गलतफहमी-25

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मैंने हालात के आगे आत्मसमर्पण करते हुए सामूहिक चुदाई को स्वीकार कर लिया था। शायद मैं खुद भी ये सब चाहती थी, तभी तो मैंने ऐसी मजेदार चुदाई पाकर मुंह से विकास का लंड निकाला और कहा- वाह..! आज तो सच में मजा ही आ गया।
तभी विकास ने कहा- पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त…
ऐसा कहते हुए उसने मेरे बालों को बेरहमी से पकड़ा और फिर एक बार मेरे मुंह में लंड ठूस दिया, मेरी जीभ बाहर आ गई, आँखों के आगे अंधेरा सा छा गया, उसने अपना मोटा लंड मेरे गले तक पेल दिया था।
फिर उसने लंड थोड़ा बाहर खींचा तो जान में जान आई।

अमित का लंड पिछले बीस मिनट से मेरी चूत में था और किसी चौबीस पच्चीस साल के लड़के के लिए इतनी देर भी टिक पाना बहुत बड़ी बात है, अब अमित अकड़ने लगा, तो उसने अपनी गति और बढ़ा दी, मेरे मुख से ‘ओहहह आहह इइसस…’ जैसे शब्दों का प्रवाह निरंतर होता रहा.

गौरव ने मेरी गांड में केवल दस बारह मिनट से ही लंड डाला था, लेकिन टाईट गांड में रगड़ खाकर लंड घुसने की वजह से उस तेइस साल के लड़के का और टिक पाना मुश्किल हो गया.
वैसे मैं एक बार झड़ चुकी थी, पर मैं दूसरी बार फिर उनके साथ अकड़ने और बड़बड़ाने लगी, शरीर में कंपन हो रहा था और गति किसी मशीन की तरह हो चुकी थी।

‘ओहह आहहह क्या चूत है यार.. क्या कमाल की लड़की है, साला रोहन कितना लक्की है!’ ये सब वे कहते रहे.
मैं कुछ कह भी तो नहीं सकती थी क्योंकि मेरे मुंह में तो लंड था, अगर कह सकती तो कहती कि तुम लोगों के अंदर जितना दम है आज वो अपना सारा दम लगा कर चोदो, क्योंकि आज ये कविता चुदने पर उतर आई है तो बेइंतिहा चुदेगी।

अब मैंने खुद अपने उरोजों को उखाड़ डालने जैसा दबाना शुरू कर दिया। अब अमित का लंड और मोटा महसूस होने लगा, वो कांपने लगा था, गौरव भी थरथराने लगा और दोनों ने एक साथ अंतिम धक्का लगाते हुए अपने अंडकोशों तक लंड मेरी चूत और गांड में डाल कर रोक दिया, इस समय तक मैंने विकास का लंड भी जबरदस्त तरीके से चूसा था, वो 27 साल का लड़का था और बहुत ही ज्यादा अनुभवी भी इसलिए उसने अब तक खुद को झड़ने से रोक लिया वर्ना कोई और होता तो शायद ही खुद को रोक पाता.

लेकिन अब सभी कुछ-कुछ समय के अंतराल में झड़ने लगे, जिसने जहाँ लंड पेल रखा वो वहीं झड़ने लगा और उनके प्रेम रस की धार बहुत तेज और ज्यादा थी।
मैं उनके अमृत में सराबोर होने लगी. तभी मेरे जिस्म में भी एक लहर दौड़ी और मैंने उनके अमृत संग अपने अमृत का मिलन कर दिया। चूत और गांड से रस धार जाघों और कूल्हों पर बह गई। लेकिन मुंह में आये विकास के ढेर सारे लजीज वीर्य को मुझे पीना पड़ा, कुछ बूँदें गालों और ठोढ़ी पर बह गई थी जिसे विकास ने अब तक खड़े लंड की नोक के सहारे मेरे पूरे चेहरे पर मल दिया।

