फीमेल फीमेल सेक्स पसंद करने वाली मेरी एक सहेली मेरे ही घर में मुझे समलैंगिक सेक्स के लिए उकसा रही थी. मुझे इस तरह के सेक्स में कोई रूचि ना थी.
नमस्कार दोस्तो, मैं सारिका कंवल फिर से अपनी फीमेल फीमेल सेक्स कहानी के अगले भाग को लेकर उपस्थित हूँ.
पिछले भाग
मेरा प्रथम समलैंगिक सेक्स- 2
में अब तक आपने पढ़ा था कि कविता मुझसे बात करते हुए मुझे अपनी सेक्स क्रिया के लिए राजी होने की बात कह रही थी. मैं उससे सहमत नहीं हो पा रही थी.
अब आगे फीमेल फीमेल सेक्स कहानी:
कविता बोली- तो क्या दिक्कत है मेरी जान, मैं थोड़ी देर तुम्हारे जिस्म का मजा अगर ले लूंगी, तो कौन सा तुम्हारी इज्जत लुट जाएगी या मेरा बच्चा तुम्हारे पेट में रह जाएगा. मर्दों को इतना मजा देती हो, मैंने आज तक किसी औरत को इतना डूब कर मजा देने वाली औरत नहीं देखी. तुम शायद खुद नहीं जानती कि जब कोई तुम्हें चोदता है तो तुम मस्ती में कैसी प्रतिक्रिया देती हो. ऐसे ही नहीं उस रात हर मर्द बार-बार तुम्हें चोदना चाह रहा था. सच में सारिका तुम मर्दों को गजब का मजा देती हो.
मैंने कहा- क्या तुम्हें मर्द नहीं पसन्द?
उसने कहा- बात मर्द औरत की नहीं है. बात मेरे लिए मजे की है. मर्दों से मजा तो आता ही है पर एक औरत की बात और है. मुझे औरतों की सिसकारियां पागल बना देती हैं. जब तक वो दर्द से चीख न उठे, तब तक न किसी मर्द को मजा आता है … और न मेरे जैसी औरत को मजा आता है.
वो बताती रही- सच कहूँ तो मैं मर्दों से अब ऊब चुकी हूं. मुझे हमेशा कुछ नया चाहिए और समलैंगिक लोग कम हैं. बस यही बता मुझे और अधिक रोमान्चित करती है. अब तुम मुझे मजबूर मत करो … वरना मैं और अधिक बेरहम बन जाऊंगी, तुम बस जल्दी से मान जाओ.
उसकी बातें अब मेरे समझ में आ गयी थीं.
वो सच कह रही थी कि न तो मेरी कोई इज्जत लुटने वाली थी, न बच्चा ठहरने वाला था.
बात अब ये थी कि कहीं ये शोर शराबे पर उतर आयी या मेरे पति से कह दिया, तो मेरा जीवन यहीं खत्म था.
मेरी भलाई इसी में थी कि उसकी बात मान लूं.
तब भी मेरे मन और तन के बीच तालमेल नहीं बन पा रहा था.
सच बात तो ये थी कि उसके चुम्बन से मेरे बदन में खलबली सी मच गयी थी, मगर मेरा मन उसे स्वीकार नहीं कर रहा था.
मैंने कविता से कहा- मैं पेशाब करके आती हूँ.
उसने कहा- मैं भी साथ चलूँगी.
शायद उसे मुझ पर भरोसा नहीं था.
पर मैं केवल थोड़ी देर सोचना चाहती थी और अपने मन को मनाना चाहती थी.
मैंने उससे कुछ नहीं कहा और पेशाब करने चली गयी.
वो भी मेरे पीछे-पीछे आ गयी.
इतनी देर में मैंने तय कर लिया था कि अब जो है सो है, मैं उसे अपना बदन सौप दूंगी ताकि वो जीभर के मेरे बदन से खेल ले.
मैं पेशाब करने बैठ गयी और वो मुझे मुस्कुराते हुए देखने लगी.
जैसे ही मेरी योनि से मूत्र की धार छूटी तो उसकी आंखों में एक अलग तरह की ललक दिखी.
वो झट से मेरे पास आयी और उसने मुझे पकड़ कर उठा लिया.
वो मुझे चूमते हुए बोली- रुकना मत जान … पेशाब करती रहो.
मेरा तो खड़े होते ही पेशाब रुक गया, पर अब तो मैं उसकी दासी बन गयी थी क्योंकि उसने मुझे इतना सैट कर दिया था.
कविता कुछ पल के लिए मुझे चूमने के लिए रुकी और बोली- रुक क्यों गईं?
उसके कहने से मैं खड़े-खड़े पेशाब करने लगी और वो मेरी योनि से निकलती पेशाब को हाथ से छेड़ते हुए मुझे दोबारा चूमने लगी.
