गलतफहमी-8

This story is part of a series:


  • keyboard_arrow_left

    गलतफहमी-7


  • keyboard_arrow_right

    गलतफहमी-9

  • View all stories in series

कैसे हो दोस्तो, आप सबको मेरा नमस्कार!
आप सबका प्यार मुझ तक पहुंच रहा है, आप लोग ऐसे ही प्यार बनाये रखिए और मैं ऐसे ही कहानी लिखता रहूंगा। साथ ही आप लोगों से निवेदन है कि मेरी कहानी में कोई कमी हो तो आप मुझे ईमेल करके जरूर बतायें।
अभी तक आपने पढ़ा.. कल्पना, उसकी दीदी आभा और मैंने एक राऊंड पूरा कर लिया, फिर हम थक कर सो गये, और आधी रात को उठ कर दूसरे राऊंड में लग गये। कल्पना हमारा फोटो खींच रही थी, पर अस्पष्ट तस्वीरों की वजह से हमें कोई डर नहीं था, और इस बार आभा ने मेरा लंड एक ही बार में अपनी चूत के अंदर सरका दिया, सिसकारियां और हल्की चीख के अलावा वो दर्द से व्याकुल होने जैसे आव भाव के साथ सैक्स के मजे लेने लगी।
मेरे चेहरे की ओर उसकी पीठ थी, और पैरों की तरफ उसका चेहरा।

हमारी काम क्रीड़ा से उत्तेजित होकर कल्पना ने कैमरे को जल्दी से बंद करके अलमारी में रखा और वो डिल्डो लेकर बिस्तर पर आ गई। यार अब तो डिल्डो को देख कर ही मुझे डर लगने लगा है। पर वो डिल्डो आभा के लिए लाई थी और उसने अपने दोनों पैर मेरे चेहरे के अगल-बगल डाल कर अपनी चूत मेरे मुंह पर टिका दिया।
अब मैंने उसकी चूत को अंदर तक चाटना और जीभ से सहलाना शुरू किया.. तो कल्पना ने भी आहह उहहह की आवाजें निकालनी शुरु कर दी… अब कल्पना ने आभा के कंधों को सहलाया, चूमा और हल्के से अपना दांत भी गड़ाए…

आभा चिंहुक उठी.. और उसने उसे सामने की ओर झुका दिया.. तो आभा की गोल सुंदर कटाव भरी गोरी चिकनी गांड की छेद इस स्थिति में उभर कर कल्पना के सामने आ गई.
अब उसने डिल्डो में थूक लगा कर उसे सभी तरफ फैलाया और आभा की गांड में भी थूक मलकर डिल्डो डालने लगी.
आभा ने हल्की चीख और मदहोशी के साथ डिल्डो आसानी से बर्दाश्त कर लिया।

वो दोनों इस काम में पूर्व प्रशिक्षित थी इसलिए दोनों में गजब का तालमेल दिखा। अब मेरे लिये ये समझना मुश्किल ना था कि वो गांड में लंड या डिल्डो पहले भी डलवा चुकी हैं।

खैर हम सब एक बार फिर कामुकता की पराकाष्ठा पर पहुंच गये.. कमरा मादक ध्वनियों से गूंजने लगा।
आभा तो आगे और पीछे दोनों से मजे ले रही थी।

फिर आभा की मेरे ऊपर उछलने की गति बढ़ने लगी… और बस बढ़ती ही चली गई.. शायद वो दोनों तरफ की चुदाई की वजह से जल्दी झड़ने वाली थी… वो बड़बड़ाने लगी- उउहह संदीप… आहहहह… जान… क्या मस्त लौड़ा पाल रखा है.. बहुत मजा आ रहा है..
और ऐसे ही बड़बड़ाते हुए वो अकड़ने लगी, उसने अपने नाखून मेरी जांघों पर गड़ा दिये और थोड़ी ही देर बाद उसकी गति और उसका जोश थमने लगा। जैसे समुद्र की लहर खलबल खलबल करते हुए आती है और लौटते वक्त शांत रहती है, उसी तरह आभा की गतिविधियां भी शांत होने लगी और वह हमारे बगल में लेट गई.. और बहुत इत्मिनान के साथ आंखें बंद करके लेटी रही।

