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एक ही बाग़ के फूल-1
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एक ही बाग़ के फूल-3
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मेरी नज़र अब आंटी की चूत पे गयी जहाँ उसके हल्के बाल दिखाई दे रहे थे, ऐसा लग रहा था कि कुछ दिन पहले ही उसने बाल साफ़ किये थे. तभी याद आया कुछ समय पहले उनकी शादी की सालगिरह थी. शायद उसी टाइम उन्होंने अपनी चूत साफ़ की होगी।
चोर की चोरी कभी न कभी तो पकड़ी जाती है. ऐसा ही मेरे साथ हुआ … मैंने भी ध्यान नहीं दिया कि सामने एक छोटा सा शीशा लगा हुआ है. उन्होंने अब अपना मुँह धो लिया था. तभी उनकी नज़र शीशे पर पड़ी जिसमें मेरे चेहरा थोड़ा सा दिखाई दे रहा था.
मैंने भी उसके देखते हुए देख लिया और जल्दी से जाकर उसके बेड पर बैठ गया। वो भी जल्दी से नहा कर आयी और मुझे घूर के देख रही थी उसके सिर्फ ऊपर शर्ट पहना हुआ था, नीचे लड़की की तरह तौलिया लपेटा हुआ था जो बहुत छोटा था घुटने के ऊपर तक!
या यों समझो कि शायद उन्होंने जानबूझ कर तौलिया ऊपर लपेटा हुआ था।
मैं जाने को तैयार हुआ तो उन्होंने मुझे रोका और कहा- कहाँ जा रहे हो? अभी बैठो, कुछ देख लो यहीं पर!
मैं उन्हें देखने लगा.
वो थोड़ा हंसी और कहा- अरे मुझे नहीं टी वी, अकेली हूँ मन नहीं लगेगा इसलिए कह रही हूँ थोड़ी देर और बैठ जाओ।
मैं बैठ गया पर लंड अभी नहीं बैठा था।
इतना हुआ ही था कि उन्होंने तौलिया अपनी कमर से अलग कर दिया और सलवार उठा ली। शर्ट घुटनों तक था इसलिए कुछ ज्यादा दिखाई नहीं दे रहा था पर पंखे की हवा से थोड़ा उड़ रहा था और बगल वाली जगह से थोड़ा नंगापन दिखाई दे रहा था, उन्होंने लाल रंग की कच्छी पहन रखी थी।
आंटी ने फिर सलवार पहन ली और मेरी तरफ मुड़ी. इतना सब और देखने के बाद मेरे लंड में और ज्यादा कसावट आ गयी जो मैंने अपने हाथों से छुपा रखा था।
वो सीधी मेरे पास आयी और बिना कुछ बोले मेरा हाथ हटा दिया और पूछा- अभी सूखा या नहीं?
पर उनकी किस्मत में शायद और कुछ देखना लिखा था। हाथ हटाते ही उसे मेरा उठा हुआ सख्त लंड दिखाई दे दिया। मैं बस चुपचाप शांत बैठा था कि आगे वो क्या करती हैं।
आंटी ने देर न करते हुए मेरे लंड को पकड़ लिया और कहा- अरे क्या है ये?
और थोड़ा थोड़ा दबा दबा कर देखने लगी।
मैं तो बस इंतज़ार कर रहा था कि कब वो मेरे लंड को बाहर निकालें. और कुछ ही देर में वही हुआ जैसा मैंने सोचा था। उन्होंने निक्कर पकड़ के थोड़ा नीचे सरका के लंड बाहर निकाल लिया। कुछ देर वो मेरे लंड को ऐसे ही देखती रह गयी फिर पूरी मुठी में पकड़ के एक दो बार ऊपर नीचे किया.
