छोटी बहन ने मस्तराम कहानी पढ़ते पकड़ लिया-1

हाय फ्रेन्ड्स! कैसे हो? दोस्तो, आप सभी लोगों का मैं तहे दिल से शुक्रगुजार हूं कि आप मेरी कहानी पढ़ते हो और आनंदित होते हो। मेरी पिछली लिखी कहानी
बहू के साथ शारीरिक सम्बन्ध
के लिये आप लोगों ने मुझे बहुत ही प्यारे मेल किये, जिसके लिये मैं आप सभी को धन्यवाद करता हूं।

आज जिस कहानी को मैं आपके सामने लाया हूं, यह केवल एक कहानी ही है. इस कहानी का वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं है। एक बार फिर मैं आपसे प्रार्थना करता हूं कि इसे एक कहानी की ही तरह पढ़ें।

अब मैं कहानी शुरू करता हूं.
मेरी उम्र उस समय कम ही होगी। तभी एक ऐसी घटना घटी कि हमारी जिंदगी उलट-पुलट हो गयी। बीमारी के चलते पिताजी की नौकरी लगभग खत्म हो गयी थी और दादा के पेंशन के थोड़े पैसे से ही हमारे घर का खर्चा बड़ी मुश्किल से चल पाता था।

घर के हालात का पता चलने के बाद मेरे मामा आये और पता नहीं घर में सबके बीच में क्या बातें हुईं कि मेरे मामा मुझे अपने साथ ले गये। मेरी पढ़ाई लिखाई, सब वहीं उनके घर में होने लगी। शुरू-शुरू में मुझे काफी तकलीफ हुई क्योंकि एकदम से अपना घर छोड़कर दूसरे घर में रहना मुश्किल लगा लेकिन फिर आहिस्ता-आहिस्ता सब सामान्य होता जा रहा था.

बस एक बात जो उनके घर में छ: साल बीतने के बाद भी संभव नहीं हो पाई थी, वो मेरे और मेरी ममेरी बहन शुभ्रा के बीच के संबंध की मधुरता थी. वो किसी न किसी बहाने मुझसे लड़ती ही रहती थी।

हलाँकि मेरे मामा और मामी बहुत अच्छे थे और शुभ्रा की बातों में आकर मुझे डाँटते नहीं थे, शायद इसी बात से वो और ज्यादा चिढ़ती थी। मैं भी उन्नीस साल का हो गया था और वो भी अठारह पार कर चुकी थी। वो मुझसे कुछ महीने छोटी थी.

कहते हैं कि उम्र के इस पड़ाव में आने के बाद अक्सर भाई-बहन एक-दूसरे के राज़दार हो जाते हैं।

हम दोनों कुछ दिन पहले तक दिनभर एक-दूसरे से लड़ते और झगड़ते रहते थे, किंतु अब हम साथ बैठकर बातें करते थे, पढ़ाई करते थे और कभी-कभी पढ़ते-पढ़ते रात को साथ सो भी जाते थे।

अब ये दोस्ती हुई कैसे? ये भी जान लें.

मेरी छोटी बहन शुभ्रा को सजना संवरना अच्छा लगता था और मुझे छिप-छिप कर दोस्तों द्वारा दी गई मस्त राम की कहानियां पढ़ने में बड़ा मजा आता था। कहानी इतनी ज्यादा उत्तेजित होती थी कि हाथ कब लंड पर चला जाये पता ही नहीं चलता था और चैन तब तक नहीं आता था जब तक लंड को दबा-दबा कर उसका माल न निकाल लूं.

उस पर लड़कियों की नंगी तस्वीरों वाली छोटी मैगजीन भी साथ में देखने को मिल जाती थी।

बस एक दिन ऐसा ही हो गया. मैं किताब के बीच छिपाकर मस्तराम की कहानी पढ़ रहा था और पढ़ने में इतना मग्न था कि कब मेरी छोटी बहन मेरे पीछे आकर खड़ी हो गयी मुझे पता ही नहीं चला। पता तब चला, जब एक तेज थपकी मेरी पीठ पर पड़ी.

