में लगें … मैं टाइम से एक-दो मिनट पहले ही सामने के बस स्टॉप पर मौजूद होऊंगा।

मैं बस स्टॉप पर पहुंचा। वहां तीन लड़कियां और सात-आठ लड़के खड़े थे, बस के इंतजार में। लड़कों से मुझे क्या लेना-देना था। मैंने तीनों लड़कियों पर नजर डाली। दो काफी सुन्दर और स्मार्ट थीं तीसरी भी अच्छी ही थी पर मन कह रहा था कि ‘नहीं यार इनमें से कोई नीतू नहीं है।’

यह विचार आते ही मैं दूसरी ओर घूम गया। सामने से स्किन कलर की लैगिंग्स पर लाल स्किन-फिट, स्लीवलेस कुर्ते में सजी एक लड़की चली आ रही। एक कंधे पर उसने बड़े सलीके से लैगिंग्स से मैचिंग का दुपट्टा डाल रखा था। हाथ में काला हैंड बैग झूल रहा था।
उसे देखते ही मेरा दिल धड़क उठा, अंदर से आवाजें आने लगीं- यही है … यही है तेरी नीतू!
सच में इतनी सुंदर लड़की मैंने पहले कभी नहीं देखी थी। पूरी तरह खिला हुआ शरीर, महकता हुआ यौवन और मचलते हुए … पर मर्यादित अरमान।

मैं आगे बढ़ा।
अब तक उसने भी मुझे अपनी ओर बढ़ते हुए देख लिया था। उसके होंठों पर एक दिलकश मुस्कुराहट नाच उठी … आंखें चमक उठीं।
उसके रिस्पांस से पक्का हो गया था कि वह नीतू ही है। हम दोनों बेहिचक एक-दूसरे की ओर बढ़ लिये। गिफ्ट वाला हाथ मैंने अपनी पीठ के पीछे कर लिया था।
“हैप्पी बर्थ-डे माई नीतू!” उसके पास पहुंचते ही मैंने मन की उमंगों को काबू में करते हुए धीरे से कहा। और गिफ्ट वाला हाथ आगे बढ़ा दिया।

“थैंक्यू!” उसने बड़ी नजाकत से गिफ्ट थामते हुए कहा- देखो, मैंने कहा था न कि दिल खुद एक दूसरे को पहचान लेंगे।
कहने के साथ ही गिफ्ट उसने एक हाथ में थामा और दूसरे हाथ से मेरा चेहरा घुमाते हुए थोड़ा सा उचक कर, अपने होंठ मेरे गालों के बिल्कुल करीब लाते हुए किस की आवाज की। उसके होंठ मेरे गालों से टच नहीं हुये थे, बीच सड़क पर लिप्सटिक गालों पर न लग जाये इस एहतिहास के चलते, पर उसकी सुडौल छातियां मेरी छाती को जरूर सहला गयी थीं। मेरा सारा वजूद सनसना उठा।

वह किस करके सीधी खड़ी हुई। उसका हाथ कब मेरे हाथ में आ गया न वह जान पाई न मैं। इस समय हमें होश नहीं था कि हम सड़क पर खड़े थे और लोगों के आकर्षण का केन्द्र बने हो सकते थे।
“अब कहां चलना है?” मैंने उसका हाथ पकड़े-पकड़े ही धड़कते हुए दिल के साथ धीरे से पूछा।
“जहां तुम कहो!” उसने मासूमियत से मेरी आंखों में झांकते हुए उत्तर दिया।
“तो चलो।”
“चलो!” उसने बेहिचक जवाब दिया।
हम दोनों बढ़ चले।

उस दिन हम दोनों काफी देर तक पहले पार्क में घूमे। पार्क में ही पेड़ों के झुरमुट में उसने मुझे होंठों पर असली किस देते हुये फिर से गिफ्ट के लिये थैंक्स कहा। हमारे दोनों के ही वजूद एक-दूसरे के शरीर की आंच से पिघल रहे थे पर दोनों ही पूरी मर्यादा में रहे।

पार्क के बाद हम एक रेस्तराँ में गये और फिर डिस्को में। डिस्को में दोनों थोड़ी देर तक एक दूसरे से लिपट कर नाचते रहे। हम दोनों ही उत्तेजित हो रहे थे पर अपने को कंट्रोल किए हुए थे। हम अपनी सीमा जानते थे और उनसे आगे नहीं बढ़ना चाहते थे।
दस बजे से कुछ पहले ही मैंने उसे उसके घर ड्रॉप कर दिया।

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फिर कई महीने तक हम दोनों हर ऑफ वाले दिन मिलते रहे। हर बार हम डिस्को जाते। साथ लिपट कर नाचते और किस करते। हमारे किस अब गहरे होने लगे थे। हर किस में हमारी सांसें अनियंत्रित होने लगी थीं, हमारे दिल धड़कने लगे थे, अरमान सीमाओं को तोड़ने को मचलने लगे थे। मेरे हाथ उसकी छातियों और कूल्हों की नाप लेने लगे थे। जैसे ही मेरे हाथ उसकी छातियों पर मचलते उसका बदन थरथराने लगता। मैं महसूस कर रहा था कि वह भी पूरी तरह उत्तेजित हो जाती है। मैं आगे बढ़ने का प्रोग्राम बनाने लगा।

