गांव में फुफेरे भाई के साथ रंगरलियां- 1

ब्रो सिस फिज़िकल लव स्टोरी में पढ़ें कि पारिवारिक समारोह में मैं अपनी बुआ के बेटे से मिली. वो मेरे जिस्म के उभारों को घूरता रहता था. मैं समझ गयी कि उसके दिल में क्या है.

यह कहानी सुनें.

 

मेरे प्यारे दोस्तो. कैसे हैं आप सब!
उम्मीद करती हूँ मजे में ही होंगे.

मेरी पिछली कहानी थी: कुंवारी बुर में लंड लेने की लालसा
आज मैं आप सबके सामने एक और सेक्सी और दिलचस्प चुदाई कहानी लेकर हाजिर हूँ.

हालांकि आप सब पाठकों के मनोरंजन को ध्यान रखते हुए कहानी बड़ी ध्यानपूर्वक लिखी है, फिर भी अगर कोई छोटी-मोटी गलती हो गयी हो, तो क्षमा चाहूंगी.
हो सकता है कि कुछ लोगों को यह ब्रो सिस फिज़िकल लव स्टोरी शायद पसंद ना आए क्योंकि ये मेरी और मेरे एक रिश्तेदार की है.

जिन्हें रिश्तों में चुदाई पढ़ना अच्छा नहीं लगता, उनसे कहना चाहूंगी कि वो लोग अभी कहानी पढ़ना बंद करके कोई दूसरी कहानी को पढ़ सकते हैं.

यह कहानी कुछ समय पहले की है. उस समय मेरी उम्र 23 साल थी.

जो मेरी सेक्स कहानी के नियमित पाठक हैं, वो मेरे बारे में जानते ही होंगे.

पर फिर भी अगर आप में से कुछ लोग मेरी कहानी पहली बार पढ़ रहे हैं, तो आपके लिए एक बार फिर से अपना परिचय दे देती हूँ.

मेरा नाम सुहानी चौधरी है. हालांकि मैं हूँ तो उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले से, पर पढ़ाई के लिए दिल्ली आ गई थी … तो अब दिल्ली वाली ही हो गयी हूँ.

मैं दिखने में काफी सुंदर और आकर्षक हूँ. मेरा चेहरा भी बहुत प्यारा है, बिल्कुल बच्चों की तरह मासूम सा है. खिले खिले बाल हैं और शरीर भी अच्छा है, रंग भी गोरा है और फ़िगर भी 34-25-36 का है. बाकी आप सब लोग अपने विचारों में मेरी अब तक छवि बना ही चुके होंगे, तो जैसी मर्जी आए … अपने सपनों में मेरे जिस्म के साथ खेल सकते हैं.

मैं और मेरे घरवाले एक पारिवारिक समारोह में एक रिश्तेदार के यहां गांव गए हुए थे.
क्योंकि फंक्शन बड़ा था इसलिए काफी रिश्तेदार इकट्ठा हुए थे.

यह फंक्शन काफी दिनों तक चलने वाला था.

मैं काफी सालों बाद किसी पारिवारिक समारोह में जा रही थी इसलिए सब रिश्तेदारों को थोड़ा थोड़ा भूल भी गयी थी, पर कुछ याद भी थे.

वहां पर सब रिश्तेदारों का रुकने का अच्छा प्रबंध किया हुआ था.
अच्छी बात ये थी कि सारे बड़े लोगों को रहने के लिए अलग घर में कमरे दिए गए थे.
और जो कम उम्र के थे, उनके लिए अलग घर में स्थान दिया गया था ताकि सब समय का भरपूर आनन्द लें.

मैं जहां रुकी थी, वहां मेरे सारे रिश्तेदारों के बच्चे और भतीजे वगैरह रुके हुए थे.

उन्हीं में एक लड़का था विपिन.
वो मेरी बुआ का लड़का था. वो भी अपने घर से इसी भवन में रहने आ गया था जबकि उसका घर इसी गांव में था.

विपिन को वैसे तो मैं बचपन से जानती थी.
उसकी उम्र उस वक़्त 19 साल के लगभग की थी, जब उसके साथ मेरे जिस्मानी सम्बन्ध बने.

जब मैं छोटी थी तो गर्मियों की छुट्टियों में उसके घर में जाती थी. उन दिनों हम दोनों खूब मस्ती करते थे.
फिर हम सब बड़े होते चले गए तो आना जाना और बातचीत काफी कम हो गयी थी.

