हसीन गुनाह की लज़्ज़त-3
This story is part of a series: keyboard_arrow_left हसीन गुनाह की लज़्ज़त-2 keyboard_arrow_right हसीन गुनाह की लज़्ज़त-4 View all stories in series अगला सारा दिन मैंने मन ही मन चिढ़ते कुढ़ते हुए गुज़ारा। जो कुछ और जितना कुछ प्रिया के साथ रातों को हो रहा था, उस से ज़्यादा होने की गुंजाईश बहुत कम थी …