कुछ देर के लिए तो मेरी आँखें बंद हो गयी। उनका हाथ रुका और मेरी आँखें खुल गयी।
वो उठी और खिड़की-दरवाजे बंद किये और आकर घुटनों के बल जमीन पर बैठ गयी और मेरे लंड को सहलाने लगी। इस बीच मैं बस आंटी को देख रहा था कि वो क्या कर रही हैं।
इतने में उन्होंने कहा- बस देखने में ही मज़ा आता है या कुछ करने का भी मन है? पहले कहते तो दरवाजा खुला छोड़ देती।
इतना सुनते ही मैंने उन्हें उठा के बेड पर लिटा दिया और आंटी की चूची दबाने लगा और उन्हें चूमने लगा।
कुछ देर बाद जब मैं उसका शर्ट उतारने लगा तो उन्होंने मन कर दिया- आज नहीं, अभी ऊपर से ही कर लो।
मैं उन्हें चूमने लगा और चूसने लगा, दोनों हाथों से उनकी चूचियां दबाने लगा. कभी उनके निप्पल को अपनी उंगलियों से मसल देता।
कुछ देर बाद वो मेरे ऊपर आ गयी और मुझे चूमने लगी। दो बार होठों पे हल्की हल्की चुम्मियाँ ली और मेरा बदन सहलाते सहलाते मेरे लंड को चूमने लगी। फिर चूमते और चाटते हुए उसने मेरे लंड को अपने मुँह में ले लिया। पूरा नहीं … पर जितना वो ले सकती थी उतना ले लिया और चूसने लगी।
बाकि मैंने उनका सर पकड़ के अपने लंड को थोड़ा और उनके मुँह में घुसा दिया। दस मिनट उन्होंने आराम आराम से किया फिर मेरे लंड को बाहर निकाल लिया और जोर जोर से हिलाने लगी और मेरे बॉल्स को चाटने लगी।
फिर कुछ देर ऐसा करके उन्होंने फिर मेरे लंड को चूसना शुरू कर दिया और 10 मिनट बाद मैंने अपना सारा माल उनके मुँह में ही डाल दिया।
उन्होंने सारा माल मुँह में इकट्ठा किया और जल्दी से बाथरूम में गयी और थूक के आ गयी. थोड़ा सा वीर्य शायद अंदर भी चला गया था इसलिए जब वापस लौटी तब मुँह बना के आ रही थी।
मैंने अपना लंड उनकी चुन्नी से साफ़ किया और कपड़े सही किये। मैंने आंटी को अपने पास बैठाया और पूछा- पहली बार स्वाद लिया है क्या?
उन्होंने कहा- लंड तो चूसा है पर माल पहली बार मुँह में लिया है।
फिर मैंने पूछा- आज क्यों कुछ नहीं करने दिया?
तो उन्होंने कहा- मेरा महीना चालू हो गया है।
उसके बाद वो मेरे लिए बर्फी लायी और खिलाने लगी।
उसी शाम छाया मेरे घर आयी और मेरे कहने पर आज वो स्कर्ट और कल जैसे ही छोटी टी शर्ट पहन के आयी थी।
छाया आकर मेरे बगल में बैठ गयी। मैं कम्प्यूटर पर गेम खेल रहा था।
कुछ देर देखने के बाद उसने कहा- भइया, मुझे भी खेलना है।
मैं यही तो चाहता था कि वो बोले और मैं फिर उसे अपने गोद में बैठाऊं।
मैंने कहा- वहीं बैठी बैठी खेलेगी या यहां पर आएगी?
वो झट से आकर मेरे गोद में बैठ गयी।
मुझे मालूम था वो आकर मेरे गोद में ही बैठेगी इसलिए आज मैंने सिर्फ निक्कर ही पहनी थी। उसके बैठते ही मेरे लंड में सनसनी फ़ैल गयी और एक मिनट में खड़ा हो गया।
उसकी स्कर्ट भी बहुत पतली थी। देर न करते हुए मैंने उसके जांघो पे हाथ रख दिया और उसकी नंगी जाँघें सहलाने लगा। दूध जैसी गोरी और इतनी मुलायम की जहा दबा दो, वहां लाल हो
जाये।
कुछ देर बाद मैंने उसे पूछा- ऐसे ही सहलाता है न वो स्कूल वाला लड़का? या और कुछ भी करता है?