तीन में से दो लड़कों ने मेरी चूत और गांड का स्वाद चख लिया था, पर अभी विकास का लंड मेरी चूत को चखना चाहता था.
झड़ने के बाद विकास का लंड थोड़ा ही नर्म हुआ था, जिसे उसने वापस मेरे मुंह में डाल दिया मुझे बिना मन ही उसे चूसना पड़ा, पर मैंने अपने काम में कोई कोताही नहीं बरती और विकास का लंड फिर लोहे की रॉड जैसा कड़ा हो गया।
अमित और गौरव तो बगल में लुढ़क गये थे।

अब विकास ने मुझे गोद में उठा कर बिस्तर के किनारे पर लिटा दिया और खुद नीचे बैठ गया, उसने मेरे दोनों पैर आजू-बाजू फैलाये, और मेरी चूत को कपड़े से पौंछ कर मेरी लाल हो चुकी चूत को ध्यान से देखने लगा, उसने पहले से फैल चुकी मेरी चूत की फांकों को अपनी उंगलियों से और फैला कर अपनी जीभ से हल्का सा टच किया, उसकी इस हरकत ने मेरे अंदर सिहरन पैदा कर दी, अगले ही पल उसने अपनी जीभ को मेरी चूत की दीवारों पर घुमाया, मैं बेचैन हो उठी.

उसके बाद उसने लगभग दस मिनट बहुत आराम से चूत के ऊपर फूले हुए भाग को और आसपास के साथ चूत की फाकों को बड़े सहलाना चूमना चाटना जारी रखा, गोरी मांसल गदराई जाघों के बीच हल्के भूरे रंग की चूत, जिसका भीतरी भाग सफेद द्रव से गीला होकर गुलाबी दीवारों पर शबनम की मानिंद चमक रहा था, वो अब एक बार फिर से भरपूर चुदाई के लिए तैयार थी.
गौरव और अमित वैसे ही पड़े रहे।

अब विकास उठा और मेरे गले को पकड़ कर मुझे आधा उठाते हुए मुझे लंड चूसने को कहा, मैंने वैसा ही किया, फिर उसने मुझे वापस लिटा कर मेरी मुनिया के ऊपर अपना चमकदार और बड़ा सुपाड़ा रगड़ा, मैं गनगना उठी, लंड लेने के लिए तड़प उठी.
उसने मेरे कंधे तक हाथ डालकर मुझे नीचे की ओर दबाते हुए पकड़ा और एक लय में लंड पेलना शुरु कर दिया.
मैं चीख पड़ी!
पर उसे कहाँ इसकी परवाह थी, वो तो बस पेलता ही रहा, मैंने छटपटाना चाहा, मगर उसने जकड़ रखा था, विकास का लंड सचमुच भयानक था, मुझे दिन में ही तारे नजर आ गये, अगर मैं इतनी चुदी हुई नहीं होती तो शायद मेरी जान ही निकल जाती।

गनीमत है कि विकास ने कुछ देर मुझे संभलने का मौका दिया, पर उसके बाद उसने मेरे दोनों पैर अपने कंधों पर रख लिये, और घपाघप चुदाई शुरु कर दी, मुझे अब भी दर्द हो रहा था लेकिन ये दर्द सह जाने लायक था।
फिर कुछ समय की चुदाई के बाद मजा भी आने लगा और मैं खुद ही अपना कमर उठा-उठा कर चुदवाने लगी।

किसी ने सही कहा है, चूत दरिया गांड समंदर, जितना डालो उतना अंदर!
मेरी चूत भी इस कहावत को चरितार्थ कर रही थी, उसके हल्बी लंड को पूरे अंडकोष तक गटक रही थी। उसका लंड जब जड़ तक बैठता था तो ऐसा लगता था कि उसके लंड के बाल मेरी चूत में उगे हुए हैं।
अब घमासान चुदाई आक्रामक चुदाई में परिवर्तित हो गई, वो मेरे मम्में नोचने लगा, मेरी कमर को दबाने खींचने लगा और मैं उसके शरीर में अपने नाखून गड़ाने लगी ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह… ओहहह…’ करते करते मैं कंपन भी करने लगी क्योंकि उसके झटकों से मेरे उरोजों के साथ-साथ मेरा पूरा शरीर हिल रहा था।

