दोस्त की बुआ के घर में तीन चूत-3

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आरती बुआ और उसकी ननद दिव्या नंगी होकर लेस्बीयन सेक्स कर रही थी, दिव्या अपनी भाभी की चूत में उंगली करते हुए अपने लिए लंड की ख्वाहिश जाहिर कर रही थी।

‘ये जो राज आया हुआ है…’
‘हाँ… तो..’
‘आपने गौर किया… कितना बड़ा लंड है उसका?’

‘अरे… तुमने कब देख लिया उसका लंड…’
‘देखा नहीं है भाभी… जब वो बाथरूम से नहा कर बाहर आया था तो उसके लोअर में तम्बू बना हुआ था बस उसी से अंदाजा लगाया किबहुत लम्बा और मोटा लंड होगा उसके लोअर के अन्दर…’

‘हाँ… देखा तो मैंने भी है… पर तेरा इरादा क्या है?’
‘इरादा अभी तक तो नेक ही है… सोच रही हूँ की अपनी भाभी की जलती सुलगती चूत को राज के लंड से ठण्डा करवा दूँ… मेरी भी रोज रोज की मेहनत कम हो जायेगी…’
‘कमीनी… मैं सब समझती हूँ… तू किसकी चूत को ठंडा करवाना चाहती है…’
‘तो इसमें बुरा क्या है भाभी… ऐसे तड़प तड़प के जीना भी कोई जीना है?’

‘दिव्या वो मेरे भतीजे का दोस्त है… वो क्या सोचेगा हमारे बारे में…’
‘अरे भाभीजान… मर्द है वो… और जहाँ तक मुझे पता है सारे मर्द चूत के गुलाम होते हैं… चूत देखते ही सब भूल जाते हैं।’

‘अच्छा… तेरी चूत में अगर इतनी ही आग लगी है तो तू अपनी चूत चुदवा ले… मैं ये सब नहीं कर सकती!’
‘पर भाभी मैंने आज तक लंड नहीं लिया है… पहली बार लेने में डर लग रहा है… अगर तुम मदद करोगी तो मैं भी जन्नत के मजे ले लूँगी।’
‘ना बाबा ना… मुझे तो डर भी लगता है और शर्म भी आती है ये सब सोचते हुए भी…’

‘अच्छा जी… अपनी ननद से चूत चटवा कर, चूत में उंगली करवा के मज़ा लेती हो तब तो शर्म नहीं आती?’
‘मेरी बन्नो… लगता है तेरी चूत का दाना कुछ ज्यादा ही फुदक रहा है जो राज के लंड को खाने के लिए तड़प रही है?’
‘भाभी… सच में जब से राज के लोअर में खड़े लंड का अहसास हुआ है, तब से चूत पानी पानी हो रही है।’

‘चल अब बातें छोड़ और मेरी चूत का पानी निकाल… कल सुबह कोशिश करना राज को पटाने की… अगर वो मान गया तो चूत चुदवा लेना… मुझे कोई ऐतराज नहीं!’
‘मेरी अच्छी भाभी…’ कहकर नंगी दिव्या नंगी आरती से लिपट गई और फिर वो दोनों अधूरा काम पूरा करने में व्यस्त हो गई।

मैं भी चुपचाप अपने कमरे में आया और एक बार जोरदार मुठ मारी और फिर सुबह का इंतज़ार करते हुए सो गया।

अगले दिन सुबह आरती ने मुझे उठाया, आँख खुली तो वो मेरे सामने खड़ी थी चाय का कप लेकर…
आरती को देखते ही रात का नजारा एक दम से आखों के सामने घूम गया, मन में तो आया कि पकड़ कर अभी चोद दूँ पर जब आग उधर भी लगी थी तो मैंने पहल करना सही नहीं समझा।

आरती नहा कर तैयार होकर आई थी, बढ़िया सा परफ्यूम लगाया हुआ था, बदन महक रहा था आरती का… मुझे खुद पर काबू करना मुश्किल हो रहा था।

आरती चाय मेरे हाथ में पकड़ा कर जाने लगी तो मैंने तारीफ़ करते हुए बोल ही दिया– आरती क्या बात है… आज तो सुबह सुबह ही तैयार हो गई?
‘नहीं ऐसी कोई बात नहीं है… मैं तो हर रोज सुबह सुबह ही तैयार हो जाती हूँ।’

