गीत मेरे होंठों पर-5

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अब तक की सेक्स कहानी में आपने जाना था कि परमीत ने तैश में आकर लंड चूसना मंजूर कर लिया था और वो संजय के लंड को अपने हाथ में चुकी थी.

परमीत ने उस आधे खड़े लंड को अपने हाथों में संभाला, ये देखते ही कोमल अपनी सहेली के साथ तालियां बजाने लगी और परमीत ने उस सांवले से बड़े लंड को हाथों से सहलाना शुरू कर दिया.

मनु और मैं ये दिखाना चाह रहे थे कि हम उधर नहीं देख रहे हैं, पर हमारी नजर थी कि वहां से हट ही नहीं रही थी.

अब आगे:

हमारी जानकारी अनुसार परमीत ने भी कभी लंड नहीं देखा था और ना ही किसी से सेक्स किया था, फिर भी शर्त और नशे के कारण वो एक कामुक और पुरानी खिलाड़ी की तरह नजर आ रही थी.

संजय सोफे पर टांगें फैला कर बैठा हुआ था और परमीत नीचे थी. तो जाहिर है कि परमीत के लो कट काले टॉप से उसके चमकते गोल कटीले नोकदार उरोज के स्पष्ट दीदार संजय को होने लगे थे. इस बात का सबूत ये था कि संजय का लंड झटके ले रहा था. वैसे संजय का लंड भी परमीत की खूबसूरती से कम ना था. संजय के लंड की साईज कितनी होगी. ये मुझे मालूम नहीं था. ये तो मुझे बाद में लंड के विभिन्न आकार का होने का मालूम हुआ, तब मैंने जाना कि लंड की लम्बाई को इंच से नाप कर बताया जाता है.

पर उस समय तो मैंने लंड को मध्यम आकार के केले से तुलना करके ही अच्छा समझा था. संजय का सांवला सा लंड, मोटे केले जैसा था, बस लंड और केले में फर्क ये था कि केले का ऊपरी सिरा पतला नोकदार होता है, जबकि लंड का ऊपरी सिरा बड़ा मोटा गोल और मांसल होता है, जिसे सुपारा कहते हैं.

संजय का सुपारा भी ज्यादा मोटाई लिये हुए था, चमकता गहरे गुलाबी रंगत लिए सुपारा हम सबकी जान निकाल रहा था. उधर स्पष्ट नजर आती लंड की उभरी नसें दिख रही थीं, तो इधर भी चूत पनियाने लगी थी. ऐसी हालत में परमीत की चूत ने भी रस बहा ही दिया होगा. परमीत को कुछ देर तो लंड सहलाने में ही निकल गए.

तभी कोमल ने कहा- अब मुँह में भी लेगी या इतने में ही गांड फट गई.

परमीत ने अपना जवाब अलग अंदाज में दिया. उसने आधे से ज्यादा लंड एक बार में ही गटक लिया, उसे देख कर यही लगा कि जैसे ये काम परमीत रोज ही करती हो.

परमीत के ऐसा करते ही सबके मुँह से एक आह निकल गई, लेकिन परमीत ने दूसरे ही पल लंड मुँह से निकाला और बाहर थूकने लगी. उसकी ये हरकत इस बात का सबूत थी कि उसने पहले कभी और कोई लंड नहीं चूसा है.

संजय ने इस कुछ पल के विराम में अपना पैंट निकाल फेंका. उसने अन्दर चड्डी नहीं पहनी थी.

अब पहली बार हमने उसके लंड के जड़ पर घुंघराले बालों को देखा, उसके नीचे एक ही थैली में भरे दो बड़े नींबू जैसी गोलियां लटक रही थीं, जिसे आंड या गोली भी कहते हैं, ये बात हम पोर्न देख कर सीख चुके थे.

संजय की गोलियां भी एकदम फूली हुई थीं, गुच्छेदार झांटे और फूली हुई गोलियों के साथ तो लंड का आकर्षण गजब ढाने लगा.

अब परमीत थोड़ा उठकर लंड को अलग-अलग तरीके से चूमने चाटने और चूसने लगी. कभी वो लंड पर नीचे ऊपर तक जीभ फिराती, तो कभी वो सुपारे के चारों ओर जीभ घुमाती. कभी वो लंड को ऊपर-ऊपर से चूसती और कभी पूरा लंड अन्दर लेकर आगे-पीछे करती.

