लेखक की पिछली कहानी: मालिक की बेटी की कामवासना
प्यारे दोस्तो, मैं बहुत दिनों से सोच रहा था कि आपके साथ अपने जीवन का भाभी सेक्स एक सच्चा किस्सा साझा करूं. व्यस्तता के चलते कई बार लिखने का सोचा, मगर लिख ही न सका. आज मौका मिला है तो आपके सामने पेश कर रहा हूँ.
यह भाभी सेक्स कहानी तब की है, जब मैं इंजीनियरिंग करने के बाद गुरुग्राम में रहकर प्राइवेट नौकरी कर रहा था. इसी के साथ साथ मैं सरकारी नौकरी के लिए कम्प्टीशन की तैयारी भी कर रहा था.
मैं गुरुग्राम में एक बिल्डिंग के टॉप फ्लोर पर रहता था, जहां पर एक कमरा, छोटा सा किचन और टॉयलेट था. बाकी एरिया में खुली छत थी.
मुझसे ठीक नीचे वाली फ्लोर पर रजत भैया रहते थे, जो एक बड़ी कंपनी में वाइस प्रेसीडेंट, सेल्स थे. वे अपनी जॉब के चलते अधिकतर टूर पर ही रहते थे. उनकी पत्नी शशि भाभी भी काफ़ी पढ़ी लिखी थीं, लेकिन आजकल घर पर ही रहती थीं. क्योंकि उनका एक साल का बेटा था, उसकी देखभाल ज़्यादा ज़रूरी थी.
भैया के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी. भाभी की मदद के लिए पूरे दिन एक आया भी घर पर रहती थी, जो भाभी के घर के काम भी करती थी.
भाभी की उम्र करीब 27-28 साल थी. उनके बाल कंधे से थोड़ा नीचे तक थे. भाभी देखने में बहुत सुंदर थीं. एकदम दूध सी गोरी, कद करीब साढ़े पांच फिट का होगा. और भाभी की फिगर का तो बस पूछो ही मत … कसा हुआ 36-30-38 का मस्त बदन था. भाभी के चूचे एकदम मस्त गोल और टाइट थे. लचीली और बलखाती कमर के नीचे भाभी के उभरे हुए चूतड़ ऐसे ठुमकते थे, जो किसी को भी दीवाना कर दें.
भाभी सेक्स के लिए मस्त माल थी. पर वे बहुत समझदार और सलीकेदार महिला थीं. जब वो बोलती थीं, तो जैसे फूल से झड़ते थे.
कभी कभी आते जाते मैं भैया भाभी दोनों को नमस्ते कर देता था. मेरे मन में कुछ भी ग़लत नहीं था. मेरे ऑफिस का टाइम 8 से 5 तक था. सब कुछ ठीक चल रहा था.
ये लगभग 6 महीने पहले की बात है. ऑफिस से आते हुए रास्ते में मुझे रजत भैया मिले. मैंने उनको नमस्ते किया और दोनों लोग घर की तरफ आने लगे.
उन्होंने आज पहली बार मुझसे मेरे बारे में पूछा … और मैंने उनके बारे में.
रास्ते में ही हमारे बीच अच्छी दोस्ती हो गयी … क्योंकि हम दोनों ही इंजीनियर थे. उन्होंने आई आई टी दिल्ली से इंजीनियरिंग की थी और मैंने दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी से अपनी इंजीनियरिंग की थी.
उस दिन पता चला कि भैया और भाभी दोनों उत्तराखंड से हैं और भाभी ने एफ एम एस से एम बी ए किया था.
उनकी फ्लोर पर आते ही उन्होंने मुझसे चाय पीकर जाने की कही, तो मैं मना नहीं कर पाया. मैंने उनसे कमरे में जाकर आने का कहा और वो ‘ठीक है.’ कह कर अपने फ्लैट में घुस गए.
ऊपर पहुंचकर मैंने चेंज किया और नीचे जाकर उनका दरवाजा खटखटाया. भाभी ने दरवाजा खोला, तो मैंने नमस्ते किया. उन्होंने अच्छे से मुस्कुराहट दी और अन्दर बुला लिया. भैया शायद बाथरूम में थे.