अपने सामने शुभ्रा को देखकर मैं तो थर-थर काँपने लगा। इस बीच शुभ्रा ने मुझसे वो किताबें छीन लीं और उलट पलट कर देखने के बाद बोली- तो महाराज ये सब पढ़ते हैं … और मम्मी-पापा समझ रहें है कि उनका भान्जा बहुत पढ़ाकू है। अब मैं जाकर उनको तुम्हारी हरकत दिखाकर बताती हूं कि वो दोनों क्या सोचते हैं और तुम क्या हो?

इतना कहकर वो दरवाजे की तरफ बढ़ी ही थी कि मैंने उसकी जांघ को पीछे से पकड़ लिया और बोला- शुभ्रा सॉरी, यार सॉरी, अब मैं नहीं पढ़ूंगा। पर इस बात के बारे में मामा-मामी से न कहना।

वो बोली- क्यों न कहूं मैं? मुझे इसमें क्या फायदा है?
मैं हताश होते हुए बोला- तुम जो कुछ भी कहोगी, मैं सब कुछ करूँगा।
मुझे उठाते हुए वो बोली- चल देखते हैं, तू कर पायेगा कि नहीं।

मैं- बोलो, मैं सब कुछ करने के लिए तैयार हूं।
शुभ्रा- ठीक है सोचती हूं कि तुझसे क्या काम करवाना है, लेकिन पहले मैं देखूँ तो, तू देख क्या रहा था?

कहते हुए वो पलंग के सिरहाने पर बैठ गयी और कहानी की किताब का एक-एक पेज पलट कर देखने लगी. मैं आश्चर्य से शुभ्रा को देख रहा था, लेकिन उसके चेहरे पर कोई हाव भाव नजर नहीं आ रहे थे जबकि मेरे लिये वो कहानी इतनी उत्तेजित करने वाली थी कि अगर शुभ्रा मुझे नहीं टोकती तो दो पल बाद मेरा लंड पानी छोड़ ही चुका था।

कहानी की किताब देखने के बाद शुभ्रा नंगी लड़कियों वाली मैगजीन देखने लगी।
फिर मुझे हड़काकर बोली- चल यहाँ (उसके बगल में) आकर बैठ.
मैं बैठ गया. मुझे वो मैगजीन दिखाते हुए बोली- तू ये सब गंदी किताबें कब से पढ़ रहा है?

मैं- बहुत दिन हो गये.
मैंने सीधा जवाब देने में ही अपनी भलाई समझी.

मुझ पर अपनी नजर गड़ाते हुए बोली- पागल है तू? जो मैगजीन में लड़कियों को नंगी देख रहा है और बुर-चूत की कहानी पढ़कर मुठ मार रहा है? जबकि तेरे ऊपर तो कितनी ही लड़कियां पागल हैं. एक बार इशारा कर, तेरे लिये वो खुद तेरे सामने नंगी होने के लिये तैयार हैं।

मैं उसे देखता ही रह गया लेकिन कुछ बोला नहीं। फिर कुछ देर तक वो अपनी नजर मुझ पर गड़ाये रही. मुझे उसका इस तरह से मुझे घूर कर देखना बड़ा ही अजीब सा लग रहा था.

मैंने कहा- क्या हुआ?
मेरी छोटी बहन बोली- तू पापा की बोतल से शराब भी चुरा कर पीता है ना?
उसकी ये बात सुन कर मेरी तो और गांड फट गयी. मतलब बन्दी मेरे बारे में सब जानती है!

दोस्तो, जब कभी भी चिकन या मटन बनता था तो मैं मामा की बोतल से एक पैग निकाल लेता था और सबकी नज़र बचाकर जल्दी से खाना खाने से पहले पी लेता था।
मैं शुभ्रा की तरफ देखता ही रहा. फिर भी मैंने कहा- नहीं, तुझे गलतफहमी हो रही है.

वो बोली- देख तू मुझसे तो झूठ मत ही बोल, मुझे सब पता है। अब सुन, तुझे मेरा एक काम करना है।
मैं- हाँ-हाँ बोलो, मैं सब कुछ करने को तैयार हूं।

शुभ्रा- आज जब तू अपने लिये पैग निकाले ना तो मेरे लिये भी निकाल लेना।
मैं हैरानी से- तुम भी??
वो बोली- ज्यादा उछल मत, जो कहती हूं वो कर। नहीं तो मैं पापा से कह दूंगी.