पर इधर तो अभी दो जिस्म और भी सुलग रहे थे।
आभा के निढाल होकर गिरते ही कल्पना ने कमान संभाल ली, मैंने कल्पना को लेटाया और उसके पीठ की ओर उससे सट कर लेट गया और उसकी टांगें उठा कर चूत में लंड डालने की नाकाम चेष्टा की।
मैंने ऐसा करने की कोशिश पोर्न फिल्मो से प्रेरित होकर किया, पर मुझसे ये नहीं जम रहा था.. तो मैंने कल्पना के उरोजों को मसलते हुए कहा- जानेमन, ऐसे में चूत में नहीं जा रहा है.. मैं गांड में लंड डालूं क्या?
उसने तुरंत ही डरे हुए स्वर में कहा- नन…नहीं संदीप बहुत दर्द होगा, वहां बिल्कुल मत डालना यार, तुम चूत में ही कोशिश करो, मैंने पहले कभी पीछे से नहीं कराया है।

पर मैंने उसकी बातों का यकीन नहीं किया और अपने लंड पर थूक मलकर उसकी गांड के छेद में टिकाते हुए धक्का दे दिया तो मेरा सुपारा उसके छेद में फंस गया। ये सब मैंने बहुत जल्दी में किया था इसलिए उसे संभलने का कोई मौका नहीं मिला।
हालांकि वो लंड बाहर निकालने के लिए छटपटा रही थी पर मेरी मजबूत पकड़ के सामने उसकी एक ना चली। और अब उसके सामने रोने चीखने और गाली देने के अलावा कोई दूसरा उपाय ना था।

तभी लेटी हुई आभा चौंक कर उठते हुए बोली- हाँ संदीप, इसने सच में इसने पीछे से कभी नहीं करवाया है..
मैंने सॉरी कहा… पर लंड नहीं निकाला और वैसे ही घुसा के रोके रखा, और आभा को कल्पना की चूत में डिल्डो डालने को कहा।

अब आभा और मैं कल्पना के हर अंग को सहला रहे थे, चूम रहे थे.. कल्पना अभी भी कराह रही थी.. पर अब चूत में डिल्डो के घुसने से उसका दिमाग बंट गया.. और वो सामान्य होने लगी।

तभी मैंने एक बार फिर जोर लगाते हुए लंड उसकी गांड की गहराई में एक झटके में ही उतार दिया, मैं जानता था कि धीरे-धीरे करने से वो कभी नहीं करवायेगी।

वो और जोरों से चीख पड़ी, मेरे लंड की मोटाई और साईज भी ऐसी है की कोई और होता तो शायद वह बेहोश ही हो जाता, पर अच्छे खासे अनुभव की वजह से वह सह गई।
मैंने कहा- शाबाश कल्पना, बस अब दर्द नहीं होगा सिर्फ मजे ही मजे मिलेंगे। अरे..! तुम तो बहुत बहादुर निकली मेरी जान.. मेरे तगड़े लंड को गांड में एक बार में ही सह लिया।

तब आभा ने बताया कि एक बार कल्पना अपने गांड में डिल्डो डलवाने के लिए तैयार हुई थी पर मुश्किल से पांच इंच ही घुसवा पाई थी फिर उसके रोने चिल्लाने और खून की वजह से डिल्डो बाहर निकालना पड़ा था। उसके बाद फिर कभी इसने डिल्डो और लंड गांड में नहीं डलवाया। और ऐसे भी डिल्डो निर्जीव चीज है, इसमें उत्तेजना कम होती है और दर्द ज्यादा, इसलिए डिल्डो से सील तोड़ना दर्दनाक होता है।

