भाई बहन की सेक्सी स्टोरी मेरे छोटे भाई की है जिसे मैंने अपनी वासना के लिए सेक्स करना सिखाया. वो भी मेरी चूत मारना चाहता था पर डरता था मुझसे!
यहाँ कहानी सुनें.
दोस्तो, मैं आप सबकी चुदक्कड़ बहन आशना एक बार फिर से भाई बहन की चुदाई की कहानी में स्वागत करती हूँ.
भाई बहन की सेक्सी स्टोरी के पहले भाग
बहन ने छोटे भाई की मुठ मार कर मजा दिया
में अब तक आपने पढ़ा था कि अब अफ़रोज़ ने मुझसे रात की बात की और उसने बताया कि उसे मेरे हाथ से अपने लंड की मुठ मरवाने में बहुत मजा आया था.
तो मैंने उससे पूछा कि वो सब सोच कर दुबारा तो नहीं हुआ था.
इस पर उसने कहा कि आप नहीं थीं तो लंड खड़ा ही नहीं हुआ और वो वैसे ही अपना पकड़ कर सो गया था.
मैं उसकी बात सुनकर हंस पड़ी और बोली कि तो मुझे फिर से बुला लेता.
मेरी इस बात को सुनकर अफ़रोज़ हैरान हो गया और मेरी तरफ देखने लगा.
अब आगे भाई बहन की सेक्सी स्टोरी :
अफ़रोज़- तो फिर आपा … आज रात का प्रोग्राम पक्का?
मैं- चल हट … केवल अपने बारे में ही सोचता है, ये नहीं पूछता कि मेरी हालत कैसी है. मुझे तो किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है. चल मैं आज नहीं आती तेरे पास!
अफ़रोज़- अरे आपा आप तो नाराज़ हो गईं. आप जैसा कहेंगी, मैं वैसा ही करूंगा. मुझे तो कुछ भी पता नहीं है, अब आप ही को मुझे सब सिखाना होगा.
मैंने ओके कह दिया.
तब तक उसका स्कूल आ गया था.
मैंने स्कूटर रोका और वह उतरने के बाद मुझे देखने लगा.
लेकिन मैं उस पर नज़र डाले बग़ैर आगे चल दी. स्कूटर के शीशे में देखा कि वह मायूस सा स्कूल में जा रहा था.
मैं मन ही मन बहुत ख़ुश हुई कि चलो मैंने अपने दिल की बात का इशारा तो उसे दे ही दिया.
दोपहर को मैं अपने कॉलेज से जल्दी ही वापस आ गयी थी.
अफ़रोज़ 2 बजे वापस आया तो मुझे घर पर देखकर हैरान रह गया.
मुझे लेटा देखकर बोला- आपा आपकी तबीयत तो ठीक है न?
मैं- ठीक ही समझो, तुम बताओ कुछ होमवर्क मिला है क्या?
अफ़रोज़- आपा, कल संडे है … वैसे कल रात का काफ़ी होमवर्क बाकी बचा हुआ है.
मैंने हंसी दबाते हुए कहा- क्यों पूरा तो करवा दिया था. वैसे भी तुमको यह सब ज्यादा नहीं करना चाहिए. सेहत पर असर पड़ता है, इससे तो अच्छा है कि कोई लड़की पटा लो. आजकल की लड़कियां भी इस काम में काफ़ी इंटरेस्टेड रहती हैं.
अफ़रोज़- आपा आप तो ऐसे कह रही हैं … जैसे लड़कियां मेरे लिए सलवार नीचे और कमीज़ ऊपर किए तैयार हैं कि आओ पेंट खोलकर मेरी ले लो.
मैं- नहीं यार, ऐसी बात नहीं है. लड़की पटानी आनी चाहिए.
फिर मैं उठकर नाश्ता बनाने लगी.
मैं मन में सोच रही थी कि कैसे इस कुंवारे लंड को लड़की पटाकर चोदना सिखाऊं.
नाश्ता बनाने के बाद मैंने उसे टेबल पर सजा दिया, अफ़रोज़ को आवाज दी और वो मेरे साथ नाश्ता करने लगा.
मैंने नाश्ते के दौरान ही उससे पूछा- अच्छा यह बता तेरी किसी लड़की से दोस्ती है?
अफ़रोज़- हां आपा … अपनी फूफी की बेटी नफ़ीसा से.
मैं- कहां तक?