सच कहूँ तो मैं इतनी सहम गयी थी कि मुझे पहले ही लगा था कि मेरा जमीन में गिरते ही पेशाब निकलने को था.
करीब एक मिनट तक मैं यूं ही खड़ी हुई पेशाब करती रही.
और जब रुकी तो कविता ने मेरे तरफ़ मुस्कुराती हुई देखा.
उसने बैठ कर पानी से मेरी योनि और जांघें और टांगें धोईं और मुझे मेरा हाथ पकड़ कर कमरे में ले आयी.
उसने मुझे बिस्तर पर लेट जाने को कहा और मैं यंत्रवत लेट गयी.
वो बोली- बस मैं थोड़ी देर में आती हूँ.
ये कह कर कविता कमरे से बाहर चली गयी. मेरे मन में फिलहाल कोई बात नहीं थी, बस अब मैं ये सोच रही थी कि आगे और क्या होगा. मेरा डर भी खत्म हो गया था.
कुछ ही देर में कविता वापस आ गयी अपनी वो थैली लेकर आई थी.
उसको वो बगल में रख मेरे ऊपर ऐसे चढ़ गयी, जैसे कोई मर्द किसी औरत के ऊपर चढ़ता है.
उसने बड़े प्यार से मेरे बालों को सहलाया और कहा- आज मैं तुम्हें एक अलग अनुभव दूंगी. जिसे तुम जीवन भर याद रखोगी.
उसके बाद वो मुझे चूमने लगी.
उसने पहले मेरे होंठों से शुरूआत की. मेरे होंठों को बारी-बारी चूसने चूमने के बाद वो अपनी जुबान मेरे मुँह में घुसाने का प्रयास करने लगी.
पहले तो मुझे अजीब सा लग रहा था, पर समय बीतने के साथ मुझे भी ठीक लगने लगा.
तब भी अभी तक मेरे भीतर कामुकता जैसी बात नहीं जगी थी.
जैसा कि मैं अब कविता का साथ देने लगी थी तो मैंने बिना किसी तरह की बात सोचे … अपना मुँह खोल दिया.
कविता अपनी जुबान मेरे मुँह में डाल कर मेरी जुबान को टटोलने लगी. साथ ही मेरे स्तनों, जांघों, कमर और जिस जिस जगह उसका हाथ मेरे बदन तक जाता, उन्हें सहलाने लगी.
मुझे अनुभव हो रहा था कि कविता को न केवल मर्दों को सन्तुष्ट करने में अनुभव था, बल्कि औरतों का भी अच्छा खासा अनुभव था.
जैसे-जैसे वो आगे बढ़ती जा रही थी … वैसे-वैसे मेरा मन भी अब बदलता जा रहा था.
उसकी सांसों की खुशबू मेरे फेफड़ों में जाने से मुझे अजीब सा एक सुखद अहसास होने लगा.
कविता बार बार अपनी जुबान से मेरी जुबान को छेड़ने लगी. कुछ ही पलों में मैंने भी अपनी जुबान बचाने की जगह, बाहर निकाल दी.
बस फिर क्या था … कविता मेरी जुबान को मस्ती भरे अन्दाज में चूसते हुए खेलने लगी और मेरे स्तनों को मसलने लगी
मुझे ऐसा नहीं लग रहा था कि कोई औरत मेरे साथ सेक्स कर रही है, बल्कि कोई मर्द ही मेरे साथ मस्ती कर रहा है. उसमें मर्दों से भी अधिक कठोरता थी.
उसकी इन हरकतों से थोड़ी-थोड़ी मुझमें भी अब गर्मी पैदा होने लगी.
मैं अब भूलने लगी थी कि कविता कोई औरत है. मैं भी उसे चूमने और चूसने में सहायता करने लगी.
कुछ ही पलों में मैंने उसे अपनी जांघों के बीच जगह दे दी और उसके सुडौल मांसल चूतड़ों को सहलाती और दबाती हुई अपनी टांगों से उसे जकड़ कर मैं भी उसके होठों और जुबान को चूसने लगी.
एक अजीब सी गुदगुदी सी महसूस हो रही थी. मुझे मेरी नाभि और योनि की अंदरूनी दीवारों पर उसके चूमने से एक मस्त अहसास होने लगा था.
मेरी योनि अब भीतर से गीली शुरू होने लगी थी और ऐसी चाहत हो रही थी कि कविता की योनि के उभार को मैं बार-बार अपनी योनि की दरारों के बीच फंसा लूं.
मैं अब पहले से कहीं और अधिक उत्तेजित महसूस करने लगी थी और अब मैं लम्बी-लम्बी सांसें खींच कर कविता की साँसों की खुशबू लेना चाहती थी.