उसने कहा- हाँ ऐसे ही सहलाता है पर कभी कभी और ऊपर तक हाथ ले जाता है।
इतना सुनते ही मैं हाथ ऊपर तक ले आया। अब उसकी स्कर्ट उठ चुकी थी और मेरा हाथ उसकी छोटी से कच्छी के बिल्कुल पास था।
मैंने पूछा- ऐसे ही यहाँ तक?
उसने कहा- हाँ।
बस थोड़ी देर मैं उसे ऐसे ही सहलाता रहा। फिर उसके चूतड़ की गोलाइयों को थोड़ा पकड़ के उठने को बोला।
वो बिना सवाल किये थोड़ा उठ गयी।
उसके उठते ही मैंने अपना लंड थोड़ा उठा लिया और उसे बैठने को बोला। वो जैसे ही बैठने लगी मैंने उसकी स्कर्ट पकड़ ली और उसके बैठने के बाद छोड़ दी।
मतलब अब सिर्फ उसकी कच्छी और मेरा निक्कर बीच में आ रहे थे।
बैठते ही वो थोड़ा कसमसाई पर कुछ देर में एकदम शांत होकर गेम खेलने लगी।
अब मैं दुबारा उसकी जांघें सहलाने लगा। घुटनों से ऊपर से शुरू होता और कच्छी तक सहला रहा था। उसके कुछ न कहने पर मैंने अपना हाथ उसकी कच्छी के पास ले जाकर रोक दिया और वहीं सहलाने लगा।
धीरे से मैं अपना हाथ उसकी चूत पे ले गया। उस जवान कमसिन लड़की की बुर थोड़ी गीली और गर्म हो रही थी।
तभी उसने बोला- क्या कर रहे हो भइया?
मैंने कहा- कुछ नहीं!
और मैंने ही पूछ लिया- क्या यहाँ भी हाथ लगाता है वो लड़का?
उसने कहा- नहीं!
और वो गेम खेलने में मस्त हो गयी।
मैं उसकी चूत उसकी कच्छी के ऊपर से सहलाते सहलाते धीरे से उसकी कच्छी के नीचे से उंगली डाल के उंगली अंदर ले जाने की कोशिश करने लगा। कच्छी छोटी सी थी तो ज्यादा देर नहीं लगी और उसकी गर्म और गीली चूत पर मेरी उंगलियाँ पहुंच गयी और नीचे मेरे लंड को सांस लेना भारी पर रहा था।
दूसरे हाथ से अब मैं उसकी नंगी कमर और नंगे पेट को सहलाने लगा। धीरे धीरे मैं उसके पूरे पेट का जायजा ले चुका था, बीच बीच में उसकी नाभि में भी उंगलिया डाल देता था और नीचे उसकी चूत सहलाते सहलाते मेरी उंगलिया भी गीली हो गयी थी।
अब ऊपर मैंने अपना हाथ धीरे से और ऊपर बढ़ाया। उसका टॉप छोटा और ढीला होने से मेरा हाथ आसानी से अंदर पहुंच गया। उसने ब्रा नहीं पहनी थी। शायद रात को सोने वाले कपड़े पहने थे या मेरी आसानी के लिए … पता नहीं … पर मेरा काम तो आसान हो गया था।
अब उसकी नर्म नर्म छोटी चूचियां मेरे हाथ में थी और उसे मैं हल्के हल्के दबा रहा था।
मेरा लंड अब उल्टी करने वाला था। ऐसे समय में उत्तेजना कुछ ज्यादा ही हो जाती है। मेरी उंगलियाँ पूरी तरह से भीग चुकी थी.
