गांड मराने का पहला अनुभव-2

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    गांड मराने का पहला अनुभव-3

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अब तक की मेरी इस सेक्स कहानी में आपने पढ़ा कि हम सभी चिकने चिकने लौंडे गर्मियों की छुट्टियों में नहाने के लिए तालाब पर तैरना सीखने जाते थे.
तैरना सीख गए थे तो हमें अपने उस्तादों को अपनी गांड मरा कर गुरू दक्षिणा देनी पड़ी.

प्रकाश भाईसाब ने नसीम की जम कर उचक उचक कर गांड मारी. उसकी बुरी तरह से रगड़ दी.

अब आगे:

नसीम गांड मराने के बाद अपनी गांड पर हाथ रखे सहलाता हुआ बिलबिलाता रहा- भाई साहब … आज तो पूरी कसर निकाल दी … गांड की मां चोद दी.

प्रकाश भाईसाब हंस कर बोले- चार बजे तू सलमान उस्ताद के साथ जा रहा था. मुझे तेरी गांड में लंड डालते ही पता लग गया था साले कि तू कहीं से अपनी गांड मरवा कर आ रहा है … उससे फड़वा कर आया था और मादरचोद दोष मुझे दे रहा है?

प्रकाश भाई की कड़क आवाज सुनकर नसीम चुप हो गया और दांत निपोर कर बेशर्मी से हंसते हुए ‘भाई साहब … भाई साहब..’ करने लगा.

प्रकाश भाई बोले- साले, वे मेरे भी उस्ताद रहे हैं … मैंने ट्रेक्टर का काम उनसे ही सीखा है.
नसीम बोला- तो उन्होंने क्या आपकी भी?
प्रकाश- और नहीं तो … तुझे पता नहीं है क्या … वे बुरी तरह रगड़ देते हैं. मेरी कई बार रगड़ी है. उनका हथियार अच्छे अच्छे नहीं झेल पाते हैं.
नसीम- आपका भी तो मस्त है. मैंने अभी करवाई.

इसके कुछ बाद नसीम मचल गया- भाईसाहब इन लौडों में से किसी की मार दो … अच्छा एक बार अपना लंड छुला ही दो.
वे बोले- तूने अभी तक किस किस की मारी?
नसीम बोला- दो की मार चुका हूँ. आज तीसरे को लंड पर लेने का मन था. मगर आपने मेरी पसंद की.
प्रकाश भाई- अच्छा तूने जिसकी मारी हो, उसकी बताओ.

उसने प्रकाश भाई के सामने एक दूसरा लौंडा आगे कर दिया. प्रकाश भाई ने लंड पर खूब सारी क्रीम पोती, थूक मला और लौंडे की गांड पर टिका कर कहा- ढीली रखना … लगेगी नहीं, वरना नहीं डालूंगा.

वे बहुत धीरे धीरे लंड पेल रहे थे. आश्चर्य था कि लौंडा भी उनका पूरा लंड ले गया. वे धक्का देते, तो वो लड़का भी गांड चलाने लगा.

वे उसके चूतड़ों पर थपकी देते हुए हंस कर बोले- शाबास नसीम … तुमने लौंडे को सही चालू कर दिया … इसी तरह सबको तैयार कर दो, फिर जलसा करेंगे. तूने अब तक केवल दो ही चालू किए हैं … अब तक तो सब चालू हो जाने चाहिए थे. सब मस्त चिकने लौंडे हैं.

नसीम हंसने लगा.

फिर प्रकाश भाई ने मेरे चूतड़ पर हाथ फेरा और बोले- अगला नम्बर इसका; तीन दिन बहुत हैं.
नसीम झिझका, तो भाईसाब बोले- सुबह शाम ट्रेनिंग करो … संख्या बढ़ा दो.

उनकी बात सुनकर हम बचे हुए लौडों की गांड भी कुलबुलाने लगी थी.