‘वैसे एक बात कहूँ… बहुत खूबसूरत लग रही हो!’
आरती ने कोई जवाब नहीं दिया बस एक स्माइल दे कर वो कमरे से बाहर चली गई।

घड़ी देखी तो दस बजने वाले थे, क्लाइंट ने ग्यारह बजे का समय दिया था, मैं जल्दी से उठा और तौलिया लेकर बाथरूम की तरफ भागा।
जैसे ही बाथरूम के पास पहुँचा, तभी दिव्या बाथरूम से बाहर निकली, मुझे देख कर उसने एक सेक्सी सी स्माइल दी और चली गई।

नहाने के बाद याद आया कि मैं आज भी अंडरवियर कमरे में ही भूल गया था पर अब शर्माने की जरूरत नहीं थी बल्कि आरती और दिव्या को कुछ दिखाने की जरुरत थी।
मैंने बनियान पहनी और तौलिया लपेट कर ही बाथरूम से बाहर आ गया।

दिव्या रसोई में थी और आरती बाथरूम के सामने बनी एक अलमारी में से कुछ सामान निकाल रही थी।
जैसे ही मैं बाथरूम से बाहर आया, दरवाजे की आवाज सुनकर आरती का ध्यान मेरी तरफ हुआ, तभी मैंने जानबूझ कर अपने हाथ में पकड़े हुए कपड़े नीचे गिरा दिए।

आरती मेरे पास आकर मेरे कपड़े उठाने लगी। उसी समय मैं भी कपड़े उठाने के लिए नीचे बैठा।
यही वो क्षण था जब मेरे तौलिये ने मेरे बदन का साथ छोड़ दिया, मेरा साढ़े सात इंच का लम्बा और लगभग तीन इंच का मोटा लंड एकदम से आरती के सामने सलामी देने लगा।

मैं जल्दी से उठा तो तौलिया नीचे गिर गया, लंड अब बिलकुल आरती के मुँह के सामने था।
मैंने सॉरी बोलते हुए जल्दी से तौलिया उठाया और भाग कर कमरे में चला गया।

मैंने अपना काम कर दिया था, अब जो भी होना था वो आरती या दिव्या की तरफ से होना था।

कमरे में जाकर मैं तैयार हुआ, तभी दिव्या कमरे में आई और मुझे नाश्ते के लिए बुलाने लगी।
बाहर आया तो मैंने देखा आरती और दिव्या टेबल पर बैठे मेरा ही इंतज़ार कर रहे थे।

मैं सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया और चुपचाप नाश्ता करने लगा। आरती मुझे ही घूरे जा रही थी जबकि दिव्या बिना इधर उधर देखे नाश्ता कर रही थी।

नाश्ता करने के बाद दिव्या बर्तन उठा कर रसोई में चली गई।
मैंने मौका देखा और आरती को देखते हुए बोला– आरती… जो कुछ भी हुआ मैं उसके लिए शर्मिंदा हूँ… तभी मैं होटल में रुकने को बोल रहा था। अगर तुम बुरा ना मानो तो मैं आज किसी होटल में चला जाता हूँ।
‘अरे राज… तुम इतना परेशान क्यूँ हो रहे हो… हो जाता है ऐसा कभी कभी… और हाँ… कहीं जाने की जरूरत नहीं है… जब तक आगरा में हो, तब तक तुम हमारे साथ ही रहोगे… समझे…’ बोलकर आरती ने एक कातिलाना स्माइल दी।

मैं तो खुद भी यही चाहता था, मैंने अपना लैपटॉप उठाया और फिर घर से निकल गया।

क्लाइंट से मिलने के बाद मैं लगभग एक बजे फ्री हो गया। वैसे तो मुझे एक दो और क्लाइंट्स से मिलना था पर चूत के रसिया को अब चूत नजर आने लगी थी तो सोचा कि अब बाकी काम शाम को करेंगे।

मैंने गाड़ी उठाई और वापिस घर की तरफ चल पड़ा।
रास्ते में से मैंने कुछ खाने पीने का सामान लिया और दस मिनट के बाद ही मैं आरती के घर के सामने था, दरवाजे पर पहुँच कर डोर-बेल बजाई।

दरवाजा आरती ने खोला, अभी तक वो सुबह की तरह ही महक रही थी- अरे राज आज तो बड़ी जल्दी आ गए?
‘वो क्लाइंट ने शाम को मिलने का समय दिया है तो सोचा कि घर ही चल पड़ता हूँ… कहाँ शाम तक भटकता फिरूँगा।’
‘यह तुमने बहुत अच्छा किया… मैं भी अकेली बोर हो रही थी… खाना खाओगे?’

