मेरा प्रथम समलैंगिक सेक्स- 5

डबल डिल्डो से सेक्स का मजा मुझे मेरी सहेली ने दिया. मैंने तो पहली बार ये चीज देखी थी तो मैं दरी हुई सी थी. लेकिन फिर मैंने इसका कैसे मजा लिया?

दोस्तो, मैं सारिका कंवल एक बार फिर से आपके सामने अपनी लेस्बियन सेक्स कहानी का भाग लेकर हाजिर हूँ.
पिछले भाग
मेरा प्रथम समलैंगिक सेक्स- 4
में अब तक आपने पढ़ा कि कविता ने मेरी योनि में अपनी कमर पर बंधा हुआ नकली लिंग आधे से अधिक ठूंस दिया था, जिससे मुझे अब चुदने की जल्दी होने लगी थी.

अब आगे :

अब कविता ने नियन्त्रित तरीके से मुझे धक्के देने ऐसे शुरू किए, जैसे वो कोई मर्द हो.
वो सच में इस क्रिया में माहिर थी. वो धीरे धीरे धक्के लगाने लगी और मुझे चोदने लगी.
उसके धक्के एकदम सटीक लग रहे थे. जितना लिंग अभी तक मेरी योनि में घुस चुका था, उससे अधिक लिंग को वो नहीं डाल रही थी.

अभी तक तो लिंग स्थिर था. इसलिए मैं सिर्फ़ ‘सीईईइ … सीईई … सीईईई.’ कर रही थी. मगर जैसे ही लिंग का अन्दर भीतर होना शुरू हुआ, मैं सिसक सिसक कर दर्द से ‘हाय हाय ..’ करने लगी.

मेरी ऐसी हालत देख कर कविता ने कहा- बस थोड़ी देर में तुम स्वर्ग में भ्रमण करने लगोगी.

उसने मेरे होंठों को फिर से दबोचा और मादक अन्दाज में दातों से काटती हुई बोली- बस मेरी जान … थोड़ी देर में मस्ती के सागर में गोते लगाओगी.

थोड़ी देर बाद कविता ने गति बढ़ा दी.

कुछ ही पलों में मैं उसकी कमर पकड़ सिसकारने लगी और टांगों को और ज्यादा खोल कर लिंग को जगह देने की कोशिश करने लगी.
भले लिंग में वो गर्माहट नहीं थी मगर कविता के धक्के और लिंग में लगी मोटर की कम्पन से मुझे बहुत आनन्द आने लगा.

कुछ और पलों के धक्कों के बाद मैं खुद कविता को अपनी तरफ खींचती हुई अपने पास को ले आयी और बारी-बारी उसके मांसल सुडौल स्तनों को मुँह में भर चूसने लगी.

पहली बार मुझे ये आभास हुआ कि आखिर क्यों मर्द हमारी स्तनों से खेलना और उन्हें चूसना पसन्द करते हैं.

मुझे इस तरह मतवाली होते देख कर कविता और भी अधिक जोश में आने लगी और पल पल उसकी गति तेज होती चली गयी.

अब वो हांफ़ने लगी थी और उसके माथे से पसीना टपक-टपक कर मेरे ऊपर गिरने लगा था.
मगर कविता की गति में कोई बदलाव नहीं आया था बल्कि उसकी गति में और अधिक तेज़ी आती जा रही थी.

इधर मैं भी गर्माहट से पसीने छोड़ने लगी थी. साथ ही मेरी योनि से लगातार पानी रिस-रिस कर योनि के इर्द-गिर्द का हिस्सा चिपचिपा करने लगा था.

मुझे साफ़ दिख रहा था कि कविता थक चुकी है … मगर उसमें जोश बहुत ज्यादा था, मानो उसने हार न मानने की जिद पकड़ ली हो.
इस तरह से धक्के तो शायद किसी मर्द ने भी मुझे नहीं मारे होंगे.

मैं भी अब अपने चूतड़ उठा-उठा कर उसका सहयोग करने लगी. मैं अब झड़ने के बिल्कुल नजदीक थी. मुझसे अपनी उत्तेजना को रोक पाना मुश्किल था.

करीब 15 मिनट से हम दोनों लगातार संघर्ष किए जा रही थीं और अब अपने भीतर उफ़ान मार रही ज्वाला को उगल देना चाह रही थीं.

मैं व्याकुलता से भर गयी और अचानक उसके स्तनों को एक हाथ से जोरों से दबाती हुई दूसरे हाथ से उसके बालों को खींचती बोली- और जोर से चोदो मुझे कविता … आह मजा आ रहा है अब.