अब गति बढ़ने लगी और बस बढ़ती ही चली गई। लगभग आधे घंटे की चुदाई के बाद वो अकड़ने कांपने लगा, मैं तो झड़ ही चुकी थी, फिर भी उसका साथ दे रही थी।
मैंने भी इसस्सस कहते हुए उसका वीर्य स्वीकार करना चाहा, तो उसने पूरा लावा मेरी चूत में बहा दिया, वीर्य बहुत ज्यादा था तो वो मेरी जाँघों पर बह गया और हम भी ऐसे ही लुढ़क गये।

कुछ ही देर बाद अमित के उठाने से सब उठे और बारी-बारी से बाथरूम से साफ होकर आये और चाय पानी पीकर दूसरे राऊंड की चुदाई के लिए तैयार होने लगे.
अभी लगभग तीन बज रहे थे, हमें चार बजे तक अपना चुदाई कार्यक्रम खत्म कर लेना था।

हमने जल्दी ही एक दूसरे को चूम चाट कर गर्म कर लिया। अब तक शरीर का हर अंग दर्द से टूट रहा था, पर चुदाई का नशा फिर से चढ़ते ही दर्द कहाँ गायब हो गया, पता ही नहीं चला.
इस समय तक मैं और मेरी चूत दोनों खुल चुकी थी, अब मैं बेशर्म होकर खुद चुदने को आतुर थी।
इस बार चूत का मौका गौरव को मिला, मेरी गांड में अमित का मोटा लंड जाना था, मैंने हिम्मत करके यह चुनौती स्वीकार ली।

अमित एक बार फिर लेट गया और मैं उसके पैरों की ओर मुंह करके उसके लंड को अपनी गांड में सहलाने लगी, इस पोजिशन में लंड और भी रगड़ खाते हुए घुसता है। और गांड में लंड डाल कर खुद उछलना आसान नहीं होता, पर जब तक मुश्किल चुनौती पार ना करो, जीत का मजा नहीं आता!
मैंने ऐसा करने से पहले उसके लंड को थूक से भिगो लिया था और उसके ऊपर बैठ कर ताकत लगाने लगी, मेरी गांड के दो टुकड़े हुए जैसे अहसास और हल्की चीख के साथ मैंने इस कारनामे को सफलता पूर्वक अंजाम दे दिया और एक धीमी लय बनाकर मै पूरा लंड गांड में लेकर आगे पीछे करने लगी.

इसके बाद मैं थोड़ा सा पीछे की ओर झुक गई, जिससे मेरी चूत निखर कर सामने आ गई और उसमें बड़ी आसानी से गौरव ने अपना लंड डाल लिया।
मेरे मुंह में विकास का लंड था क्योंकि अगर मैं चूसने से मना करती तो वो कमीना अपने हब्शी लंड से मेरी गांड फाड़ देता जिसके लिए मैंने साफ मना कर दिया था।

अब मैं उहह आहहह ओहहह जैसी आवाजों कामुक आवाजों के साथ चुदने लगी.
इस बार की चुदाई बहुत लंबी चली क्योंकि सभी दूसरे राऊंड पर थे, लेकिन स्खलन तो होना ही था, तो सब एक साथ अकड़ने और झड़ने लगे लेकिन अभी विकास नहीं झड़ा था, उसने अमित और गौरव को हटाया और खुद लेट गया, मैं उसके पैरों की तरफ मुंह करके उसके लंड पर खुद बैठ गई, लंड अभी भी दीवारों को रगड़ता हुआ मेरी चूत में घुसा पर अब मैं भी इस हलब्बी लंड का पूरा लुत्फ उठाना चाहती थी, मैं उछल-उछल कर चुदने लगी।

लेकिन विकास था कि झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था, हमारी चुदाई देख कर अमित अपना लटका लंड लेकर मेरी दाईं ओर आकर खड़ा हो गया और मैंने अपना मुंह मोड़ कर उसका लंड मुंह में ले लिया, उस समय गौरव बाईं ओर आ गया, तो मैंने एक हाथ से उसका लंड संभाल लिया, और अपने दायें हाथ से अपना फिगर दबाने लगी, मैं उत्तेजना की पराकाष्ठा को लांघ रही थी, मुझे बहुत आनन्द आ रहा था, मैं कूद रही थी, मैं उउमम्म उममय कर रही थी, आआहह हहहा हायय इइस्सस जैसी सुमधुर ध्वनियां तरंगित हो रही थी, लेकिन विकास का लंड और मेरी चूत के बीच एक जंग छिड़ी थी, जिसमें हार मानने को कोई तैयार नहीं था.