सच कहूं तो उस वक्त मेरा भी मन लंड चूसने का हो रहा था, लेकिन मेरे दिमाग ने मुझे इस बात की इजाजत नहीं दी. वैसे किसी भी व्यक्ति का खुलापन या झिझक उसके जीवनकाल में पाए अनुभवों या माहौल का ही नतीजा होता है. मेरे लिए यह सब आज पहली बार था, इसलिए खुलेपन की गुंजाइश नहीं थी.

परमीत नीचे बैठी थी, इसलिए उसे लंड चूसने के लिए अपना पिछवाड़ा बार-बार उठाना पड़ रहा था और उसकी मोटी गांड हिल हिल कर हमें मुँह चिढ़ा रही थी. उसके थोड़े ऊपर उठने से परमीत की शार्ट स्कर्ट और चढ़ गई थी.

परमीत बहुत गोरी थी, ऐसे में उसकी नंगी सुडौल जांघों का दीदार, गोरी पिंडलियों में लचक और कमर की अनोखी हलचल भी लड़कों के अलावा लड़कियों के लिए भी उकसाने वाली थी.

इधर मेरी चूत ने तो रस बहाना शुरू भी कर दिया था, जिसे छुपाने के लिए मैंने अपनी दोनों टांगों को आपस में कसकर जोड़ लिया और ऐसी ही स्थिति मनु की भी थी. उधर संजय ने अपने ऊपर के कपड़े निकाल दिए, बनियान तो उसने पहनी ही नहीं थी, ऐसे में उसका कसरती आकर्षक चिकना बदन माहौल को कामुक बनाने लगा.

उसे देख कर कोमल ने एक और शैतानी कर दी, उसने परमीत के पीछे जाकर उसकी टॉप को पकड़ा और ऊपर उठा कर बाहर खींचने लगी. इस पर परमीत ने गुस्सा करने के बजाए उसका ही साथ दिया और पल भर में ही वो अपने काले टॉप से आजाद हो गई.

अब तो नजारा और भी कामुक हो गया था. परमीत ने अन्दर लाल कलर की ब्रा पहन रखी थी, जो पीठ में हल्की सी धंसी हुई उसकी स्कर्ट के साथ मैच कर रही थी. परमीत का आधे से ज्यादा सुडौल सुंदर बदन हमारे सामने प्रत्यक्ष प्रदर्शित हो रहा था. उसके यौवन का दूर से लंड का रसपान करना देखना भी किसी अमृत पी कर तृप्त होने से कम ना था.

परमीत के बाल ज्यादा बड़े ना थे, इसलिए उसके संगमरमर जैसे बदन को देखने के लिए कोई रूकावट नहीं थी. परमीत की गोरी पीठ से नजर फिसल भी जाए, तो थोड़े बगल को झांकने पर उसके कयामत ढहाती पहाड़ियां, जो कि परमीत के घुटनों से दबकर बाहर की ओर निकलने को हो रही थीं … वे सबकी जान निकाले जा रही थीं.

सामने संजय का लौड़ा तो फनफनाते ही जा रहा था और दूसरी तरफ संदीप का लंड पैंट में ही फुंफकारने लगा था.

थोड़े ही दूर में बैठा संदीप बार-बार मुझे ही ताड़ रहा था और नजरें बचा कर मैं भी उसे निहार रही थी. संदीप का लंड कैसा था या कितना बड़ा था, ये बिना लंड देखे कहना मुश्किल था, लेकिन पैंट के ऊपर से ही उसके बड़े लंड का अहसास आसानी से हो रहा था. हालांकि अब तक संदीप अपनी पूरी शराफत में ही था और शरमा भी रहा था, लेकिन फिर भी था तो मर्द ही. मैंने साफ़ देखा था कि उसने मेरी आंखों के सामने ही कई बार अपने पैंट में ही लंड को एडजस्ट किया था.

मन ही मन तो मैं चाह रही थी उसके लंड के भी दर्शन हो ही जाएं, लेकिन उसने अंत तक अपनी शराफत नहीं छोड़ी. सच कहूँ तो मैं उसकी इसी शराफत पर मरने लगी थी.

उस समय कामुकता अपने चरम को छूने लगी. तभी तो कोमल ने भी अपने ऊपरी कपड़े निकाल फेंके और पेंटी को एक ओर करके अपनी चूत में उंगली करनी शुरू कर दी. कोमल की चूत सांवली रंगत लिए हुए थी, क्लीन शेव की हुई चूत आज के फिक्स प्रोग्राम की कहानी बयान कर रही थी. हां लेकिन एक बात माननी पड़ेगी कि कोमल की चूत किसी पाव रोटी जैसी फूली हुई थी और कोमल की तीन उंगलियां उसकी ललसाती चिपचिपी चूत में आराम से अन्दर बाहर हो रही थीं.