मैंने ये कहते हुए उसका मुँह अपने मुँह से चिपका लिया और चूमने लगी.

मेरी उत्तेजना को समझती हुई कविता ने भी मुझे परस्पर चूमना शुरू किया और मुझे कंधों से पकड़ कर धक्कों की गति इतनी तेज कर दी कि मेरे सब्र का बांध टूट पड़ा. मैं सिसकती, कराहती मादक आवाजें निकालती हुई अपनी गांड उछालने लगी और फिर एक सुर में झड़ने लगी.

मैं कविता के चूतड़ों को अपनी ओर खींचती हुई थरथराने लगी और फिर अगले ही पल ‘ह्म्म्म्म … ह्म्म्म्म … ह्म्म्म्म … ह्म्म्म्म ..’ करती हुई शान्त भी होने लगी.

मेरी ऐसी स्थिति देखते हुए कविता ने भी धक्कों की गति धीमी करनी शुरू कर दी और जैसे जैसे मैं स्थिर होने लगी, वो भी रुक सी गयी. पर हमारे शरीर रुके थे … हम नहीं.
अभी भी कविता मुझे चूम रही थी और मैं उसका परस्पर साथ दे रही थी.

कभी हम होंठों से होंठ लगा एक दूसरे के होंठ चूसते, तो कभी जुबान, तो कभी जुबान को जुबान से लड़ाने लगते. कभी कविता मेरे गालों, गले और स्तनों में चुम्बन देने लगती.

कुछ देर तक हम दोनों यूं ही नाग नागिन की तरह एक दूसरे से लिपटे हुए आलिंगन करते रहे.

More Sexy Stories  पड़ोसन भाभी, उनकी सहेली और बेटी को चोदा-3

मुझे मेरे चूतड़ों के नीचे गीलेपन का आभास होने लगा था.
मैं समझ गयी थी कि इतनी देर में बिस्तर गीला तो होना ही था … और वो भी इस गर्मजोशी में कैसे न होता.

अब कुछ मिनट बीत चुके थे. मेरी योनि अब भी रिस रही थी. मगर कविता के मन में क्या था … मुझे वो उजागर नहीं होने दे रही थी.

पर अगले ही पल वो मेरे ऊपर से उठी और फिर उस थैली से दूसरा डिल्डो निकाल लिया.
ये कुछ अलग सा था. पतला था, मगर इसमे रेखाएं कुछ ज्यादा थीं. जाहिर है कि इस तरह के रेखाओं से हम औरतों को मजा अधिक आने वाला था.

पर ये दोमुंहा लंड था. दोनों छोर में लिंग के सुपारे के आकार बने थे.
कविता ने अपनी कमर से वो पट्टी खोल दी.

मेरी जिज्ञासा ने मुझे उसकी योनि छूने को लालायित कर दिया था.
मैंने तुरन्त अपना हाथ बढ़ाया और उसकी योनि को छुआ.
उसकी योनि भी बहुत गर्म और गीली थी. किनारों पर काफी चिपचिपी थी मानो वो भी इस क्रम में झड़ गयी हो.

मैंने झुक कर उसकी योनि को चूमना चाहा, पर उसने फिर रोक लिया. मेरे पूछने पर केवल वो मुस्कुराती रही.

फिर पहले से लगे डिल्डो को निकाल उसने दूसरा डिल्डो उसमें लगा दिया. पट्टी दोबारा पहनने से पहले उसने डिल्डो का एक हिस्सा अपनी योनि में घुसा लिया. मेरे बालों को सहलाती हुई मेरे होंठों को चूमती हुई वो बिस्तर पर चित लेट गयी.

कविता बोली- अब सवारी करने की तुम्हारी बारी है.

मैं दोबारा तो उत्तेजित हो ही गयी थी, सो मुझे जरा भी देरी नहीं हुई. मैं उसके ऊपर सवार होकर लिंग अपनी योनि में प्रवेश कराने लगी.

मेरी योनि से पानी अभी भी सूखा नहीं था और वो दोबारा से गीली होनी शुरू हो चुकी थी. इसलिए अपना वजन डालते ही लिंग बिना किसी परेशानी के मेरी योनि में सर्र से अन्त तक चला गया.
नकली लिंग का आधा हिस्सा मेरी योनि में था और आधा हिस्सा कविता की योनि में था.

मैं झुक कर उसके स्तनों को चूमते चूसते दबाते हुए हल्के हल्के से अपनी कमर आगे पीछे करती हुई सम्भोग करने लगी.