और छाया ने भी गेम रोक दिया था, बस उसके हाथ कीबोर्ड पर थे और आँखें बंद थी. शायद उसने पहली बार इस अनुभव का आनंद लिया था। उसकी अनछुई जवानी भी बेताब हो रही थी की कब उसकी चूत से जवानी का रस निकले और इस चरम सीमा का आनंद ले सके।
अब छाया धीरे धीरे सिसकारी भी ले रही थी, उसका शरीर अकड़ने लगा था।
मैंने उसकी चूचियाँ हल्के हल्के तेज़ दबाना शुरू कर दिया था। उसके मुँह से आवाज नहीं निकल पा रही थी।
कुछ ही पल बाद धीरे से उसने कहा- भ भ भइया … मुझे बाथरूम जाना है।
मैंने धीरे से उसके कान में कहा- यहीं कर ले!
और उसके गले पे धीरे धीरे चूमने लगा।
जैसे ही वो झड़ने को हुई पहले थोड़ा आगे हुई फिर पीछे हुई और मेरी गोद में दबाव बना कर मेरे ऊपर जैसे लेट सी गयी। उसके ऐसा करने से मेरा लंड उसकी गांड की गोलाइयों के बीच में आ गया और उसकी चूत की गर्माहट मेरे लंड को और ज्यादा गर्म करने लगी।
वो अब झड़ रही थी। उसकी चूत से जो पानी निकल रहा था वो मेरी उंगलिया बहुत अच्छे से महसूस कर रही थी। उसकी कच्छी पूरी तरह से भीग चुकी थी और मेरे गोद में बैठने से और बीच में कुछ रुकावट न होने से उसके पानी से मेरा निक्कर भी थोड़ी गीली हो गयी था। इसका अहसास मुझे हो रहा था।
दबाव पड़ने से और उसकी चूत की गर्मी से वीर्य भी उसके साथ ही निकल गया और मैंने अपना हाथ उसकी कच्छी में से निकाल कर उसकी दोनों चूचियां दोनों हाथों से तेज़ दबा दी जिससे उसकी हल्की सी आह निकल गयी।
वो मेरे ऊपर ऐसे ही लेटी रही और मैं भी ऐसे ही उसके पेट को सहला रहा था।
कुछ देर ऐसे ही शांत रहने पर उसने पूछा- भइया ये क्या हुआ।
मैंने कहा- कुछ नहीं, तू अब बड़ी हो गयी है। तुझे ये सब सीखना जरूरी है।
फिर वो उठी और कहा- भैया मेरे सूसू करके आपकी निक्कर भी गीली हो गयी।
मैंने कहा- नहीं, ये सूसू नहीं है। बस अब तू घर जाकर नहा ले, कल बताऊंगा इन सब के बारे में।
मैं भी नहा कर जैसे ही ऊपर आया, वो भी नहा के पहले से ही खिड़की पे मेरा इंतज़ार कर रही थी। मुझे देखते ही उसने हाथ हिलाया और मुस्कुरा दी। शायद वो बहुत खुश थी. और हो भी क्यों न जिंदगी में यौन सुख का आरम्भ और आनंद किया था।
मैंने भी उसको देख के हाथ हिलाया और फ़ोन में सन्देश के माध्यम से पूछा- कैसा लग रहा है?
उसने कहा- पता नहीं … अजीब सा लग रहा है. पर मज़ा बहुत आया।
मैंने कहा- ठीक है, अब सो जा।
उसने मेरे से पूछा- दोबारा घर आ जाऊं? जो हुआ उसके बारे में बता देते।
मैंने कहा- नहीं, अभी सो जा … कल बताऊंगा।
फिर वो गुड नाईट बोल कर सोने चली गयी। मैं भी खाना खाकर सोने चला गया।
तो दोस्तो, आपको कैसी लगी अब तक की कहानी? छाया फिर से मेरे घर आयी या नहीं … और क्या हुआ उसके बाद? जानने के लिए अगले भाग का इंतज़ार कीजिये।
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