फिर अमित और गौरव खुद ही साईड हो गये और मेरा ध्यान केवल और केवल चुदाई पर रह गया. तभी मैंने अपने कामुक बदन और इस ना भूलने वाली चुदाई को सामने लगे आईने में देखा और देख कर मैं खुद जोश से भर गई, मैं काम की साक्षात देवी प्रतीत हो रही थी, मैंने अपने दोनों हाथों में अपने मम्में थाम लिये और उछलने की गति तेज कर दी।

तभी मुझे एक भयानक झटका लगा- हाय राम…! ये रोहन कब आया, आईने से कुछ ही दूरी पर वो छोटी खिड़की थी, जहाँ से विकास मुझे रोहन से चुदते देखा करता था। आज वहाँ रोहन खड़ा मुझे विकास से चुदते देख रहा था, मुझे नहीं पता कि वो कब से देख रहा था, पर उसे देखते ही मेरा जोश ठंडा पड़ गया, मैं रोहन को बहुत प्यार करती थी, मैं उसे खोना नहीं चाहती थी।
पर अब मुझे सब कुछ छिनता हुआ नजर आने लगा, रोहन से मेरी नजर मिलते ही वो वहाँ से हट गया, पर अब मेरा मन चुदाई में बिल्कुल नहीं था, लेकिन विकास कहाँ छोड़ने वाला था, उसने मेरी कमर पकड़ी और नीचे से धक्के देने लगा, मेरे उरोज हर धक्के के साथ ऊपर नीचे हो रहे थे, मेरी आँखों से आँसू आ रहे थे, चुदाई के लिए नहीं, रोहन को सोच कर।

पर मैं ऐसे ही पन्द्रह मिनट और चुदती रही, फिर विकास ने मुझे और जकड़ा और मेरी चूत में जोर से अपना लंड घुसा कर झड़ने लगा।
मैं उसके झड़ते ही उठी, खुद को पौंछा और कपड़े पहनने लगी, ये सब मैंने बहुत हड़बड़ी में किया।

मैं अब तक की सारी बातें भूल कर सिर्फ और सिर्फ रोहन के बारे में सोच रही थी, उन सबने मुझे थैक्स कहा, मेरी तारीफ की, मेरी चूत की तारीफ की, मुझे छूते रहे, मुझसे और मिलने का वादा लेते रहे, पर मेरा ध्यान किसी बात पर नहीं था, मैं उनको हर बात के लिये हाँ-हाँ में जवाब देकर अपना पल्ला झाड़ रही थी।

मैं कपड़े पहन कर वहाँ से निकल आई और आटो लेकर हॉस्टल पहुंच गई। हॉस्टल में लड़कियों ने छेड़ा पर सबको मैंने गुस्सा दिखा कर भगा दिया और बिस्तर में मुंह छिपा कर लेट गई।
काश कपड़े में मुंह ढक लेने से मेरी गलतियों पर पर्दा डाला जा सकता! पर ऐसा नहीं था, आज मैंने बड़े लंड की चाहत में बहुत कुछ खो दिया था, रोहन जो मेरा सबसे अच्छा दोस्त था, सबसे ज्यादा चाहने वाला, सबसे ज्यादा केयर करने वाला, आज मुझे उसे खोने का अहसास हो रहा था।

मैं बस बार बार यही सोच रही थी कि मैं रोहन से नजरें कैसे मिलाऊंगी, क्या कहूंगी, या वो मुझे क्या कहेगा।
फिर मुझे गलती का अहसास हुआ कि अगर रोहन घर पर नहीं था तो मैंने उसे फोन क्यों नहीं किया, वो तो मोबाइल रखता है, तब मेरे अंदर से आवाज आई की कविता तूने पहले ही बेवफाई का मन बना लिया था, तू भी मौके का फायदा उठाना चाह रही थी, तभी तूने रोहन को फोन नहीं किया।
मैं खुद से बहुत ज्यादा शर्मिंदा थी।