‘नहीं आरती… वो जिस क्लाइंट के पास गया था उसने बहुत कुछ खिला दिया… खाना खाने का बिल्कुल भी मन नहीं है।’
‘ओके जैसी तुम्हारी मर्जी… भूख लगे तो बता देना..’

‘दिव्या… कहाँ है?’
‘वो अपने कॉलेज गई है… चार बजे तक आएगी।’ बोलकर आरती रसोई में चली गई।

मैं कुछ देर तो वहीं बैठा रहा फिर उठकर कमरे में चला गया, जाकर मैंने अपने कपड़े बदले और एक टी-शर्ट और लोअर डाल कर वापिस बाहर आकर बैठ गया।
तभी आरती ट्रे में दो गिलास जूस के लेकर आ गई।

जब उसने मेरे सामने झुक कर मुझे गिलास पकड़ाया तो मन किया कि अभी आरती के चूचे पकड़ लूँ।
‘आरती एक बात पूछूँ?’
‘अरे.. पूछो ना..’
‘सुबह वाली बात का तुम्हें बुरा तो नहीं लगा?’
‘नहीं यार… तुमने कौन सा जानबूझ कर कुछ किया था… फिर तुम तो घर के ही हो…’

थोड़ी देर चुप रही पर मैंने महसूस किया कि मेरे सुबह वाली बात शुरू करने से आरती थोड़ा अलग रंग में आने लगी थी।
‘सच कहूँ मुझे तो बहुत शर्म आई जब देखा कि मैं तुम्हारे सामने बिल्कुल नंगा खड़ा हूँ…’

फिर भी आरती कुछ नहीं बोली पर उसकी आँखें उसके मन का राज खोल रही थी जिनमे मुझे थोड़ा थोड़ा वासना के डोरे नजर आने लगे थे।

‘आरती… तुमने तो मुझे बिल्कुल नंगा देख लिया…’ मैंने आरती की आँखों में झांकते हुए कहा।
‘राज… प्लीज कुछ और बात करो ना…’
‘और क्या बात करूं आरती… झूठ नहीं बोलूँगा… जब से मैं आगरा आया हूँ तुम्हारी खूबसूरती का दीवाना सा हो गया हूँ!’
आरती चुप रही।

‘सच कहता हूँ आरती… अगर तुम मेरे दोस्त की बुआ ना होती तो मैं कब का तुम्हें अपनी दोस्ती का ऑफर कर चुका होता।’
‘रहने दो रहने दो… अब इतना भी मत चढ़ाओ मुझे… मुझे जमीन पर ही रहने दो!’

‘आरती… एक बात पूछूँ?’
‘हाँ पूछो..’
‘आपके पति आपसे इतने इतने दिन दूर रहते हैं… दिल लग जाता है तुम्हारा?’ मैंने आरती की दुखती रग को छेड़ा।

आरती मेरी बात सुनकर कुछ चुप सी हो गई, उसके चेहरे के भाव उसके दिल का हाल बयाँ कर रहे थे।
वैसे तो मैं उसके दिल का हाल रात को ही जान गया था।

मैं उठा और आरती के पास जाकर बैठ गया, मेरे बैठते ही आरती उठ कर जाने लगी तो मैंने बिना अंजाम की परवाह किये आरती का हाथ पकड़ लिया।
आरती अपना हाथ छुड़वाने की कोशिश करने लगी तो मैंने थोड़ा जोर लगा कर आरती को अपनी तरफ खींचा तो वो कटे पेड़ की तरह मेरे ऊपर गिर गई।

मैंने उसको सँभालते हुए उसकी कमर में हाथ डाला तो आरती के मुलायम और गुदाज बदन के एहसास ने मेरे दिल में हलचल पैदा कर दी।
आरती ने उठने की कोशिश की तो मैंने उसको कसके पकड़ लिया, उसकी बड़ी बड़ी चूचियाँ मेरी छाती पर धंसी जा रही रही थी, उसकी साँसें तेज हो गई थी और दिल की धड़कन स्पष्ट सुनी जा सकती थी।

कुछ देर ऐसे ही पकड़े रहने के बाद मैंने जब पकड़ थोड़ी ढीली की तो वो एकदम से मेरी बाहों में से निकल कर अपने कमरे में भाग गई।
चिंगारी मैंने सुलगा दी थी बस अब आग भड़कने की देर थी।