उन्हीं गर्मियों के दिनों में मैं चाचा के साथ उनके खलिहान जाया करता था. तब उनके पास ट्रेक्टर था … पर कम्बाइन हार्वेस्टिंग सिस्टम व थ्रेसर नहीं थे. खलिहान में कटाई का काम लम्बा चलता था.

मैं दिन भर चाचा के साथ रहता. चाचा के न होने पर मुझे रात को खलिहान में ही सोना पड़ता. सारे हलवाहों व अन्य स्टाफ के साथ ये देखने के लिए रहना पड़ता था कि वे मक्कारी न करें. मुझे उन सभी की रिपोर्ट चाचा को करनी पड़ती थी.

ऐसे ही एक दिन मैं खलिहान में लेटा था. रात को ड्राइवर चाचा तो खींच कर दारू पी कर सो जाते थे. रात को असल सुपरवाइजर तो इसहाक ही था. इसहाक ट्रेक्टर ड्राईवर का बेटा था. इसहाक दबंग था वो सब नौकरों को डांटता, फटकारता. मेरे चाचा की तरफ से उसे इस सबकी पावर थी, निर्देश भी थे.

इसहाक यही कोई बाईस साल का मजबूत मर्द था. स्टाफ की उम्र दराज औरतें, जो उससे उम्र में बड़ी थीं. उनकी चुदाई करते मैंने उसे देखा था.

वह कटाई के लिए आने वाले मजदूरों की लड़कियों और औरतों को भी मौका मिलने पर नहीं छोड़ता था. वो तगड़ा लम्बा था, दबंग लड़ाकू किस्म का दादा था. वो अभी से ही भारी चुदक्कड़ था.

वो शायद मेरे चाचा से गांड मरवाता और लोगों से भी गांड मरवाता था. मैंने उसे खुद खलिहान के आस-पास के खेतों की झाड़ियों में तीन चार बार गांड मराते हुए देखा था. इसहाक खुद भी लौंडेबाज था. कुछ आपराधिक प्रवृत्ति का भी था. मैं भी थोड़ा उससे डरता था.

उस रात उसके साथ उसका एक दोस्त, जो उसी की उम्र का … या थोड़ा कम उम्र का था, वो रुक गया. वह एक चिकना गोरा लौंडा था.

इसहाक बोला- वहां चबूतरे पर अच्छी हवा आ रही है, चल वहां सोएंगे.

मैं भी उन दोनों के साथ चला गया. मैं बीच में लेट गया. वे दोनों मेरी दोनों तरफ लेट गए.

रात को मेरी नींद खुली तो मुझे लगा कि कोई मुझ पर चढ़ा है. उसने मुझे औधा कर दिया था. मेरा हाफ पैंट नीचे खिसका दिया गया था. मैं समझा कि ये शायद इसहाक होगा.

पर वो उसका साथी चिकना दोस्त सलीम था. वो अपना लंड मेरी गांड से रगड़ रहा था, पर हड़बड़ी में उसका लंड गांड के छेद के नीचे खिसक गया. वो जोश में मेरी जांघों के बीच में पीछे से लंड रगड़ता रहा. मैं चुपचाप लेटा रहा चूंकि उसकी पकड़ बहुत मजबूत थी.

उसने मेरी बांहों के नीचे से हाथ डाल कर कसके पकड़ा हुआ था. वो बड़ी जोरदारी से धक्के लगा रहा था. उसके झटके तो गांड फाड़ू थे, पर लंड गांड में नहीं था.

कुछ देर बाद वह झड़ गया, उसका पानी उसी दरी पर टपक गया, जिस पर हम तीनों लेटे थे. झड़ने के बाद उसकी पकड़ ढीली पड़ गई, तो मैं खड़ा हो गया.

मुझे उठा देख कर इसहाक भी उठ बैठा और वो उसे डांटने लगा- क्यों बे, लौंडे के साथ ये क्या कर दिया?