अफ़रोज़- बस बातें करते हैं और स्कूल में साथ ही बैठते हैं.
मैंने सीधी बात करने के लिए कहा- कभी उसकी लेने का मन करता है!
अफ़रोज़- आपा आप कैसी बात करती हैं!
वह शर्मा गया था तो मैं बोली- इसमें शर्माने की क्या बात है. मुठ तो तो रोज़ ही मारता है. ख़्यालों में कभी नफ़ीसा की ली है या नहीं … सच सच बताना.
अफ़रोज़- लेकिन आपा ख़्यालों में लेने से क्या होता है?
मैंने कहा- तो इसका मतलब है कि तू उसकी असल में लेना चाहता है.
अफ़रोज़- उससे ज़्यादा तो और एक लड़की है … जिसकी मैं लेना चाहता हूँ. वो मुझे बहुत ही अच्छी लगती है.
मैं- जिसकी कल रात मैंने ख़्यालों में ली थी?
उसने सर हिलाकर हां कर दिया.
पर मेरे बार-बार पूछने पर भी उसने नाम नहीं बताया. इतना ज़रूर कहा कि उसकी चुदाई कर लेने के बाद ही उसका नाम सबसे पहले मुझे बताएगा.
मैंने भी ज़्यादा नहीं पूछा क्योंकि मेरी चुत फिर से गीली होने लगी थी.
मैं चाहती थी कि इससे पहले कि मेरी चुत लंड के लिए बेचैन हो … वह ख़ुद मेरी चुत में अपना लंड डालने के लिए गिड़गिड़ाए.
और मैं चाहती थी कि वह लंड हाथ में लेकर मेरी मिन्नत करे कि आपा बस एक बार चोदने दो.
मगर मेरा दिमाग़ ठीक से काम नहीं कर रहा था कि किस तरह से अफ़रोज़ को अपने साथ सैट करूं.
अब तक नाश्ता खत्म हो गया था.
मैं उठ गई और अफ़रोज़ से बोली- अच्छा चल … कपड़े बदल कर आ जा … मैं भी बदल लेती हूँ.
वह अपनी यूनिफार्म चेंज करने गया और मैंने भी प्लान के मुताबिक़ अपनी सलवार कमीज़ उतार दी. फिर ब्रा और पैंटी भी उतार दी क्योंकि पटाने के मदमस्त मौकों पर ये सब कपड़े दिक्कत करते हैं.
अपना देसी पेटीकोट और ढीला ब्लाउज ही ऐसे मौक़े पर सही रहते हैं. जब बिस्तर पर लेटो, तो पेटीकोट अपने आप आसानी से घुटनों तक आ जाता है और थोड़ी कोशिश से ही और ऊपर आ जाता है.
जहां तक ब्लाउज का सवाल है, तो थोड़ा सा झुको, तू सारा माल छलक कर बाहर आ जाता है. बस यही सोचकर मैंने पेटीकोट और ब्लाउज पहना था.
वह सिर्फ़ पजामा और बनियान पहनकर आ गया.
उसका गोरा-चिट्टा चिकना बदन मदमस्त करने वाला लग रहा था.
एकाएक मुझे एक आईडिया आया. मैं बोली- अफ़रोज़, मेरी कमर में थोड़ा दर्द हो रहा है … ज़रा बाम लगा दे.
उसके साथ बेड पर लेटने का यह परफ़ेक्ट बहाना था.
मैं बिस्तर पर पेट के बल लेट गयी. मैंने पेटीकोट थोड़ा ढीला बांधा था इसलिए लेटते ही वह नीचे को खिसक गया और मेरे चूतड़ों के बीच की दरार दिखाई देने लगी.
लेटते ही मैंने हाथ भी ऊपर कर लिए … जिससे ब्लाउज भी ऊपर को हो गया. उसे मालिश करने के लिए ज़्यादा जगह मिल गयी.
वह मेरे पास बैठकर मेरी कमर पर बाम लगाकर धीरे धीरे मालिश करने लगा.
उसका स्पर्श बड़ा ही सेक्सी था. मेरे पूरे बदन में मस्त सिहरन सी दौड़ गयी.
थोड़ी देर बाद मैंने करवट लेकर अफ़रोज़ की ओर मुँह कर लिया और उसकी जांघ पर हाथ रखकर ठीक से बैठने को कहा.
करवट लेने से मेरी चूचियां ब्लाउज के ऊपर से आधी से ज़्यादा बाहर निकल आई थीं.