कहकर मुझे वो किताब दिखाने लगी। फिर अगले ही पल मेरे गाल को प्यार से सहलाते हुए बोली- डर मत, अब हम दोस्त हैं अगर तू मेरा कहा मानेगा, तो मजे में रहेगा।

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मैं अब कर भी क्या सकता था, क्योंकि वो किताब भी साथ में लेकर चली गयी थी।

मामा के कुछ दोस्तों के लिये पार्टी रखी थी इसलिये आज घर में मटन बना था और मुझे पीना ही था.

वैसे तो मैं एक पैग में मैनेज कर लेता था, मगर आज शुभ्रा ने भी डिमांड रख दी, सो शुभ्रा के जाने के बाद मैंने अपनी पॉकेट चेक की तो पाया कि एक क्वार्टर के लिये पैसे हैं। मैं चुपचाप बहाना बनाकर घर से निकला और एक क्वार्टर खरीद कर ले आया।

मामा अपने दोस्तों के साथ बिजी थे, इसलिये उनकी तरफ से कोई दिक्कत होने वाली नहीं थी. लेकिन मामी के सामने पीना काफी रिस्की हो सकता था। मामा के दोस्त खाना खाकर चले गये और मामा भी खाना खाने के बाद रूटीन के तहत टहलने के लिये चले गये।

इधर मामी अभी भी रसोई में थी.
तभी शुभ्रा धीरे से बोली- भोसड़ी के! जो कहा था वो किया कि नहीं?
मैंने हाथ से इशारा करके बताया इंतजाम हो गया है और शीशी भी दिखा दी।

शीशी देखकर शुभ्रा बोली- मैं मम्मी के सामने कैसे लूंगी?

मैंने प्लान बताते हुए उसे स्टील का गिलास लाने को बोला.

शुभ्रा जल्दी से गिलास ले आयी और मैंने जल्दी-जल्दी अपने लिये और शुभ्रा के लिये पैग बना लिया और हम दोनों ने एक ही सांस में अपने अपने गिलास खाली कर दिये.

मेरे कहने पर खाली गिलास वापस रसोई में रख दिये उसने। उसके बाद मामी और शुभ्रा ने खाना सर्व कर दिया. फिर हम तीनों खाना खाने लगे.

प्लान के अनुसार मैं खाना खाने के बीच में उठा और रसोई में जाकर पैग बनाया और पीकर खाली गिलास लेकर चला आया.

मैं अपनी कुर्सी पर बैठा ही था कि शुभ्रा मुझ पर चिल्लाते हुए बोली- अपने लिये पानी ला सकता था तो मेरे लिये क्यों नहीं?
मामी बीच में ही बोल उठी- क्यों चिल्ला रही हो? मैं जाकर तेरे लिये पानी ला देती हूं.

बस फिर क्या था, शुभ्रा मामी से बोली- नहीं मम्मी, आप बैठो, मैं ले लेती हूं.
कहकर वो मुझे घूरते हुए रसोई में चली गयी, इधर मामी बड़बड़ाते हुए बोली- ये लड़की नहीं सुधरेगी।

शुभ्रा गिलास लिये हुए वापिस आकर खाना खाने लगी और हल्के से अपना हाथ उसने मेरी जांघ पर फेर दिया. हम लोगों का खाना खत्म होते होते मामा भी बाहर से आ गये और सीधा अपने कमरे में चले गये।

सब कुछ समेटने के बाद मामी भी कमरे की तरफ जाते हुए बोली- देखो अब चुपचाप जाकर अपनी पढ़ाई कर लो, आपस में लड़ना मत, हम लोग मामी की बात सुनकर अपने-अपने कमरे में चले गये।

करीब आधे घंटे के बाद जब मामा-मामी के कमरे की लाईट बन्द हो गयी तो शुभ्रा मेरे कमरे में आ गयी और बोली- आओ तुम्हें एक नजारा दिखाती हूं.
कहकर उसने मेरा हाथ पकड़ा और मामा के कमरे की तरफ मुझे लेकर चल दी और झरोखे से झांककर अन्दर का नजारा देखने लगी और फिर मुझसे इशारा करके देखने के लिये बोली।