हम दोनों की आंखें नशीली हो गयी थीं और मदमस्त तरीके से हम एक दूसरे के अंगों को सहलाते दबाते हुए सम्भोग का आनन्द लेने लगे.

थोड़ी ही देर मैं अपनी गति बढ़ाने लगी और तेजी से धक्के मारने लगी. कभी वो मेरे स्तनों को दबाती, तो कभी मैं उसके स्तनों को. कभी वो मेरे स्तनों को चूसती, तो कभी मैं उसके. कभी हम एक दूसरे को चूमते, पर इन सब में धक्कों के सिलसिला लगातार चलता रहा और मैं पसीने से भर गयी.

इससे पहले कविता का पसीना मेरे ऊपर टपक रहा था, अब मेरा पसीना कविता के ऊपर टपक रहा था.
पसीने में भीग कर कविता के बाल उसे और भी कामुक दिखा रहे थे, शायद उस वक्त यही हाल मेरा भी होगा.

लिंग का आधा हिस्सा मेरी योनि में था और आधा हिस्सा कविता की में था.
इस वजह से हम दोनों को सुख की प्राप्ति हो रही थी.

मुझे कविता का तो पता नहीं, पर मैं अब तक कई बार झड़ चुकी थी.

हम दोनों में मस्ती इतनी चढ़ गयी थी कि दोनों ही एक दूसरी को धक्के दे रही थी.
और धक्कों के अन्तराल में कई बार कविता मुझे पकड़ कर कांपने लगती और थरथराने लगती.
फिर मुझे पकड़ कर अपनी योनि को मेरी तरफ़ ऐसे चिपका लेती, मानो मुझे अपने भीतर समा लेना चाहती हो.

समय का तो कभी हमने ध्यान ही नहीं दिया. करीब एक बजे तक हम ऐसे ही एक दूसरे को चरमसुख देने के प्रयास करते रहे.

मैं खुद को अब सन्तुस्ट और थकी हुई महसूस करने लगी थी, पर मैं कविता का साथ देती रही.
उसे मैंने जरा भी अपने थके होने का एहसास नहीं होने दिया.

आखिरकार करीब और आधे घन्टे तक मेरे बदन से खेलने के बाद कविता ढीली पड़ने लगी.
अब हल्के हल्के से उसने मुझे खुद से अलग कर दिया.

उसने अपनी कमर से पट्टी उतार दी और चित लेट अपनी टांगें फ़ैलाए हुए मुझसे बोली- अब तुम मेरी चुत चाटो.

मेरी उत्तेजना पहले के मुकाबले काफी कम हो चुकी थी. अब उसकी योनि को चाटने की मेरी इच्छा नहीं हो रही थी.

कविता को इस बात का सन्देह हो चला था, फिर भी उसने मेरे बालों को हल्के हाथों से पकड़ा और मेरा मुँह अपनी योनि के पास ले गयी.
मुझे योनि चाटने का कोई अनुभव नहीं था, पर अब मुझे ये करना ही था.

उसकी योनि उसके रस से सराबोर थी, किनारों से लेकर जांघों तक रस फ़ैला था और पसीने की गंध भी आ रही थी.
अब जो भी था, मैंने सोचा कि सब तो कर लिया … अब ये भी करके देख लेती हूँ.

More Sexy Stories  भाभी की भतीजी से वासना भरा प्यार और चुदाई

मैंने उसकी जांघें पकड़ीं और अपनी जुबान निकाल कर सीधे उसकी योनि में नीचे से ऊपर तक फिरा दी.

उसकी योनि का चिपचिपा पानी मेरी जुबान पर लटक सा गया. फिर भी मैंने करीब एक सुर में 10-12 बार उसकी योनि में जुबान को नीचे से ऊपर तक ऐसे चलाया मानो मैं कोई आइसक्रीम चाट रही हूँ.

बड़ा अजीब सा स्वाद था, हल्का नमकीन और कसैला सा … शायद उत्तेजना में ये नहीं महसूस होता है, पर अभी लग रहा था.

कविता ने मुझसे कहा- चुत को फ़ैला कर मेरी दाने को चाटो.

उसके कहे अनुसार मैंने दोनों हाथों से उसकी कोमल योनि को फ़ैला दी.