हम दोनों ऐसे अपने-अपने बदन को एक दूसरे के बदन से रगड़ रहे थे, जैसे अपने अपने स्तनों को एक दूसरे के स्तनों से लड़ा रहे हों.
वो बार-बार अपनी योनि को मेरे योनि के ऊपर दबाव दे रही थी … साथ ही गोल-गोल घुमा कर अपनी योनि मेरी योनि से रगड़ रही थी.
वहीं मैं भी अपने चूतड़ उठा कर उसका साथ उसी के अन्दाज में दे रही थी.
मैं जहां पहले उसका विरोध कर रही थी, अब वहीं डूब कर कविता का साथ देते हुए आनन्द लेने लगी थीं.
हम दोनों अब नाग नागिन की तरह एक दूसरे से लिपट कर पूरी ताकत से एक दूसरे को कचोटते मसलते हुए चूम रहे थे.
मैं यकीनन ये कह सकती हूँ कि जिन लोगों ने नाग नागिन को लिपटते हुए देखा होगा, वो बड़ी सरलता से हमारी स्थिति को अपने मन में चित्रित कर सकते हैं.
कविता मेरे मुँह से निकलती हुई लार को चूस-चूस कर पीने लगी और मेरे मुँह से मुँह ऊपर उठा कर अपने मुँह की लार मेरे मुँह में गिराने लगी.
मैं भी इतनी उत्तेजित हो चुकी थी कि अब उसका लार अपने मुँह में खोल कर लेने लगी.
जब मेरा मुँह उसकी लार से भर गया, तो उसने फिर से अपने मुँह को मेरे मुँह से चिपका दिया और हम दोनों एक मुँह से दूसरे के मुँह में लार की अदला-बदली करते हुए खेलने लगे.
कभी मैं अपने मुँह से थूक और लार उसके मुँह में दे देती और वो चूस लेती, तो कभी वो मेरे मुँह में देती और मैं चूस जाती.
इस खेल में गजब का मजा आ रहा था. ऐसा कभी मुझे मर्दों के साथ नहीं आया था. कविता की लार की खुशबू मुझे और भी मदहोश कर रही थी.
काफ़ी देर ऐसे ही खेलने के बाद कविता ने मेरे गालों को चाटना शुरू कर दिया और धीरे धीरे गले से सीने पर उठे हुए मेरे स्तनों तक जाने लगी.
वो अपनी थूक से मेरे पूरे बदन को भिगोने लगी. वो मेरे बदन से लेकर उंगलियों, सिर से लेकर पांव की उंगलियां चाट रही थी.
कविता मेरी उंगलियों को तो ऐसे चूस रही थी मानो लिंग चूस रही हो.
उसकी इस हरकत से मेरे बदन का रोयां-रोयां खड़ा हुआ जा रहा था.
उसने मुझे उलट-पलट कर पूरी तरह से अपनी जुबान से चाटा.
ऐसा मेरे साथ आज तक किसी ने नहीं किया था, जिन मर्दों के साथ मैंने अब तक सहवास किया था, उन्होंने भी मेरे पूरे शरीर को चूमा था, मगर इस तरह से किसी ने चाटा नहीं था. उन सभी ने मेरी योनि चाटी या चूसी थी.
मेरा सारा बदन चाटने के बाद कविता ने मुझे पेट के बल ही लेटे रहने दिया और मेरे चूतड़ उठा कर पीछे से मेरी योनि को चूमा.
इससे मैं एकदम से सिहर उठी.
मेरी योनि पहले से ही बहुत गीली हो चुकी थी और उस चुम्बन के साथ लगा कि मैं तेज पिचकारी मार कर झड़ जाऊंगी.
पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.
बल्कि अगली बार वो मेरी योनि के ऊपर अपनी जुबान को रगड़ते हुए ऊपर को आयी और मेरे दोनों चूतड़ों को हाथों से फ़ैला मेरी गुदा के छेद पर जुबान घुमाने लगी.
एक पल के लिए तो मुझे लगा कि वो ये क्या कर रही है.
योनि तक तो ठीक समझ आ रहा था, पर मेरी गुदा द्वार को क्यों चाट रही है.
मुझे घिन सी भी लगी, सो मैंने अपनी कमर झटक दी.
उसने मेरे चूतड़ों को सहलाते हुए कहा- क्या हुआ सारिका, मेरी जुबान का स्पर्श पसन्द नहीं आया क्या?
मैंने पूछा- मेरी गांड का छेद क्यों चाट रही हो?
उसने उत्तर दिया- लगता है तुम्हें किसी ने असली मजा नहीं दिया. बस जो मैं कर रही हूं, करने दो. अभी तुम्हें बहुत मजा आने वाला है.