उसकी जांघ पर हाथ रखे रखे ही मैंने पहले की बात आगे बढ़ाई- तुझे पता है कि लड़की को कैसे पटाया जाता है?
अफ़रोज़- अरे आपा, अभी तो मैं छोटा हूँ. ये सब आप बताएंगी, तब तो मालूम होगा मुझे.
बाम लगाने के दौरान मेरा ब्लाउज ऊपर को खिंच गया था, जिसकी वजह से मेरी गोलाइयां नीचे से भी झांक रही थीं.
मैंने देखा कि वह एकटक मेरी चूचियों को घूर रहा है. उसके कहने के अंदाज़ से भी मालूम हो गया था कि वह इस सिलसिले में और ज़्यादा बात करना चाह रहा है.
मैं- अरे यार, लड़की पटाने के लिए पहले ऊपर ऊपर से हाथ फेरना पड़ता है. ये मालूम करने के लिए कि वह बुरा तो नहीं मानेगी.
अफ़रोज़- पर कैसे आपा!
उसने पूछा और अपने पैर ऊपर को कर लिए.
मैंने भी थोड़ा सा खिसक कर उसके लिए जगह बनाई और कहा- देख जब लड़की से हाथ मिलाओ, तो उसको ज़्यादा देर तक पकड़ कर रखो, देखो कब तक नहीं छुड़ाती है … और जब पीछे से उसकी आंख बंद करके पूछो कि मैं कौन हूँ … तो अपना केला धीरे से उसके पीछे लगा दो. जब कान मैं कुछ बोलो, तो अपना गाल उसके गाल पर रगड़ दो. वो अगर इन सब बातों का बुरा नहीं मानती है … तो ही आगे की सोचो.
अफ़रोज़ बड़े ध्यान से ये सब सुन रहा था.
वह बोला- आपा नफ़ीसा तो मेरी इन सब बातों का कोई बुरा नहीं मानती जबकि मैंने कभी ये सोचकर नहीं किया था. कभी कभी तो मैं उसकी कमर में हाथ डाल देता हूँ, पर तब भी वह कुछ नहीं कहती है.
मैं- तब तो यार … छोकरी तैयार है और अब तू उसके साथ दूसरा खेल शुरू कर!
अफ़रोज़- कौन सा आपा?
मैं- बातों वाला. यानि कभी उसके संतरों की तारीफ़ करके देख, क्या कहती है … अगर मुस्कराकर बुरा मानती है, तो समझ ले कि पटाने में ज़्यादा देर नहीं लगेगी.
अफ़रोज़- पर आपा, उसके तू बहुत छोटे-छोटे संतरे हैं … तारीफ़ के काबिल तो आपके हैं.
अफ़रोज़ इतना बोला और उसने शर्माकर अपना मुँह छिपा लिया.
मुझे तो इसी घड़ी का इंतजार था.
मैंने उसका चेहरा पकड़कर अपनी ओर करते हुए कहा- साले मैं तुझे लड़की पटाना सिखा रही हूँ और तू मुझ पर ही नज़रें जमाए हुए है!
अफ़रोज़- नहीं आपा … सच मैं आपकी चूचियां बहुत प्यारी हैं. वो करने का बहुत दिल करता है.
ये कह कर उसने मेरी कमर में एक हाथ डाल दिया.
मैं- अरे वो क्या करने को दिल करता है ये तो बता?
मैंने इठलाकर पूछा, तो वो बोला- आपा इनको सहलाने का और इनका रस पीने का.
इसका मतलब साफ़ था कि उसके हौसले बुलंद हो चुके थे और उसे यक़ीन था कि अब मैं उसकी बात का बुरा नहीं मनूंगी.
मैं- तो कल रात बोलता. तेरी मुठ मारते हुए इनको तेरे मुँह में लगा देती. मेरा कुछ घिस तो नहीं जाता. चल आज जब तेरी मुठ मारूंगी … तो उस वक़्त अपनी मुराद पूरी कर लेना.
इतना कह मैंने उसके पजामा में हाथ डालकर उसका लंड पकड़ लिया जो पूरी तरह से टनटना रहा था.
मैं- अरे ये तो अभी से तैयार है!
तभी वह आगे को झुका और उसने अपना चेहरा मेरे सीने में छिपा लिया.
