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एक ही बाग़ के फूल-5
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मैंने अपना लंड निकाल लिया और उसकी चूचियाँ दबाने और चूसने लगा। कुछ देर बाद मैंने अपने लंड को कपड़े से पौंछ लिया और उसकी चूत और गांड भी पौंछी। उसकी गांड का छेद भी बिल्कुल गुलाबी था।
उसने कपड़े पर खून के निशान देखे तो डर गयी।
मैंने उसे समझाया- पहली बार में खून निकलता है।
फिर वो थोड़ा मुस्कुराई।
मुस्कुराती भी क्यों न … ज़िन्दगी का पहले सुख उसे मिला था।
फिर मैं लेट गया और उसे अपना लंड चूसने को कहा। वो मेरा लंड चूसने लगी। कभी पूरा लंड मुँह में ले जाती तो कभी ऊपर से नीचे तक जीभ फिराने लगी।
कुछ ही देर में मेरा लंड दोबारा खड़ा हो गया. छाया मेरा खाद लंड चूसने का मजा ले रही थी.
मैंने उससे पूछा- कैसा लग रहा है?
मेरा लंड अपने मुँह से निकाल कर वो बोली- बहुत अच्छा लग रहा है भइया … मजा आ रहा है.
और फिर से वो मेरा लंड मुँह में लेकर चूसने लगी.
कुछ देर बाद मैंने उसे बिस्तर पर लिटा दिया और फिर से अपने लंड पर वेसलीन लगाई और उसकी चूत पे लंड रख के धक्का दे दिया।
दो ही धक्कों में मेरा गर्म लंड सरसराता हुआ छाया की चूत के अंदर चला गया।
फिर मैं अपने लंड को छाया की चूत में अंदर बाहर करने लगा। कुछ देर बाद मैंने उसकी दोनों टाँगें उठा के अपने कंधे पर रखी और उसे चोदने लगा। वो हल्की हल्की सिसकारियां लेकर चुदने का मज़ा लेने लगी।
करीब दो सौ धक्के आराम से लगाने के बाद मैंने रफ़्तार तेज कर दी और बहुत सारे धक्के तेज़ रफ़्तार में लगाए। इसी बीच छाया एक बार और झड़ चुकी थी।
फिर मैंने उसे उल्टा लेटने को कहा और उसके पेट के नीचे २ तकिये लगा दिए। मैंने उसकी गांड की दोनों गोलाइयाँ पकड़ के चौड़ा किया और लंड उसकी चूत पे रख के धकेल दिया।
गद्देदार एहसास के साथ मैं छाया को चोदने में लगा हुआ था। उसकी गोरी गोरी गांड की गोलाइयाँ और उस पे उसका गुलाबी छेद मुझे मजबूर कर रहा था कि मैं अपनी उंगली को उसमें डाल दूँ।
मैंने देर न करते हुए अपनी उंगली को उसकी गांड के छेद में डाल दिया।
मेरी उंगली आधे पे जाकर रुक गयी क्योंकि उसने अपनी गांड भींच दी थी। मैंने उसकी गांड पे चपत लगाई मगर उसने नहीं खोली। मैंने उतनी ही उंगली अंदर बाहर करने लगा।
वो समझ गयी कि शायद और मज़ा आएगा तो उसने अपनी गांड मेरी उंगली के लिए खोल दी। मैंने पूरी उंगली गांड में घुसा दी और साथ साथ अपने लंड को उसकी चूत में अंदर बाहर करता रहा।
दस मिनट बाद मैंने उसे सीधा किया और लंड फिर उसकी चूत में घुसा दिया और उसकी चूचियाँ पकड़ के दबाने लगा और उसकी चूत को चोदने लगा। वो सिसकारियां ले रही थी. बीच में वो एक बार और झड़ चुकी थी।
मैंने देखा कि चूमते, चुसाते हुए और चोदने में करीब दो घंटे कब बीत गए पता ही नहीं चला। अब मुझे भी लग रहा था कि मैं झड़ने वाला हूँ.
मैंने अपनी रफ़्तार और बढ़ा दी।
मेरे से पहले उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया। मैंने भी जल्दी से अपना लंड निकाला और निकालते ही मेरे वीर्य की धार उसके होंठों तक पहुंच गयी। उसकी चूत उसका पेट और चूचियाँ, होंठ, गाल सब जगह मेरा वीर्य पहुंच चुका था।
उसके पैर काँप रहे थे और वो लम्बी लम्बी साँसें ले रही थी।
मैं भी उसके बगल में लेट गया। कुछ देर बाद उसने कपड़े से अपने आप को साफ़ किया।
वो मेरी तरफ देख के मुस्कुराई।
तभी अचानक से दरवाजे की घंटी बजी। मैंने समय देखा तो घरवालों का तो अभी आने का टाइम नहीं हुआ था। इसलिए मैं बेफिक्र होकर उसे नंगी छोड़कर निक्कर और टी शर्ट पहनी और दरवाजा खोलने चला गया।
मगर दरवाजा खोलते ही पहले तो मैं थोड़ा घबरा गया क्योंकि दरवाजे पर छाया की माँ गीता थी।
दरवाजा खोलते ही वो अंदर आ गयी और दरवाजा बंद करके मेरे से लिपट गयी और मुझे चूमने और चाटने लगी।
फिर थोड़ा अगल हट के कहा- कब से देख रही हूँ दिखाई नहीं दे रहे? फ़ोन मिलाया तो फ़ोन नहीं उठा रहे। किसी और को चोद रहे थे क्या? छाया के पापा ने कल रात ५ मिनट धक्के मारे और सो गए। कल रात से इतना मन कर रहा है। मन तो कर रहा था उसी टाइम आ जाऊं और तुम्हारे लंड के साथ खेलूं पर मजबूर थी।
इतना कहकर लंड पकड़ लिया जो अभी अकड़ा हुआ हुआ ही था।
जब मुझे पता लगा कि तुम्हारे घर पे कोई नहीं है इसलिए मैं आ गयी।
मैंने कहा- तुम अंदर चलो, मैं अभी आता हूँ. ऊपर का पंखा अभी चालू है।
इतने में वो आगे बढ़ गयी और कहा- ऊपर ही चलते हैं. आज तुम्हारे कमरे में सवारी कर लूंगी।
वो कमरे में चली गयी और तुरंत बाहर आ गयी और मुझे घूरने लगी।
मैं धीरे धीरे आगे आया कि आज तो मैं गया।
मेरे पास आते ही उसने मुझे कमरे में खींच के बेड पर लिटा दिया और बोली- तुम्हें मालूम था कि मैं आने वाली हूँ इसलिए कमरे को खुशबू से महका रखा है।
इतना कहकर वो मुझे चूमने लगी।
पर मैं सोच रहा था कि छाया कहाँ गयी?
