चलती बस में छोटी बहन का बुर चोदन

मेरा नाम रविन्द्र है। मैंने अन्तर्वासना की सभी कहानी पढ़ी हैं और अपनी कहानी कहने की हिम्मत कर रहा हूँ।

मेरी एक छोटी बहन है नाम है संयोगिता… बहुत सुन्दर है, मोटी गोल मटोल, उसके ब्रैस्ट 38″ है और चूतड़ 42″ जब वो चलती है तो उसकी गांड बड़ी मस्त लगती है।

वो मुझे बहुत प्यार करती है, हम दोनों भाई बहनों में बड़ा प्यार है। वो मुझसे 4 साल छोटी है। लेकिन कुछ दिनों से उसका नजरिया थोड़ा अलग दिखाई दे रहा था।

वो खेलते हुए मुझे छू लेती और गले लगते हुए अपने शरीर को मुझसे दबा लेती, अपनी बुर का दवाब मेरे लंड पर बढ़ा देती। मुझे भी मजा आता।
जब वो झाड़ू लगाती तो जानबूझकर मेरे सामने झुकती जिस से उसके गोल गोल मस्त चुचे दिखाई देते और मेरा लंड खड़ा हो जाता।
एक दिन हमें मामा के घर जाना था, ट्रेन में बड़ी भीड़ थी, वो मुझसे अपनी गांड लगा कर खड़ी हो गई।
मेरा लंड तन गया, मेरा मन अपनी छोटी बहन की बुर मारने के लिए करने लगा। पर मैंने कण्ट्रोल करते हुए अपनी बहन के लिए बैठने की थोड़ी जगह बनाई और बैठने के लिए बोला।

वो थोड़ी जगह में बैठ गई, मैं पास में खड़ा था जिसे मेरा लंड उसके मुँह के सामने था जो पैंट में तम्बू बना चुका था, ट्रेन चलने के समय थोड़ा हिचकोला लगता तो मेरा लंड मेरी बहन के गाल से टकराता, मैं अपने को हिलने से बचाने की कोशिश कर रहा था लेकिन मेरी छोटी बहन कुछ ज्यादा ही हिल रही थी और अपने गालों पर मेरे लंड का आनन्द ले रही थी।

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कुछ देर में मैं भी इस खेल में शामिल हो गया। कुछ देर बाद जब संयोगिता ने मेरे लंड पर अपना गाल लगाया तो मुझे मजा आ गया।
फिर हमारा स्टेशन आ गया और हमें बस में आगे जाना था। हम बस में चढ़े, बस खचाखच भर गई, हम बाजु वाली सीट पर बैठे जिधर दो सीट होती है। तभी एक प्रेग्नेंट औरत आई, बस में सीट खाली नही थी, मैं उठकर उसे सीट देने लगा, उससे पहले ही मेरी छोटी बहन ने सीट छोड़ दी और उसे बैठने को कहा और मुझसे बोली- भैया, मैं आपकी गोदी बैठ जाऊँ?

मैं तो जैसे तयार था, मैंने हाँ कह दी। वो खुश होकर मेरी गोदी बैठ गई पर बैठने से पहले उसने अपनी स्कर्ट ऊपर को उठा के बैठी। जिससे उसकी बुर और मेरे लंड के बीच केवल पैंटी थी वो भी छोटी सी!

अब बस चल पड़ी और मेरे हाथ मेरी छोटी बहन की जांघों पर थे। अँधेरा होने लगा था और बस के हिचकोलों से हमारा बुरा हाल था। मेरी बहन ने अपनी पैंटी साइड में कर ली थी।
पर हम शर्म से बोल नहीं रहे थे। अंधेरे का फायदा उठा कर मैंने अपना लंड पैंट से निकाल लिया। अब बुर और लंड आपस में बात कर रहे थे लंड बुर को चूम रहा था। मेरी बहन आगे पीछे होकर मजा ले रही थी, बुर को लंड पर रगड़ रही थी।

अब दोनों को हाल बुरा था, लन्ड बुर के मुँह पर तैयार था घुसने के लिए पर मन में पाप का अहसास था।
शायद इतना होने के बाद भी छोटी बहन भी संकुचा रही थी।

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तभी एक बड़ा गड्ढे में बस का पहिया होकर गुजरा, संयोगिता ने उछाल लिया, बुर नंगी थी लंड निशाने पर था और लंड कुंवारी बुर को चीरता हुआ जड़ तक अंदर घुस गया।

एक बार को संयोगिता की चीख निकल गई ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ पर किसी का ध्यान नहीं गया, एक तो अंधेरा, ऊपर से कई आदमी चिल्लाये थे गड्ढे की वजह से!
अब बस के हिचकोले के साथ लंड बुर में अंदर बाहर हो रहा था।

कुछ देर बाद संयोगिता कुछ ज्यादा ही उछलने लगी, मैं भी मस्ती में था आधा घंटे तक खूब चुदाई चली फिर दोनों झड़ गए।
संयोगिता सो गई।

एक घंटे बाद हमारा घर आया। संयोगिता से चला नहीं जा रहा था।
मैंने अपनी बहन की सील तोड़ दी थी लेकिन वो खुश थी।

आगे अगली कहानी में लिखूंगा। तब तक विदा
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