उस दिन मेरी भाभी से बात हुई. मैं करीब एक घंटा उन दोनों के साथ रहा और दोनों लोग मेरे बहुत अच्छे दोस्त बन गए.
उसके बाद आते जाते मैं भाभी से बात भी कर लेता था, वो भी मुझसे बहुत अच्छे से बात करती थीं. भाभी की मासूम मुस्कराहट से मेरा दिल खुश हो जाता था.
करीब 3 महीने में मैं और भाभी अच्छे दोस्त बन गए थे. भैया जनरली टूर पर रहते थे, तो भाभी मुझसे बात करके अपने दिल का हाल भी बता देती थीं.
नवम्बर के महीने में सर्दी शुरू हो जाती है. उनके फ्लोर पर धूप कम ही आती थी.
एक शनिवार को भाभी के घर उनकी आया नहीं आई थी और मैं घर पर था. मैं दूध लेने नीचे जा रहा था, तो भाभी मिल गईं.
भाभी- आज ऑफिस नहीं गए?
मैं- आज ऑफ है भाभी.
भाभी- कहां जा रहे हो?
मैं- भाभी दूध लेने मार्केट जा रहा हूँ … आज टिफिन भी नहीं आया है, तो कुछ खाने का भी लाना है.
भाभी- ठीक है … प्लीज़ एक लीटर दूध मेरे लिए भी ला दो, आज आया भी नहीं आई और तुम्हारे भैया भी बाहर गए हैं.
मैंने ओके कहा और चला गया. फिर मैंने दूध लाकर उनको दे दिया और ऊपर आ गया. थोड़ी देर में भाभी ऊपर छत पर आईं, तब मुझे पता चला कि वो हर रोज धूप के लिए ऊपर आ जाती थीं … क्योंकि छत का दरवाजा खुला ही रहता था.
मैं- अरे भाभी आप ऊपर … इतना बड़ा सर्प्राइज़!
भाभी- मैं तो हर रोज ऊपर आती हूँ, नीचे धूप नहीं आती है न … और बेटे की हर रोज मालिश करनी होती है.
उस समय भाभी ने सलवार सूट पहना हुआ था, जिसमें वो बहुत सुंदर लग रही थीं.
मेरे मन में उनके लिए आज तक कभी कुछ बुरा ख्याल नहीं था … लेकिन आज उनको देखा तो मन बदलने लगा.
आज भाभी गजब की सुंदर लग रही थीं. वैसे वो मुझसे बहुत बात करती थीं लेकिन कभी भी ऐसी वैसी कोई बात नहीं की थी. उनकी नज़रों में मैं भी बहुत समझदार और शरीफ़ लड़का था क्योंकि मैं भी सलीके से और लिमिटेड बात करता था.
आज उनको देखकर मेरे मन में ख्याल आया कि अगर मैं भाभी पर लाइन मारूं, तो क्या वो पट जाएंगी. मन ने कहा कि असम्भव … ऐसा हो नहीं सकता. लेकिन फिर भी लाइन मारने में क्या हर्ज है, हो सकता है किस्मत खुल जाए.
भाभी के मदमस्त रूप कर वर्णन तो मैंने ऊपर किया ही है. उनके मस्त चुचे और उठी हुई गांड किसी को भी दीवाना बना देने में सक्षम थे. ऊपर से वो शायद सिंगल हैंडेड ड्रिवन थीं, समझदार थीं, अगर मुझसे पट गईं … तो मेरी तो किस्मत ही खुल जाएगी. ऐसी औरत को अपने लंड के नीचे लेना अपने आपमें बहुत बड़ी बात थी. ये सोचकर मैंने ट्राइ मारने का फ़ैसला किया, लेकिन सलीके से … ताकि भाभी को बुरा ना लगे.
भाभी चटाई पर बैठी थीं और बेटे की मालिश कर रही थीं. उनके चूतड़ फैल कर बाहर की तरफ आ रहे थे. चुचे भी मस्त हिल रहे थे. ये सब देखकर मेरा लंड खड़ा होने लगा.
मैं- भाभी, क्या आप एक कप चाय लेंगी!