सिर्फ एक ही जगह थी जहाँ वो छुप सकती थी … वो थी पलंग के नीचे।
कुछ देर में गीता मेरे ऊपर से उतर के बेड के नीचे खड़ी हो गयी और मेरी निक्कर सरका दी। फिर वो मेरा लंड मुँह में लेकर चूसने लगी।
‘अम्मम्म हम्ममह अम्मम अमम्म’ ऐसी आवाजें आने लगी।
आज छाया की मम्मी कुछ ज्यादा ही चुदने के मूड में थी, वो मेरे लंड को बहुत बुरी तरह चूस रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे वो मेरे लंड को खा जाएगी।
उधर मैं सोच रहा था कि छाया बेड के नीचे है. ये सब सुन के और देख के क्या सोच रही होगी। क्या वो नाराज होगी या उसकी चूत गीली हो जाएगी।
तभी मेरे मन में एक ख्याल आया, मैंने उठ कर गीता की कुर्ती और सलवार उतार दी।
अंदर उसने कुछ नहीं पहना था।
मैंने उसे लिटा दिया और उसकी आँखें कपड़े से बांध दिए और दोनों हाथ भी पलंग से बांध दिए।
फिर मैं नीचे उतरा और पलंग के नीचे से छाया को निकाला। उसका चेहरा गुस्से से लाल हुआ पड़ा था। मैं उसे वही खड़ा करके बेड पर जाने लगा तो उसने मुझे रोकना चाहा.
पर मैं नहीं रुका और अपने खड़े लंड को गीता की चूत पर रगड़ने लगा … वो भी छाया के सामने ही।
गीता की चूत बिल्कुल गीली थी। मैंने हल्का सा धक्का दिया तो मेरा पूरा लंड गीता की चूत में सरकता चला गया।
मेरा लंड गीता ही चूत में जाते ही गीता के मुँह से आअह निकल गयी।
गीता ने कहा- थोड़ा आराम से … तुम्हारा लंड छाया के पापा से बहुत मोटा है।
फिर क्या था … मैंने उसकी दोनों टांगें हाथ से पकड़ ली और उसे चोदने लगा।
हर धक्के के साथ गीता की ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ निकल रही थी।
गीता को चोदते चोदते करीब दस मिनट हो गए थे। मैंने गीता का एक पैर नीचे रखा और दूसरे को कंधे पे रख दिया और चोदने लगा। गीता मस्ती में तड़प रही थी और आनंद भी ले रही थी।
उसी वक़्त मैंने छाया, जो बेड के पास खड़ी होकर अपनी मम्मी को चुदती हुए देख रही थी। मैंने छाया को अपने पास खींचा और उसकी चूची मसलने लगा और फिर उसकी चूत सहलाने लगा।
छाया की चूत पहले से ही गीली थी। मेरी उंगली छाया की चूत के पानी से गीली हो गयी थी जो मैंने गीता के मुँह में डाल दी। गीता उसे बड़े मजे से चूसने लगी।
मैंने छाया का हाथ पकड़ा और उसी की चूत पर रख के सहलाने लगा।
फिर मैंने गीता के दोनों पैर कंधे पर रख लिए और तेज़ रफ़्तार में उसे चोदने लगा। छाया अब खुद अपने हाथ से अपनी चूत को सहला रही थी।
दस मिनट चोदने के बाद मैंने गीता के हाथ खोल दिए और उसे घोड़ी बना लिया और अपना लंड उसकी चूत में घुसा दिया। माँ और बेटी दोनों नंगी एक ही कमरे में थी. एक चुदवा चुकी थी और दूसरी चुदवा रही थी।
मैंने चोदने की रफ़्तार और तेज कर दी। गीता इस बीच एक बार झड़ चुकी थी।
15 मिनट गीता को घोड़ी बना के चोदने के बाद मैंने अपना लंड निकाल के गीता की गांड पर रख दिया। कुछ ही देर में मैंने अपना कामरस गीता की गांड पे छोड़ दिया। गीता वहीं उलटी ही लेट गयी थी।
मैंने गीता के ऊपर से उतर के अपना लंड छाया के मुँह में डाल दिया। पहले वो थोड़ा हिचकिचाई पर मैंने मौका देख के लंड को उसके मुँह में डाल ही दिया।
उसके बाद छाया फिर नीचे छुप गयी। फिर मैंने गीता के आँखों की पट्टी खोल दी। गीता उसके बाद कपड़े पहन के चली गयी।
गीता के जाने के बाद छाया ने भी कपड़े पहने और वो भी चली गयी।
तो दोस्तो, कैसी लगी आपको मेरी कहानी। मुझे मेल करें और कमेन्ट भी करें.
धन्यवाद
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