मैंने कहा- फिर तुमने डिल्डो से कैसे अपनी गांड की सील तुड़वाई?
तो आभा ने कहा.. तुम्हें किस पागल ने कहा की मैंने डिल्डो से सील तुड़वाई.. मेरी गांड तो पहली बार मेरे पति ने ही मारी थी।

हम ये बातें करते हुए कल्पना को सहला रहे थे और अब कल्पना भी प्रतिक्रिया भी हमारे समर्थन में थी… तो फिर दोनों तरफ से घमासान चुदाई का दौर शुरू हो गया.. आहह.. ओहहह.. ईस्स्स्… जैसी आवाजें पूरे कमरे में फैलने लगी..
गति बढ़ते गई और साथ ही बढ़ता गया उन दोनों बहनों का मेरे लिए प्यार.. तभी तो वो दोनों मेरी और मेरे लंड की तारीफ करते थक नहीं रही थी.
उन्होंने चुदाई के दरमियान ही मुझसे बार-बार मिलने का वादा ले लिया।

और फिर कल्पना अकड़ते हुए स्खलित होने लगी… वो मुझे चूमने लगी, उसकी आंखों में खुशी और संतुष्टि के आंसू उमड़ पड़े।
आभा ने डिल्डो बाहर निकाल कर उसके चूत के मुहाने को सहलाना जारी रखा और उसके स्खलन के कुछ देर बाद मैं भी कांपने लगा, नसें फटने को व्याकुल होने लगी.. मैंने कल्पना के मुंह में अपने हाथ की उंगलियां डाल दी और वो चूसने लगी और शरीर में एक लहर के साथ ही मैं उसकी जांघों पर स्खलित हो गया.. मेरे लंड ने रुक-रुक कर पिचकारियाँ छोड़ी और उसका विशाल आकार सिमटने लगा।

हम सब बहुत खुश थे।

जब हमने घड़ी देखी तो सुबह के चार बज रहे थे.. हम सुकून के साथ आंख बंद करके गहरी नींद की आगोश में चले गये। और जब मुझे इधर होश आया तो देखा कि दोपहर के चार बज रहे हैं… मैं फोन कान से चिपकाये अपने दुकान के एक कोने पर चेयर में बैठा था, मैंने फोन में हलो किया तो मुझे सामने से कोई जवाब नहीं मिला।

फिर चेक करने पर पता चला कि भाभी ने फोन रख दिया है… आप सब तो जानते ही हैं कि मैं भाभी को अपने स्वप्न वाली काल्पनिक कहानी सुना रहा था।
और कहानी के रोमांच में मेरे पैंट का अंदरूनी भाग और मेरी अंडर वियर भी वीर्य से भीग चुका था।

मैंने भाभी को फिर से फोन किया और कहा- आपने फोन कब काटा, मुझे तो पता ही नहीं चला?
तो उसने कहा- जब तुमने कल्पना द्वारा फोटो खींचने की बात बताई तो मुझे रोना आ गया.. उस फोटो वाली बात में मेरी पिछली जिंदगी का बहुत ही बड़ा रहस्य छुपा है। और दूसरी बात तुम्हारी कहानी सुन कर मुझे वाशरुम जाने की जरूरत पड़ गई।

मैंने कहा- फोटो वाली बात में क्या रहस्य है प्लीज तनु बताओ ना.. और अब तो मैंने आपको अपनी कहानी भी सुना दी.. और आपके वादे के मुताबिक आपको अपनी जिन्दगी की सारी बातें बतानी हैं।

तो तनु भाभी ने कहा- हाँ हाँ बताऊंगी पर आज नहीं.. आज स्कूल की छुट्टी का टाईम हो गया है, मयंक आता ही होगा, मैं तुम्हें सारी बात कल बताऊंगी।
और हमने बाय-बाय करके फोन रख दिया।