भाभी- हां ले लूंगी, लेकिन कप अच्छे से साफ कर लेना.
मैं- मैं हमेशा किचन साफ़ ही रखता हूँ.
भाभी- हा हा … बैचलर के कमरे जरा यूं ही अस्त व्यस्त रहते हैं … इसलिए कहा.
मैंने मन में सोचा कि आज कितना नाटक कर रही हो कि कप साफ़ कर लेना. एक दिन वो भी आएगा, जब आप मेरा लंड चूसोगी और मैं आपकी चूत. उस समय सारी साफ़ सफाई गांड में घुस जाएगी.
खैर … मैंने चाय बनाई और दो कप में लेकर छत पर आ गया. हम दोनों ने चाय पी. उस दिन काफ़ी देर तक भाभी से बात होती रही. फिर भाभी बेबी को लेकर नीचे चली गईं.
उसी दिन शाम को मुझे पता चला कि भैया बाहर से 15 दिन तक नहीं आने वाले हैं और आया भी कुछ दिन नहीं आएगी.
इसी तरह कुछ दिन बीत गए, भाभी और मैं बहुत बात करने लगे थे.
एक दिन जब मैं ऑफिस से आया, तो भाभी का गेट खुला था. मैंने दरवाजा खटखटाया, तो भाभी बेडरूम से बाहर आईं. शायद वो बेटे को सुला रही थीं.
मैं- भाभी, आप कहो तो आज डिनर करने बाहर चलें?
भाभी- नहीं, रजत मना कर देंगे. अभी बेटा छोटा है ना!
मैं- तो उनसे मत कहो कुछ भी. हम लोग जल्दी वापस आ जाएंगे और वैसे भी हर बात हज़्बेंड को नहीं बतानी चाहिए. आप इतने दिन अकेली रहती हो, थोड़ा घूम लोगी, तो मन भी बहल जाएगा.
थोड़ा सोचकर भाभी ने हां कर दिया और कहा कि हम 8 बजे से पहले वापस आ जाएंगे.
मैंने गाड़ी निकाली और हम दोनों पड़ोस के एक रेस्ट्रोरेंट में चले गए. मैंने ऑर्डर कर दिया.
भाभी- तुमने ऐसा क्यों कहा कि सारी बात हज़्बेंड को नहीं बतानी चाहिए.
मैं- अरे भाभी, आदमी का दिमाग़ ऐसा ही होता है … कितना भी विश्वास हो, लेकिन कुछ भी सोच सकता है. इसीलिए मैं तो कहता हूँ कि आप हम दोनों की बातें उनके सामने कभी मत किया करो. हो सकता है … उनको बुरा लग जाए. उनको उतना ही बताओ, जितना ज़रूरी है.
भाभी- लेकिन अगर तुमने बताया तो!
मैं- अरे, मैं क्यों बताने लगा. वैसे भी मेरी खुशी इसमें है कि आप मुझसे बात करती रहें … और आपका घर परिवार भी अच्छा चले. मैं आपको खुश देखना चाहता हूँ, खुश रखना चाहता हूँ ना कि दुखी.
तब तक खाना आ गया और हम खाने लगे.
भाभी- वैसे संजय, तुम्हारी गर्ल फ्रेंड तो खुश रहती होगी, कितने समझदार हो तुम, कितना ध्यान रखते हो.
मैं- मेरी कोई गर्ल फ्रेंड नहीं है भाभी, कॉलेज में एक थी, उसकी शादी हो गयी. उसके बाद मैं यहां आ गया. बाकी सब आपको पता ही है. वैसे बुरा नहीं मानो तो एक बात कहूँ.
भाभी- हां कहो न!
मैं- आप बहुत सुंदर हो, समझदार हो. मेरा मन करता है कि आपको ही गर्लफ्रेंड बना लूं … हा हा हा हा.
भाभी- हा हा हा हा … अरे पागल मैं तो शादीशुदा हूँ.
मैं- तो क्या हुआ, क्या शादीशुदा गर्लफ्रेंड नहीं हो सकती!
भाभी- किसी बिना शादीशुदा को पटाओ … हा हा हा हा … वैसे भी रजत को पता चलेगा तो जान ले लेंगे … हा हा हा हा.