फिर इसहाक से उसके गले से तौलिया लेकर मेरी गांड पौंछने लगा. उसने दरी से भी माल पौंछा.

फिर उस लौंडे का नाम लेकर पुकारा- साले मादरचोद सलीम.
तब मुझे पता लगा था कि इसका नाम सलीम है. इसहाक उसे साफी देकर बोला- जा इसे अभी कुएं पर जाकर धोकर ला.

इस दौरान इसहाक मेरे चूतड़ों पर हाथ फेरता रहा. फिर उसने अपनी एक उंगली हल्के से मेरी गांड पर घुमाई.
इसहाक- ज्यादा दर्द तो नहीं हो रहा?
मैं कुछ नहीं बोला.

फिर इसहाक जैसे अपने से ही बोला. मगर वो मुझे समझाते हुए कह रहा था- उसने ज्यादा जोर से तो नहीं मारी? लगी तो नहीं … दो चार धक्के ही लगाए होंगे … माल तो साले ने सारा बाहर निकाल दिया.

इसहाक ने अपनी उंगली गांड पर घुमाते हुए मेरे चूतड़ों के दो तीन चुम्बन भी ले डाले.

इसहाक- यार तेरे चूतड़ तो बहुत मस्त हैं … इसीलिए सलीम की नियत बिगड़ गई. साला दिन भर से देख रहा था कि तुम बहुत नमकीन हो. खैर मेरे तो मालिक हो, मैं सोचता भी कि नहीं करूं, पर वह साला मर गया, रुक ही नहीं पाया … चूतिया है साला.

मैं अब भी चुप था.

फिर इसहाक ने चूतड़ थपथपाते हुए मेरे गाल चूम लिए और कहा- चलो अपनी पैंट पहन लो … किसी से कहना नहीं; वो मेरा दोस्त है, उससे गलती हो गई.
मैंने पैंट पहनी, तो बटन खुद इसहाक लगाने लगा.

तब तक सलीम भी आ गया.
इसहाक बोला- अब तुम इस तरफ लेटो.
अब मुझे एक तरफ लिटा कर इसहाक खुद बीच में लेट गया.

उस रात मुझे लग रहा था कि इसहाक मेरी गांड जरूर मारेगा. मगर उसने मेरी गांड को हाथ भी नहीं लगाया. शायद उसने मेरी गांड सलीम के लंड के रस से भरी समझी होगी. इसलिए उसने हाथ नहीं लगाया. जबकि सत्यता ये थी कि सलीम का लंड मेरी जांघों में ही उछलकूद करके झड़ गया था. मेरी गांड अब भी कोरी ही थी. उसका उद्घाटन किसी और के लंड के नसीब में लिखा था.

वो किस्सा सुनिए.

हमारे खलिहान में एक खपरैल के छपरे में दूध देने वाली गाएं बांधी जाती थीं. एक छपरे में छह बैल बंधे थे, जो हल या बैलगाड़ी में जोते जाते थे.

एक बड़ा सा हॉल नुमा मिट्टी का कच्चा घर था, जिसमें एक खुला बाड़ा जुड़ा था. उसमें दूध न देने वाली गाएं व बछड़े अन्दर बंद कर दिए जाते थे व किवाड़ लगा देते थे.

जब पशु चरने चले जाते, तो तीन अलग अलग लोग उनकी सफाई करते. उस कच्चे हॉलनुमा घर की सफाई लखन किया करता था, जो लगभग बीस का होगा. वो पक्के सांवले रंग का था. जब वो हंसता, तो उसके सफेद दांत सारे चेहरे पर रंगत बिखेर देते थे. लखन एक छरहरे स्वस्थ बहुत चुस्त व स्मार्ट था.