अन्दर का सीन देखकर मेरी आँखें फटी की फटी रह गयीं. जीरो वॉट के लाल बल्ब की रौशनी में मामा और मामी अन्दर एक दूसरे के जिस्म से चिपके हुए थे और दोनों पूर्ण नंगे थे। मामी मेरे मामा के ऊपर लेटी हुई थी और मामा मेरी मामी की गांड को भींच रहे थे।

मैं उन दोनों की इस पोजीशन को देखकर मस्त हो रहा था और इधर मेरा लंड भी मस्त होकर लोवर के अन्दर तनने लगा था. तभी शुभ्रा ने मुझे पीछे खींचा और खुद झरोखे से चिपक गयी और मैं शुभ्रा से चिपकते हुए अन्दर की तरफ झांकने की कोशिश करने लगा.

मेरा तना हुआ लंड शुभ्रा की गांड से टच करने लगा. एक-दो बार मैंने अपने आपको पीछे भी किया लेकिन अंदर का सीन देखने का जुनून सवार जो सवार हुआ था उसने मुझे बाकी सभी ख्यालात से बाहर कर दिया.

मैं शुभ्रा से चिपक गया और उचक-उचक कर देखने के चक्कर में लंड उसकी गांड से बार-बार टकरा रहा था. यह उत्तेजना सिर्फ मुझे ही नहीं हो रही थी. शुभ्रा भी उसी नाव में सवार थी. अगर मैं उसकी गांड पर लंड रगड़ने में थोड़ा सा भी शिथिल पड़ता तो शुभ्रा अपनी गांड हिला-हिलाकर मेरे लंड से रगड़ने लगती.

अब मेरा मन अन्दर का सीन देखने में कम लग रहा था और शुभ्रा की गांड में लंड गड़ाने में ज्यादा आनन्द आ रहा था। अब लंड मे तनाव और ज्यादा होने लगा था, साथ ही लग रहा था कि मुझे पेशाब बहुत तेज लगी है और अगर मैं पेशाब करने नहीं गया तो लंड पैन्ट फाड़कर बाहर आ जायेगा.

मैं मामा मामी की चुदाई वाला सीन और शुभ्रा को वहीं छोड़कर जल्दी से अपने रूम में भागा और बाथरूम में घुसकर पैन्ट की जिप खोलकर लंड बाहर निकाला और हिलाने लगा. आंखें बन्द करके मैं मूत निकलने का इंतजार करने लगा और जैसे-जैसे लंड ने पेशाब की धार छोड़नी शुरू की वैसे-वैसे मुझे बड़ी राहत मिलने लगी.

मेरी पलकें अपने आप एक-दूसरे से अलग होने लगीं। मूतने के बाद लंड को अन्दर करके बाहर की तरफ निकलने लगा तो बाथरूम के दरवाजे पर शुभ्रा खड़ी थी.

ओह शिट! जल्दबाजी में मैंने बाथरूम का दरवाजा बन्द नहीं किया था और पता नहीं शुभ्रा कब से वहां खड़ी होकर मुझे मूतता हुआ देख रही थी। उसके चेहरे पर गुस्सा साफ दिखाई पड़ रहा था.

मेरे लंड को अपने हाथ में दबोचते हुए बोली- बहनचोद साले, इतना मजा आ रहा था मम्मी पापा की चुदाई और मेरी गांड में तेरा लंड रगड़ने में … लेकिन तू बहनचोद बीच में छोड़कर मूतने चला आया?

मैं लंड छुड़ाते हुए बोला- पेशाब बहुत तेज आ रही थी इसलिये चला आया। और ये बता साली रंडी तू कब मेरे पीछे-पीछे चली आयी?
उसको दीवार से टिकाकर उसके कपड़े के ऊपर से ही उसकी चूत को सहलाते हुए मैंने पूछा.