मैं- अरे भाभी उनको कौन बताएगा. मैं तो कभी भी उनके होते हुए आपको ना तो मैसेज करूंगा और ना ही मिलूंगा. आपकी इज़्ज़त और आदर हमेशा बना कर रखूंगा, आप हमेशा खुश रहें … यही तो मैं चाहता हूँ.
भाभी- तुम्हारे होते हुए मैं खुश ही रहती हूँ, मुझे अकेलापन नहीं लगता. इतना बहुत है मेरे लिए … गर्ल फ्रेंड बना लेने से क्या अलग हो जाएगा. हा हा हा.
मैं- भाभी मेरे मन में बहुत सारी बातें होती हैं, जो मैं कह नहीं पाता हूँ. अगर आप मेरी गर्लफ्रेंड बन जाओगी, तो दिल की बातें आपके साथ करने में मुझे हिचक नहीं होगी. वैसे भी आपको गर्लफ्रेंड के रूप में पाने वाला इस दुनिया का सबसे लकी आदमी होगा.
भाभी- अच्छा … हा हा हा … चलो अब चलते हैं बहुत देर हो गई है. आठ भी बजने वाले हैं. रजत का भी फोन आने वाला है … उनको बुरा लगेगा.
मैं- ठीक है भाभी, चलते हैं.
मैंने समझ लिया था कि भाभी ने मेरी बात को घुमा दिया और कोई रिप्लाई नहीं किया. इस विषय पर मेरी दुबारा बात करने की हिम्मत नहीं हुई.
इसी तरह करीब एक महीना और बीत गया, लेकिन मैंने फील किया कि भाभी अब कुछ ज्यादा ही बिंदास रहने लगी थीं. मैं बहुत बार उनके घर चाय पीने चला जाता था और वो भी ऊपर आ जाती थीं.
उस समय रजत भैया एक हफ्ते से बाहर गए हुए थे, फ्राइडे का दिन था. रजत भैया को अगले हफ्ते वापस आना था. मैं घर पहुंचा, भाभी का दरवाजा खटखटाया. भाभी किचन में कुछ काम कर रही थीं. उन्होंने साड़ी पहनी हुई थी … गजब माल लग रही थीं.
मैं- भाभी आज तो गजब ढा रही हो आप!
भाभी- अच्छा, ऐसा क्या है आज?
मैं- साड़ी में आप गजब लगती हो.
भाभी- हर कोई गजब लगती है.
मैं- आप कुछ ज़्यादा ही लगती हो, भगवान ने आपको फुर्सत में बनाया है, लिमिटेशन है वरना …
भाभी- वरना क्या … हा हा हा हा!
मैं- वरना, मैं आपको बांहों में ले लेता, आपको किस करता और बहुत प्यार करता … हा हा हा हा.
भाभी ने इस पर कुछ नहीं कहा और मुस्कुराते हुए किचन में काम करने लगीं. मैं सोफे पर बैठकर उन्हें पीछे से देख रहा था, उनके चूतड़ मस्त हिल रहे थे और वो काम किए जा रही थीं.
मैंने सोचा कि बेटा आज मौका है, हिम्मत करके चौका मार दे, देखा जाएगा. भाभी नहीं मानी, तो सॉरी बोल देना.
ये सोचकर मैं उठा और भाभी के पीछे खड़ा हो गया. मैंने उनको कंधे पर हाथ लगाया. उन्होंने कुछ नहीं कहा, तो मैं समझ गया. मैंने उनको अपनी तरफ घुमाया, वो आराम से घूम गईं और सर नीचे करके खड़ी हो गईं.
मैने झटके से उनको गले लगा लिया, उन्होंने कुछ नहीं कहा. मेरी तो लॉटरी लग गई कि भाभी सेक्स के लिए तैयार हैं.
आगे भाभी की चुदाई की कहानी कैसे हुई, पूरे विस्तार से भाभी सेक्स का वर्णन करूंगा. आप मुझे मेल कर सकते हैं.
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भाभी सेक्स की कहानी का अगला भाग: पड़ोस की भाभी सेक्स की चाह-2
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