मेरी उससे दोस्ती हो गई. बाकी के सब स्टाफ के लोग बड़ी उम्र के थे, उनसे मेरी उतनी बात नहीं हो पाती थी. लखन हमारे एक हलवाहे का ही बेटा था. वो गोबर व कूड़ा साफ करके दूर ढेर पर फेंकने जाता था. फिर झाड़ू लगाने के बाद खुले जानवरों की नांदों में कुंए से पानी लाकर भर देता था. ये नांदें पशुओं के चारे के अलावा उनके पीने के पानी हेतु होती थीं.

जब मैं खलिहान में रुकता, तो सुबह से सब लोग अपने अपने काम में लग जाते थे. मैं फ्रेश होने लखन के साथ लोटा लेकर दूर खेतों में जाता, फिर हम दोनों दातुन करने लगते. फिर लखन सफाई करने में लग जाता. तो उनके साथ मैं भी बाल्टी से उन नांदों में पानी भरवाता था. इसके बाद दोनों कुंए पर नहाते थे.

एक दिन पानी भरते समय पानी छलक जाने से मेरा पैंट गीला हो गया, तो लखन बोला- इसे यहीं सूखने डाल दो … गर्मी है … अभी सूख जाएगा.

मैंने फौरन पैंट उतार दिया व वहीं दीवार पर डाल दिया. धूप आ भी रही थी. मगर पैंट उतर जाने से अब मैं बिलकुल नंगा खड़ा था. मात्र कमीज पहने हुआ था. उस दिन मैंने चड्डी नहीं पहनी थी. बस शर्ट थोड़ी लम्बी थी, जिससे मेरा लंड छिपा हुआ था.

जानवरों के लिए पानी भर गया था. हम लोग नहा भी चुके थे, वैसे तो रोज ही जब नहाता था तो चड्डी ही जिस्म पर होती थी. मगर आज मैंने कोई अंडरवियर नहीं पहनी थी. तो मैं एकदम नंगा था. इस समय मेरे तन पर कोई दूसरा कपड़ा नहीं था. शर्ट भी उतार कर रख दी थी. लखन भी एक पंचा (आधी धोती) पहने था.

तभी उसने जाकर किवाड़ लगा दिए और बोला- भैया, छाया में खड़े हो जाओ.

अभी मेरा हाफ पैंट सूख रहा था. उस दिन पर खड़े खड़े देर हो गई थी. अचानक ही लखन का लंड भी खड़ा होने लगा. हम दोनों पास पास ही खड़े थे.

लखन धीरे धीरे मेरे चूतड़ सहलाने लगा और बोला- भैया आपके बड़े ही मस्त गोल गोल हैं … जब कि आप मोटे नहीं हैं.

मेरी कोई विपरीत प्रतिक्रिया न देख उसका साहस बढ़ गया.

वह मेरे गले में हाथ डाल कर और पास खिसक आया. फिर बोला- भैया वहां धूप है … इधर आ जाओ न.

अब मैं उसके सामने आ गया था. उसने मेरी कमर में हाथ डालकर मुझे अपने से चिपका लिया. मेरी पीठ उससे चिपकी थी. वह मेरे पीछे चिपका खड़ा था. मेरी कमर को हाथ उसने सख्त करके मेरे को अपने से और ज्यादा चिपका लिया.

मुझे पता ही नहीं पड़ा कि कब उसके पंचे से उसका फनफनाता लंड बाहर आ गया. वह अपने खड़े लंड को मेरे नंगे चूतड़ों से रगड़ रहा था. उसने मेरा हाथ अपने हाथ में लिया और अपना गर्म मस्त लंड मेरे को पकड़ा दिया. मैं उसके गर्म लंड को देख कर अचकचा गया. मैंने हाथ हटाना चाहा, तो उसने अपने हाथ से मेरा हाथ दबा दिया.

अब उसका लंड मेरी हथेली में फड़फड़ा रहा था. मेरे हाथ को लखन दबाए हुए था. वह अपने हाथ से मेरे हाथ को धीरे धीरे लंड पर आगे पीछे करने लगा. मेरे गले में हाथ डाल कर मेरा एक जोरदार चूमा ले लिया.