मैंने उसको बांहों में भरकर अपने क़रीब लिटा लिया और कसके दबा लिया. ऐसा करने से मेरी चुत उसके लंड पर दबने लगी.
उसने भी मेरी गर्दन में हाथ डाल कर मुझे अपने सीने से दबा लिया. तभी मुझे लगा कि वो ब्लाउज के ऊपर से ही मेरी चूची को चूस रहा है.
मैंने उसके कान में कहा- अरे ये क्या कर रहा है … मेरा ब्लाउज ख़राब हो जाएगा.
उसने झट से मेरा ब्लाउज ऊपर किया और एक निप्पल को मुँह में लेकर चूसना शुरू कर दिया.
मैं उसकी हिम्मत की दाद दिए बग़ैर नहीं रह सकी.
वह मेरे साथ पूरी तरह से आज़ाद हो गया था. अब यह मेरे ऊपर था कि मैं उसको कितनी आज़ादी देती हूँ.
अगर मैं उसे आगे कुछ करने देती, तो इसका मतलब था कि मैं चुदवाने के लिए ज़्यादा बेकरार हूँ … और अगर उसे मना करती तो उसका मूड ख़राब हो जाता और शायद फिर वह मुझसे बात भी ना करता.
इसलिए मैंने बीच का रास्ता लिया और बनावटी ग़ुस्से से बोली- अरे ये क्या … तू तो ज़बरदस्ती करने लगा. तुझे शर्म नहीं आती.
अफ़रोज़- ओह आपा, आपने तो कहा था कि मेरा ब्लाउज मत ख़राब करो. रस पीने को तो मना नहीं किया था ना … इसलिए मैंने ब्लाउज को ऊपर उठा दिया.
मैंने देखा कि उसकी नज़र अभी भी मेरी चूची पर ही थी जो कि ब्लाउज से बाहर थी.
वह अपने को और नहीं रोक सका और फिर से मेरी चूची को मुँह में लेकर चूसने लगा. मुझे भी मज़ा आ रहा था और मेरी प्यास बढ़ रही थी.
कुछ देर बाद मैंने ज़बरदस्ती उसका मुँह चूची से हटाया और दूसरी चूची की तरफ़ लाते हुए बोली- अबे साले ये दो होती हैं … और दोनों में बराबर का मज़ा होता है.
उसने मेरे दूसरे मम्मे को भी ब्लाउज से बाहर किया और उसका निप्पल मुँह में लेकर चुभलाने लगा.
साथ ही वो अपने एक हाथ से मेरी पहली चूची को सहलाने मसलने लगा.
कुछ देर बाद मेरा मन उसके गुलाबी होंठों को चूमने को करने लगा तो मैंने उससे कहा- कभी किसी को किस किया है?
अफ़रोज़- नहीं आपा … पर सुना है कि इसमें बहुत मज़ा आता है.
मैं- बिल्कुल ठीक सुना है पर किस ठीक से करना आना चाहिए.
अफ़रोज़- कैसे?
उसने पूछा और मेरी चूची से मुँह हटा लिया.
अब मेरी दोनों चूचियां ब्लाउज से आज़ाद खुली हवा में तनी थीं लेकिन मैंने उन्हें छिपाया नहीं बल्कि अपना मुँह उसके मुँह के पास ले जाकर अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए.
फिर धीरे से अपने होंठों से उसके होंठ खोलकर उन्हें प्यार से चूसने लगी.
क़रीब दो मिनट तक मैं उसके होंठ चूसती रही फिर बोली- ऐसे!
वह बहुत उत्तेजित हो गया था.
इससे पहले कि मैं उससे कुछ बोलूं, वह भी एक बार किस करने की प्रेक्टिस कर ले, वह ख़ुद ही बोला- आपा मैं भी करूं आपको एक बार?
मैंने मुस्कराते हुए कहा- हां कर ले.
हम दोनों भाई बहन इस वक्त सेक्स की मस्ती में एक दूसरे को गर्म कर रहे थे.
अभी तक चुदाई होने की बात खुली नहीं थी. लेकिन मेरा मन तो बन चुका था कि आज अपने भाई से चुत चुदवानी ही है.
अगले भाग में आपको भाई बहन की सेक्सी स्टोरी का पूरा मजा मिलेगा.
आपके कमेंट्स की प्रतीक्षा में आपकी रंडी बहन आशना.
भाई बहन की सेक्सी स्टोरी का अगला भाग: छोटा भाई मेरी चुत का चोदू बना- 3