मैं करीब दो मिनट बाद उठा और आरती के कमरे के पास पहुँच गया, मैंने दरवाजा धकेला तो दरवाजा अन्दर से बंद था, मैंने दरवाजा खटकाया तो आरती ने कोई जवाब नहीं दिया।
मैंने दो तीन बार और जब दरवाजा खटकाया तो आरती ने दरवाजा खोला, दरवाजा खुलने पर जब मैं कमरे में जाने लगा तो आरती ने मुझे रोक दिया- राज… जो तुम चाहते हो, वो नहीं हो सकता… प्लीज मत करो ये सब…

‘आरती… मुझे पता है कि तुम्हें मेरी जरूरत है…’ फिर मैंने उसको रात वाली सारी बात बता दी।
मेरी बात सुनकर वो सुन्न रह गई, वो भौंचक्की सी मेरी तरफ देखने लगी, यही वो पल थे जब मैंने आरती को अपनी बाहों में ले लिया और अपने होंठ उसके होंठों से मिला दिए।

मेरी पकड़ से छूटने की आरती ने एक नाकाम सी कोशिश की और फिर उसने समर्पण कर दिया और मेरी बाहों में समा गई। मेरी तो जैसे मुराद ही पूरी हो गई थी।
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मैं आरती को चूमते चूमते उसे बेड तक ले गया और फिर हल्का सा धक्का देकर आरती को बेड पर लेटा दिया। आरती के लेटते ही मैं भी आरती पर छा गया, आरती ने भी अपनी बाहें फैलाकर मेरा स्वागत किया, मेरे दोनों हाथ आरती की मस्त तनी हुई चूचियों का मर्दन करने लगे और होंठ कभी आरती के होंठ, कभी गाल, कभी कान की लटकन तो कभी सुराहीदार गर्दन पर घूम रहे थे।

आरती की आँखें बंद थी और मुँह से मादक सिसकारियां निकलने लगी थी।

मैंने आरती के कपड़े उतारने शुरू किये तो उसने मुझे रोकने की कोशिश की पर इतना हो जाने के बाद भी कोई रुक सकता है क्या…
फिर मैं तो ठहरा चूत का रसिया… अगले ही कुछ पलों में वो सिर्फ पैंटी में थी।

आरती का नंगा बदन देख कर लंड फड़क उठा था मेरा। मैंने भी बिना देर किये अपने सारे कपड़े उतारे और आरती के सर के पास जाकर लंड को आरती के गालों से स्पर्श किया।

लंड की गर्मी महसूस होते ही आरती ने आँखें खोली और जब उसकी नजर मेरे लंड पर पड़ी तो उसने झट से लंड को अपने कोमल कोमल हाथों में पकड़ लिया- ‘राज… क्या खिलाते हो अपने इस हथियार को… मस्त पहलवान लग रहा है?

‘मेरी जान… ये तो तुम्हारे खूबसूरत जिस्म को देख कर ख़ुशी से फ़ूला हुआ है…’
‘सच में बहुत बड़ा है… मेरे पति के लंड से भी बड़ा…’
‘अब से यह तुम्हारा है आरती!’

मेरा ऐसा कहते ही आरती ने बिल्कुल भी देर नहीं की और झट से लंड को मुँह में भर लिया, लंड को लोलीपॉप बना कर चूसने लगी। आरती इतना मस्त चूस रही थी कि मेरी सिसकारियां निकलने लगी थी।

मेरा हाथ अब आरती की पैंटी में घुस कर आरती की चूत का जायजा ले रहा था।

क्लीन शेव चूत पर हाथ लगते ही लंड और जोश में आ गया, मैंने बिल्कुल भी देर नहीं की और आरती की पैंटी भी उसके बदन से अलग कर दी।
गुलाबी चूत को देखते ही मेरे मुँह से लार टपकने लगी और मैंने लंड को आरती के मुँह से निकाले बिना ही अपने होंठ आरती की चूत पर रख दिए।

आरती की चूत पानी पानी हो रही थी, मेरी जीभ के स्पर्श से आरती उछल पड़ी और उसने अपनी टाँगें खोल दी।
टांगें खुलते ही चूत पूरी खुल कर मेरे सामने आ गई और मैं जीभ को अन्दर घुसा घुसा कर आरती की रसीली चूत चाटने लगा।