वो बोली- जैसे ही तू मेरे पीछे से हटा और दौड़कर कमरे की तरफ आया, मैं भी तेरे पीछे-पीछे आ गयी.
कहकर मुझे धकेलते हुए बोली- अच्छा हट, मैं भी अब मूत लूं.
कहकर उसने अपनी सलवार का नाड़ा खोला और कुर्ती को ऊपर करते हुए अपनी पैन्टी नीचे करके मूतने के लिये बैठ गयी।

इतने में ही मेरी नजर उसकी गोल-गोल चिकनी सेक्सी गांड पर पड़ गयी।

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मूतने के बाद वो उठी और अपने कपड़े को सही करते हुए बोली- ओए बहन चोद.. तू क्या देख रहा था?
मैं- बहन की लौड़ी, जो तू मुझे करते हुए देख रही थी. मैं भी वही देख रहा था.
मैंने उसका हाथ पकड़कर अपनी तरफ खींचते हुए कहा.

मुझसे चिपकते हुए मेरी छोटी बहन बोली- शर्म करो, मैं तेरी बहन हूं.
मैं- तो आज से तू मेरी माल बन जा.
कहते हुए उसके चूचों पर मैंने अपने हाथ रख दिये और दबाने लगा।

कमरे में खामोशी सी छा गयी थी और हम दोनों के होंठ आपस में मिल गये थे। थोड़ी देर तक हम दोनों एक-दूसरे के होंठों को चूसते रहे.

फिर शुभ्रा मुझसे अलग हो गयी. मैंने तुरन्त उसको अपनी गोद में उठाया और पलंग पर पटक दिया और उसके बगल में लेट कर उसके मम्में दबाने लगा.

कहानी पढ़ने से थोड़ा बहुत मुझे समझ में आ गया था कि लड़की को कैसे उत्तेजित किया जाता है. मैं उसके मम्मे दबाने के साथ ही उसके कानों पर होंठों पर अपने दांत गड़ा देता था. फिर उसकी कुर्ती को पेट की तरफ उठाते हुए मैंने उसकी सलवार का नाड़ा खोल दिया.

नाड़ा खोलकर सलवार को कमर से थोड़ा नीचे करके उसकी नाभि पर अपने होंठ फिराने लगा। मेरी इस हरकत पर सिसयाते हुए वो बोली- मैंने कहा था न कि मेरे से दोस्ती करेगा तो तुझे ज्यादा मजा आयेगा और तू है जो किताब पढ़कर अपने लौड़े को मरोड़ रहा था!

मेरे मन में अब तक की जो शुभ्रा थी, वो कहीं खो चुकी थी. अब एक सेक्सी, दोस्त, बोल्ड, चुदासी लड़की … क्या-क्या नाम दूं मैं उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, ने उसकी जगह ले ली थी.

मैं अभी भी उसकी नाभि और घुमटी को चूस-चूस कर अपने दिमाग में एक नयी शुभ्रा को पैदा कर रहा था, जो मेरी चुदासी गर्लफ्रेंड हो चुकी थी. ये शुभ्रा मुझसे झगड़ा करने वाली मेरी ममेरी बहन से बिल्कुल उलट थी.

मैं कुछ ज्यादा ही सोच रहा था कि तभी शुभ्रा की आह-ओह, सी सीईई ईई की आवाज़ से मेरी तंद्रा भंग हुई तो मैंने देखा कि शुभ्रा भी आंखें बन्द किये हुए मेरी जीभ का मजा ले रही थी, जबकि उसकी सलवार और पैन्टी अभी भी कमर के नीचे थी.

अपनी उंगली को मैंने उसकी पैन्टी में फंसाया और झटके में उसके दोनों कपड़ों को नीचे कर दिया और हल्के से उस प्रारम्भिक जगह को चूमा जहां से शुभ्रा की चूत शुरू होती थी.

चूमते हुए ज्यों ही मैं चूत के मध्य में पहुंचा और अपने होंठ उसके ऊपर रखने ही जा रहा था कि शुभ्रा ने अपनी हथेली को मेरे मुंह और अपनी चूत के बीच में रख दिया. मेरे होंठ उसके हाथ पर जाकर रुक गये.

मैंने उसकी तरफ प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा तो उसने मेरे गाल को पकड़ा और अपने मुंह की तरफ लाकर बोली- गोलू (मेरा घर का नाम) … मेरी चूत से कुछ निकल रहा है, वहां पर अपनी जीभ मत चला.
मैं बोला- तो क्या हुआ, कहानी में तो हीरो-हीरोइन गीला भी चाटते हैं।

शुभ्रा- नहीं, मुझे अच्छा नहीं लग रहा है, प्लीज मान जाओ.
मैं- ठीक है।
कहते हुए मैं चूत को सहलाने लगा, मगर जैसे ही मैं उसकी पुतिया को (कली को) भींचने चला.