अब तो मेरा और मनु का भी मन इस खेल में कूद जाने का हो रहा था, लेकिन हम लोगों ने पैरों को आपस में कस कर खुद को संभाले रखा. हालांकि एक दूसरे की हालत किसी से छिपी नहीं थी, फिर भी खुल के सामने आना हर किसी के वश की बात नहीं होती.

कुछ और समय बीता, तो परमीत ने अपनी पेंटी में हाथ डाल दिया और चूत सहलाने लगी … जोकि सभी को स्पष्ट नजर आ रहा था. संजय ने परमीत की चुसाई कला से आंखें बंद कर ली थीं. लेकिन संजय ने हाथ बढ़ा कर परमीत के शानदार उरोजों को थाम लिया था. संजय परमीत के मखमती शानदार उरोजों को जोरों से दबा रहा था. उसने परमीत की ब्रा को ऊपर सरका कर पहाड़ियों को आजाद कर दिया था और बीच-बीच में उसकी घुंडियों को भी ऐंठ रहा था, जिससे परमीत की गुलाबी घुंडियां लाल हो गई थीं. उसके उरोजों पर संजय की उंगलियों के निशान पड़ने लगे थे.

ऐसे नजारे से हम सभी का शरीर और सांसों में उथल पुथल होने लगी थी. संदीप अपने लंड को पैंट से बिना निकाले ही घिसने लगा और कोमल की एक अन्य सहेली ने अपना वन पीस शार्ट ड्रेस ऊपर करके चूत में उंगली डाल ली थी.

इस तरह माहौल कामुकता के चरम में पहुँच गया था. संदीप की आंखें बंद थीं. मेरी नजरें संदीप के लंड पर जमी हुई थीं. तभी संदीप के अन्दर कुछ अकड़न नजर आने लगी और उसके तुरंत बाद उसके चेहरे पर एक सुकून नजर आया. संदीप ने कुछ पल और आंखें बंद रखी थीं. फिर आंखें खोलते ही उसने मुझे देखा मेरी नजरें उसके छिपे लंड पर ही गड़ी हुई थीं.

ये देख संदीप वहां से उठ कर बाथरूम की तरफ भागा और मुझे भी लगा कि मुझे भी बाथरूम से हल्का होकर आना चाहिए. मैं भी झट से लेडीज बाथरूम में चली गई. वहां जाकर चूत में उंगली की, अपने उरोजों को दबाया, सहलाया और जब चूत ने पानी बहा दिया, तब जाकर मन को थोड़ी शांति मिली. वैसे आज मैंने इतनी देर में तीसरी बार खुद को स्खलित कर दिया था.

अब मुझे पेंटी का होश आया, तो मैंने उसे रूमाल को गीला करके साफ किया और खुद को व्यवस्थित कर लिया.

मुझे इसके बाद बाहर आने में शर्म आ रही थी, फिर भी बाकी सबकी हरकतें याद करके लगा कि मुझे शर्माने की जरूरत नहीं है.

मैं जब बाथरूम से बाहर आई, तब तक शायद कोमल और उसकी सहेली ने अपना स्खलन कर लिया था. संदीप भी अपनी जगह पर वापस आ गया था. मुझे मनु कहीं नहीं दिखी, शायद वो भी दूसरे बाथरूम में गई होगी.

सामने के खेल में संजय खड़े होकर लंड हाथ में पकड़ कर हिला रहा था. शायद उसका अमृत कलश छलकने वाला था और परमीत नीचे बैठी जीभ निकाले हुए अमृत बूंदों की प्रतिक्षा कर रही थी.

इस दृश्य ने मुझे फिर कामुकता के सागर में गोते लगाने पर विवश कर दिया. संजय का लंड पानी छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था.

तभी कोमल कह उठी- मैंने कहा था ना संजय … इस दवाई में बहुत दम है, देख लो हमेशा तुम्हारा पंद्रह बीस मिनट मों निकल जाता है और आज दवाई के असर से तुम्हारा लंड पैंतीस मिनट साथ दे गया. वो तो इस कुतिया ने तुम्हारा लंड अच्छे से चूस दिया, नहीं तो तुम पक्का एक घंटा टिक जाते.