क्योंकि मैं उम्र में उससे कुछ साल बड़ी थी इसलिए वो मुझे दीदी कह कर बुलाता था.

शुरू में तो हम दोनों ज्यादा बातचीत नहीं कर पाए, पर फिर धीरे धीरे घुलते मिलते चले गए.

एक दिन दोपहर में सब लोग खा पीकर एक दूसरे के साथ गप्पें मार रहे थे.

धीरे धीरे मुझे समझ आ गया कि विपिन कभी कभी मुझे देखता रहता था और जब वापस उसे देखती, तो नजर इधर उधर कर लेता था.

शुरू में तो मैंने ऐसा वैसा कुछ नहीं सोचा, पर धीरे धीरे मुझे समझ आ गया कि लौंडा नया नया जवान हुआ है … इसलिए शायद वैसे ही आकर्षित होगा.
इसलिए मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

धीरे धीरे हम सब साथ में घुलने मिलने लगे.
कभी कभी गलती से अगर मेरे शरीर का कोई हिस्सा विपिन से छू जाता तो वो असहज हो जाता था.

एक बार ऐसे ही हम दोनों थोड़ा अलग से होकर बात कर रहे थे तो मैंने अंजाने में उसका हाथ पकड़ लिया.
फिर तो बस वो हकला हकला कर बोलने लगा.
मैंने सोचा शायद शर्मा गया होगा या लड़कियों के साथ ज्यादा घुलता मिलता नहीं होगा.

मैंने ऐसे ही बातों बातों में मज़ाक में उससे पूछा- क्या तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड है?
ये सुनकर तो वो बिल्कुल शर्मा गया और बोला- क्या दीदी आप भी ना, ऐसी कोई बात नहीं है.

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मैंने मज़ाक भरे लहजे में कहा- अरे चलो कोई बात नहीं, कभी दिल्ली आना. मैं पक्का तुम्हारी गर्लफ्रेंड बनवा दूंगी.
वो शर्मा गया.

फिर मैंने पूछा- कैसी लड़की पसंद है तुम्हें?
उसने थोड़ा शर्माते हुए कहा- बिल्कुल आप जैसी.

मैंने हल्का सा मुस्कुराते हुए उसे प्यार से चपत लगा दी और बोली- क्या कहा तुमने!
विपिन थोड़ा सकपकाते हुए बोला- अरे मेरा मतलब आप जैसे स्वभाव की.

मैंने मज़ाक करते हुए कहा- मेरे जैसी मिलनी तो मुश्किल है, चलो मुझे ही बना लेना. बस जहां मैं बोलूं, घुमा देना और कुछ अच्छा सा खिला देना.
उसने बोला- ठीक है दीदी.

मैंने आगे बोला- और हां, दिल्ली में गर्लफ्रेंड को दीदी नहीं बुलाते.
वो हंस दिया.

फिर बस हम इधर उधर की बात करके अपने अपने कमरों में चले गए.
धीरे धीरे मुझे ये भी समझ आ गया कि वो मौका पाकर मेरे शरीर के अलग अलग हिस्सों को निहारता रहता है.

एक दिन वो दूर बैठा हुआ था तो मैंने देखा कि वो फोन में देखते हुए अपने लंड को हल्के हाथों से सहला रहा है.
मैं समझ तो गयी पर सोचा कि चलो इसे डराती हूँ.

मैं उसके पास पीछे से गयी और ‘हौ …’ करके डरा दिया.

हड़बड़ाहट में उसके हाथ से फोन फर्श पर गिर गया.
मैंने नीचे फोन पर देखा, तो उस पर मेरी ही फोटो खुली हुई थी और इधर विपिन का लंड खड़ा हो रखा था.

अब मुझे समझने में देर नहीं लगी कि ये क्या कर रहा था.

मैंने कहा- ये क्या कर रहे थे?
विपिन हड़बड़ाते हुए बोला- दीदी वो मैं … मैं … व्वो वो कुछ नहीं.

मैंने थोड़ा गुस्से से में कहा- ये सब क्या है … मैं इतनी बेवकूफ भी नहीं कि ना समझ सकूँ कि तुम क्या कर रहे थे?