फिर बहुत धीमे स्वर में मिठास भर कर अनुरोध भरे स्वरों में बोला- भैया..!
उसकी तेज तेज सांसें मेरे गले के पीछे मुझे महसूस हो रही थीं. उसकी आवाज बदल गई थी … हाथ गर्म हो गए थे. उनमें हल्का कम्पन सा महसूस हो रहा था.

मैं मुस्करा दिया, तो उसका साहस बढ़ गया. उसने अपने लंड को मेरे हाथ से छुड़ा लिया. मेरे गले में डला हुआ हाथ भी उसने हटा लिया. मैंने पीछे मुड़ कर जिज्ञासावश उसे देखा, तो वो अपने हाथ में थूक रहा था. वो थूक को अपने हथियार पर चुपड़ने लगा. फिर दुबारा थूक कर वह मेरी गांड पर चुपड़ने लगा.

फिर धीरे से उसने अपने थूक में लसड़ी एक उंगली मेरी गांड में डाल दी और मेरे से धीरे से कान के पास अपना मुँह ले जाकर बोला- शुरू में थोड़ी लगेगी … सह लेना भैया.

ये कह कर लखन ने अपनी उंगली गांड के अन्दर डाली. अन्दर डाल कर घुमाने लगा. थोड़ी अन्दर बाहर की, फिर मुझे जानवरों की चारा वाली एक नांद के पास ले जाकर झुकने को कहा. मैं नांद के ऊपर झुक गया. उसने एक बार और अपने लंड पर थूक मला और मुझे अपनी गांड के ऊपर कुछ गुलगुला सा लगा.

फिर वह बोला- भैया पहले कभी करवाई है?
मैंने अपना सिर इंकार में हिलाया.
तो वह बोला- कोई बात नहीं; आप घबराना नहीं; थोड़ी लगेगी. मैं डाल रहा हूं, आप जरा अपनी ढीली रखना. सिकोड़ोगे तो लगेगी.

लखन ने एक हाथ से घेरा बना कर मेरी कमर को कसके पकड़ लिया. दूसरे हाथ से वह लंड पकड़े मेरी गांड में डाल रहा था.
गांड में लंड जाते ही मैं दर्द से चिल्ला पड़ा- आह आह …

मगर वह रुका नहीं, उसने सटासट पूरा लंड अन्दर पेल दिया. फिर अपना हाथ लंड से फ्री करके वो मेरे चूतड़ों पर थपकी देने लगा.

लखन- बस बस … चला गया भैया … थोड़ी ढीली रखो … कसी करोगे, तो लगेगी. अभी पीर बंद हो जाएगी.

मैं दर्द से सिर हिलाने लगा और चूतड़ भींचने लगा.
उसने फौरन मेरे गले में हाथ डाला और मेरा चुम्बन लेने लगा.
मैं दर्द से बोला- निकाल लो … लग रही है.
और मैं चूतड़ भींच भी रहा था और मरी सी आवाज में कह भी रहा था- यार जल्दी निकाल लो … बहुत लग रही है.

वह मेरा चुम्बन लेते हुए बोला- शुरू में थोड़ी लगती है … अभी पीर खत्म हो जाएगी. मेरी थोड़ी तो बात मानो … मेरा भरोसा करो.

वह अपने दूसरे हाथ को मेरी कमर में लपेटे हुए थे और लंड पूरा अन्दर तक पेले हुआ था. मेरी गांड हिलाने चूतड़ भींचने की सारी कोशिशें बेकार हो गई थीं.

उसका लंड गांड में घुसा रहा. थोड़ी देर में मैं ढीला पड़ गया. अभी भी दर्द हो तो रहा था, पर अब कम हो गया था. असल में मैं भी अपनी गांड को कब तक सिकोड़े रहता … मेरी गांड अपने आप ढीली पड़ गई.