इस बात पर संजय ने हरामीपन वाली स्माईल दी, बाकी किसी को कोई खास फर्क नहीं पड़ा, लेकिन मेरे दिमाग में एक बिजली सी कौंध गई. मतलब परमीत और हम एक बड़ी साजिश का शिकार हो चुके थे और इस साजिश में तो सिर्फ इतना ही हुआ, लेकिन कुछ और ज्यादा हो जाता … तो हमारी जिंदगी ही खराब हो जाती.

मैं तो बस अब इसी बात को ही सोच रही थी, तब तक मनु भी आ गई. तभी संजय के लंड ने बहुत सारा पानी छोड़ दिया. संजय का वीर्य बहुत ज्यादा गाढ़ा नहीं था, नई जवानी में वीर्य की धार तेज जरूर होती है, पर गाढ़ापन बहुत कम होता है. परमीत के मुँह में जितना समा सका, उसने मुँह में रखा और बाकी का रस उसके चेहरे और शरीर पर बिखर गया.

परमीत ने सबको मुँह में भरे अमृत को दिखाया और एक झटके में गटक गई.

ऐसा परमीत ने सिर्फ नशे की हालत की वजह से कर लिया और शर्त की वजह से अंधेपन में ऐसा किया, लेकिन अब परमीत शर्त जीत चुकी थी और नशे में खुद को भूल चुकी थी. उसने खड़े होने का प्रयास किया, तो लड़खड़ा के गिरने लगी.

उसे मनु ने आगे आकर संभाला और उसका टॉप उठा कर उसे बाथरूम की ओर ले गई.

उन दोनों के जाने के बाद कोमल की सहेली ने कोमल से कहा- तुझे तो परमीत को लंड चुसाना था ना, तो उसके लिए तुमने संजय को ही क्यों चुना, तू ये काम संदीप से भी तो करवा सकती थी. और बात चुदाई तक क्यों नहीं ले गई … साली की चूत भी फड़वा देनी थी आज.

उसके इस कथन पर मेरी नजर अनायास ही संदीप की ओर उसकी प्रतिक्रिया देखने के लिए मुड़ गई. पर संदीप शांत रहा और हम दोनों की नजरें मिली की मिली रहीं.

उधर जवाब कोमल ने दिया- तू तो जानती है न कि मैंने संजय का लंड कितनी बार अपनी चूत में लिया है, मुझे परमीत को अच्छे से सबक सिखाना था. मैं चाहती थी कि लंड चूसते-चूसते परमीत की गांड फट जाए और उसके लिए अनुभवी लंड जरूरी था. संदीप तो बेचारा अभी तक अनुभव हीन है, पता नहीं दस मिनट भी टिक पाता या नहीं. और रही बात चुदाई की, तो मैंने सोचा कि ज्यादा बड़ी मांग रखने से हो सकता था कि परमीत पीछे हट जाए और मैं ये बिल्कुल नहीं चाहती थी.

कोमल की बातों पर मुझे बहुत गुस्सा आया, पर संदीप वाली बात पर मैं जोरों से मुस्कुरा बैठी और मैंने संदीप से नजरें हटा लीं.

मैंने उस वक्त संदीप से नजरें जरूर हटा लीं, लेकिन मैं कोमल की इस बात के बाद अपना दिल संदीप पर पूरी तरह हार गई.

तभी कोमल ने एक और बात कही. उसने कहा कि उसने संदीप से भी बात की थी, पर संदीप ने मना कर दिया था.

इतना सुनकर तो मैं संदीप पर मर ही मिटी, क्योंकि आप भी जानते ही हैं कि एक लड़की चुदना तो बहुत बुरी तरीके से और किसी खिलाड़ी से ही चाहती है, पर जब भी प्यार का मामला आता है, तो उसकी पहली पसंद कोई अनाड़ी और शरीफ इंसान ही होता है.

अब मेरे गालों पर प्यार की खुमारियों के निशान स्पष्ट देखे जा सकते थे. वहां और बहुत सी बातें हो रही थीं, पर मेरा ध्यान संदीप के अलावा अब किसी बात पर नहीं जा रहा था.

तब तक परमीत और मनु भी बाथरूम से बाहर आ गई थीं. फिर हमने वहां एक पल और रुकना ठीक नहीं समझा. दिन भी ढलने को था, तो घर पहुंचना भी जरूरी था. संजय ने हमें अपनी गाड़ी में छोड़ने की बात कही, इस पर संदीप ने चाभी मांग ली और हमें छोड़ने आ गया.