उसने मेरा हाथ पकड़ लिया.
मैंने कहा- अब क्या हुआ?
वो बोली- मुझे पेशाब बहुत तेज आयी है. मैं पेशाब कर लूं, तब तुम जो चाहो कर लेना.

उसके बहाने को मैं समझ गया. मैं समझ गया कि वो अपनी गीली चूत को साफ करने का बहाना बना रही है.
मैं बोला- ठीक है, जाओ जल्दी से पेशाब करके आओ.

वो उठी और अपनी सलवार पहनने लगी. मैने तुरन्त ही खींचकर उसकी सलवार के साथ-साथ पैंटी भी उतार दी और कुर्ता, ब्रा सब उतारकर उसको बिल्कुल नंगी करके बोला- अब जाओ पेशाब करने।

शुभ्रा ने भी ज्यादा इसका विरोध नहीं किया और नंगी ही बाथरूम में घुस गयी. मैं पीछे-पीछे हो लिया. बाथरूम के अन्दर वो पेशाब करने बैठ गयी. उसके बाद उसने तौलिये को गीला किया और अपनी टांगें फैलाकर चूत अच्छे से साफ की.

फिर तौलिये को धोकर दरवाजे में फैला कर मेरी तरफ देखने लगी.
मैं उससे बोला- अब ठीक है?
उसने भी हाँ में सिर हिलाया।
मैंने मेरी छोटी बहन को एक बार फिर गोद में उठाया और बिस्तर पर ले आया और अपनी बांहों में लेकर उसके निप्पल को दबाते हुए कहा- अचानक तुम शर्मा क्यों गयी?

वो बोली- पता नहीं क्यों मुझे अचानक घिन्न आ गयी।
मैं- इसमें घिन्न आने वाली क्या बात है? मैंने जितनी कहानी पढ़ी हैं, उसमें हर मर्द ही औरत की चूत चाटता है और औरत भी आदमी का लौड़ा चूसती है, और तो और अभी तुम्हारे मम्मी पापा भी तो यही कर रहे थे।

शुभ्रा- हाँ ठीक है, मगर मुझे लगा कि इसी चूत से पेशाब करती हूं और फिर यही चूत चटवाऊं तो अच्छा नहीं लगेगा.
मैं बोला- बस? लेकिन मजा तो इसी में है ना।

वो बोली- अगर मजा इसी में है तो फिर लोग पेशाब नाली में क्यों करते हैं? फिर तो मुंह में ही कर देना चाहिए?
वो मुझसे बहस करने लगी।

मैं झल्लाते हुए- अरे यार, ये सब मुझे नहीं मालूम, मगर जो मालूम है उसमें चूत चटाई और लंड चुसाई होती है. तुम चाहो तो अपनी सहेली से पूछ सकती हो और मुझे तो पूरा मजा चाहिये। मुझे तो तुम्हारी गांड भी चाटने का मन कर रहा है।

शुभ्रा- छी:
मैं- इसमें छी: क्या है? और अगर सेक्स का खेल खेलना है तो पूरा खेलना होगा, नहीं तो …
शुभ्रा- नहीं तो क्या?

मैं- नहीं तो … ये लो।
कहते हुए मैं तेज-तेज मुठ मारने लगा और शुभ्रा से बोला- मैं भी अपना माल निकाल लेता हूं और फिर बाथरूम में जाकर अपने लंड को धो लेता हूं। उसके बाद मैं भी सो जाता हूं और तुम भी सो जाओ.

कहते हुए मैं और तेज-तेज मुठ मारने लगा।

तभी मेरी छोटी बहन ने मेरा हाथ पकड़ लिया.

कहानी अगले भाग में जारी रहेगी.
मेरी बाकी कहानियों की तरह इस कहानी को भी अपना प्यार देना न भूलें. मुझे कमेंट बॉक्स में अपनी राय बतायें अथवा मेरी ईमेल पर मैसेज करें.
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भाई बहन का सेक्स कहानी का अगला भाग: छोटी बहन ने मस्तराम कहानी पढ़ते पकड़ लिया-2

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