अभी तक मैं एक मित्र के साथ फ्लैट शेयर करता था। अब मैं अलग फ्लैट तलाश करने लगा। जल्दी ही मेरी तलाश पूरी हुई, एक फर्निश्ड फ्लैट मुझे मिल गया।
फ्लैट लेने की खुशखबरी मैंने नीतू को दी। वह खुशी से मचल उठी और फ्लैट देखने को उतावली हो उठी। संयोग से दूसरे ही दिन हमारा ऑफ था। यह भी संयोग था कि हम दोनों का एक ही दिन ऑफ होता था।

उसने घर पर सहेलियों के साथ घूमने जाने का बहाना बनाया और पूर्व-निश्चित स्थान पर आ गयी। हमने रास्ते में कुछ कोल्ड-डिंक और खाने-पीने का सामान लिया और फ्लैट पर आ गये। मैंने उसे उत्साह से अपना दो बेडरूम का फ्लैट दिखाया।
फिर हम कमरे में आ गये।

मैंने बेड पर खाने-पीने का सामान फैलाया और दोनों ही लोग उस सामान के दोनों तरफ कोहनियों के बल लेट कर दूसरे हाथ में कोल्ड ड्रिंक की बोतल थामे बतियाते हुये उसे निपटाने लगे।
बहुत जल्दी ही उसकी सांसें तेज होने लगीं।
उसने एक लंबा सा घूंट लिया और फुसफुसा कर बोली- जल्दी निपटाओ इन्हें!

मुझे भी जल्दी थी। नाश्ता बाद में भी हो सकता था। एक ही सांस में मैंने बोतल खाली कर दी। उसने भी अपनी बोतल खाली कर दी थी।

बोतलें खाली होते ही उसने सारा सामान उठाकर टेबल पर रख दिया और आकर मुझसे लिपट गयी। हमारे होंठ एक दूसरे के साथ चिपक गये। हम दोनों इस तरह चिपटे हुए थे जैसे एक दूसरे में समा जाना चाह रहे हों। फिर मैंने अपना एक हाथ धीरे से उसकी पीठ पर टॉप के अंदर सरका दिया। वह एकदम से सिहर उठी। उसके मुंह से एक सिसकारी निकली और उसने मेरे होंठ पर हौले से अपने दांत गड़ा दिये।

मेरा हाथ टॉप के अंदर ही अंदर उसकी बगल से घूमता हुआ उसकी छाती पर आ गया और मैंने उसके एक मम्मे को दबोच लिया। उसने एक बार फिर चिहुंक कर जोर की सिसकारी भरी। मैं बारी-बारी उसके दोनों मम्मे दबा रहा था। हमारे होंठ अब भी आपस में चिपके हुए थे। हमारी सांसें बेकाबू होने लगी थीं।

फिर मैंने उसे पलट दिया। अब वह चित लेटी हुयी थी। हमारे होंठ अब भी अलग नहीं हुए थे। मेरा हाथ उसके मम्मों से खेलकर धीरे से नीचे उसके पेट पर आ गया और वहां शरारत करने लगा। फिर हाथ और नीचे उतरा और उसकी जींस की बटन खोल दी। वह बुरी तरह मचल उठी।

मैंने अपना हाथ उसकी जींस के अंदर कर दिया और उसकी पैंटी के ऊपर से ही उसकी चूत पर फिराने लगा। वह बुरी तरह सिसकारियां भर रही थी। उसकी पैंटी पर गीलापन मेरे हाथ को साफ महसूस हो रहा था।
फिर मैं उठा और उसकी जींस नीचे खींच दी। उसने कोई प्रतिरोध नहीं किया। उसकी चिकनी, संगमरमर सी सफेद जांघें मेरे सामने थीं। मैं उन्हें सहलाने लगा। उसने अपनी दोनों हथेलियां अपनी आंखों पर रख लीं। फिर मैंने अपने होंठ उसकी जांघों पर रख दिये।
उसका बदन बार-बार कांप रहा था। मेरा लंड भी बेकाबू हो रहा था। जांघों को सहलाते-चूमते मेरे हाथ और होंठ बेकाबू हो रहे थे।

धीरे-धीरे बढ़ते-बढ़ते मेरे होंठ उसकी पैंटी पर आ गये और पैंटी के ऊपर से ही उसकी चूत की गर्माहट महसूस करने लगे। उसके पानी की सुगंध मुझे और मदहोश किये दे रही थी।
वह अब भी अपनी हथेलियों से अपनी आंखें ढके लेटी हुयी थी। अपने बदन की थरथराहट पर उसका काबू नहीं था।

प्यार और रोमांस भरी कहानी जारी रहेगी.
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कहानी का अगला भाग: गर्लफ्रेंड के साथ मेरा पहला सेक्स-2

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