मैं उत्सुकता वश दूसरे दिन का इंतज़ार करने लगा।

दूसरे दिन मेरा इंतजार 11 बजे खत्म हुआ, भाभी का काल आया- हाय संदीप कैसे हो.. आज ये बाहर गये हैं और मयंक भी स्कूल चला गया है क्या तुम मुझे अपना कुछ समय दे सकते हो?
मैं तो जैसे खुशी से पागल हो गया, वैसे तो मैं एकदम खाली नहीं था, पर भाभी के लिए समय निकाल ही सकता था, मैंने कहा- हाँ तनु बिल्कुल… तुम कहो और मैं ना आऊं ऐसा भला हो सकता है क्या? मैं लड़के को काम समझा कर दस मिनट में आता हूं।

उसने ‘ठीक है, थैंक्स…’ कहकर फोन रख दिया।

अब मेरे मन में बहुत सी बातें चलने लगी कि आखिर क्यों बुला रही है, हो सकता है आज मुझे भाभी बिस्तर पर भी मिल जाये? या सिर्फ बातें करके ही लौटना पड़े?
खैर बात चाहे जो भी हो मैं रोमांचित होकर जल्दी से भाभी के यहां पहुंचा, भाभी ने डोर बेल बजते ही दरवाजा खोला और अंदर चलने को कहा।

मैंने उनके मकान और हैसियत के बारे में तो मैंने आपको पहले ही बताया है, जितना अच्छा उनका मकान था उतने ही करीने से उनके घर का हर एक सामान जमा हुआ था, ऊंची मंहगी पेंटिंग्स, दीवारों पर इंग्लिश कलरों की सजावट.. घर में गुलाबी रंग का बहुत ज्यादा इस्तेमाल हुआ था.. टाईल्स भी मंहगे और चमकदार थे.. इन सबके बीच तनु काले रंग के टू पीस गाऊन में गजब की निखर रही थी।
गाऊन सिल्की था इसलिए शरीर का नक्शा कपड़ों के ऊपर से भी देखा जा सकता था। लेकिन गाऊन शरीर को पूरा ढका हुआ था, उसकी डिजाइन सिम्पल ही थी। पर भाभी के गोरे बदन ने उसकी सुंदरता बढ़ा दी थी.

तनु भाभी मेरे सामने चल रही थी और मैं उसके गोल गुंदाज नितम्बों का मुआयना करने लगा, उनकी हर चाल के साथ उनका हिलना और कंपन के साथ बहुत हल्की सी उछाल ने मेरे दिल को उछाल दिया.
कमर के पास भी एक सुंदर सा कटाव बन रहा था. पेट तो सपाट था और उरोजों के कंटीले उभार भी आजू-बाजू से थोड़े बहुत नजर आ रहे थे.

भाभी ने एक हाल को क्रास किया और मुझे सीढ़ियों पर से अपने पीछे-पीछे ऊपर ले गई. सीढ़ियों पर चढ़ते समय भाभी और भी कयामत लग रही थी।

हम ऊपर पहुंचे तो वहाँ भी एक हाल था उससे लगे हुए कुछ कमरे थे.

तनु ने मुझे सोफे पर बैठने को कहा और वो खुद किचन में चली गई। मैंने सोफे पर बैठ कर चारों ओर नजर घुमाई तो वहाँ कोई पेंटिंग कोई सजावट नजर नहीं आई। बस सामने की दीवार पर एक 56 ईंची एल ई डी लगी थी। दीवार का रंग यहाँ भी पिंक ही था पर नीचे की अपेक्षा ज्यादा लाईट पिंक था। सोफे की रैग्जिन का रंग क्रीम कलर का था और सामने कांच लगा हुआ सागौन का टी टेबल।