इसी सोच में आधी रात तक जगती रही, फिर नींद आई भी तो बहुत जल्दी खुल गई। अगर मैं आज इतनी थकी ना होती तो शायद रात भर नींद आती भी नहीं!
अब मैंने सोच-सोच कर पागल होने के बजाय सुबह रोहन से मिल कर सब कुछ बता कर अपनी गलती की माफी मांगने की सोची, अब चाहे रोहन माफ करे ना करे मुझे तो अपने तरफ से इतना करना ही था।
मैंने रोहन को सुबह पांच बजे मैसेज कर दिया कि हम सात बजे ही गार्डन में मिलेंगे।

मैं गार्डन में पहुंची, वहाँ रोहन आ चुका था, रोहन ने मुझे देख कर सामान्य बर्ताव किया, जैसा वो हमेशा करता था, फिर मैंने खुद बात छेड़ने की कोशिश की ताकि मैं सफाई दे सकूं लेकिन रोहन ने बात बदल दी, वो उस टापिक पे बात ही नहीं करना चाहता था, रोहन का सामान्य बर्ताव मुझे खाये जा रहा था, रोहन मुझे मारता, डांटता, कुछ पूछता, या कोसता तो मुझे थोड़ी राहत मिलती!

पर रोहन बहुत कठोर निकला, वो मुझे इन सारी बातों से भी बड़ी सजा दे रहा था, वो हंस कर बात कर रहा था.
उसने मेरी तबीयत पूछी, मेरी खैरियत पूछी और अपने चेहरे पर जरा सी भी शिकन नहीं आने दी।

अब मैं क्या करूं… मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था, मैंने रोहन के ऐसे बर्ताव की कल्पना भी नहीं की थी।
लेकिन आप सबको बता दूं कि मैं कितनी पीड़ा में थी इसकी मुझे तनिक भी परवाह नहीं थी, मैं तो यह सोच कर परेशान थी कि रोहन ने अपने हंसते चेहरे के पीछे कितना दर्द छुपा रखा है।
मैं रोहन को बहुत अच्छे से जानती थी, वो हर गम अकेले सह लेता था, मुझ तक उसने कभी तकलीफों की आँच भी नहीं आने दी।

मैं हॉस्टल वापस आ गई और दो दिन बड़ी मुश्किल से काटने के बाद अपने घर लौट आई।
रोहन एक हफ्ते बाद आने वाला था।
अब मेरे पास अंदर ही अंदर घुटने के अलावा कुछ ना बचा था।

एक हफ्ते बाद रोहन भी वापस आ गया, मैंने तय किया कि उसके आते ही मैं उससे मिलने जाऊंगी। और मैं छोटी को उसके घर छोड़ने के बहाने वहाँ गई भी। लेकिन छोटी की वजह से कोई बात ना हो सकी, तो मैं छोटी को छोड़ कर वापस आ गई।
उसने छोटी को लौटते वक्त एक पुस्तक मुझे देने के लिये दिया था, जिसे वो मुझे देना भूल गई, यह बात मुझे बाद में पता चली।

लेकिन दूसरे ही दिन एक भयानक घटना घट गई, छोटी अब खुद सायकिल चला सकती थी तो वो रोहन की बहन से मिलने चली गई, और उसने रोहन के घर में उसकी बहन को ढूंढना चाहा, और जैसे ही एक कमरे के दरवाजे को धक्का दिया… वो चीख पड़ी- मम्मी… भैय्याययया.. और बहुत जोरों से रोने लगी!
सभी तुरंत दौड़ कर आये, उस कमरे में रोहन ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली थी, सबने कोशिश की पर उसे बचा नहीं पाये।