हमने बहुत नार्मल विदाई ली और चल पड़े.

परमीत का नशा अब भी पूरा नहीं उतरा था, तो हमने रास्ते में गाड़ी रुकवा कर परमीत से पूछा कि उसे कहां जाना है.
उसने कहा कि आज मेरे घर पर बड़ी बहन के अलावा और कोई नहीं है. मैं अपनी बड़ी बहन को समझा लूंगी, इसलिए मुझे घर ही छोड़ दो.

हमने पहले परमीत को घर छोड़ा, फिर मनु के घर से बहुत दूर गाड़ी रूकवा ली. जाने के समय मैंने और परमीत ने मनु के यहां अपनी साइकिल छोड़ी थी … और ऑटो से वहां गए थे, इसलिए मुझे अपनी साइकिल के लिए मनु के यहां जाना था.

पर सच कहूं तो संदीप का साथ मुझे अच्छा लग रहा था और ऐसा ही कुछ मैंने संदीप की आंखों में भी देखा.
संदीप ने हमें छोड़ कर जाते वक्त कहा- हम फिर मिलेंगे!

मुझे ये बात समझ नहीं आई कि उसने ये बात तो हम दोनों से ही कही और सामान्य तरीके से ही कही, पर मेरा दिल इस छोटी सी बात के हजारों मायने क्यों निकालने लगा.

क्या बात सिर्फ यही है कि मैं संदीप को पसंद करती हूं, या फिर मैं संदीप की दीवानी हो चुकी हूं. आप तो समझते ही होंगे कि पसंद करना और दीवाना होने में कितना फर्क है.

मैंने मनु के घर से अपनी साइकिल उठाई और सीधे घर जाकर अपने कमरे में घुस गई. घर पर मैंने लोवर टी-शर्ट पहना और फ्रेश होने के बहाने बाथरूम में घुसकर आईने में खुद को निहारने लगी. मन में कितने सारे ख्यालात आ रहे थे, वो तो बताना भी मुश्किल है. पर अभी सबसे ज्यादा मैं संदीप के बारे में सोच रही थी और सोच क्या रही थी … ये कहिए कि ख्वाब बुन रही थी.

मैं अपने ही शरीर को सहलाने लगी और आंखें कब बंद हो गईं … उंगलियां कब चूत में घुस गईं, कुछ पता ही नहीं चला.

चूत साफ किए मुझे कुछ ही दिन हुए थे, इसलिए छोटे-छोटे रोंए चूत की खूबसूरती बढ़ा रहे थे. मैं कोई पहली दफा चूत में उंगली नहीं कर रही थी, पर आज पता नहीं क्यों, एक अलग अहसास से मेरा मन रोमांचित हो रहा था. बंद आंखों से भी मुझे संदीप का चेहरा स्पष्ट नजर आ रहा था और ऐसा लग रहा था मानो मेरे साथ संदीप ही सब कुछ कर रहा है.

मैंने दाएं हाथ से लोवर को सरका कर और नीचे कर दिया ताकि चूत को और अच्छे से मसल और रगड़ सकूं. बांए हाथों ने मम्मों को थाम लिया था और संजय के कारनामों की तरह ही निप्पल को उमेठने लगे थे. चूंकि मैं पहले से ही उत्तेजित थी और संदीप के अहसास ने मुझे और गर्म कर दिया.

अब मैंने जैसे ही संदीप के लंड का दबाव चूत में महसूस किया, मेरे मुँह से एक हल्की सी चीख निकल गई. दरअसल मैंने अपनी तीन उंगलियों को एक साथ चूत में अन्दर तक डाल दिया था. फिर अचानक ही मेरी गति तेज हो गई और मैं अपने ही दातों से होंठों को काटने लगी.

मेरे दांए हाथ की उंगलियों की हरकत चूत पर बढ़ गई और बांए हाथ की हरकत निप्पल, उरोज और पूरे जिस्म पर बढ़ने लगी. शरीर का तापमान बढ़ने लगा और ज्वालामुखी विस्फोट के साथ ही मन को थोड़ी राहत महसूस होने लगी.

कुछ पल में ही मैं सामान्य होने लगी, पर ख्यालातों का जाल दिमाग में उलझा रहा.

मैं घर पर सबको सामान्य दिख रही थी, पर आज से मेरी जिंदगी में बहुत कुछ बदल गया था.