इतना कह कर उसने फिर से मुझे खींचा और मेरे चूतड़ ऊपर को उठा कर पीछे से मेरी योनि चाटने लगी.
ओह्ह्ह … क्या जादू था उसकी जुबान में … जुबान का स्पर्श होते ही ऐसे लगा कि मैं तीनों लोकों में भ्रमण करने लगी.
वो बार बार अपनी जुबान मेरी योनि के ऊपर से लेकर आती और मेरे गुदा द्वार तक फिरा देती.
मैं सिसक सिसक कर हिरनी की तरह मस्ती में अपने चूतड़ों को मटकाने लगी. हथेलियों में चादर को पूरी ताकत से भर लिया और अपना पूरा बदन कड़क बना लिया.
गजब का आनन्द आ रहा था और मैं पगली उससे दूर भाग रही थी.
मैंने काफी दिनों से ऐसा सम्भोग नहीं किया था, जिसमें मैं संतुष्टि प्राप्त कर रही थी.
अब कविता मेरे दोनों चूतड़ों को फ़ैला कर मेरे गुदा द्वार पर बहुत सारा थूक और लार गिरा देती और उसे बहने देती.
जब वो रस मेरी योनि तक पहुंचता, तो अपना मुँह मेरी योनि से लगा कर सारा थूक अपने मुँह में भर लेती और दोबारा जुबान से सारा थूक समेटते हुए वापस मेरे गुदा तक आ जाती और दोबारा थूक देती.
वो बार-बार यही प्रक्रिया दोहरा रही थी और मेरी हालत इधर जान निकलने जैसी हो रही थी. अब या तब ऐसा लग रहा था मानो मैं छूट जाऊंगी.
इसके बाद कविता ने कुछ अलग करना शुरू किया.
उसने एक उंगली मेरी योनि में घुसा दी और दूसरे हाथ से योनि की पंखुड़ियां फ़ैला कर जुबान से चाटते हुए उंगली अन्दर बाहर करने लगी.
वो इतनी तेजी से उंगलियां अन्दर बाहर कर रही थी कि मेरी दर्द वाली आवाज कामुक सिसकारियों और मादक कराहों में बदल गयी.
उंगली के सहारे मेरी योनि से रिसता हुआ सारा रस बाहर आने लगा, जिसे कविता बड़े चाव से चाटने लगी.
साथ ही उसे मेरी गुदा के छेद तक फ़ैलाने लगी.
वो उंगली से ही मेरी योनि भेदने लगी थी. सच में मुझे इसमें बहुत आनन्द आ रहा था.
अब मैं अपनी चरम सीमा से अधिक दूर नहीं थी. कविता बहुत कम समय में ही मुझे उत्तेजित कर चरम सीमा के पास ले आयी थी.
मेरी योनि से लेकर गुप्तांग तक का हिसा चिपचिपे तरल से भर गया था.
मेरे लिए घुटनों के बल अब खड़े होना मुश्किल हो रहा था और शायद कविता ने ये भांप लिया था.
उसने मुझे पलट दिया और तेज़ी में मेरी टांगें चीर कर दोनों किनारे फ़ैला दिए.
फिर वो किसी भूखी कुतिया की भांति मेरी योनि पर टूट पड़ी.
उसने पहले तो कुछ देर मेरी योनि को ऊपर से चाटा, फिर ऐसे दांतों और होंठों से मेरी योनि की पखुड़ियों को दबोच-दबोच चाटने लगी जैसे वो मेरी योनि खा जाएगी.
सिसक-सिसक कर मैं मजे लेने लगी और खुद ही अपनी चूचियों को दोनों हाथों से मसलने लगी.
मैं इतनी गर्म हो चुकी थी कि खुद अपने स्तनों को दबा कर दूध निकाले दे रही थी. मुझे खुद पर काबू रखना अब और ज्यादा सम्भव नहीं लग रहा था.
अचानक ही मैं चीख सी पड़ी- हाय्य्य … कविता … मैं गयी.
मैं थरथराने लगी और पूरी ताकत से अपनी दोनों टांगें आपस में चिपका लेने का प्रयास करने लगी.
पर कविता ने झट से अपनी स्थिति बदली और अपनी एक टांग से मेरी एक टांग को फंसा लिया. साथ ही दूसरी टांग को हाथों के बल से पकड़ लिया.
दोस्तो, मेरी फीमेल फीमेल सेक्स कहानी आगे का भाग आपको और भी अधिक पसंद आएगा, ऐसा मेरा विश्वास है.
मेरी इस लेस्बियन सेक्स कहानी के लिए मुझे आपके मेल का इंतजार रहेगा.
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फीमेल फीमेल सेक्स कहानी का अगला भाग: मेरा प्रथम समलैंगिक सेक्स- 4