अब उसने कमर से अपनी बांह हटा ली गर्दन में लपेटा हुआ हाथ भी हटा लिया.

अब उसने अपनी दोनों बांहें मेरी पीठ के पीछे से निकाल कर मेरे सीने पर कस लीं. मेरी गर्दन को और धक्का देकर नीचे कर दिया. उसने मुझे नांद पर और भी ज्यादा झुका दिया.

अब वह बोल नहीं रहा था, बस उसने धक्के देने शुरू कर दिए थे. उसका लंड मेरी गांड में बड़ी तेजी से अन्दर बाहर हो रहा था. उसके धक्कों की वजह से मेरी गांड अपने आप ढीली पड़ गई. मेरा दर्द भी कम हो गया.

मुझे कराहता न देख कर वह एक पल के लिए रूका और उसने मेरा एक जोरदार चुम्बन लिया. फिर वो बोला- भैया, अब तो पीर नहीं हो रही है?
मैं मुस्करा दिया.
तो बोला- मैंने कहा था न … थोड़ी देर में सब दर्द चला जाएगा भैया … मगर तुम ही मान नहीं रहे थे. अब मजा लो.

ये कह कर उस पर मानो मस्ती छा गई. उसके धक्के जोरदार हो गए थे. उसकी सांसें तेज चलने लगी थीं. वो अपनी आंखें बन्द करके अपने लंड के झटके भी जल्दी जल्दी भी देने लगा था. उसके मुँह से ‘हूं हूं..’ की आवाज आ रही थी.

थोड़ी देर बाद वह रूका तो मैं समझा कि ये झड़ गया होगा. पर कुछ पल रूकने के बाद वह नॉरमल होकर फिर चालू हो गया.

अब वो बोला- भैया … अब लग तो नहीं रही है, कहो तो बंद कर दूं.
मैं चुप रहा.
तो मेरे करीब कान के पास आकर बोला- बोला … मजा आ रहा है कि नहीं … मैंने सही कहा था न!

मैं चुप रहा तो बोला- भैया … आपको बताना पड़ेगा, ऐसे नहीं चलेगा … बोलो?
उसकी अदा से मेरे दांत बाहर आ गए. मेरी गांड में हल्की हल्की जलन होने लगी थी पर वो मेरे खींसें देख कर फिर से चालू हो गया. अब उसके झटके धीमे हो गए थे, मगर बड़ी लज्जत देने लगे थे.

वह काफी देर तक मेरी गांड में लगा रहा, पर अब वो हांफ रहा था. कुछ पल बाद वो मेरी गांड में ही झड़ गया. झड़ने के बाद वो थक गया था, उसने लंड निकाला और वहीं बैठ गया.

कुछ देर बाद वो मेरे से बोला- मेरी मारोगे?

मैंने कुछ नहीं कहा तो उसने अपनी गांड खोलते हुए अपना पंचा ऊपर कर लिया.
मैं कुछ नहीं बोला.

उसने पूछा- कभी किसी लौंडे की मारी है?
इस पर मैं हंस पड़ा.
तो बोला- मतलब अभी नहीं ली है … चलो मैं सब सिखा दूंगा.

उसने मेरा एक और चुम्बन लिया और बोला- भैया तुम बहुत अच्छे हो … बाद में मेरी मार लेना.

तब तक आंगन में मेरा पैंट सूख गया था. मैंने उसे पहन लिया. अब हम दोनों एक दूसरे को मुस्कुराते हुए उस हॉल से बाहर निकल आए.

मेरी ये गांड मराने वाली सेक्स कहानी अभी बाकी है. कल फिर मिलता हूँ, मेरे गांडू भाइयों आपकी गांड में चुनचुनी हो रही होगी. मगर गांड में कोई चीज या लंड डलवाने से पहले मेल करके जरूर बताएं कि सेक्स कहानी कैसी लग रही है?
आपका आजाद गांडू
कहानी जारी है.

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