मैंने मां के साथ काम में हाथ बंटाया, फिर रात का खाना खा कर किचन में बर्तन साफ भी किए और फिर मैं अपने कमरे की तरफ जाने लगी. तभी मेरी नजर सब्जी की टोकरी में पड़ी, वहां पर मस्त लंड की साईज का काला लम्बा बैंगन देख कर मन मचल गया. उस वक्त वहां पर कोई नहीं था, तो मैंने मौका सही जानकर पास रखी दूसरी टोकरी से एक केला उठा लिया, जो थोड़ा कम पका हुआ था.

अब आप कहेंगे कि मैंने बैंगन देखा, तो केला क्यों उठाया, तो इसके पीछे कारण ये था कि बैंगन अपने कलर और साईज के कारण आकर्षित तो करता है, लेकिन चूत में उसके चिकनेपन की वजह से केले जैसा मजा नहीं आता और दूसरी मुख्य वजह यह थी कि बैंगन कहीं से भी टूट जाता है, तो उत्तेजना के समय उसके टूट कर चूत में फंसने का डर होता है, जबकि केला भले ही पिचक जाता है, पर उसके छिलके के कारण वो अचानक से टूटता नहीं है और कम चिकनाई की वजह से चूत में सही ढंग से रगड़ भी पैदा करता है. ये बात मैंने अपने हॉस्टलर सहेलियों से कभी सुन रखी थी. नई नई चूतों के लिए ये एक शिक्षा भी है कि वे केला और बैंगन में से केले को ही ट्राई करें.

मैंने सबसे नजर बचा कर केला कमरे में छुपा लिया और अब मैं सबके सोने का इंतजार करने लगी. तब तक मैंने पढ़ाई करने का नाटक किया. मन तो किसी चीज में लग नहीं रहा था, बस आज दिनभर की घटना सोच-सोच कर चूत परेशान किए जा रही थी.

फिर जब मुझे बरामदे की लाईट बंद होने का आभास हुआ, तो मैंने अपनी जगह से उठ कर खुद को आश्वस्त किया और अपने कमरे का दरवाजा बंद करके बिस्तर पर चली आई. मैंने अभी केले को छुआ भी नहीं, क्योंकि पहले मैं पूरी तरह गर्म होना चाहती थी, उसके बाद ही आगे का मजा करना चाहती थी.

मैंने इसी चाहत में मोबाइल पकड़ा और पोर्न देखने के लिए बहुत से साईट सर्च करने लगी, पर आज का लाइव टेलीकास्ट ऐसा देख लिया था कि उसके आगे सारे पोर्न फीके लग रहे थे.

तभी मेरे दिमाग में एक लड़की की बात याद आई. उसने कहा था कि पोर्न से ज्यादा सेक्सी कहानियों में मजा आता है.

पर मैंने आज तक कभी ऐसी कहानियां पढ़ी नहीं थीं, इसलिए मुझे किसी साइट का भी पता नहीं था. मैंने ऐसे ही गूगल में जाकर सेक्सी कहानियां टाइप की, तो मुझे बहुत सारे साइट मिल गईं, पर किसी में कोई दम ना था. सारी बातें बकवास लगीं और कुछ कहानियां तो अंग्रेजी में लिखी हुई आ रही थीं, तो मैंने कुछ सोचा और हिन्दी सेक्स स्टोरी टाइप कर दिया.

हिन्दी सेक्स स्टोरी टाइप करते ही सबसे ऊपर एक साइट का नाम आया, जिसमें लिखा था अंतर्वासना. मुझे ये शब्द बहुत ही सटीक और सलीके का लगा. सच ही तो है … मैं अपनी अंतर्वासना के चलते ही तो साइट तलाश रही थी.

फिर मैंने अन्तर्वासना की एक सेक्स कहानी को पढ़ना शुरू किया. मजा इतना अधिक आने लगा कि अन्तर्वासना की एक से बढ़कर एक कहानियों ने मेरी अपनी अंतर्वासना में आग लगा दी और उस दिन से आज तक मैं इस साइट की दीवानी हूं. कुछ कारणवश अब इस साइट की एक और साईट को फ्री सेक्स कहानी डॉट काम के नाम से शुरू किया गया है.

साइट पर मैंने कहानियों के अंत में पाठकों के जबरदस्त संदेश देखे और उनके संदेशों ने मुझे लोवर टी-शर्ट उतार फेंकने पर विवश कर दिया. अभी मैंने केला तो नहीं उठाया था, पर मैं अपनी दो उंगलियों में चूत के दाने को मसलते हुए सहलाने लगी थी.

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कहानी जारी रहेगी.

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