कुछ देर बाद आरती की चूत ने और पानी छोड़ दिया, मैंने आरती के मुँह से अपना लंड निकाला और उसकी टांगों के बीच जाकर लंड चूत पर टिका दिया, आरती ने भी गांड उठा कर मेरे लंड का स्वागत किया, मैंने दबाव बनाना शुरू किया तो लंड अन्दर घुसता चला गया।

आखिर खेली खाई चूत थी आरती की… जब करीब तीन इंच लंड घुस गया तो मैंने लंड को बाहर खींचा और एक जोरदार धक्के के साथ पूरा लंड आरती की चूत में उतार दिया।
‘आह्ह्ह… मरररर… गई…’ आरती चिल्लाई- आराम से करो मेरे राजा… जान ही निकाल लोगे क्या अपनी आरती बुआ की?

मैंने कोई जवाब नहीं दिया और लम्बे लम्बे शॉट लगा कर आरती की चूत चोदने लगा। कमरे में आरती की सिसकारियां गूंज रही थी- आह्ह… ओह्ह… उईईईई… उम्म्म्म.. चोदो… चोदो मेरे राजा… आह्ह्ह… बहुत मज़ा आ रहा है… निकाल दो सारी गर्मी इस निगोड़ी चूत की… उम्म्म्म… बहुत मस्त चोदते हो राजा… मज़ा आ गया!

आरती की बातें मुझे जोश दिला रही थी और मैं भी अपनी गांड का जोर लगाकर उसकी चूत का भोसड़ा बनाने में जुटा हुआ था- हाय.. आरती क्या गर्म चूत है तुम्हारी… मज़ा आ गया…
‘हाँ… हाँ… चोदो मुझे… निकाल दो सारी गर्मी मेरी चूत की… निगोड़ी ने मुझे बेवफ़ा बना दिया…’

मैंने आरती के होंठों पर अपने होंठ रखे और धकाधक आरती की चूत में लंड पेलता रहा।

पाँच मिनट की चुदाई के बाद मैंने आरती को घोड़ी बनाया और पीछे से लंड उसकी चूत में पेल दिया। बेड पर जैसे भूचाल आ गया था।
ना जाने कितनी देर मैंने आरती की चुदाई की। आरती तीन बार झड़ चुकी थी और बुरी तरह से थक गई थी।

अब मेरा लंड भी अपना लावा उगलने को तैयार था, मैंने आरती से पूछा कि कहाँ निकालूँ तो उसने चूत में ही निकालने को कहा।
बस फिर क्या था, मैंने राजधानी की स्पीड से चुदाई शुरू कर दी और एक मिनट के बाद ही गर्म गर्म वीर्य की पिचकारियाँ आरती की चूत में छूटने लगी।

मैं लंड को अन्दर डाले डाले ही आरती के ऊपर लेटा रहा, दोनों की गर्मी शांत हो चुकी थी।
कुछ देर बाद लंड सिकुड़ कर बाहर निकला तो मैं आरती के ऊपर से उठा। आरती ने सीधे होकर पास पड़े एक रुमाल से मेरा लंड और अपनी चूत साफ़ की और फिर खड़े होकर मेरे सीने से लग गई और फिर होंठो से होंठ चिपक गए हम दोनों के।

आरती ने अपने कपड़े पहने और रसोई में चली गई।
तभी मेरे भी क्लाइंट का फ़ोन आ गया और मैं भी तैयार होने के लिए कमरे में चला गया।

तैयार होकर आया तो आरती मेरे लिए दूध गर्म करके लाई थी। मैं जाकर सोफे पर बैठा तो आरती आकर मेरी गोद में बैठ गई और मुझे अपने हाथ से दूध पिलाने लगी- राज… आज मैंने पहली बार अपने पति से बेवफाई की है… पर तुम जैसे मर्द से चुद कर मुझे इस बात का बिलकुल भी बुरा नहीं लग रहा है… तुमने आज सच में मुझे जन्नत दिखाई है… तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद…
कहकर आरती ने एक बार फिर अपने होंठ मेरे होंठों से मिला दिए।

‘आरती मैंने भी आज तक तुम्हारे जैसी मस्त औरत नहीं देखी है… धन्यवाद तो मुझे तुम्हारा करना चाहिए!’ मैंने थोड़ा मक्खन लगाते हुए कहा।
आप सब तो जानते ही हो कितना कमीना हूँ मैं।

आरती चुद चुकी थी, अब मेरी नजर दिव्या की चूत पर थी।

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