उसकी जेब से एक सुसाईड नोट निकला, जिसमें उसने लिखा था कि उसके रुम पार्टनर विकास, अमित और गौरव उसके साथ यौन शोषण करते थे, साथ ही मानसिक प्रताड़ना भी देते थे, जो अब मेरे बर्दाश्त से बाहर है, इसलिए मैं अपनी जान दे रहा हूं। मेरी आत्महत्या के लिए उन तीनों को ही दोषी माना जाये और कड़ी से कड़ी सजा दी जाये।

उसके तहत उन तीनों लड़कों को सजा हो गई, सभी बालिग थे, कुछ दिनों तक जांच चली और जांच में सभी बातें सही पाई गई.. इसलिए उन्हें जेल जाना ही पड़ा।

मैं रोहन को आखिरी बार देख लेने के लिए तड़प उठी, मैंने माँ के साथ जाकर उसे देखा, खूब रोई और अपनी गलतियों को याद कर कर के पछताने लगी, काश मैं बड़े लंड की भूखी ना होती, लंड छोटा था तो क्या हो गया, उसके जैसा प्यार अब कौन दे सकता है, काश मैं सुंदरता की भ्रामक प्रतिस्पर्धा में ना पड़ी होती, अब उसके मन के जितना सुंदर मन मुझे कहां मिलेगा, काश मैं अपनी जवानी पर काबू कर पाती, तो जीवन भर के पश्चाताप से बच जाती।

पर अब तो सब कुछ हाथ से जा चुका था, अब मेरा तन मन सब जड़ हो चुका था, मैं केवल एक बेजान मूर्ति की भांति बैठी रहती थी.
रोहन ने ऐसा कदम क्यों उठाया? उसे ये सारी परेशानी कब से थी, उसने मुझे कभी बताया क्यों नहीं, मैं इन्हीं सारी उधेड़बुन में पड़ी रहती थी पर अभी मेरी जिन्दगी में एक और बिजली गिरना बाकी था।

छोटी ने रोहन को लटके देखा था, वो उस सदमे से उबर ही नहीं पा रही थी।
कुछ दिन बाद छोटी को याद आया कि रोहन ने मरने के पहले दीदी के लिए एक पुस्तक भेजी थी, तो वो उसे मेरे कमरे में देने आई, उस वक्त मैं घर पर नहीं थी, तो उसने मेरी बिस्तर पर पुस्तक रखनी चाही लेकिन उसे उसी वक्त पुस्तक में कोई चीज दबी हुई सी लगी, उसने ढूंढने का प्रयास किया तो आठ पेज का एक पत्र मेरे नाम से रोहन ने लिख कर पुस्तक के कवर में छिपा रखा था, जिसे छोटी निकाल के पढ़ रही थी, और शायद पूरा पढ़ भी चुकी थी, तभी माँ मेरे कमरे में पहुंच गई, और छोटी ने वो चिट्ठी मेरे सिराहने के नीचे छुपा दिया.

माँ ने पूछा- क्या छुपा रही हो?
तो छोटी को जैसे सांप सूँघ गया था, लेकिन माँ ने वहाँ ढूंढने का प्रयास किया तो उसे मेरी अश्लील पुस्तक मिल गई, माँ ने सोचा कि इसे छोटी ने ही रखा है।
माँ ने उसे खूब पीटा और पुस्तक जला दी।
छोटी ने मार खाकर भी मुंह नहीं खोला और अब तो वो भी बेजान पत्थर हो चुकी थी।

लेकिन मुझे तो पता था कि वो पुस्तक मेरी है, तो मैंने ढूंढने का प्रयास किया कि छोटी ने और क्या छुपाया, तब मुझे रोहन का आठ पृष्ठों की चिट्ठी मिली, जिसे पढ़ कर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई, आँखों से आँसुओं की बरसात होने लगी।
मैं सीना पीट-पीट कर रोने लगी।
चिट्ठी में लिखा था…

कहानी का 26वाँ और फिलहाल का अंतिम भाग जरूर पढ़िए, अभी बहुत से रहस्यों से पर्दे उठने बाकी हैं।
उसके बाद कुछ दिनों का विराम होगा, जिसके बाद आगे की कहानी एक नये नाम से आयेगी।

अपना राय इस पते पर दें…
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