तनु पानी और प्लेट में कुछ ड्राई फूडस लेकर आई और टी टेबल में रखकर बैठ गई, उसने मुझे खाने का इशारा किया और मैंने काजू हाथ में उठाते हुए तनु से कहा- तनु ये हाल तो खूबसूरत बहुत है पर यहाँ कोई सजावट क्यों नहीं है?
तनु ने बताया.. कि वो लोग यहाँ टीवी देखते हैं और मूवी हाल जैसी फिलिंग के लिए उनके हसबैंड ने इस हाल को ऐसा बना रखा है, वहाँ एक अच्छा म्यूजिक सिस्टम भी था, जिसे तनु ने इशारे से दिखाया।

तनु मेरे सामने बैठी थी, क्रीम कलर के सोफे पर काली नाईटी पहने एक अप्सरा बैठी हो तो सामने बैठे जवान इंसान की हालत क्या होगी ये आप भी समझ सकते होंगे। तनु के आने जाने में उसके काले लिबास में लिपटे खूबसूरत बदन की लचक गुलाबी बैकग्राऊंड में फिल्म देखे जैसा लग रहा था और मुझे नायिका के साथ अकेले होने का अहसास हो रहा था।

मुझसे तनु से दूरी अब और बर्दाश्त ना हुई और मैं अपनी सीट से उठ कर उसके बगल में जाकर बैठ गया, फिर कुछ बातों के बहाने मैं उससे और सटने लगा, तनु भी शायद मेरे मन की बात समझ रही थी, तभी तो वह अपनी जगह पर बैठी रही। अगर वह चाहती तो मुझसे दूरी बना सकती थी।

मैंने थोड़ी और हिम्मत जुटाई और अपने दोनों हाथों में तनु के रेशमी गालों को थाम लिया और उसके मखमली रसदार अधरों पर अपने होंठ टिका दिये..
उसने ज्यादा विरोध नहीं किया पर साथ भी अच्छे से नहीं दे रही थी।

ऑडियो सेक्स स्टोरी- मोटे लंड से करवाई प्यार भरी चुदाई सेक्सी लड़कियों की आवाज में सेक्सी बातचीत का मजा लें!

उसके चुम्बन में कशिश थी, मैं मदहोश होने लगा और फिर मैंने लम्बे चुम्बन के बाद आगे बढ़ने की कोशिश की तो वो पीछे हट गई, फिर मैंने तनु का हाथ पकड़ के कहा- तनु, तुम बहुत अच्छी हो.. मैं तुम्हें पसंद करने लगा हूं। क्या तुम मुझे पसंद नहीं करती?
उसने कहा- नहीं संदीप, तुम तो बहुत अच्छे हो।
मैंने कहा- फिर दूर होने का कारण क्या है?

तब भाभी जोर से रोने लगी और कहा- यही तो मेरे अतीत का दर्द है, और मैं तुम्हें यही सब तो बताना चाहती हूं।

मैंने तनु भाभी का बिफरना देख उसे कंधों से पकड़ कर सोफे में बिठाया और उसको रुमाल दिया।
तनु ने आंसू पौंछते हुए अपने अतीत के पन्ने पलटने शुरू किये, और मैं थोड़ा सरक कर उसके सामने बैठ गया।
अब मेरे मन में हवस की जगह कौतूहल था, मैं भी तनु का अतीत और रहस्य जानना चाहता था, जिसकी वजह से तनु अक्सर परेशान रहा करती है।

तनु ने मेरे चेहरे को देखा और गंभीर होते हुए बोली- वैसे तो मेरी जिन्दगी को चोट कालेज के दिनों में लगी, पर मुझे लगता है कि मेरी जिन्दगी का हर लम्हा मेरी एक दूसरे से प्रभावित है और किसी भी घटना दुर्घटना के लिए सभी जिम्मेदार है। इसलिए मैं तुम्हें अपने बचपन से लेकर अब तक की बात बताती हूं:

मेरे बाबू जी मास्टर थे और माँ घरेलू महिला थी। हम दो बहनें हैं, मैं बड़ी और अनिता मेरे से दो साल छोटी!
माँ-बाबू जी ने कभी बेटों की चाह नहीं की, उन्होंने बेटियों को ही अपना सब कुछ माना। कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी और ना ही कोई रोक-टोक की। बाबू जी बड़े संस्कारी और असूलों वाले इंसान थे, और माँ भी लंबे समय तक उनके साथ रह कर वैसे ही ढल गई थी। पर उनके उसूलों ने हमारी स्वछंदता पर कभी रोक नहीं लगाई।

उनके लाड़ प्यार में मैं बचपन से ही तेज तर्रार और जिद्दी होने लगी और फिर मैं बहुत खूबसूरत तंदरूस्त और होशियार भी तो थी। पूरे इलाके में मेरे बापू का सम्मान था, हर बड़ा छोटा उनकी बात को मानता था।और ऐसी परवरिश और माहौल के कारण ही मैं भी खुद को महारानी समझने लगी। मैं अपनी सहेलियों की कमान संभालने वाली होती थी, सब मेरी मर्जी का ही होता था।
पर शायद मेरे ही कारण मेरी छोटी बहन सामान्य सी थी जैसा सबको होना चाहिए। वो मेरे जितनी तेज भी नहीं थी और सुंदर भी नहीं, हम अपने ही बाबूजी के स्कूल में पढ़ते थे और हमारे बाबूजी सख्त मास्टर थे इसलिए सारे विद्यार्थी उनके अलावा हम दोनों बहनों से भी डरते थे।

ऐसे ही समय निकल रहा था, बचपन की बातें याद आती है तो आंखें भर आती है। वो बालों पर दो चोटी डालना, फीता बांधना, शर्ट एक साईड से निकली हुई, स्कर्ट कभी ऊपर कभी नीचे तो कभी घूमा हुआ रहता था। हम हर वक्त धूल मिट्टी से सने होते थे, बिना हाथ धोये कुछ भी खा लेते थे, मोजे जूते कभी सलीके से ना पहने, ना रखे और बाल पकड़ कर जो लड़ने भिड़ गये तो बाल ही उखाड़ के दम लेते थे।
साईकिल से कितनी बार गिरे, गिनना भी मुश्किल है। और चोटों का क्या है.. वो तो लगती भरती ही रहती थी। पर सच में वो बचपन के दिन भी कितने हसीन थे। लड़के लड़की में जात-पात में कोई फर्क नहीं रहता था।
अब लगता है कि काश हम कभी बड़े ही ना होते!

पर उस समय तो लगता था कि हम कितनी जल्दी बड़े हो जायें, और बड़ों जैसे रहे और हमारे मन की बात पूरी भी होने लगी.
हमने कुछ ही समय बाद किशोरावस्था में कदम रखा तब अचानक से ही सब कुछ बदलने लगा। मैं बहुत तेजी से बड़ी होती जा रही थी। मैं छठी कक्षा में थी जब मैंने अपने शरीर के अन्य चीजों में भी बदलाव महसूस किया। मेरी निप्पल वाली जगह में हल्का दर्द होने लगा और नीचे योनि में भी कुछ अजीब सा कभी-कभी महसूस होता था। साथ ही माँ बाबू जी भी मुझे कपड़ों के लिए या कहीं आने जाने के टोकने लगे।

वैसे तो मैं पहले भी सर चढ़ी थी पर इन सबके कारण मैं और चिड़चिड़ी हो गई।

कहानी जारी रहेगी.. कहानी का हर हिस्सा एक दूसरे से जुड़ा हुआ है, इसलिए आप कहानी का कोई भी भाग पढ़ने से ना चूकें!

कहानी कैसी लगी, आप अपनी राय इस पते पर दे सकते हैं..
[email protected]
[email protected]

More Sexy Stories  मेरी मॉम है या रांड-3