सच कहूँ तो समझ नहीं आ रहा था कि उसने अपनी योनि इस तरह कैसे बनायी रखी थी. बहुत सुन्दर, कोमल और भग किसी कुंवारी लड़की की तरह थी.
भीतर गुदा गुलाबी और मक्खन की तरह चिकनी थी चुत के ऊपर का दाना उत्तेजना के कारण एकदम ऐसे कठोर हो चुका था मानो एक छोटा सा लिंग हो.

ये सब देख कर मेरे भीतर वासना की ज्वाला फिर से जागृत होने लगी और मैं अब बड़े चाव से उसकी योनि चाटने लगी.

मुझे चुत चाटने का कोई अनुभव तो था नहीं … पर जैसा मर्दों ने मेरी चाटी थी, उसी प्रकार से मैंने भी प्रयास शुरू कर दिया.

कविता को मेरा चाटना बहुत पसन्द आया और वो नागिन की भांति अपना बदन मरोड़ने लगी. कुछ ही पलों में वो पागलों की तरह सिसकारी भरने लगी और थोड़ी देर में ही झड़ गयी.

पर मैंने उसकी योनि को चाटना जारी रखा और साथ में अब अपनी हाथ की दो उंगलियों से मैथुन भी शुरू कर दिया.
दूसरी बार में ही उसने अपनी टांगों से मेरे गर्दन को जकड़ लिया और ऐसे ही पूरी ताकत से अपने बदन को लहराती रही.

चार बार झड़ने के बाद उसने मुझे पकड़ कर अपने ऊपर खींचा और फिर से हम एक दूसरे की बांहों में बांहें डाल कर चूमना शुरू कर दिया.

समय काफ़ी हो चुका था और अगली सुबह जल्दी उठना भी था. पर कविता का दिल अभी भरा नहीं था शायद.
वो मुझे फिर से उकसाने लगी.

हम अगल बगल लेट गए और एक दूसरे को चूमते हुए एक दूसरे की योनि में उंगली डाल कर मैथुन करने लगे.

स्थिति इतनी उत्तेजक हो गयी कि अब हम एक दूसरे की योनि को उंगलियों को मैथुन करने के साथ, एक दूसरे के योनिरस का स्वाद भी लेने लगे.

कभी मैं उसकी योनि से हाथ हटा उसके मुँह में हाथ डाल देती … और वो मेरे हाथ को चूसने के साथ मेरे होंठों को चूसती, तो कभी मेरी योनि को मथने लगती.

इसी तरह खेलते खेलते पता नहीं हम कब एक दूसरी से लिपटी हुए सो गयी, पता ही नहीं चला.

सुबह मैं जल्दी उठ गयी. मेरा मन बहुत हल्का और खुशहाल लग रहा था. जीवन में पहली बार इतना अधिक चुम्बन मैंने किया होगा … वो भी एक औरत के साथ. मैंने कविता को उठाया नहीं … और जब तक मैं नहा धोकर तैयार हुई, कविता भी उठ गयी.

मेरे सामने अभी भी वो नंगी खड़ी थी और बहुत कामुक और आकर्षक दिख रही थी.

उस एक रात ने मेरी सोच बदल कर रख दी थी.
अब मुझे समलैंगिक रिश्तों में भी कोई बुरायी नहीं दिख रही थी.

जी में आ रहा था कि फिर से कविता को अपनी बांहों में भर कर जीभर के उसके रसीले होंठों को चूम लूं. उसके सुडौल स्तनों को दबाऊं, उसके मांसल चूतड़ों से खेलूं … पर समय अब उसके जाने के हो गया था.

कविता मेरे पास आयी और मेरे होंठों को चूम कर नहाने चली गयी.

मैंने उसके जाने की सारी तैयारी कर दी थी.
दोपहर में उसे जाना था.

मैंने उसे खाना खिलाया और फिर कुछ मिनट तक हमने एक दूसरे को जी भर के चूमा. फिर मैंने कविता को विदा कर दिया.

आज मुझे एक अलग तरह का अनुभव हुआ था. ये शरीर भोग करने के लिए ही बना है. चाहे इसका भोग स्त्री करे या मर्द … क्या फ़र्क पड़ता हैं. उद्देश्य तो केवल तन और मन की शांति का है.

उसके जाने के बाद मुझे दुख हो रहा था कि अब फिर से अकेले रहूँगी … पर मुझे एक तरह की ख़ुशी भी थी.

आशा करती हूँ मेरा ये नया अनुभव आपको पसन्द आया होगा. इस लेस्बियन सेक्स कहानी के लिए आप अपने सुझाव मुझे जरूर भेजिए.
धन्यवाद.
सारिका कंवल.

[email protected]