पहले तो मुझे गुस्सा आया पर फिर थोड़ी देर बाद मैंने सोचा कोई बात नहीं सुहानी, लड़का नया नया जवान हुआ है, खूबसूरत जिस्म देख कर बहक गया होगा. वैसे भी तू इतनी खूबसूरत है तो क्या फर्क पड़ गया. क्यों बात का बतंगड़ बना रही.

मैंने ऐसे ही हल्का सा चांटा मारते हुए कहा- सुधर जाओ बेटा, पढ़ाई पर ध्यान दो … इस सब में मत पड़ो.
बस मैं मुस्कुराती हुई वहां से चली गयी.

मेरी कोई कठोर प्रतिक्रिया ना होने से विपिन के अरमानों को तो जैसे हवा मिल गयी.

अब तो वो जब-तब मेरी फोटो खींचने लगा.
मैंने भी कोई ज्यादा विरोध नहीं किया; उल्टा मैं ही उसे छेड़ देती, कभी आंख मार देती, कभी हाथ भींच देती.

मैंने सोचा कि लगता है इस बार यहां कुछ एक्शन होने वाला है.

ये मैंने महसूस किया है दोस्तो … कि हम सभी के साथ कभी न कभी ऐसा होता है कि जो कुछ भी होने वाला होगा, तो हमें पहले ही उसका आभास सा हो जाता है.

मैंने भी फैसला किया कि जो होगा देखा जाएगा.

अब तो मैं भी हर छोटे-छोटे काम के लिए विपिन को ही बुलाने लगी. कभी हम बाजार जाते, कभी खेतों में, कभी कभी ऐसे ही घूमने निकल जाते.
इधर विपिन भी बाइक पर जाते हुए जानबूझ कर बाइक के ब्रेक जोर से लगा देता था ताकि मेरे बूब्स उसकी कमर से रगड़ जाएं.

कभी कभी मैं जानबूझ कर इस तरीके से छेड़ देती थी कि उसकी पैंट में हरकत हो जाए.
शुरू में तो मैं ये सब बस उसे छेड़ने के कर रही थी पर धीरे धीरे मुझे इस सब में मजा आने लगा था.

हो सकता है आप में से कुछ पाठकों ये सब गलत लगे, पर आप सबमें से कुछ लोगो के साथ तो ऐसा जरूर हुआ होगा कि अपनी रिश्तेदारी में ही किसी पर दिल आ गया होगा … या कम से कम अच्छा तो लगने लगा होगा.

खैर … आप वो सब छोड़ कर सिर्फ कहानी का लुत्फ लीजिये.

धीरे धीरे हमारे बीच और नजदीकियां आती चली गईं, पर घरवाले और बाकी लोग इस सबसे अंजान थे.

एक दिन रात को सब सोने की तैयारी कर रहे थे पर मुझे नींद नहीं आ रही थी.
तो मैंने टाइमपास करने के लिए अपने लैपटाप पर एक फिल्म लगा ली और इयरफोन लगा कर फिल्म देखने लगी.

एक एक करके ज़्यादातर लोग सो गए.

फिर थोड़ी देर में विपिन मेरे पास घुटनों के बल चलता हुआ आया और बोला- दीदी, मुझे भी दिखा दो फिल्म! मुझे नींद नहीं आ रही है.
मैंने कहा- ठीक है आ जा.

और वो मेरी चादर में ही आ गया.
मैंने एक इयरफोन उसके कान में लगा दिया और एक अपने कान में.
अब हम दोनों फिल्म देखने लगे.

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फिल्म के बीच बीच में मेरे और उसके पैर आपस में छुए जा रहे थे पर मैं इस बात से अंजान थी क्योंकि मेरा ज्यादा ध्यान फिल्म में था.

हालांकि विपिन को मेरे चिकने पैरों से पैर छू जाने से हल्की हल्की उत्तेजना होती जा रही थी. पर फिर भी वो फिल्म देखने में लगा हुआ था.

कुछ देर बाद विपिन बोला- दीदी, क्या मैं आपका हाथ पकड़ सकता हूँ.
मैं फिल्म में इतनी व्यस्त थी कि मैंने बिना कुछ पूछे उसके हाथ में अपना हाथ दे दिया.

हम दोनों ने एक दूसरे का हाथ पकड़ा हुआ था और चादर के अन्दर किया हुआ था.
तभी अचानक से फिल्म में एक चुंबन का दृश्य आ गया और उसी के ठीक बाद सेक्स सीन भी, तो हम दोनों एकदम से जाम हो गए.

मेरे शरीर में सिरहन सी दौड़ गयी और विपिन भी थोड़ा असहज सा हो कर ठीक से बैठ गया.
कुछ पल तो हम दोनों ही सीन को बुत बने देखते रहे.

फिर मैंने फिल्म रोकी और बोली- मैं पानी पीकर आती हूँ.
मैं उसके ऊपर को होती हुई घुटनों के बल वहां से बाहर निकल गयी और रसोई में पानी पीने चली गयी.

मेरे पीछे-पीछे विपिन भी आ गया.
मेरे दिमाग में अब भी फिल्म का सीन ही चल रहा था और मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था.

विपिन भी मेरे पास आकर पानी पीने लगा.
और जैसे ही उसने पानी पीना खत्म किया, पता नहीं मुझे क्या जुनून सा आया, मैंने एकदम से उसको बांहों में भर लिया और जोर से उसके होंठों पर किस कर दिया.
किस के बाद कुछ पलों के लिए इसी अवस्था में खड़ी रही.
वो भी मुझे चूमे जा रहा था.

शायद हम दोनों ही उस वक़्त कुछ नहीं सोच रहे थे, बस जवानी के आग में एक दूसरे के होंठों को चूम रहे थे और हमारी आंखें बंद थीं.

कुछ ही पलों में मुझे होश आया कि मैं ये क्या कर रही हूँ और तुरंत हट गयी.

इसके बाद मैंने उससे सॉरी कहा और नीचे देख कर शर्मिंदा सी होकर वहां से निकल कर अपनी चादर में आ गयी.

कुछ देर में विपिन भी आ गया.
मैंने अब फिल्म देखना बंद कर दिया और लैपटाप बंद करके चादर में मुँह देकर सोने की कोशिश करने लगी.

मैं काफी कन्फ्यूज थी, शर्म आ रही थी और सोच रही थी कि ये मैंने क्या कर दिया. मैं विपिन को कैसे चूम सकती हूँ. वो मेरी बुआ का लड़का है, एक तरीके से मेरा भाई है. ये गलत है.

फिर अगले ही पल ये सोच रही थी कि सही गलत की क्या बात है. किसी ने देखा थोड़े ही है … और उसने मुझे रोका क्यों नहीं.

इस घटना के बाद किस्मत हम दोनों को अलग अलग मौकों पर अकेले मिलने का मौका देने लगी.
कभी हम दोनों को एक साथ बाज़ार जाना पड़ता, कभी कहीं कभी कहीं.

हम दोनों ने उस रात के बारे में कोई बात नहीं की थी और सब कुछ सामान्य चल रहा था.
पर अब मुझे उसके साथ थोड़े गंदे वाले ख्याल भी आने लगे थे और शायद उसे भी आते होंगे.
मुझे भी वो उस तरह से पसंद आने लगा था और उसे मैं!

दो दिन तक तो ऐसे ही चला.

फिर एक दिन विपिन के पापा ने उससे बोला- जा बेटा खेत में चला जा, लाइट आ गयी होगी तो 2-3 घंटे तक ट्यूबवेल चला देना. फिर जब खेत भर जाए तो बंद करके आ जाना.

मैं भी घर पर बोर हो रही थी तो मैंने कहा- मैं भी चली जाऊं क्या, यहां थोड़ा अजीब सा लग रहा है.
फूफा जी बोले- हां हां क्यों नहीं, जाओ खेतों में घूम आओ, तुम शहर के बच्चों को गांव की ताज़ी हवा कम ही मिलती है.
मैं हंस दी.

फिर फूफा जी ने विपिन से कहा- जाओ बेटा, सुहानी को भी खेत में घुमा लाओ.

विपिन ने बाइक स्टार्ट की और मुझे देख कर शैतानी भरी स्माइल दे दी.
मैंने भी उसके सिर में हल्का सा चांटा मारा और पीछे बैठ गयी.

दोस्तो, पहली बार खेत में किस तरह से मैं अपने भाई के साथ चुदी … ये सब मैं आपको अपनी चुदाई कहानी के अगले भाग में लिखूँगी.

आप मुझे मेल करें कि आपको मेरे ब्रो सिस फिज़िकल लव स्टोरी कैसी लग रही है. आपकी सुहानी आपके मेल का इन्तजार करेगी, धन्यवाद.
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ब्रो सिस फिज़िकल लव स्टोरी का अगला भाग: गांव में फुफेरे भाई के साथ रंगरलियां- 2